विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैः डॉ. जितेंद्र सिंह

Posted On: 20 JUL 2021 4:04PM by PIB Delhi

भारत सरकार के विभिन्न वैज्ञानिक मंत्रालय और विभाग विश्व को एक बेहतर और अधिक वैज्ञानिक स्थान बनाने में भारत के प्रयासों में योगदान दे रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ऊर्जा, जल, स्वास्थ्य और खगोल विज्ञान सहित महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की प्रौद्योगिकी मिशन योजनाएं स्वच्छ ऊर्जा और जल के क्षेत्रों में अनुसंधान, विकास और नवाचार पर केंद्रित हैं। स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और जल प्रौद्योगिकी अनुसंधान पहलों के तहत क्रमशः स्मार्ट ग्रिड, ऑफग्रिड, ऊर्जा दक्षता निर्माण, वैकल्पिक ईंधन, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ ऊर्जा सामग्री, नवीकरणीय और स्वच्छ हाइड्रोजन, उत्सर्जन में कमी लाने वाली टेक्नोलॉजी कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण तथा जल प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए वर्तमान योजनाओं का दायरा बढ़ाया गया है। विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) की विजिटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च (वज्र) संकाय योजना बनाई गई है ताकि प्रवासी  भारतीयों (एनआरआई) और विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिक (ओसीआई) सहित प्रवासी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को एक खास  अवधि के लिए भारतीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों में काम करने के लिए लाकर प्रमुख क्षेत्रों में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान साझेदारियां की जा सकें। सौर ऊर्जा में विषय आधारित फेलोशिप कार्यक्रम, ऊर्जा दक्षता का निर्माण, गुणवत्तासंपन्न अनुसंधान करने और अमेरिका के राज्यों में काम कर रहे वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी कायम करने लिए युवा संकाय और अनुसंधान विद्वानों का समर्थन करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उच्च और उन्नत नेटवर्क और जल अनुसंधान की स्थापना की गई है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के माध्यम से भारत विशेष रूप से "विमानन जैव ईंधन" ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारियों के लिए प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में उभरा है। हाल में सीएसआईआर और मेसर्स पैसिफिक इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (पीआईडीसी) अमेरिका के बीच डिमेथिल ईथर (डीएमई) उत्प्रेरक के उत्पादन और आपूर्ति के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए हैं। सीएसआईआर ने हाल ही में पर्यावरण प्रदूषण और संबंधित स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान (एनआईएचएस), एनआईएच, अमेरिका के साथ एक और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। इसके अतिरिक्त भारत में स्वास्थ्य अनुसंधान के विकास, संचालन और संवर्धन को समर्थन देने के लिए सीएसआईआर और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के बीच एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं। 

भारत विश्व के विभिन्न देशों के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी के साथ अमेरिका में तीस मीटर टेलीस्कोप (टीएमटी), ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में स्क्वायर किलोमीटर ऐरे (एसकेए) जैसी अत्याधुनिक खगोल विज्ञान सुविधाओं को तैयार करने के काम में भाग ले रहा है । भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से महाराष्ट्र में लेजर इंटरफेरोमीटर गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला (लिगो) का तीसरा डिटेक्टर भी स्थापित कर रहा है।

सरकार ने तेज, स्थायी और समावेशी विकास के लिए विज्ञान के नेतृत्व वाले समाधानों की खोज और वितरण की गति को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी भारतीय एसटीआई उद्यम के मार्गदर्शक विजन के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) नीति 2013 बनाई थी। विज्ञान और टेक्नोलॉजी अवसंरचना सहित देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को समर्थन और प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम लागू किए गए हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे भारत को विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में अपनी वैश्विक रैंकिंग में सुधार करने में मदद मिली है। 

अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों को सक्रिय व प्रारंभ करके विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है। इसमें महत्वपूर्ण अनुसंधान और विकास क्षेत्रों को प्राथमिकता देने जैसे विभिन्न उपायों पर फोकस किया गया है; पारंपरिक ज्ञान सहित अंतर-विषयी अनुसंधान को बढ़ावा देना; समाज के सभी वर्गों के बीच वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करना; व्यावहारिक और मापने योग्य बिजनेस मॉडल के साथ एसटीआई संचालित उद्यमिता का समर्थन; अनुसंधान और विकास आदि में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए वातावरण बनाना शामिल है। सीएसआईआर ने क्षेत्र विशेष विषय आधारित क्लस्टर बनाकर अनुसंधान और विकास परियोजनाओं की योजना और सहभागी प्रदर्शन के लिए एक नई अनुसंधान और विकास प्रबंधन रणनीति बनाई है।

भारत ने कोविड-19 से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए मजबूत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किए हैं। इन कार्यक्रमों का फोकस मुख्य रूप से बुनियादी अनुसंधान, निदान, चिकित्सा और टीकों पर केंद्रित उद्योगों और स्टार्ट-अप कंपनियों के साथ नजदीकी सहयोग से विकास पर है। अपने वैज्ञानिक समुदाय को ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, डेनमार्क, मिस्र, इजराइल, जापान, पुर्तगाल, कोरिया, नॉर्वे, रूस, सर्बिया, सिंगापुर, स्लोवेनिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, अमेरिका और वियतनाम जैसे अन्य देशों के शोधकर्ताओं के साथ जोड़ने के लिए आवश्यक विज्ञान और प्रौद्योगिकी फ्रेमवर्क लागू किए गए हैं ताकि कोविड-19 के खिलाफ समाधान खोजा जा सके। भारत द्विपक्षीय सहयोग के अलावा ब्रिक्स कार्यक्रम के जरिए ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ काम कर रहा है। रोग निगरानी से लेकर निदान तक कई प्लेटफार्मों पर निदान, टीकों और चिकित्सीय, दवाओं की रिपर्पसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संबंधी उपाय, कोविड-19 के लिए उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग के क्षेत्रों को कवर करते हुए एक संयुक्त आह्वान किया गया था। विश्व की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी के साथ विश्व के 25 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र को कवर करने वाले ब्रिक्स देश कोविड-19 के खिलाफ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 

भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है जहां विभिन्न प्लेटफॉर्मों के वैक्सीन कैंडिडेट की एक समृद्ध श्रृंखला नैदानिक विकास के विभिन्न चरणों में है।नैदानिक परीक्षणों (समझौता) पहल को आगे बढ़ाने के लिए साझेदारी के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने पड़ोसी देशों में नैदानिक परीक्षण क्षमताओं को मजबूत बनाने के लिए विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर भागीदारी की है। 14 देशों (अफगानिस्तान, बहरीन, भूटान, गाम्बिया, केन्या, मालदीव, मॉरीशस, म्यांमार, नेपाल, ओमान, सोमालिया, श्रीलंका, वियतनाम और अमेरिका) के 20 सत्रों में 2400 प्रतिभागियों के साथ 2 प्रशिक्षण श्रृंखला आयोजित की गई है। भारत ने एक वैश्विक वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग केंद्र के रूप में अन्य देशों को टीके उपलब्ध कराए हैं। विदेश मंत्रालय के वर्तमान आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक विश्व स्तर पर कोवैक्स सुविधा के माध्यम से मेड-इन-इंडिया कोविड-19 टीकों की लगभग 19.86 मिलियन खुराकें वितरित की जा चुकी हैं।

स्वदेशी नैदानिक विकास की दिशा में भी एक बड़ा प्रयास हुआ है। डीबीटी समर्थित स्वदेशी विनिर्माण सुविधा- आंध्र मेड टेक जोन (एएमटीजेड) ने कोविड-19 के लिए आरटी-पीसीआर डायग्नोस्टिक किट के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की उपलब्धि को सक्षम बनाया है, जिससे आयात निर्भरता में कमी आई है। इसके अलावा 200 से अधिक भारतीय निर्माताओं ने राष्ट्रीय जैव चिकित्सा संसाधन स्वदेशीकरण कंसोर्टियम (एनबीआरआईसी) के तहत पंजीकरण कराया है, जो प्रमुख आणविक जीवविज्ञान घटकों/रीजेंटों के स्वदेशी मैन्युफैक्चरिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए 'मेक इन इंडिया' पहल है। देश में सार्स-कोव-2 के नए वेरिएंट की स्थिति का पता लगाने के लिए 28 प्रयोगशालाओं का एक अंतर-मंत्रालयी कंसोर्टियम इंडियन सार्स-कोव-2 जीनोमिक कंसोर्टियम (आईएनएसएसीओजी) लॉन्च किया गया है। 

इन प्रयासों ने महामारी का मुकाबला करने में भारत को विश्व स्तर पर विकसित राष्ट्रों के समकक्ष स्थान दिया है। कोविड-19 रोगियों के लिए महामारी और योग आधारित पुनर्वास कार्यक्रम के दौरान छात्रों, स्वास्थ्य कर्मियों और वरिष्ठ नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर योग और ध्यान संबंधी उपाय आदि महामारी से निपटने में अन्य देशों की तुलना में भारत के कुछ अनूठी गतिविधियां हैं।

यह जानकारी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री. डॉ जितेंद्र सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित जवाब में दी।

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