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वे मूल हैं, इसलिए वे वही हैं जो वे हैं: एमी बरुआ, दिमासा भाषा में आईएफएफआई भारतीय पैनोरमा फिल्म की पहली निर्देशक और अभिनेत्री


दुनिया में होने के बावजूद भी इससे अलग: सेमखोर, समसा समुदाय की कहानी जो सांसारिक विलासिता से 'अछूते' रहना चाहते हैं

Posted On: 21 NOV 2021 9:58PM by PIB Delhi

"न तो उनके पास है, और न ही वे किसी सांसारिक ज़रूरत और विलासिता तक पहुँच बनाना चाहते हैं। वे अपने आप में संतुष्ट हैं। सेमखोर के लोग- वे मूल हैं, इसलिए वे वही हैं जो वे हैं।"

प्रसिद्ध असमिया अभिनेत्री एमी बरुआ द्वारा निर्देशित फिल्म सेमखोर को गोवा में आयोजित हो रहे 52वें आईएफएफआई के भारतीय पैनोरमा 2021 की उद्घाटन फिल्म के रूप में चुना गया है और इस अवसर पर फिल्म की निर्देशक ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने समसा समुदाय के उस जीवन को जानने का साहसपूर्ण प्रयास किया जो अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और प्राचीन मान्यताओं के साथ बाहरी दुनिया से अलग एकांत जीवन जीना पसंद करते हैं। इसके साथ ही 'सेमखोर' आईएफएफआई में ऐसा सम्मान पाने वाली डिमासा भाषा की पहली फिल्म बन गई है।

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इस फिल्म की अभिनेत्री-निर्देशक-पटकथा लेखक, और स्वयं मुख्य किरदार निभाने वाली एमी बरुआ ने आज गोवा में आईएफएफआई के अवसर पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह विचार व्यक्त किए।

यह फिल्म सेमखोर लोगों की प्रथाओं, रीति-रिवाजों और लोक धारणाओं का प्रतिनिधित्व करती है जो बाहरी दुनिया से 'अछूते' रहना चाहते हैं। इसे डिमासा भाषा में बनाया गया है जो जातीय-भाषाई समुदाय द्वारा बोली जाने वाली एक बोली है जिसके नाम पर इसका नाम असम और नागालैंड के कुछ हिस्सों में रखा गया है।

कैसे एक अखबार के एक टुकड़े ने उन्हें इस फिल्म की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया, इसकी जानकारी देते हुए एमी ने कहा, “एक दिन खाना खाते समय मैं अखबार की कटिंग पढ़ रही थी, जहां सेमखोर पर एक छोटी सी खबर पर मेरी नजर पड़ी। उन्होंने कहा किइस खबर ने मुझे इतनी गहराई से छुआ कि मैं इस समुदाय के बारे में और सोचने लगी।

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जिज्ञासा और बढ़ी तोएमी ने उन पर अधिक शोध करना शुरू किया और फिर कुछ ऐसे दिलचस्प तथ्य सामने आए जो अधिकांश लोगों के लिए अस्वीकार्य अथवा अकल्पनीय होंगे। उन्होंने कहा, “हम 21वीं सदी में रह रहे हैं और तमाम सुविधाएं होने के बावजूद भी हम खुश नहीं हैं। सेमखोर एक ऐसी जगह है जहां लोग शांति से रहते हैं, भले ही उनके पास बुनियादी सुख-सुविधाओं तक पहुंच न हो जिनका आम लोग आनंद लेते हैं।

सुश्री बरुआ ने बताया कि इसके लिए कैसे उन्हें अपने प्रियजनों की इच्छाओं के खिलाफ जाना पड़ा, जिन्होंने उनसे कहा था कि वे समसा समुदाय से जुड़ने के बारे में सोचे भी ना,लेकिन यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही थी जिसने उनकी इस इच्छा को पूर्ण किया। "मेरा दृढ़ संकल्प इतना मजबूत था कि मैंने 2017 में सेमखोर जाने की कोशिश की और इस प्रयास में मैं समझ गयी कि यह यात्रा मेरी कल्पना से कहीं अधिक कठिन होने वाली है क्योंकि वे किसी बाहरी व्यक्ति से कुछ भी साझा नहीं करेंगे।"

सेमखोर की दुनिया में अपने प्रवास पर कुछ दिलचस्प किस्से साझा करते हुए, एमी ने कहा कि उन्हें दिमासा भाषा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और पहले कदम के रूप में उन्होंने एक ट्यूटर की मदद से एक वर्ष तक उस भाषा को सीखा। एमी ने कहा "जब मुझे यकीन हो गया कि मैं डिमासा को आत्मविश्वास के साथ बोल सकती हूं, तो 2018 में फिर से मैं वहां गयी।" उन्होंने अपने दोस्तों की मदद से, उनसे संपर्क करने के लिए सावधानी पूर्वक लेकिन निरंतर कोशिश की और आखिरकार अपने प्रयास में सफल रहीं।

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एमी ने कहा कि जिसको जानने का उन्हें इंतजार था वह कल्पना से परे और कुछ आश्चर्यजनक था। वे बाहरी दुनिया के किसी भी उपकरण का उपयोग नहीं करते। उनके जीवन-यापन का मुख्य स्रोत कृषि माध्यम है। वे खाना पकाने के लिए तेल का उपयोग नहीं करते। एमी ने कहा कि किसी को भी हैरानी हो सकती है कि सरकार उनके लिए कुछ क्यों नहीं कर रही है पर एमी के अनुसार यह संदेह निराधार है क्योंकि सरकार ने वहां पहले ही स्कूल और अस्पतालों का निर्माण कराया था। एमी ने विनोदपूर्ण भाव में बताया कि उन्होंने इसे ध्वस्त कर दिया और अब इन जगहों पर पक्षियों को पाल रहे हैं।

इतना ही नहीं, सुश्री बरुआ के अनुसार, वे बाहरी दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं चाहते, और न ही किसी को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देते हैं। उनके बारे में कोई अनुभव लिए बिना किसी कोभी आश्चर्य हो सकता है किवे इतने कठोर कैसे खड़े हो सकते हैं। इधर, एमी के पास साझा करने के लिए एक स्पष्टीकरण है और एक निर्देशक के अनुसार जब एमीने उससे पूछा कि उनके पास क्या कमी है और वे इसकी तलाश में कहीं और जाएंगें तो उनका बस यहीं कहना था कि "हमारे पास यहाँ सब कुछ है और हम खुश हैं, बस हमसे दूर रहें"

एमी ने इस फिल्म में, वह खुद अभिनेत्री की भूमिका निभाई है और इस चरित्र में खुद को उतारने के लिए उन्होंने ग्राम प्रधान की अनुमति से अक्सर सेमखोर की यात्राऐं की है और वहां की एक महिला के चरित्र को निभाने की कोशिश की जो 14 बच्चों की मां है। एमी ने कहा कि मैं हर जगह उसका पीछा करती थी।अपनी इस असाधारण यात्रा के दौरान हुए कई अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने महीनों तक अपने बालों को धोना बंद कर दिया ताकि उनके दोमुंहे सिरे विकसित हो जाएं और अपने तलवों में दरारें आने के लिए जूते पहनना बंद कर दिया। एमी ने कहा "मैंने एक साल के लिए ब्यूटी पार्लर जाना भी बंद कर दिया"।

65 लोगों वाली इस फिल्म के सदस्य दल को उस गांव में रहने की अनुमति नहीं थी और उन्होंने एक पहाड़ी के पास डेरा डाला। फिल्म के सदस्य गांव पहुंचने के लिए रोजाना 45 मिनट पैदल चलकर जाया करते थे। फिल्म के निर्माण के दौरान एक दिलचस्प घटना साझा करते हुए एमी ने कहा कि वहां के लोग काले जादू में विश्वास करते हैं और एक दिन जब उन्होंने शूटिंग के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया तो उन्होंने एक शोर-शराबा सुना। एमी ने कहा कि "लोग हम पर हमला करने के लिए आग और पत्थरों के साथ हमारे तरफ दौड़ रहे थे क्योंकि उन्हें लगा कि हम उन पर काला जादू कर रहे हैं।"

इस घटना से उनके फिल्म निर्माण पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताते हुए, एमी ने कहा, "उस रात उन्होंने हमारे उस शिविर को नष्ट कर दिया जहां हम रह रहे थे।"

एक ऐसा समुदाय जो किसी से भी संपर्क नहीं चाहता उसके बारे में ऐसी फिल्म बनाने पर पूछे गए प्रश्न पर एमी ने कहा कि वे दशकों पुराने रीति-रिवाजों से बंधे हुए इसी तरह से रह रहे हैं। अपनी फिल्म के माध्यम से उन्होंने दुनिया को यह बताने की कोशिश की है कि आज भी ऐसे लोग इस दुनिया में मौजूद हैं और यदि संभव हो तो बाहरी दुनिया से कुछ हस्तक्षेपों के माध्यम से उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और उनके बच्चों को शिक्षा के मामले में अपने जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है, लेकिन, ये सब उनकी शांति को भंग किए बिना जिसके साथवह रह रहे हैंहोना चाहिए यानि संसार का वह सुख जिसे सबकुछ होने के बाद भी हम खोज रहे हैं, और यह सुख उनके पास है।

पूर्वोत्तर की एक फिल्म को ऐसा अवसर देने के लिए आईएफएफआई को धन्यवाद देते हुए एमी ने कहा कि इस फिल्म के तौर पर पहली बार निर्देशक होने के नाते यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।

अपनी शानदार कहानी और दिलचस्प सिनेमैटोग्राफी के लिए फिल्म ने पहले ही टोरंटो इंटरनेशनल वुमन फिल्म फेस्टिवल (टीआईडब्ल्यूएफएफ) सहित अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल किया है। निर्देशक और अभिनेत्री एमी बरुआ ने 25 असमिया फीचर फिल्मों में अभिनय किया है और कई राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मों में मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं।

सारांश: डिरो सेमखोर में समसा समुदाय से संबंधित है। जब डिरो की मृत्यु होती है, तो उसकी पत्नी, जो एक सहायक मिड-वाइफ के रूप में काम करती है, अपने तीन बच्चों की देखभाल करती है। उसकी अपनी इकलौती बेटी मुरी, केवल ग्यारह साल की उम्र में, दीनार से शादी कर लेती है। दुर्भाग्य से, एक बच्ची को जन्म देने के बाद मुरी की मृत्यु हो जाती है। सेमखोर की प्रथा के अनुसार यदि बच्चे के जन्म के दौरान किसी महिला की मृत्यु हो जाती है, तो शिशु को मां के साथ जिंदा दफना दिया जाता है लेकिन डिरो की पत्नी सेमखोर में एक नई सुबह का संकेत देते हुए, मुरी के शिशु की रक्षा करती है।

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