वित्त मंत्रालय
परिवर्तनीय पूंजी कंपनी पर विशेषज्ञ समिति ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) को अपनी रिपोर्ट सौंपी
Posted On:
01 JUN 2021 7:52PM by PIB Delhi
परिवर्तनीय पूंजी कंपनी पर डॉ. के.पी. कृष्णन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों में परिवर्तनीय पूंजी कंपनियों की व्यवहार्यता पर अपनी रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (आईएफएससीए) के अध्यक्ष श्री इंजेती श्रीनिवास को सौंप दी है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण ने परिवर्तनीय पूंजी कंपनी (‘वीसीसी’) की व्यवहारिकता को समझने के लिए ने विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। समिति इसके तहत भारत में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र में फंड प्रबंधन के लिए वीसीसी की भूमिका का अध्ययन कर रही थीं।
आईएफएससीए ने इस समिति की स्थापना एक अन्य कानूनी संरचना की अनुमति देने की संभावना का पता लगाने के लिए की है। जिसे एक परिवर्तनीय पूंजी कंपनी (वीसीसी) के रूप में जाना जाता है। जिसके तहत एसेट मैनेजर निवेशकों की पूंजी को वीसीसी के जरिए एक जगह रख सकेंगे। जो कि पूंजी प्रबंधन का एक अन्य विकल्प होगा। वीसीसी व्यवस्था उन कंपनियों और एलएलपी को कहीं ज्यादा बेहतर मानकों के जरिए नियमित कर सकेगी। जो अभी ट्रस्ट के रूप में नियमित होती हैं।
फंड प्रबंधन गतिविधियां समग्र वित्तीय सेवा ईको सिस्टम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ होती हैं। समिति को दिए गए अधिकारों के अनुरूप, इसने भारत में आईएफएससी के लिए वीसीसी की प्रासंगिकता और अनुकूलन क्षमता या आईएफएससी में फंड व्यवसाय को आकर्षित करने के लिए वैकल्पिक संरचनाओं की जांच की है। परंपरागत रूप से, भारत में फंड की पूलिंग तीन प्रकार की संस्थाओं के माध्यम से की जाती है। जिसमें कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत शासित सीमित देयता कंपनियां; सीमित देयता भागीदारी अधिनियम के तहत सीमित देयता भागीदारी; और भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत शासित ट्रस्ट शामिल हैं।
समिति ने यूके, सिंगापुर, आयरलैंड और लक्जमबर्ग जैसे अन्य न्यायालयों में वीसीसी या इसके समकक्ष की विशेषताओं का आकलन किया। समिति ने आईएफएससी में फंड प्रबंधन गतिविधि शुरू करने के उद्देश्य से वीसीसी जैसी कानूनी संरचना को अपनाने की सिफारिश की है।
समिति ने यह भी माना है कि फंड प्रबंधन करने वाली संस्थाओं को नियंत्रित करने वाले कानूनी ढांचे को निवेशकों को निश्चितता और स्पष्टता, परिसंपत्ति के विभिन्न पूलों के प्रभावी रिंग फेंसिंग, विभिन्न वर्गों के शेयरों को जारी करने की योग्यता, फंड की पूंजी संरचना में बदलाव बिना किसी नियामकीय मंजूरी के करने का मौका मिलना चाहिए। साथ ही विभिन्न विशेषताओं वाले फंडों के लिए उपयुक्त अकाउंटिंग मानकों को चुनने की स्वतंत्रता और जल्द ही उन्हें बंद करने का भी अधिकार देना चाहिए।
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