उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्ट्रपति ने नवाचार और शिक्षण के वैश्विक केंद्र के रूप में भारत के उभरने की जरूरत पर जोर दिया


शिक्षा प्रणाली के भारतीयकरण की जरूरत है : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कभी भारत की पहचान विश्व गुरु के रूप थी और उन्होंने समग्र शिक्षा की गौरवशाली परंपरा को फिर से जीवित करने का आह्वान आह्वान किया

एनईपी एक समग्र और दिव्य दस्तावेज है, जो शिक्षा के संकेतकों में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने शिक्षा के लोकतंत्रीकरण में तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया

उपराष्ट्रपति ने ऋषिहुड विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया

Posted On: 18 DEC 2021 2:35PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज शिक्षा प्रणाली के 'भारतीयकरण' का आह्वाहन किया, जो भारत के प्राचीन बुद्धिमत्ता, ज्ञान परंपराओं और विरासत की महान संपदा पर आधारित है। यह सुझाव देते हुए कि औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों में एक हीन भावना और भेद उत्पन्न किया है, उन्होंने शिक्षा प्रणाली में मूल्य-आधारित परिवर्तन का आह्वाहन किया, जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)- 2020 में की गई है। उन्होंने भारत के नवाचार, शिक्षण और बौद्धिक नेतृत्व के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने की जरूरत पर भी जोर दिया।

दिल्ली में आयोजित एक समारोह में ऋषिहुड विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर उपराष्ट्रपति ने इस बात को याद किया कि भारत की पहचान कभी विश्व गुरु के रूप में थी। उन्होंने कहा, "हमारे पास नालंदा, तक्षशिला और पुष्पगिरी जैसी महान संस्थानें थीं, जहां विश्व के सभी हिस्से से छात्र सीखने के लिए आते थे।" इसके आगे उन्होंने कहा कि भारत को फिर से उस पूर्व-प्रतिष्ठित स्थान को प्राप्त करना होगा।

उपराष्ट्रपति ने भारत की समग्र शिक्षा की गौरवशाली परंपरा को याद किया। उन्होंने उस परंपरा को फिर से जीवित करने और शैक्षणिक परिदृश्य को बदलने का आह्वाहन करने के साथ ऋषिहुड जैसे नए विश्वविद्यालयों से इस संबंध में नेतृत्व करने को कहा। इस बात का उल्लेख करते हुए कि शिक्षा राष्ट्र के परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उन्होंने शिक्षा को एक 'मिशन' के रूप में स्वीकार करने का आह्वाहन किया।

शिक्षा के मोर्चे पर चौतरफा सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि अनुसंधान की गुणवत्ता, सभी स्तरों पर शिक्षण, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रैंकिंग, स्नातकों की रोजगार क्षमता और शिक्षा प्रणाली के कई अन्य पहलुओं को बेहतर बनाने की जरूरत है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति विभिन्न मुद्दों को संबोधित करने की मांग करती है और भारत के एक बार फिर विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करती है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा के गुणवत्ता संकेतकों में भारी सुधार करने की हमारी खोज में एनईपी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

एनईपी को एक दिव्य दस्तावेज बताते हुए, जो भारत में शिक्षा के परिदृश्य को बदल सकता है, उन्होंने कहा कि यह शिक्षा को एक समग्र, मूल्य-आधारित और शिक्षण के सुखद अनुभव बनने के लिए प्रेरित कर सकता है। उन्होंने आगे कहा, "अंतर्विषयक शिक्षा, अनुसंधान व ज्ञान उत्पादन, संस्थानों को स्वायत्तता, बहु-भाषी शिक्षा और ऐसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपायों पर जोर देने के साथ, हम शिक्षा प्रदान करने के तरीके में एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं।"

हर एक शैक्षणिक संस्थान से एनईपी को पूरी तरह लागू करने का आग्रह करते हुए उपराष्ट्रपति ने स्वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध शब्दों को याद किया: "हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मस्तिष्क की शक्ति में बढ़ोतरी हो, ज्ञान का विस्तार हो और कोई व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।"

उन्होंने शिक्षा के लोकतंत्रीकरण और शिक्षण को सुदूर क्षेत्र तक ले जाने में तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब अच्छी शिक्षा की पहुंच दूरस्थ स्थान तक होती है, तो छात्रों की अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग अधिक अच्छाई के लिए किया जा सकता है।

श्री नायडु ने शिक्षकों से छात्रों में कठिन परिस्थितियों को समभाव और संयम के साथ संभालने की क्षमता विकसित करने का आग्रह किया। नेतृत्व का सार यही है। उन्होंने आगे कहा, ऐसी नेतृत्व क्षमताओं को विकसित करने के लिए हमें अपने गौरवशाली अतीत और ऋषियों के ज्ञान से सीखने की जरूरत है।

इस अवसर पर संसद सदस्य (एमपी) श्री सुरेश प्रभु व ऋषिहुड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, ऋषिहुड विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक व देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर डॉ. चिन्मय पंड्या, ऋषिहुड विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक - श्री अशोक गोयल व श्री मोतीलाल ओसवाल और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

उपराष्ट्रति के भाषण का पूरा पाठ निम्नलिखित है:

नमस्ते,

मेरे मित्र और संसदीय सहयोगी सुरेश प्रभु जी, डॉ. चिन्मय पंड्या जी, मोतीलाल ओसवाल जी, अशोक गोयल जी, अजय गुप्ता जी, राकेश अग्रवाल जी, ऋषिहुड विश्वविद्यालय की टीम और आज हमारे साथ जुड़ने वाले सभी लोगों को मेरा नमस्कार है।

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा मानव विकास, राष्ट्र-निर्माण और एक समृद्ध व टिकाऊ वैश्विक भविष्य को बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमें इस बारे में विचार करना है कि किस तरह की शिक्षा इस तरह के भविष्य की ओर ले जाती है। भारत अपने लंबे इतिहास में एक अद्वीतीय मोड़ पर परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है। देश के भविष्य को तय करने में युवाओं की भूमिका सबसे ऊपर होने वाली है और युवाओं का भविष्य निश्चित करने में शिक्षा की भूमिका सर्वोपरि है। युवाओं की महत्वाकांक्षा क्या होनी चाहिए?

अथर्व वेद में एक श्लोक कहता है:

भद्रम इच्छांतः ऋषियः स्वर विद्याः, तपो दीक्षा अमुपनशेद अग्रे, ततो राष्ट्रम्, बला, ओजस्य जातम्, तदस्मै देवा उपासन्नमन्तु

साधारण तौर पर अनुवादित, यह श्लोक कहता है कि प्राचीन सिद्धपुरुष, ऋषियों के मस्तिष्क में उनकी तपस्या के दौरान एक हितकारी इच्छा उत्पन्न हुई थी। यह हितकारी मनोकामना अभ्युदयम् यानी सभी के कल्याण और प्रतिष्ठा के लिए थी। इन ऋषियों ने सार्वभौमिक कल्याण की इस हितकारी मनोकामना का अनुभव किया और उस इच्छा ने राष्ट्र की चेतना को मजबूत किया। युवाओं की महत्वाकांक्षा स्वयं से आगे बढ़कर समाज, राष्ट्र और विश्व की सेवा होनी चाहिए।

जब स्वामी विवेकानंद ने हम में से हर एक से ऋषि बनने का आह्वाहन किया, तो उन्होंने हमें जीवन के एक ऐसे उद्देश्य का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया, जिससे हम अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर सकें। अन्य शब्दों में, उन्होंने हमें एक ऐसे आदर्श का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया, जो स्वयं से बड़ा हो और जो सार्वभौमिक अच्छाई- आत्मानो मोक्षार्थं जगत हिताय च की ओर ले जाए।

मुझे प्रसन्नता है कि इन्हीं सिद्धांतों पर ऋषिहुड विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस पहल के जरिए हम भविष्य के ऋषियों का निर्माण करने में सक्षम होंगे। ऋषि, जो उद्यमिता, नागरिक समाज, अनुसंधान, शिक्षा, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, रणनीति और अन्य सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाले बनेंगे। ऋषि, जो बाकी समाज को एक वैसी जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करेंगे जो समग्र, सार्थक और पूर्ण करने वाला होगा। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि ऋषिहुड ने उद्यमिता, स्वास्थ्य सेवा, रचनात्मकता, शिक्षा और सार्वजनिक नेतृत्व जैसे विषय क्षेत्रों को चुना है, जो राष्ट्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसके लिए सही वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।

जब हम शिक्षा का एक ऐसा प्रतिरूप स्थापित करना चाहते हैं, तब हमें शिक्षा की मौजूदा वास्तविकता पर नजर डालनी चाहिए। हम जानते हैं कि शिक्षा के मोर्चे पर चौतरफा सुधार करना होगा। उदाहरण के लिए, अनुसंधान की गुणवत्ता, सभी स्तरों पर शिक्षण, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रैंकिंग, हमारे स्नातकों की रोजगार क्षमता और हमारी शिक्षा प्रणाली के कई अन्य पहलुओं को सुदृढ़ करने की जरूरत है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ऐसे सभी मुद्दों का समाधान करने की कोशिश करती है और भारत को शिक्षा क्षेत्र में अपनी क्षमता का अनुभव करने व एक बार फिर विश्व गुरु बनने की राह दिखाती है। एनईपी, शिक्षा के गुणवत्ता संकेतकों में बड़ी सुधार करने की हमारी खोज में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह वास्तव में एक दिव्य दस्तावेज है, जो भारत में शिक्षा के परिदृश्य को बदल सकती है। यह शिक्षा को एक समग्र, मूल्य-आधारित और शिक्षण के सुखद अनुभव होने के लिए प्रेरित कर सकती है। अंतर्विषयक शिक्षण, अनुसंधान व ज्ञान उत्पादन, संस्थानों को स्वायत्तता, बहु-भाषी शिक्षा और ऐसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपायों पर जोर देने के साथ हम शिक्षा प्रदान करने के तरीके में एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं।

 

प्रिय बहनो और भाइयो,

हमें यह स्मरण रखने की जरूरत है कि भारत में समग्र शिक्षा की एक गौरवशाली परंपरा रही है। हमें उस परंपरा को फिर से जीवित करने की जरूरत है और मैं चाहूंगा कि ऋषिहुड जैसे नए विश्वविद्यालय इस संबंध में नेतृत्व करें। वास्तव में, प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को एनईपी को पूरी तरह लागू करना चाहिए। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने उचित ही कहा था और उसे मैं उद्धृत करता हूं:

"हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिससे चरित्र का निर्माण हो, मस्तिष्क की शक्ति में वृद्धि हो, ज्ञान का विस्तार हो और जिससे कोई व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

प्रिय बहनो और भाइयो,

मुझे मालूम है कि आज कई प्रधानाध्यापक, शिक्षक और प्रोफेसर यहां मौजूद हैं। महामारी के कठिन समय के दौरान कोई कसर नहीं छोड़ने के आपके प्रयासों की मैं सराहना करता हूं। आपकी प्रतिबद्धता प्रेरणादायक है। इस समय के दौरान, हमें यह भी देखना चाहिए कि शिक्षा के लोकतंत्रीकरण और शिक्षण को सबसे सुदूर इलाके तक ले जाने में तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। जब हमारे युवा नवाचार में अव्वल हैं, सफल स्टार्ट-अप की शुरुआत कर रहे हैं, यूनिकॉर्न का निर्माण कर रहे हैं और आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं, तब भारत में सार्वजनिक सेवाओं, वित्तीय समावेशन और दूरसंचार बुनियादी ढांचे के वितरण में आईटी से संबंधित क्रांति के साथ-साथ शिक्षा में तकनीक को तेजी से अपनाने का समय आ गया है। जब हम अच्छी शिक्षा को सुदूर क्षेत्र तक ले जाते हैं, तो छात्रों की अप्रयुक्त क्षमता का इस्तेमाल अधिक अच्छाई के लिए किया जा सकता है।

जैसा कि हम जानते हैं, कभी भारत की पहचान विश्व गुरु के रूप में थी। हमारे पास नालंदा, तक्षशिला और पुष्पगिरी जैसी महान संस्थानें थीं, जहां विश्व के सभी हिस्से से छात्र सीखने के लिए आते थे। हमें उस बौद्धिक नेतृत्व को फिर से प्राप्त करना चाहिए और सीखने व नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरना चाहिए। जब मैं आज के कार्यक्रम में तक्षशिला का पुनर्निर्माण टैगलाइन को देखता हूं, तो मैं कल्पना कर रहा हूं कि आज तक्षशिला कैसी दिखती। यह विचार वास्तुकला के एक प्राचीन शैली में एक इमारत के निर्माण की नहीं है, जहां छात्र फर्श पर बैठे हैं और कुछ सीख रहे हैं। हमें उन बुनियादी सिद्धांतों को पहचानना चाहिए, जिन्होंने तक्षशिला को उसके जैसा बनाया था। चाणक्य, जो तक्षशिला में पढ़ाते थे और चंद्रगुप्त, जो उनके छात्र थे, में हम एक गुरु और उनके शिष्य के बीच विकसित संबंध को देख सकते हैं। हम देखते हैं कि कैसे अध्यात्म पर आधारित बहु-विषयक शिक्षा ने चंद्रगुप्त को प्रशिक्षण प्रदान दिया। हम शिक्षाशास्त्र में प्रश्न और उत्तर को केंद्रीय भूमिका निभाते हुए देखते हैं। यह वही है जो एक छात्र में जिज्ञासा को प्रज्ज्वलित करता है, क्षमता को बढ़ाता है और रचनात्मकता को बढ़ावा देता है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के अलावा, शिक्षकों को भी हमारे युवाओं में उद्देश्य की भावना और छात्रों में कठिन परिस्थितियों को समभाव और संयम के साथ संभालने की क्षमता उत्पन्न करनी चाहिए। यही नेतृत्व का सार है। और ऐसी नेतृत्व क्षमताओं को विकसित करने के लिए हमें अपने गौरवशाली अतीत और ऋषियों के ज्ञान से सीखने की जरूरत है। किसी भी देश के फलने-फूलने और विकसित होने के लिए उसकी जड़ों की ओर देखना जरूरी है। आज विश्व जिस बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, उसमें भारत की सभ्यतागत ज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका है। चाहे वह पर्यावरण के लिए मानवीय दृष्टिकोण, स्वास्थ्य व कल्याण के बारे में हमारी सोच, समान धन वितरण, सतत विकास, सामाजिक सामंजस्य और इसी तरह हमारे सभ्यतागत ज्ञान हो व हमारे ऋषियों ने हमें जो राह दिखाई है, उसका गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है।

मुझे आज ऋषिहुड विश्वविद्यालय का उद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है, जो इस महत्वपूर्ण राष्ट्र-निर्माण के प्रयास को आगे बढ़ाने की इच्छा रखता है। मैं इस शिक्षण संस्थान के सभी शिक्षक और छात्रों को भी बधाई देता हूं।

धन्यवाद

जय हिंद

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