विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, भारत में भविष्य का वैश्विक ग्रीन हाइड्रोजन हब बनने की क्षमता


डॉ. सिंह ने 'अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन 2021: भारत के हाइड्रोजन इको सिस्टम को मज़बूत करना' में मुख्य अतिथि के रूप में मुख्य भाषण दिया

Posted On: 03 SEP 2021 5:40PM by PIB Delhi

केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री; लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि भारत में निकट भविष्य में ग्रीन हाइड्रोजन का ग्लोबल हब बनने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ और ग्रीन ऊर्जा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है और उसी के अनुसार कुछ समय पहले लाल किले की प्राचीर से 75वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह नई दिल्ली में 'अंतर्राष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन 2021: भारत के हाइड्रोजन इको सिस्टम को सशक्त करना' में मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे। इस सम्मेलन में केंद्रीय मंत्रालयों और उद्योग निकायों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ शिक्षाविद, ऊर्जा विशेषज्ञों और राजनयिक मिशनों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जैव ईंधन, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन की तेजी से शुरूआत के साथ भारत कार्बन तटस्थता की दिशा में नेतृत्व करने की भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

 

उन्होंने बताया कि सरकार पहले से ही वाहनों के लिए हाइड्रोजन ईंधन और प्रौद्योगिकी के अनुकूलन को प्रोत्साहित कर रही है और इस्पात, सीमेंट तथा काँच उत्पादन से जुड़े कई उद्योग हीटिंग आवश्यकताओं के लिए पहले से ही हाइड्रोजन का उपयोग करना शुरू कर चुके हैं।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से 450 गीगावॉट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है और इसे हासिल करने की दिशा में यह आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि कम लागत पर अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के कारण भारत अन्य देशों की तुलना में निश्चित रूप से सस्ती दर पर हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए बेहतर स्थिति में है। इसीलिए भारत के हाइड्रोजन निर्यात हब बनने की दिशा में कोई बाधा नहीं है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2030 तक पूर्वी एशिया और यूरोपीय संघ के लिए ग्रीन हाइड्रोजन की वैश्विक वार्षिक निर्यात क्षमता 10.4 मिलियन टन होने की उम्मीद है, जिससे लगभग 20 बिलियन अमरीकी डॉलर का बाजार उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा, सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी पक्षों को सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।

 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पिछले 7 वर्षों में दुनिया ने यह देखा है कि जलवायु संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए किस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में सर्वश्रेष्ठ काम किए हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में श्री मोदी ने रेखांकित किया था "आगामी 25 वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है, जब भारत को स्वाधीन हुए 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे।" उन्होंने कहा कि सभी तकनीकी नवाचारों का मूल उद्देश्य आम लोगों के जीवन को आसान बनाना है।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री के ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के अनुरूप, देश के लिए एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य "हाइड्रोजन 212" तय किया गया है। उन्होंने हाइड्रोजन 212 का अर्थ को समझाते हुए बताया कि ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत 2 डॉलर/किलोग्राम से कम, ग्रीन हाइड्रोजन भंडारण + वितरण + ईंधन भरने की लागत 1 डॉलर/किलोग्राम से कम और आरओआई के साथ मौजूदा ऊर्जा के स्थान पर ग्रीन हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी के लिए समय सीमा 2 वर्ष से कम।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत की ऊर्जा मांग में तेजी से वृद्धि होने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसके साथ-साथ भारत की अक्षय ऊर्जा (आरई) की हिस्सेदारी 2050 तक कम से कम 50 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है। हालांकि, उन्होंने कहा कि अक्षय ऊर्जा केवल 45-50 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन में कमी में मदद कर सकती है और ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने के लिए सबसे उपयुक्त है।

 

पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष श्री संजय गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि नियामक ढांचे को सक्षम बनने से मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा मिलेगा और भारत के हाइड्रोजन इको सिस्टम के विकास में मदद मिलेगी।

 

पीएचडीसीसीआई की पर्यावरण समिति के अध्यक्ष डॉ. जे पी गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि भारत न केवल अपनी जरूरतों के लिए हाइड्रोजन का उत्पादन करने की दिशा में बेहतर स्थिति में है, बल्कि यह हाइड्रोजन का एक वैश्विक निर्यात केंद्र भी बन सकता है।

 

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