विधि एवं न्याय मंत्रालय
वर्षांत समीक्षा 2022: न्याय विभाग, विधि और न्याय मंत्रालय
वर्ष 2022-2023 के दौरान 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 755 जिलों में 1 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करने के लिए टेली-लॉ का विस्तार किया गया
उच्च न्यायालयों में 165 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई यह एक वर्ष में की गई सर्वाधिक नियुक्तियां हैं
डिजिटल कोर्ट पहल का उद्देश्य न्यायाधीशों को डिजिटल रूप में अदालती रिकॉर्ड तक पहुंच प्रदान करके अदालतों को कागज रहित व्यवस्था में सक्षम बनाना है
Posted On:
30 DEC 2022 12:50PM by PIB Delhi
1. न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण:
- उच्च न्यायालयों में 165 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई जो एक वर्ष में की गई नियुक्तियों की सर्वाधिक संख्या है- इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 13, आंध्र प्रदेश में 14, बॉम्बे में 19, कलकत्ता में 16, छत्तीसगढ़ में 3, दिल्ली में 17, गुवाहाटी में 2, हिमाचल प्रदेश में 2, जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख में 4, झारखंड में 1, कर्नाटक में 6, केरल में 1, मध्य प्रदेश में 6, मद्रास में 4, उड़ीसा में 6, पटना में 11, पंजाब और हरियाणा में 21, राजस्थान में 2 और तेलंगाना में 17 नियुक्तियां की गई।
- उच्च न्यायालयों में 38 अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी किया गया- इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 10, बॉम्बे में 4, कलकत्ता में 6, हिमाचल प्रदेश में 1, कर्नाटक में 3, केरल में 4, मद्रास में 9, मणिपुर में 1 न्यायधीश को स्थायी किया गया।
- 02 अपर न्यायाधीशों का कार्यकाल बढ़ाया गया - बॉम्बे उच्च न्यायालय में 1 और मद्रास उच्च न्यायालय में 1 न्यायधीश का कार्यकाल बढ़ाया गया।
- 08 मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए - गौहाटी उच्च न्यायालय में 1, हिमाचल प्रदेश में 1, जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख में 1, कर्नाटक में 1, मद्रास में 1, तेलंगाना में 1, राजस्थान में 1, उत्तराखंड में 1 न्यायधीश की नियुक्ति की गई।
- 02 मुख्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण किया गया।
- उच्च न्यायालयों के 06 न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।
2. टेली-लॉ:
- आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत, न्याय विभाग ने 8 -14 नवंबर, 2021 के आबंटित सप्ताह के दौरान कई कार्यक्रमों का आयोजन किया, विभाग ने अपने टेली-लॉ: रीचिंग द अनरीच्ड के तहत लॉगिन सप्ताह अभियान का शुभारंभ किया, ताकि उनके अधिकार का दावा करने और उनकी कठिनाइयों का समय पर निवारण करने के लिए प्री-लिटिगेशन सलाह तक पहुंच को बढ़ावा दिया जा सके। 4200 जागरूकता सत्रों के माध्यम से 52000 से अधिक लाभार्थियों तक पहुंचा गया और लगभग 17000 को टेली-लॉ के तहत वीडियो/टेलीकॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के माध्यम से पैनल वकीलों के समर्पित पूल द्वारा कानूनी सलाह और परामर्श प्रदान किया गया। टेली-लॉ ऑन व्हील्स अभियान को अधिकतम कवर प्रदान करने के लिए टेली-लॉ ब्रांडेड मोबाइल वैन ने वीडियो, रेडियो जिंगल और टेली-लॉ पत्रक के वितरण के माध्यम से टेली-लॉ के संदेश को फैलाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में यात्रा की।
- विभाग द्वारा 13 नवंबर 2021 को माननीय कानून और न्याय मंत्री और माननीय राज्य मंत्री की अध्यक्षता में एक मेगा कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था, जिसमें 65,000 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया था। इस अवसर पर 126 सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अग्रिम पंक्ति के कार्मिंको को सम्मानित किया गया जिनके अथक प्रयासों से देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में टेली लॉ को शानदार ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद मिली है। पैनल अधिवक्ताओं के साथ लाभार्थियों के निर्बाध संपर्क को सक्षम बनाने के लिए एक टेली-लॉ मोबाइल ऐप का भी शुभारंभ किया गया है। नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रिंट और डिजिटल जानकारी से परिपूर्ण उत्पाद जारी किए गए जिनमें टेली-लॉ ब्रोशर, टेली-लॉ मूवीज, टेली-लॉ लोगो और टेली-लॉ मैस्कॉट शामिल हैं। देश के 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 669 जिलों (नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार 112 आकांक्षी जिलों सहित) में 75,000 सीएससी/ग्राम पंचायतों में टेली-लॉ सेवाएं उपलब्ध हैं। 30 नवंबर, 2021 तक कुल 12,70,135 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 12,50,911 लाभार्थियों को सलाह दी जा चुकी है।
- वर्ष 2022-2023 के दौरान 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 755 जिलों (112 आकांक्षी जिलों सहित) में 1 लाख ग्राम पंचायतों को कवर करने के लिए टेली-लॉ का विस्तार किया गया है। मुकदमेबाजी पूर्व सलाह देने से जुड़े 800 से अधिक अधिवक्ताओं को प्रत्येक जिले में कानूनी सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से जिला स्तर पर फ्रंट ऑफिस में तैनात एक पैनल वकील के साथ आवंटित किया गया है। वांछित लाभार्थियों तक पहुंचने और टेली-लॉ सेवा के वितरण को अधिकतम करने के लिए बैकलॉग क्लीयरेंस ड्राइव, एसएमएस अभियान और सेल्फी ड्राइव जैसे विभिन्न अभियानों का शुभारंभ किया गया है। 31 अक्टूबर, 2022 तक 25 लाख से अधिक लाभार्थियों को कानूनी सलाह और परामर्श प्रदान किया गया है।
3. राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए):
- राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएलएसए) ने गणतंत्र दिवस परेड, 2022 में लोक अदालत पर एक झांकी के माध्यम से भाग लिया। लोक अदालत के माध्यम से समावेशी कानूनी प्रणाली को प्रदर्शित करने वाली एनएएलएसए की झांकी का विषय "एकमुट्ठी आसमान" था। झांकी के अग्र भाग में 'न्याय सबके लिए' दिखाया गया है, जो निडरता, निश्चित और सुरक्षा का प्रतीक है। पीछे के भाग में, एक हाथ एक-एक करके अपनी पांचों अंगुलियों को खोलते हुए लोक अदालत के पांच मार्गदर्शक सिद्धांतों- सुलभ, निश्चित, वहन योग्य, न्यायसंगत और समय पर- सभी के लिए न्याय को दर्शाता हुआ दिखाई देता है।
- एनएएलएसए द्वारा जयपुर में 16 और 17 जुलाई 2022 को 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा बैठक का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम के दौरान, न्याय विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय एवं राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने कानूनी सेवाओं के एकीकृत वितरण पर समझौता ज्ञापन (एमओयू) का आदान-प्रदान किया।
- एनएएलएसए (नालसा) ने 30 और 31 जुलाई 2022 को विज्ञान भवन में जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों (डीएलएसए) की अपनी पहली अखिल भारतीय बैठक का आयोजन किया। बैठक का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री द्वारा किया गया। इस अवसर पर, तत्कालीन माननीय मुख्य न्यायाधीश और नालसा के प्रमुख एन वी रमना, माननीय कानून और न्याय मंत्री श्री किरेन रिजिजू, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, कानून और न्याय राज्य मंत्री श्री एसपी सिंह बघेल, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) के कार्यकारी अध्यक्ष और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के अध्यक्ष भी उपस्थित थे। माननीय प्रधानमंत्री ने 'निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार' पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया। इस बैठक में देश के 676 डीएलएसए और 37 एसएलएसए के 1000 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
4. ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना:
तकनीक का उपयोग कर न्याय तक पहुंच में सुधार लाने के उद्देश्य से ई-कोर्ट इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट का शुभारंभ किया गया था। परियोजना का दूसरा चरण 2015 में 1,670 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ शुरू हुआ, जिसमें से 1668.43 करोड़ रुपये की राशि सरकार द्वारा जारी की गई है। दूसरे चरण के तहत, अब तक 18,735 जिला और अधीनस्थ न्यायालयों को कम्प्यूटरीकृत किया जा चुका है।
डब्ल्यूएएन परियोजना के हिस्से के रूप में, ओएफसी, आरएफ, वीएसएटी, आदि जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके 2992 अदालत परिसरों (99.3 प्रतिशत स्थलों) में से 2973 को 10 एमबीपीएस से 100 एमबीपीएस बैंडविड्थ गति प्रदान की गई है।
इलास्टिक खोज तकनीक के साथ विकसित राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) का उपयोग करके, अधिवक्ता और वादी 21.44 करोड़ मामलों की स्थिति की जानकारी और 19.40 करोड़ से अधिक आदेशों/निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
कोविड लॉकडाउन अवधि से, संपूर्ण भारत के न्यायालयों द्वारा 2 करोड़ से अधिक वर्चुअल सुनवाई की गई है, जिससे भारत वर्चुअल सुनवाई में विश्व में अग्रणी बन गया है।
गुजरात, उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड, पटना और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों और भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग प्रारंभ हो चुकी है, इससे इच्छुक व्यक्तियों को कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति मिल गई है।
यातायात अपराधों की सुनवाई के लिए 17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 21 वर्चुअल अदालतें स्थापित की गई हैं। इन अदालतों ने 2.21 करोड़ से अधिक मामलों की सुनवाई की और 325 करोड़ रुपये के जुर्माने की वसूली की। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों की सुनवाई के लिए 34 डिजिटल कोर्ट शुरू किए हैं।
कानूनी कागजातों की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग के लिए एक ई-फाइलिंग प्रणाली शुरू की गई है। यह अधिवक्ताओं को 24X7 किसी भी स्थान से मामलों से संबंधित दस्तावेजों तक पहुंचने और अपलोड करने की अनुमति देता है, जिससे कागजात दाखिल करने के लिए अदालत में आने की जरूरत से बचा जा सकता है।
न्याय वितरण को समावेशी बनाने और डिजिटल विभाजन को कम करने के लिए, म या वादी की आवश्यकतानुसार सूचना से लेकर सुविधा और ई-फाइलिंग तक किसी भी तरह की सहायता के लिए 619 ई-सेवा केंद्र शुरू किए गए हैं।
अधिवक्ताओं/वादियों को मामले की स्थिति, वाद सूचियों, निर्णयों आदि पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करने के लिए 7 प्लेटफार्मों या सेवा वितरण चैनलों के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाएं प्रदान की जाती हैं। एसएमएस पुश और पुल (2,00,000 एसएमएस प्रतिदिन भेजे जाते हैं), ईमेल (2,50,000 प्रतिदिन भेजे जाते हैं), बहुभाषी और स्पर्शनीय ई-न्यायालय सेवा पोर्टल (35 लाख दैनिक हिट), न्यायिक सेवा केंद्र (जेएससी), सूचना कियोस्क, अधिवक्ताओं/वादियों के लिए ई-कोर्ट मोबाइल ऐप (01.11.2022 तक 1.50 करोड़ डाउनलोड और न्यायाधीशों के लिए जस्ट आईएस ऐप (31.10.2022 तक 17,664 डाउनलोड) सेवाएं हैं।
नेशनल सर्विस एंड ट्रैकिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक प्रोसेस (एनएसटीईपी) को प्रोसेस सर्विंग और समन जारी करने के लिए विकसित किया गया है और वर्तमान में यह 26 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में काम कर रहा है।
न्याय क्षेत्र के प्रति जनता में जागरूकता लाने, विभाग की विभिन्न योजनाओं का विज्ञापन करने तथा विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति के बारे में जनता को बताने के लिए 24 उच्च न्यायालयों में 38 न्याय घड़ियों की स्थापना की गई हैं।
इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन एग्रीगेशन एंड एनालिसिस लेयर (ई-ताल) पोर्टल पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में कुल 629 करोड़ ई-लेनदेन के साथ ई-कोर्ट भारत की शीर्ष 5 एमएमपी में अग्रणी परियोजनाओं में से एक है।
अधिवक्ताओं के उपयोग के लिए ई-फाइलिंग पर एक मैनुअल और "ई फाइलिंग के लिए पंजीकरण कैसे करें" पर एक ब्रोशर अंग्रेजी, हिंदी और 12 क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया गया है। ई-कोर्ट सेवाओं के नाम से एक यूट्यूब चैनल बनाया गया है, जिससे अधिवक्ताओं को आसानी से डिजिटल प्लेटफॉर्म के संचालन के लिए आवश्यक कौशल प्राप्त करने में सहायता मिली है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने आईसीटी सेवाओं पर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिसमें 5,13,080 हितधारकों को शामिल किया गया है।
निर्णय आसानी से खोजने में अपने हितधारकों की सुविधा के लिए एक नए 'जजमेंट एंड ऑर्डर सर्च' पोर्टल का उद्घाटन किया गया है। इसे https://judgments.ecourts.gov.in पर देखा जा सकता है। ई-न्यायालय परियोजना ने पिछले तीन वर्षों से लगातार ई-गवर्नेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार सहित विभिन्न पुरस्कार हासिल किए हैं।
5. फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (एफटीएससी) की योजना:
भारत द्वारा अक्टूबर, 2019 में केंद्र प्रायोजित योजना के तहत 389 विशेष पीओसीएओ (ई-पीओसीएओ) न्यायालयों की शुरूआत सहित 1023 फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (एफटीएसीस) की स्थापना की गई जिनका उद्देश्य बलात्कार के पीड़ितों को पीओसीएओ अधिनियम के माध्यम से त्वरित न्याय प्रदान करना और संबंधित प्रकरणों का शीघ्र निस्तारण करना है। यह योजना शुरू में एक वर्ष के लिए 767.25 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ थी जिसमें केंद्रीय शेयर के साथ निर्भया फंड के तहत 474 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्रीय शेयर 140 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2020-21 में 160 करोड़ रुपये राज्यों को निर्भया फंड से केंद्रीय हिस्से के रूप में जारी किए गए। वित्त वर्ष 2021-22 में 134.56 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान 10/12/2022 तक 186.93 करोड़ रुपये जारी किए गए। केंद्रीय हिस्से के रूप में 971.70 करोड़ रुपये के साथ 1572.86 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय पर योजना को 31 मार्च, 2023 तक जारी रखा गया है।
योजना की उपलब्धियां
- 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 413 विशेष पीओसीएसओ न्यायालयों के साथ 733 एफटीएससी का संचालन किया गया है, जिन्होंने 1,24,000 से अधिक मामलों का (अक्टूबर, 2022 तक) निपटान किया है।
- एफटीएससी महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा और संरक्षा के लिए राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- एफटीएससी समर्पित अदालतें हैं जिन्होंने यौन अपराधों के असहाय पीड़ितों को तेजी से न्याय दिलाने में, यौन अपराधियों के लिए एक निवारक ढांचा तैयार करने में, न्याय प्रणाली में नागरिकों के विश्वास को मजबूत करने और महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने में सहायता की है।
6. ग्राम न्यायालय ऑनलाइन पोर्टल का शुभारंभ:
एक ग्राम न्यायालय ऑनलाइन पोर्टल भी बनाया गया है, जिसमें राज्य/उच्च न्यायालय मासिक आधार पर मामले के निपटान सहित ग्राम न्यायालयों से संबंधित डेटा अपलोड करते हैं।
7. राष्ट्रीय न्याय वितरण और कानूनी सुधार मिशन:
न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधारों के लिए राष्ट्रीय मिशन अगस्त 2011 में स्थापित किया गया था। राष्ट्रीय न्याय वितरण और कानूनी सुधार मिशन पूरे देश में न्याय और न्याय वितरण एवं कानूनी सुधारों के प्रशासन में सुधार और सभी वर्गों के हितधारकों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित है। इसके दो उद्देश्य हैं:
- सिस्टम में देरी और शेष को कम करते हुए पहुंच बढ़ाना, और
- संरचनात्मक परिवर्तनों के माध्यम से और प्रदर्शन मानकों एवं क्षमताओं को निर्धारित करके जवाबदेही बढ़ाना
राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत पहल
- न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) का कार्यान्वयन:
राष्ट्रीय मिशन की प्रमुख पहलों में से एक न्यायपालिका के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) से संबंधित है। न्यायपालिका के लिए अवसंरचना सुविधाओं के विकास के लिए सीएसएस का उद्देश्य जिला, उप-जिला, तालुका, तहसील और ग्राम पंचायत एवं ग्राम स्तर सहित पूरे देश में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों के लिए उपयुक्त संख्या में कोर्ट हॉल, आवासीय आवास की उपलब्धता बढ़ाना है। इससे प्रत्येक नागरिक तक पहुंच बनाने में देश भर की न्यायपालिका के कामकाज और प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिलेगी।
सरकार ने इस सीएसएस को 5 वर्ष की अवधि के लिए अर्थात 2021-22 से 2025-26 तक 9000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय (5307 करोड़ रुपये की केंद्रीय भागीदारी सहित) के साथ जारी रखने को मंजूरी दी है और कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों के अलावा अधिवक्ताओं और वादियों की सुविधा के लिए अधिवक्ताओं के हॉल, शौचालय परिसर और डिजिटल कंप्यूटर कमरे का प्रावधान जैसी कुछ नई सुविधाएँ भी पेश की हैं।
योजना के प्रारंभ से दिनांक 06.12.21 तक 9445.46 करोड़ की राशि जारी की जा चुकी है, जिसमें से 2014-15 से अब तक 6001.16 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं, जो योजना के अंतर्गत कुल जारी धनराशि का लगभग 63.53 प्रतिशत है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-2023 के दौरान 848 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है जिनमें से 436.08 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्यों को 684.14 करोड़ रुपये जारी किए गए।
उच्च न्यायालयों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 2014 में उपलब्ध 15,818 कोर्ट हॉल की तुलना में 21,159 कोर्ट हॉल उपलब्ध हैं। जहां तक आवासीय इकाइयों का संबंध है, वर्तमान कार्य कर रहे 19,235 न्यायाधीशों/न्यायिक अधिकारियों की संख्या की तुलना में 18,557 आवासीय इकाइयां उपलब्ध हैं जबकि 2014 में 10,211 आवासीय इकाइयाँ उपलब्ध थीं। इसके अलावा, 2673 कोर्ट हॉल और 1662 आवासीय इकाइयाँ वर्तमान में न्याय विकास पोर्टल के अनुसार निर्माणाधीन हैं।
न्याय विकास 2.0 का शुभारंभ:
• 11 जून, 2018 को माननीय विधि और न्याय मंत्री द्वारा निर्माण परियोजनाओं की निगरानी के लिए न्याय विकास को एक ऑनलाइन माध्यम के रूप में लॉन्च किया गया था। न्याय विकास वेब पोर्टल और मोबाइल ऐप को अपग्रेड किया गया है और संस्करण 2.0 को जनता के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। 1 अप्रैल, 2020 से बढ़ी हुई क्षमताओं और कार्यात्मकताओं के साथ, इसे एनआरएससी, इसरो की सहायता से विभिन्न राज्य उपयोगकर्ताओं से मिले फीडबैक के आधार पर विकसित किया गया है। 6282 कोर्ट हॉल (पूर्ण, निर्माणाधीन और प्रस्तावित), 5385 आवासीय इकाइयों (पूर्ण, निर्माणाधीन और प्रस्तावित) को जियोटैग किया गया है।
- जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्तियों को भरना
संवैधानिक ढांचे के अनुसार, अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति की जिम्मेदारी उच्च न्यायालयों और संबंधित राज्य सरकारों की है। सुप्रीम कोर्ट ने मलिक मजहर मामले में एक न्यायिक आदेश के माध्यम से अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियों को भरने के लिए एक प्रक्रिया और समय सीमा का पालन किया है। न्याय विभाग राज्यों और उच्च न्यायालयों के साथ जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने का मामला उठता रहा है। न्याय विभाग मासिक आधार पर जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत और कार्यरत शक्ति, और रिक्तियों की रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए अपनी वेबसाइट पर एक एमआईएस वेब-पोर्टल का संचालन करता है। यह नीति निर्माताओं को मासिक न्यायिक डेटा प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। मलिक मजहर सुल्तान मामले के निर्देशों के अनुपालन की रिपोर्टिंग के लिए अप्रैल, 2021 से पोर्टल न्याय विभाग की वेबसाइट पर भी लाइव है।
- न्यायालयों में विचाराधीनता
मामलों का निस्तारण न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि, केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत जनादेश के अनुरूप न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए मामलों के त्वरित निपटान और लंबित मामलों में कमी के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार द्वारा स्थापित नेशनल मिशन फॉर जस्टिस डिलीवरी एंड लीगल रिफॉर्म्स ने जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों के लिए बुनियादी ढांचे [कोर्ट हॉल और आवासीय इकाइयों] में सुधार, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का लाभ उठाने सहित कई रणनीतिक पहलों अर्थात बेहतर न्याय वितरण, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरना, जिला, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय स्तर पर बकाया समितियों द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई के माध्यम से लंबित मामलों को कम करने, वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) पर जोर और फास्ट ट्रैक पहल जैसे विशेष प्रकार के मामले को अपनाया है। 6 दिसंबर 2022 तक, सुप्रीम कोर्ट में 69,598 मामले लंबित हैं। 6 दिसंबर 2022 तक उच्च न्यायालयों और जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के संबंध में लंबित मामले क्रमशः 59,57,704 और 4,28,21,378 हैं।
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- निपटान में लगने वाले समय की ऑनलाइन रिपोर्टिंग:
विभाग अपनी वेबसाइट पर "मामलों के निपटान के लिए लिये गये औसत समय" की रिपोर्टिंग के लिए एमआईएस पोर्टल की मेजबानी करता है, जो आपराधिक और दीवानी मामलों के निपटान में औसतन समय से संबंधित सभी उच्च न्यायालयों द्वारा प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करने के लिए दर्ज की जाती है। यह अदालतों में मामलों के निपटान में लगने वाले समय का रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए लोक शिकायत, कार्मिक और कानून एवं न्याय पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति द्वारा की गई टिप्पणियों के अनुपालन में है।
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- एरियर समितियों के माध्यम से लंबित मामलों में कमी:
अप्रैल, 2015 में आयोजित मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में पारित संकल्प के अनुसरण में, उच्च न्यायालयों में पाँच वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों को निपटाने के लिए एरियर्स समितियों का गठन किया गया है। जिला न्यायाधीशों के अधीन भी एरियर्स समितियों का गठन किया गया है। उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करने हेतु कदम उठाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एरियर्स समिति का गठन किया गया है। न्याय विभाग ने मालिमथ समिति की रिपोर्ट के एरियर्स समिति के दिशानिर्देशों के अनुपालन के संबंध में सभी उच्च न्यायालयों द्वारा रिपोर्टिंग के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित किया है।
- कारोबार करने में आसानी
• कारोबार करने में आसानी (ईओडीबी) सूचकांक विश्व बैंक समूह द्वारा स्थापित एक रैंकिंग प्रणाली है जिसमें 'उच्च रैंकिंग' (एक कम संख्यात्मक मान) व्यवसायों के लिए बेहतर, आमतौर पर सरल, नियमों और संपत्ति अधिकारों की मजबूत सुरक्षा का संकेत देती है। अनुबंध लागू करना एक ऐसा संकेतक है, जो एक मानकीकृत वाणिज्यिक विवाद को हल करने के साथ-साथ न्यायपालिका में अच्छी प्रथाओं की एक श्रृंखला को हल करने के लिए समय और लागत को मापता है। न्याय विभाग प्रवर्तन अनुबंध संकेतक के लिए नोडल विभाग है। निवेश और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए, व्यापार करने में आसानी के लिए अनुबंधों के त्वरित प्रवर्तन को सक्षम करने के लिए सुधारों को लागू करने के लिए निरंतर प्रयास किए गए हैं, न्याय विभाग द्वारा भारतीय सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली और मुंबई के उच्च न्यायालयों की ई-समिति के समन्वय में विभिन्न सुधार किए गए हैं।
- वाणिज्यिक मामलों को संभालने के लिए, दिल्ली में 35, मुंबई में 6, बेंगलुरु में 10 और कोलकाता में 2 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों का संचालन किया गया है। वर्ष 2022 में, विशेष रूप से वाणिज्यिक विवादों से निपटने के लिए दिल्ली में 13 समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों का संचालन किया गया है, जिससे दिल्ली में समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों की कुल संख्या 35 हो गई है। इसमें साकेत जिला न्यायालय, नई दिल्ली में संचालित 2 डिजिटल वाणिज्यिक न्यायालय शामिल हैं। यह ई-फाइलिंग और आभासी सुनवाई सुविधा के साथ कागजरहित अदालत हैं। बेंगलुरु में 2 नए समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों के साथ कर्नाटक में समर्पित वाणिज्यिक न्यायालयों की कुल संख्या 10 हो चुकी हैं।
- किए गए अन्य सुधारों में 500 करोड़ रुपये से अधिक के उच्च मूल्य वाले वाणिज्यिक विवादों से निपटने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में विशेष पीठ विशिष्ट राहत (संशोधन) अधिनियम, 2018 की धारा 20बी के अनुसार बुनियादी ढांचा परियोजना अनुबंध विवादों के लिए नामित विशेष न्यायालय, तीन स्थगन नियमों का कार्यान्वयन (कलर बैंडिंग सुविधा के माध्यम से), आईसीटी का उपयोग, ई-फाइलिंग, मामलों का यादृच्छिक और स्वचालित आवंटन, न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा इलेक्ट्रॉनिक केस प्रबंधन उपकरणों का उपयोग एवं ई-सम्मन आदि शामिल हैं।
- की गई प्रमुख पहलों में से एक संपत्ति पंजीकरण को अदालती कार्यवाही से जोड़ने से संबंधित है। छब्बीस राज्यों (यूटी) की सरकारों ने एनजेडीजी के साथ भूमि रिकॉर्ड और पंजीकरण डेटाबेस को जोड़ने के लिए अपने संबंधित उच्च न्यायालयों से मंजूरी प्राप्त की है। इससे भूमि विवादों के त्वरित निस्तारण में मदद मिलेगी और न्यायपालिका पर काम का बोझ कम होगा।
- न्याय विभाग ने अनुबंधों का प्रवर्तन पोर्टल भी लॉन्च किया है जो "अनुबंधों को लागू करने" के मापदंडों पर किए जा रहे सुधारों के बारे में जानकारी का एक व्यापक स्रोत प्रदान करता है।
(v) विधि का नियम सूचकांक
- द रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स (आरओएलआई) वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (डब्ल्यूजेपी) द्वारा विकसित और प्रकाशित किया गया है। आरओएलआई 2022 में 140 देशों को शामिल किया गया है और 8 कारकों और 44 उप-कारकों में एकत्रित देश-विशिष्ट डेटा के आधार पर उन्हें रैंक दिया गया है। आरओएलआई मात्रात्मक रूप से आम जनता और क्षेत्र के विशेषज्ञों के सर्वेक्षण/मतदान के माध्यम से कानून के व्यवहार को मापता है।
- नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूजेपी द्वारा मूल्यांकन किए गए 140 देशों में से आरओएलआई में भारत की वर्तमान रैंक 77 है। न्याय विभाग इस उद्देश्य के लिए पहचाने गए 08 प्रमुख संकेतकों/कारकों और 44 उप-कारकों पर भारत के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए 23 हितधारक मंत्रालयों/विभागों के साथ काम कर रहा है। इन मंत्रालयों/विभागों को मिलाकर एक समन्वय समिति का गठन किया गया है, जिसकी अब तक 13 बैठकें हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त, गुणात्मक/धारणा आधारित मापदंडों में सुधार की मात्रा का निर्धारण करने के संबंध में कानूनी विशेषज्ञों और उद्योग से भी इनपुट मांगे गए थे।
- इसके बाद, 08.07.2021 को डीओजे में एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) की स्थापना की गई, जिसमें विशेषज्ञ एजेंसी (मैसर्स मार्केट एक्सल डेटा मैट्रिक्स प्रा. लिमि, स्थानीय एजेंसी जिसे पहले डब्ल्यूजेपी ने भारत में अपने मतदान सर्वेक्षणों के लिए नियुक्त किया था) को सदस्यों के रूप में शामिल किया। आरओएलआई में भारत के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए निर्धारित टेम्पलेट में जानकारी भरने के साथ लाइन एम/डी की सहायता करने के लिए संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के प्रतिनिधि भी स्थानीय डेटा स्रोतों के साथ भारत सूचकांक के निर्माण पर सलाह के लिए जुड़े हुए हैं। पीएमयू विस्तारित पैरामीटर/उप-पैरामीटर ताकि लाइन एम/डी द्वारा एकत्रित की गई जानकारी अधिक विस्तृत और सटीक हो। पीएमयू द्वारा संचार-आउटरीच मीडिया योजना तैयार करने में सहायता के लिए सुधार कार्यों से संबंधित अधिक जानकारी जोड़ने के लिए आरओएलआई के लिए एक संशोधित टेम्पलेट भी तैयार किया गया था।
- प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए तैयार की गई कार्य योजना में लो हैंगिंग फ्रूट्स या पैरामीटर्स की पहचान करना जो स्कोर सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं, आवंटित मापदंडों के अनुसार प्रत्येक लाइन एम/डी से पूरा किए जाने वाले विवरणों का एक संग्रह तैयार करने के लिए अतिरिक्त जानकारी, लोगों के बीच धारणा और प्रासंगिकता को बदलने के लिए और सुधार के लिए कम्युनिकेशन आउटरीच प्लान, डीओजे वेबसाइट पर एक विशेष आरओएलआई वेबपेज विकसित करना, प्रगति दिखाने के लिए, नीति आयोग द्वारा विकसित आरओएलआई डैशबोर्ड की जानकारी को पूरा करना और द्वि-वार्षिक आरओएलआई न्यूजलेटर जारी करना शामिल है।
- विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के डेटा के साथ वैचारिक गुणात्मक सूचकांक को मात्रात्मक में परिवर्तित करना, डेटा स्रोतों की पहचान करना, वैकल्पिक डेटा स्रोत जहां डेटा उपलब्ध नहीं है, इसमें शामिल चुनौतियां शामिल हैं।
(vi) डेटा शासन गुणवत्ता सूचकांक (डीजीक्यूआई)
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की डेटा तैयारियों का आकलन करने के लिए नीति आयोग द्वारा डीजीक्यूआई मूल्यांकन अभ्यास किया गया था। यह अध्ययन विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा नियोजित "डेटा निर्माण, प्रबंधन और इसके उपयोग की सुचारू प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए डेटा सिस्टम" पर आयोजित किया गया था। इस अभ्यास के अब तक डीजीक्यूआई 1.0 और 2.0 के दो संस्करण हो चुके हैं। डीजीक्यूआई 2.0 के क्वार्टर 4 में अंतिम मूल्यांकन, न्याय विभाग (सामाजिक श्रेणी में 24 विभागों में से 8 वें स्थान पर) ने डीजीक्यूआई 1.0 के तहत 5 में से 2.98 के अपने अंतिम स्कोर में सुधार करते हुए 5 में से 4.05 का स्कोर हासिल किया। डीजीक्यूआई 2.0 के लिए समग्र रैंकिंग में, एम/डीएस में से डीओजे 24वें स्थान पर है।
- इसका उद्देश्य डीजीक्यूआई अभ्यास के दूसरे संस्करण के लिए 5.0 के फ्रंटियर स्कोर को प्राप्त करने के लिए डीजीक्यूआई रिपोर्ट के अनुसार सांकेतिक रूपरेखा का उपयोग करके 5 का फ्रंटियर स्कोर प्राप्त करना है, जिसमें एक उन्नत हॉरिजान्टल और वर्टिकल कार्यक्षेत्र विस्तार है और यह सीएसएस और सीएस योजना के साथ ही गैर-योजनाओं/अन्य पहलों को कवर करता है।
- डीजीक्यूआई रिपोर्ट पर 5.0 का फ्रंटियर स्कोर प्राप्त करने के लिए कार्य योजना/रोडमैप के विकास और कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने के लिए, संयुक्त सचिव (राष्ट्रीय मिशन) की अध्यक्षता में न्याय विभाग में एक डेटा और रणनीति इकाई (डीएसयू) का गठन किया गया है, जो साप्ताहिक बैठकें और पाक्षिक आधार पर सीधे न्याय विभाग के सचिव को अद्यन हुई प्रगति की रिपोर्ट सौंपता है। अब तक, नालसा, सीएसएस सहित आंतरिक रूप से डीजीक्यूआई की प्रगति पर नज़र रखने के लिए 24 बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं, जिसमें न्याय विभाग सचिव के समक्ष 2 समीक्षाएँ भी शामिल हैं।
- विभाग ने डेटा तैयारी में सुधार और डीजीक्यूआई स्कोर में सुधार के लिए रोडमैप की एक सांकेतिक रूपरेखा तैयार की है। डीओजे के लिए डेटा प्रबंधन दिशानिर्देश के अलावा नीतियों, कार्यक्रमों और प्रथाओं को विकसित करने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं जो न्याय विभाग द्वारा रिपोर्ट/एकत्रित डेटासेट और सूचना के मूल्य को नियंत्रित, संरक्षित करते हुए इन्हें बढ़ाएंगे।
- डीजीक्यूआई अभ्यास के तहत निम्नलिखित प्रगति हासिल की गई है:
क्र.सं
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डीएसयू से पूर्व की स्थिति
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डीएसयू के बाद की स्थिति
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1
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न्याय विकास 2.0 पोर्टल और सीएसएस से संबंधित डेटा का विभाजन
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- सीएसएस से संबंधित सभी डेटा एकीकृत और एकल पोर्टल पर देखे जा सकते हैं और
- यह सार्वजनिक जनता के लिए खुले हैं
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2
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ग्राम न्यायालय एमआईएस पोर्टल; चुनिंदा उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
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- डैशबोर्ड का परिचय
- सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला है
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3
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ई-न्यायालय एमएमपी चरण I और II से संबंधित कोई डेटा नहीं
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- ई-अदालत एमएमपी चरण I और II डेटा भारत के नक्शे पर दिखाई देता है
- तीसरे चरण के लिए विजन दस्तावेज वेबसाइट पर उपलब्ध है।
- सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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4
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फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) एमआईएस पोर्टल; चुनिंदा उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
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• डैशबोर्ड और संबंधित डेटा के लिए भारत-मानचित्र पर चित्रण
• सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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5
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विशेष न्यायालय (पारिवारिक न्यायालय/फास्ट ट्रैक न्यायालय/सांसद विधायक न्यायालय/अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति न्यायालय आदि) एमआईएस पोर्टल; चुनिंदा उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
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• डैशबोर्ड और संबंधित डेटा के लिए भारत-मानचित्र पर चित्रण
• सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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6
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जिला और अधीनस्थ न्यायालयों एमआईएस पोर्टल में न्यायिक अधिकारियों की रिक्ति की ऑनलाइन रिपोर्टिंग; चुनिंदा उपयोगकर्ताओं के साथ सुरक्षित लॉगिन
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- रिक्ति से संबंधित, श्रेणीवार डेटा के लिए डैशबोर्ड
- अधीनस्थ न्यायपालिका में राज्यवार रिक्तियों की स्थिति का भारत-मानचित्र पर चित्रण
- सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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7
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पीडीएफ प्रारूप में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायपालिका की रिक्ति स्थिति से संबंधित डेटा
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- उच्च न्यायपालिका में उच्च न्यायालय-वार रिक्तियों की स्थिति का भारत-मानचित्र पर चित्रण
- सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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8
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टेली-लॉ संबंधित डेटा ने केवल संचयी आंकड़े दर्ज किए
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• सलाह सक्षम, केस-वार, लिंग-वार और आरक्षित श्रेणी-वार डेटा के लिए परिकल्पित किया गया।
• संख्या से संबंधित डेटा। सीएससी के मामले दर्ज
• सार्वजनिक रूप से देखने के लिए खुला।
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- संविधान दिवस समारोह
आमतौर पर संविधान दिवस के रूप में संदर्भित 1949 में संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को अपनाने और हमें इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को याद दिलाने के लिए संविधान दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता है। संविधान वह आधारशिला है जिस पर भारतीय राष्ट्र की नींव टिकी है और हर गुजरते वर्ष में और अधिक ऊंचाइयों को प्राप्त करता है।
26.11.2022 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने परिसर में संविधान दिवस मनाया गया। भारत के माननीय प्रधानमंत्री उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि थे और भारत के माननीय राष्ट्रपति समापन सत्र में मुख्य अतिथि थे। आयोजन के दौरान, माननीय प्रधानमंत्री ने चार ई-पहलों: वर्चुअल जस्टिस क्लॉक पहल, जस्टआईएसमोबाइल ऐप 2.0, डिजिटल कोर्ट और जिला अदालतों की एस3डब्ल्यएएएस3 वेबसाइटों का भी शुभारंभ किया।
• माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 26.11.2022 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संविधान दिवस समारोह के दौरान ई-कोर्ट परियोजना से संबंधित 4 नई पहलों का शुभारंभ किया गया। प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित की पहलों का शुभारंभ किया:
(ए) वर्चुअल जस्टिस क्लॉक
वर्चुअल जस्टिस क्लॉक न्यायालय स्तर पर न्याय वितरण प्रणाली के महत्वपूर्ण आंकड़ों को प्रदर्शित करने की एक पहल है, जिसमें न्यायालय स्तर पर दिन/सप्ताह/महीने के आधार पर स्थापित मामलों, निपटाए गए मामलों और लंबित मामलों का विवरण दिया गया है। न्यायालय द्वारा निपटाये गये मुकदमों की स्थिति को जनता के साथ साझा कर न्यायालयों के कामकाज को जवाबदेह और पारदर्शी बनाने का प्रयास है। जनता जिला न्यायालय की वेबसाइट पर किसी भी न्यायालय प्रतिष्ठान की वर्चुअल जस्टिस क्लॉक का उपयोग कर सकती है।
(बी) जस्टआईएसमोबाइल ऐप 2.0
जस्टआईएसमोबाइल ऐप 2.0 एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग न्यायाधीश अपनी अदालतों के साथ-साथ उनके अधीनस्थ काम करने वाले न्यायाधीशों के लंबित मामलों पर नज़र रखकर अपनी अदालतों और मामलों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए कर सकते हैं। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अब उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक राज्य और जिले की स्थिति की निगरानी भी इस ऐप का उपयोग करके कर सकते हैं, जो उन्हें भी उपलब्ध कराया गया है।
(सी) डिजिटल कोर्ट
डिजिटल कोर्ट पहल का उद्देश्य न्यायाधीशों को डिजिटल रूप में अदालती रिकॉर्ड तक पहुंच प्रदान करके उन्हें कागज रहित अदालतों बदलने में सक्षम बनाना है।
(डी ) जिला न्यायपालिका के लिए एस3डब्ल्यूएएएस वेबसाइटें
एस3डब्ल्यूएएएस (सिक्योर, स्केलेबल और सेवा के रूप में सुगम वेबसाइट) सरकारी संस्थाओं के लिए विकसित किया गया फ्रेमवर्क है, जिसके उपयोग से अनुकूलन योग्य वेबसाइटें बनाई जा सकती हैं जिन्हें आसानी से संपादित किया जा सकता है। इनके माध्यम से जनता के लिए पारदर्शिता, पहुंच और सूचना का निर्बाध प्रसार सुनिश्चित करना है। यह दिव्यांगों के अनुकूल, बहुभाषी और नागरिकों के अनुकूल भी है।
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एमजी/एएम/एसएस/वाईबी
(Release ID: 1888100)
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