नागरिक उड्डयन मंत्रालय
नागर विमानन मंत्रालय द्वारा विमानन क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा देने और हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए की गई पहलें
टिकाऊ विमानन ईंधन के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है
वायु क्षेत्र में ग्रीन हाउस गैसों में कमी के लिए कदम उठाए जा रहे हैं
एएआई ने हवाई अड्डों के लिए 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति के उद्देश्य से रोडमैप तैयार किया है
Posted On:
22 MAR 2023 12:45PM by PIB Delhi
भारत के विमानन क्षेत्र में हाल के वर्षों में तेजी से वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप हवाई अड्डों का कार्बन उत्सर्जन बढ़ा है। नागर विमानन मंत्रालय ने विमानन क्षेत्र में सतत विकास को प्रोत्साहित करने तथा हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अनेक पहल की है।
हवाई अड्डों से ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन को तीन स्थानों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
स्थान 1- हवाई अड्डों के अपने या नियंत्रित स्रोतों से उत्सर्जन। उदाहरण के लिए हवाई अड्डे का विद्यु संयंत्र जो जीवाश्म ईंधन जलाता है, गैसोलीन का उपयोग करने वाले पारंपरिक वाहन या डीजल ईंधन के उपयोग वाले पारंपरिक जीएसई।
स्थान 2- खरीदी गई ऊर्जा (विद्युत ताप आदि) की खपत से अप्रत्यक्ष उत्सर्जन।
स्थान 3- अप्रत्यक्ष उत्सर्जन जिसे हवाई अड्डा नियंत्रित नहीं करता, लेकिन प्रभावित कर सकता है। उदाहरण, किराए का उत्सर्जन, हवाई अड्डे पर विमान उत्सर्जन (विमान के पार्क किए जाने के बाद) हवाई अड्डा आने-जाने वाले यात्री वाहन तथा अपशिष्ट निष्पादन और प्रसंस्करण से उत्सर्जन।
विश्लेषण के अनुसार हवाई अड्डे से कुल प्रत्यक्ष उत्सर्जन में स्थान 1 का योगदान 5 प्रतिशत तथा स्थान 2 का योगदान 95 प्रतिशत है।
ग्रीन हवाई अड्डाः ग्रीन हवाई अड्डा उस हवाई अड्डे को कहा जाता है, जिसने अपने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के सतत व्यवहारों को लागू किया है तथा सतत विकास को प्रोत्साहित किया है। ग्रीन हवाई अड्डों का उद्देश्य अपने कार्बन चिन्ह को कम करना, ऊर्जा और जल संसाधनों का संरक्षण, अपशिष्ट तथा उत्सर्जन में कमी लाना है।
नागर विमानन मंत्रालय द्वारा हितधारकों को जागरूक बनाने के लिए की गई पहल
विमानन क्षेत्र में सतत विकास को प्रोत्साहित करने और हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नागर विमानन मंत्रालय ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं-
- नागर विमानन मंत्रालय ने कार्बन एकाउंटिंग को मानक प्रदान करने तथा जलवायु परिवर्तन में कमी के साथ-साथ भारतीय हवाई अड्डों की रिपोर्टिंग ढांचे पर नॉलेज आदान-प्रदान करने का सत्र आयोजित किया।
- संचालन गत सभी ब्राउनफील्ड हवाई अड्डों तथा भविष्य में आने वाले ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा संचालकों को सलाह दी गई कि वेः
- कार्बन न्यूट्रलिटी और नेट जीरो, जो अन्य बातों के साथ 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा के उपयोग को शामिल करता है, प्राप्ति की दिशा में काम करे।
- पैनल में शामिल सत्यापनकर्ताओं के माध्यम से एयरपोर्ट्स काउंसिल इंटरनेशनल (एसीआई)/ आईएसओ 14064 द्वारा मान्यता प्राप्त करें।
- कार्बन प्रबंधन योजनाओं के साथ-साथ कार्बन में कमी के उपाय अपनाएं।
- सभी मुख्य सचिवों/प्रशासकों को ग्रीनफील्ड हवाई विकास प्रस्ताव, डीपीआर, हवाई अड्डा मास्टर प्लान आदि में डिजाइन/मानकों को शामिल करके कार्बन उत्सर्जन में कमी के उपाय सुनिश्चित करने तथा नेट जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने की सलाह
नागर विमानन मंत्रालय को भेजने से पहले दी।
- हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण को हवाई अड्डा शुल्क निर्धारण के लिए हरित ऊर्जा उपयोग से जुड़ी लागत पर विचार करने की सलाह दी।
टिकाऊ विमानन ईंधन (एसएफ) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विमानन मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमः
आईसीओए ने अंतर्राष्ट्रीय विमानन से उत्सर्जन कम करने में विमानन के लिए कार्बन ऑफ सेटिंग एंड रिडेक्शन स्कीम (सीओआरएसआईए) प्रारंभ की है, जिसके लिए बेस लाइन मूल्य से ऊपर उत्सर्जन की भरपाई की आवश्यकता होती है। सीओआरएसआईए योजना की परिकल्पना 3 चरणों में की गई हैः
· पहला चरण- (2024-2026)
पायलट और पहला चरण स्वैच्छिक चरण हैं, जबकि दूसरा चरण सभी आईसीएओ सदस्य राज्यों के लिए अनिवार्य है। भारत सरकार ने सीओआरएसआईए के स्वैच्छिक चरणों में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया है। भारतीय विमानन कंपनियों के लिए सीओआरएसआईए के अंतर्गत भरपाई की आवश्यकता 2027 से प्रारंभ होगी।
- एयरलाइनें या तो एसएएफ का उपयोग कर सकती हैं या आईसीएओ स्वीकृत उत्सर्जन इकाई कार्यक्रमों से कार्बन क्रेडिट खरीद कर अपने उत्सर्जन की भरपाई कर सकती हैं।
- 41वीं आईसीएओ महासभा में सीओआरएसआईए की बेस लाइन को 2019 उत्सर्जन के 85 प्रतिशत तक संशोधित किया गया है। इसके अतिरिक्त एयरलाइनों के लिए इंडिविजुअल ग्रोथ फैक्टर (आईजीएफ) को 2030-2032 अनुपालन चक्र में 20 प्रतिशत से घटाकर शून्य प्रतिशत तथा अंतिम 2033-2035 अनुपालन चक्र में 70 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है।
- विमानन क्षेत्र में कार्बन घटाने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बायो-एटीएफ कार्यक्रम को आगे ले जाने के लिए बायो-एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) कार्यक्रम समिति का गठन किया है।
- बायो-एटीएफ कार्यक्रम समिति ने पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट स्वीकृति के लिए प्रस्तुत की है।
- निजी भारतीय विमानन कंपनी स्पाइस जेट ने 2018 में एक इंजन में एटीएफः (25:75 के अनुपात में) मिश्रित जैव ईंधन का उपयोग करते हुए बॉमबार्डियर-क्यू 400 विमान के साथ एक प्रदर्शन उड़ान आयोजित की थी।
- नागर विमानन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय ने अनिवार्य चरण प्रारंभ होने के बाद एयरलाइनों पर सीओआरएसआईए के प्रभाव के बारे में उन्हें जागरूक बनाने के लिए भारतीय विमानन कंपनियों के साथ बैठकें की हैं और परिणामस्वरूप इसके लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।
- अभी एयर बस और बोइंग विमान एसएफए के 50 प्रतिशत मिश्रण के साथ उड़ान भरने में सक्षम हैं। दोनों निर्माताओं का लक्ष्य 2030 तक 100 प्रतिशत एसएएफ क्षमता को सक्षम करना है।
- क्लीन स्काइज़ फॉर टुमारो (सीएसटी) विश्व आर्थिक मंच की एक पहल है, जो विमानन क्षेत्र को टिकाऊ विमानन के उपयोग में तेजी लाकर नेट जीरो उत्सर्जन की ओर बढ़ने में सहायता करती है। सीएसटी गठबंधन के प्रतिनिधि बायो-एटीएफ कार्यक्रम समिति के सदस्य हैं। एयरलाइंस, हवाई अड्डे, एसएएफ उत्पादक तथा ओईएमसीएसटी गठबंधन का हिस्सा हैं।
हवाई अड्डों द्वारा की गई पहलेः
- उन्नत प्रौद्योगिकियों तथा ऑटोमेशन को अपनाना
- ऊर्जा कुशल एचवीएसी तथा लाइटिंग सिस्टम
- ऊर्जा कुशल बैगेज हैंडलिंग सिस्टम आदि
- ग्रीन बिल्डिंग मानकों के अनुरुप भवन डिजाइन
- दिन के उजाले की अवधारणाओं का उपयोग
- पर्यावरण अनुकूल सामग्री अपनाना
- ऑनसाइट सौर ऊर्जा संयंत्र का विकास
- खुली पहुंच, दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौता (पीपीए) आदि जैसे ऑफसाइट व्यवस्था के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग
- एयरपोर्ट कोलेबोरेटिव डिसिजन मेकिंग (ए-सीडीएम) को लागू करना
- हितधारक सहयोग और विचार-विमर्श आदि
वायु क्षेत्र में ग्रीन हाऊस गैस (जीएचजी) में कटौती के लिए नागर विमानन मंत्रालय द्वारा की गई पहलेः
- हवाई क्षेत्र का लचीला उपयोग (एफयूए): हवाई क्षेत्र के लचीले उपयोग के कारण अगस्त 2020 में इसके लागू किए जाने के बाद से एटीएफ खर्चों पर लगभग 400 करोड़ रुपए की संचयी बचत के अतिरिक्त लगभग 90,000 टीसीओ 2 के कार्बन उत्सर्जन में संचयी कमी हासिल की गई। इसके अतिरिक्त भारतीय वायु सेना, रक्षा मंत्रालय के परामर्श और समन्वय से एफयूए के क्रियान्वयन से लगभग 128 सीडीआर (कंडीशनल मार्ग) लागू किए गए।
- केंद्रीय यातायात प्रवाह प्रबंधन (सी-एटीएफएम) का क्रियान्वयनः यह प्रबंधन तकनीक एएआईओ को भारतीय आकाश में रणनीतिक रूप से हवाई यातायात प्रवाह प्रबंधन में सहायता कर रही है। इससे कम देरी और क्षमता भंडारण तथा अनुकूलन सुनिश्चित करने में मदद मिली है, जिससे ईंधन की खपत और जीएचजी उत्सर्जन में कमी आई है।
सी-एटीएफएम प्रणाली जनवरी 2017 में परिचालित की गई, जिसे भारत देशभर में हवाई यातायात प्रवाह नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए विश्व का 7वां देश (अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, जापान और ब्राजील के बाद) बन गया। सी-एटीएफएम लागू होने के कारण केलैंडर वर्ष 2022 के दौरान लगभग 2141 टन एटीएफ की अनुमानित बचत हुई, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन उत्सर्जन में लगभग 6767 टीसीओ 2 की कमी आई है।
कार्य प्रदर्शन आधारित नेवीगेशन (पीबीएन) का क्रियान्वयनः पीबीएन हवाई मार्गों/आगमन प्रस्थान पथों/दृष्टिकोण प्रक्रियाओं के विकास को समर्थन देता है, जो ट्रैकमील अवतरण और चढ़ाई प्रोफाइल को कम/अनुकूलित करने में मदद करते हैं तथा इस तरह हवाई क्षेत्र की क्षमता बढ़ाते हैं। इन उपायों से परिचालन दक्षता में सुधार होता है और ईंधन खपत तथा जीएचजी उत्सर्जन में कमी आती है।
निरंतर अवतरण संचालन (सीडीओ): सीडीओ को विमान को एक अत्यधिक ईंधन कुशल आगमन उड़ान पथ बनाए रखने की अनुमति देने के लिए लागू किया गया है, जो जमीन पर ईंधन की खपत तथा शोर को कम करने में मदद करता है। परिणामस्वरूप जीएचजी उत्सर्जन कम होता है।
एयरपोर्ट काउंसिलिंग इंटरनेशनल-वैश्विक रूपरेखा
एयर पोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल(एसीआई) ने एयरपोर्ट कार्बन प्रत्यायन कार्यक्रम शुरू किया है, जो हवाई अड्डों पर कार्बन प्रबंधन का वैश्विक मानक है। कार्यक्रम हवाई अड्डों को अपने कार्बन उत्सर्जन का आकलन करने, कार्बन प्रबंधन योजना विकसित करने तथा उनके कार्बन चिन्हों को कम करने में सहायता देता है।
उपलब्धियां –
- देश के शीर्ष दो प्रमुख हवाई अड्डों- दिल्ली और मुंबई ने एसीआई के उच्चतम स्तर 4+ कार्बन प्रत्यायन प्राप्त किया है। आज एशिया प्रशांत में केवल तीन हवाई अड्डे हैं, जिन्हें यह उपलब्धि मिली है।
- हैदराबाद और बंगलूरू ने कार्बन न्यूट्रल (लेवल 3+) होने का दर्जा प्राप्त कर लिया है।
- कोलकाता, भुवनेश्वर और वाराणसी हवाई अड्डों पर एएआई ने दिसंबर 2019 में लेवल2 एयर पोर्ट कार्बन प्रत्यायन हासिल किया तथा 23 और हवाई अड्डों के लिए एसीआई-एसीए लेवल2 प्रमाणन प्रक्रिया में है।
- एएआई ने अब तक 54 मेगावाट से अधिक संचयी क्षमता वाले विभिन्न हवाई अड्डों पर सौर विद्युत संयंत्र पहले ही स्थापित कर दिए हैं। एएआई खुली पहुंच और हरित विद्युत शुल्क के माध्यम से लगभग 53 मिलियन यूनिट सौर ऊर्जा भी खरीद रहा है। इस तरह आज एएआई के हवाई अड्डों की कुल विद्युत खपत में नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) का हिस्सा लगभग 35 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
- अधिकतर हवाई अड्डों ने 2024 तक हरित ऊर्जा के 100 प्रतिशत उपयोग तथा 2030 तक नेट जीरो उपयोग की प्राप्ति का लक्ष्य दिया है।
- मुंबई, कोच्चि तथा 25 एएआई हवाई अड्डे 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं। कोच्चि हवाई अड्डा विश्व का पहला ग्रीन एयर पोर्ट है, जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा संचालित है।
- एएआई ने 2024 तक अपनी शेष परिचालन हवाई अड्डों पर 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा प्राप्त करने का लक्ष्य दिया है। इस संबंध में एक रूपरेखा अनुलग्नक में दी गई है।
- लगभग सभी प्रमुख हवाई अड्डों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी) स्थापित किए गए हैं तथा शेष हवाई अड्डों पर एसटीपी स्थापित किए जा रहे हैं।
- भारतीय विमानन पतनन प्राधिकरण ने अपनी अनुसूचित परिचालन वाले हवाई अड्डों की योजना तैयार की है तथा वर्तमान और आने वाली हवाई अड्डा परियोजनाओं के लिए ऊर्जा तीव्रता को कम करने जैसी पहल की है।
- वायु यातायात नियंत्रकों को कार्बन न्यूट्रलिटी के प्रति जागरूक बनाने के लिए इंडक्शन प्रशिक्षण कार्यक्रम विभाग के रूप में एक प्रशिक्षण मॉड्यूल बनाया गया है।
- एयरपोर्ट कोलेबोरेटिव डिसिजन मेकिंग (ए-सीडीएम) के लागू करने से इंटर सेक्शन प्रस्थान को प्रोत्साहित करके जमीनी परिचालन दक्षता में वृद्धि हुई है, जिससे ईंधन और जीएचजी उत्सर्जन में कमी आई है।
- चेन्नई और कोलकाता हवाई अड्डों पर पायलट परियोजना के रूप में ग्रीन टैक्सिंग के लिए टैक्सी बॉट्स का प्रावधान किया जा रहा है ताकि विमान को उसके इंजन को चलाए बिना ले जाया जा सके, जिससे एटीएफ के जलने से बचा जा सकेगा, जीएचजी उत्सर्जन में कमी आएगी।
अनुलग्नकः
100% नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एएआई का रोडमैप
हासिल
(25 हवाई अड्डे)- पुड्डुचेरी, कानपुर (सिविल), हुबली, बेलगावी, मैसूर, तेजू, कांगड़ा, शिमला, कुल्लू, जम्मू, श्रीनगर, लेह, इंफाल, पकयोंग, पंतनगर, देहरादून, दीमापुर, जलगाँव, कोहलापुर, पुणे, औरंगाबाद, गोंदिया, अकोला, शोलापुर, जुहू।
मार्च 2023 तक प्राप्त किया जाना है
(13 हवाई अड्डे)- भुवनेश्वर, झरसुगुड़ा, गोरखपुर, कुशीनगर, हिंडन, वाराणसी, प्रयागराज, बरेली, मुरादाबाद, जबलपुर, भोपाल, सलेम, तूतीकोरिन।
जून 2023 तक प्राप्त किया जाना है
(12 हवाई अड्डे)- मेरठ, खजुराहो, इंदौर, बेगमपेट, कानपुर (चौक), कडप्पा, ग्वालियर, त्रिची, कोयम्बटूर, मदुरै, चेन्नई, कूचबिहार।
दिसंबर 2024 तक प्राप्त किया जाना है
(46 हवाई अड्डे)- अयोध्या, तिरुपति, राजमुंधरी, लीलाबाड़ी, पोरबंदर, होल्लोंगी, देवघर, केशोड, विजाग, सूरत, गोवा, कालाबुरागी, कांडला, सफदरजंग, भावनगर, आगरा, रूपसी, जामनगर, अगरतला, बीकानेर, जैसलमेर, भुज, राजकोट, रायपुर, गया, दरभंगा, पटना, तेजपुर, जोरहाट, कोटा, कालीकट, डिब्रूगढ़, जोधपुर, किशनगढ़, रांची, विजयवाड़ा अमृतसर, उदयपुर, आदमपुर, लुधियाना, बठिंडा, पठानकोट, दीव, बारापानी, सिलचर, वड़ोदरा।
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