कोयला मंत्रालय
कोल इंडिया लिमिटेड बड़े पैमाने पर एम-सैंड परियोजनाओं की शुरुआत करेगी
सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले रेत उत्पादन पर ध्यान केंद्रित
कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनियां 2024 तक पांच एम-रेत संयंत्र चालू करेंगी
Posted On:
27 JAN 2023 11:02AM by PIB Delhi
खान और खनिज (विकास और विनियम) अधिनियम, 1957 (एमएमडीआर अधिनियम) के तहत रेत को "लघु खनिज" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। गौण खनिजों का प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकारों के पास है और तदनुसार इसे राज्य विशिष्ट नियमों के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। बहुत अधिक मांग, नियमित आपूर्ति और मानसून के दौरान नदी के इकोसिस्टम की सुरक्षा के लिए रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध के कारण नदी की रेत का विकल्प खोजना बहुत आवश्यक हो गया है। खान मंत्रालय द्वारा तैयार ‘सैंड माइनिंग फ्रेमवर्क’ (2018) में कोयले की खानों के ओवरबर्डन (ओबी) से क्रशड रॉक फाइन्स (क्रशर डस्ट) से निर्मित रेत (एम-सैंड) के रूप में प्राप्त रेत के वैकल्पिक स्रोतों की परिकल्पना की गई है।
‘ओपनकास्ट माइनिंग’ के दौरान कोयला निकालने के लिए ऊपर की मिट्टी और चट्टानों को कचरे के रूप में हटा दिया जाता है तथा खंडित चट्टान (ओवरबर्डन या ओबी) को डंप में फेंक दिया जाता है। अधिकांश कचरे का सतह पर ही निपटान किया जाता है जो काफी भूमि क्षेत्र को घेर लेता है। खनन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए व्यापक योजना और नियंत्रण की आवश्यकता होती है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने खानों में रेत के उत्पादन के लिए ओवरबर्डन चट्टानों को प्रोसेस करने की परिकल्पना की है जहां ओबी सामग्री में लगभग 60 प्रतिशत बलुआ पत्थर होता है जिसका ओवरबर्डन को कुचलने और प्रसंस्करण करने के माध्यम से उपयोग किया जा सकता है।
सीआईएल की ‘ओबी टू सी-सैंड पहल इसकी ओ सी खानों में अपशिष्ट ओवरबर्डन की प्रोसेसिंग सुविधा प्रदान कर रही है। कोयला खानों के ओवरबर्डन से विनिर्मित रेत (एम-सैंड) के अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय स्थिरता के संबंध में कई लाभ हैं:
- लागत-प्रभावशीलता: प्राकृतिक रेत के उपयोग की तुलना में विनिर्मित रेत का उपयोग करना अधिक सस्ता हो सकता है, क्योंकि इसे कम लागत पर बड़ी मात्रा में उत्पादित किया जा सकता है।
- स्थिरता: निर्मित रेत में एक समान दानेदार आकार हो सकता है, जो उन निर्माण परियोजनाओं के लिए लाभदायक हो सकता है जिनके लिए एक विशिष्ट प्रकार के रेत की आवश्यकता होती है।
- पर्यावरणीय लाभ: विनिर्मित रेत का उपयोग प्राकृतिक रेत के खनन की आवश्यकता को कम कर सकता है। प्राकृतिक रेत के खनन के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं। इसके अलावा, कोयले की खदानों से ओवरबर्डन का उपयोग करने से उन सामग्रियों का पुन: उपयोग करने में मदद मिल सकती है जिन्हें अन्यथा रूप से अपशिष्ट माना जाता है।
- पानी की कम खपत: विनिर्मित रेत का उपयोग निर्माण परियोजनाओं के लिए आवश्यक पानी की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है, क्योंकि इसे उपयोग करने से पहले धोने की आवश्यकता नहीं होती है।
- बेहतर कार्य क्षमता: निर्मित रेत अधिक दानेदार होता है और इसकी सतह खुरदरी होती है, जो इसे निर्माण परियोजनाओं के लिए अधिक व्यावहारिक बनाती है।
- ओबी डंपों द्वारा कब्जा की गई भूमि को वैकल्पिक लाभदायक उद्देश्यों के लिए मुक्त किया जा सकता है।
- अपशिष्ट ओवरबर्डन से रेत की प्राप्ति अपशिष्ट उत्पाद का सर्वोत्तम उपयोग है।
- उत्पादित रेत की व्यावसायिक बिक्री से कोयला कंपनियों को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हो सकता है।
- वाणिज्यिक उपयोग के अलावा, उत्पादित रेत का उपयोग भूमिगत खानों में रेत के भंडारण के लिए भी किया जाएगा, जिससे सुरक्षा और संरक्षण में वृद्धि होगी।
- नदी से कम बालू निकाले जाने से चैनल बेड और नदी के किनारों का कम क्षरण होगा और जल आवास की रक्षा होगी।
- जल स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी।।
सीआईएल में ओबी से रेत संयंत्रों की स्थिति:
मौजूदा ओबी से रेत संयंत्र
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कंपनी
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संयंत्र का नाम
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रेत उत्पादन क्षमता (सीयूएम/प्रतोदिन)
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डब्ल्यूसीएल
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भानेगांव
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250
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गोंडेगांव
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2000
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ईसीएल
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कजोरा क्षेत्र
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1000
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एनसीएल
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अमलोहरी
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1000
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4250
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प्रस्तावित ओबी से रेत संयंत्र
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कंपनी
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संयंत्र का नाम
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रेत उत्पादन क्षमता (सीयूएम/ प्रतिदिन)
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कार्य शुरू होने अनुमानित तिथि
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डब्ल्यूसीएल
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बल्लारपुर
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2000
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मई 2023
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दुर्गापुर
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1000
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मार्च 2024
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एसईसीएल
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मानिकपुर
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1000
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फरवरी 2024
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सीसीएल
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कथारा
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500
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दिसंबर 2023
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बीसीसीएल
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बरोरा क्षेत्र
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1000
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जुलाई 2024
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5500
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प्रस्तावित पांच संयंत्रों में से, डब्ल्यूसीएल के बल्लारपुर संयंत्र में मई 2023 तक उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है। चार संयंत्र (डब्ल्यूसीएल, एसईसीएल, बीसीसीएल और सीसीएल में एक-एक) निविदा प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं।
मौजूदा ओबी से रेत संयंत्रों का कार्य प्रदर्शन:
कंपनी (संयंत्र)
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ओबी संसाधित (एम3)
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बालू का उत्पादन किया (एम 3)
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जुटाया गया राजस्व
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उपयोग
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डब्ल्यूसीएल
(बेंगानन और गोंडेगांव)
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4,00,000
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2,03,000
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11.74 करोड़
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(i) पीएमएवाई के तहत घरों के निर्माण के लिए नागपुर इंप्रूवमेंट ट्रस्ट (एनआईटी) को बेचा गया
(ii) मॉयल को सैंड भंडारण के लिए बेचा गया
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ईसीएल
(कजोरा क्षेत्र -
16 सितंबर 2022 को कार्य शुरु किया गया)
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10,000
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5,000
|
-
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भूमिगत भंडारण के लिए उपयोग किया जाता है
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एनसीएल
(अमलोहरी परियोजना)
13 जनवरी 2023 को कार्य शुरू किया
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8,000
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4,000
(ट्रायल रन के दौरान)
|
-
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बाजार में बेचने के लिए ई-नीलामी प्रक्रियाधीन है
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कुल
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418000
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212000
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11.74 करोड़
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इन सभी संयंत्रों से लगभग 60 लाख सीयूएम ओबी संसाधित करके रेत उत्पादन 29 लाख घन मीटर प्रति वर्ष होने की उम्मीद है।
कजोरा प्लांट, ईसीएल
गोंडेगांव प्लांट, डब्ल्यूसीएल
अमलोहरी प्लांट, एनसीएल
ओबी से सैंड पहल में तेजी लाने के लिए, सीआईएल ने सहायक कंपनियों में ऐसे ही अन्य संयंत्र स्थापित करने के लिए एक मॉडल बोली दस्तावेज तैयार किया है जिसमें व्यापक भागीदारी के लिए नियम और शर्तों को संशोधित किया गया है। सफल बोलीदाता को उत्पादित रेत का विक्रय मूल्य और विपणन योग्यता निर्धारित करने की स्वतंत्रता होगी।
ओबी से गैंड की पहल के अलावा, डब्ल्यूसीएल ने सड़क निर्माण, रेलवे के लिए निर्माण, भूमि आधार समतलीकरण और अन्य प्रयोगों के लिए 1,42,749 एम3 ओबी बेचा है और 1.54 करोड़ रुपये अर्जित हैं। एसईसीएल ने रेलवे साइडिंग और एफएमसी परियोजनाओं के लिए भी 14,10,000 घन मीटर ओबी का उपयोग किया है। सीआईएल की अन्य सहायक कंपनियां भी अन्य उद्देश्यों के लिए अपने ओबी का उपयोग करने के लिए इसी तरह की पहल कर रही हैं।
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