विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट ने आठ पूर्वी राज्यों को जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील माना


संख्या और गंभीरता, दोनों हिसाब से चरम स्तर की घटनाएं बढ़ रही हैं: डीएसटी सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा

भेद्यता का मूल्यांकन जलवायु संबंधी जोखिमों के आकलन की दिशा में पहला कदम : जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता

Posted On: 17 APR 2021 6:19PM by PIB Delhi

आज जारी की गई राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट ने झारखंड, मिजोरम, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, और पश्चिम बंगाल की पहचान ऐसे राज्यों के रूप में  की है, जो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के ज्यादातर पूर्वी हिस्से में स्थित इन राज्यों में अनुकूलन संबंधी उपायोंको प्राथमिकता देने की जरूरत है।

 

भारत में अनुकूलन संबंधी योजना के लिए एक साझाफ्रेमवर्क का उपयोग करते हुए जलवायु भेद्यता आकलन (क्लाइमेट वल्नेराबिलिटी असेसमेंट फॉर एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया यूजिंग ए कॉमन फ्रेमवर्क) शीर्षक इस रिपोर्ट को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने जारी किया। इस रिपोर्ट में वर्तमान जलवायु संबंधी जोखिमों और भेद्यता के प्रमुख चालकों के लिहाज से भारत के सबसे संवेदनशील राज्यों और जिलों की पहचान की गई है।

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि हमने यह देखा है कि कैसे संख्या और गंभीरता, दोनों, के हिसाब से चरम स्तर की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह के बदलावों के प्रतिसंवेदनशील माने जाने वाले भारत के हिस्सों को मानचित्र पर चिन्हित कर लेने से जमीनी स्तर पर जलवायु से संबंधित कार्रवाइयों को शुरू करने में मदद मिलेगी। इस रिपोर्ट को सभी हितधारकों के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए ताकि यह बेहतर तरीके से डिज़ाइन किए गए जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से जुड़ी परियोजनाओं के विकास के जरिए देशभर के जलवायु  परिवर्तन की दृष्टि से नाजुक माने जाने वाले समुदायों को लाभान्वित कर सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इन मानचित्रों को एप्प जैसे तंत्र के जरिए उन लोगों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत है।

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता ने कहा कि भेद्यता का आकलन करना जलवायु संबंधी जोखिमों के आकलन की दिशा में पहला कदम है। बाधा एवं संसर्गदो अन्य ऐसे घटक हैं जिनका आकलन करना जलवायु संबंधी समग्र जोखिमों का पता लगाने के लिए जरूरी है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग अगले चरण में क्षेत्र आधारित (सेक्टोरल) भेद्यता आकलन और उप-जिला स्तरों पर आकलन के साथ इन दोनों आकलनों को अंजाम देगा।

 

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के सेवानिवृत्त जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ प्रोफेसर एन. एच. रविंद्रनाथ, जिन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है, ने बताया कि इस रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से सबसे नाजुक राज्यों, जिलों और पंचायतों की पहचान करने में मदद की है और यह अनुकूलन संबंधी निवेश तथा अनुकूलन कार्यक्रमों के विकास एवं कार्यान्वयन को प्राथमिकता देने में सहायता प्रदान करेगा।

 

आईआईटी मंडी के निदेशक प्रोफेसर अजीत कुमार चतुर्वेदी और आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक टी जी सीतारमण ने उम्मीद जताई कि जलवायु को बचाने की कार्रवाई शुरू करने के लिए राज्यों द्वारा इस रिपोर्ट पर ध्यान दिया जायेगा।

 

भारत स्थित स्विट्जरलैंड के दूतावास में स्विस सहयोग कार्यालय की प्रमुख सुश्री कॉर्नी डेमेंजने आशा व्यक्त की कि ये आकलन अपेक्षाकृत अधिक लक्षित जलवायु परिवर्तन की परियोजनाओं के विकास में योगदान देंगे। उन्होंने यह भी उम्मीद जतायी कि ये आकलन जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य की कार्ययोजनाओं के कार्यान्वयन और उसके संभावित संशोधनों मेंसहयोग करेंगे।

 

उन्होंने आगे कहा कि इन आकलनों का उपयोग पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों से जुड़ी भारत की रिपोर्टिंग के लिए किया जा सकता है। और अंत में, ये आकलन जलवायु परिवर्तन से संबंधित भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना को मदद देंगे।

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन (एसडीसी) द्वारा संयुक्त रूप से समर्थित इस राष्ट्रव्यापी कवायद में 24 राज्यों और 2 केन्द्र-शासित प्रदेशों के कुल 94 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) की एसोसिएट प्रमुख डॉ. निशा मेंदीरत्ताने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की इस पहल को दो राष्ट्रीय मिशनों के क्रियान्वयन के हिस्से के रूप में रेखांकित किया और अनुकूलन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में केंद्र, राज्य और उपयोगकर्ता समुदाय को जोड़ने की जरूरत पर प्रकाश डाला।

 

राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की सरकारों की सक्रिय संलग्नता और भागीदारी के साथ ये आकलन किए गए और इससे संबंधित प्रशिक्षण एवं क्षमता-निर्माण की कवायदों ने जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील जिलों की पहचान की। संवेदनशील माने जाने वाले राज्यों में से, असम, बिहार और झारखंड के 60% से अधिक जिले अति संवेदनशील जिलों की श्रेणी में हैं।

 

आईआईटी मंडी की प्रोफेसर डॉ. श्याम श्री दासगुप्ता ने कहा कि भारत के सभी जिलों में संवेदनशीलता संबंधी स्कोर बहुत छोटे रेंज में है। यह दर्शाता है कि भारत में वर्तमान जलवायु जोखिम के संदर्भ में सभी जिले और राज्य एक हद तक संवेदनशील हैं।

 

यह आकलन जलवायु परिवर्तन से संबंधित उपयुक्त कार्रवाइयों को शुरू करने में नीति निर्माताओं की मदद करेगा। यह बेहतर तरीके से डिज़ाइन किए गए जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से संबंधित परियोजनाओं के विकास के जरिए पूरे भारत में जलवायु परिवर्तन के लिहाज से कमजोर समुदायों को लाभान्वित करेगा।

 

आईआईटी गुवाहाटी की प्रोफेसर डॉ. अनामिका बरुआने इस बात को रेखांकित किया कि राज्य और केन्द्र-शासित प्रदेशों को तुलनात्मक बनाने के लिए उनमें एक साझा फ्रेमवर्क का उपयोग किये जाने और राज्यों एवं केन्द्र-शासित प्रदेशों की सरकारों की सक्रिय भागीदारी के कारण यह भेद्यता आकलन अनूठा है।

 

भारत जैसे विकासशील देश में अनुकूलन संबंधी उपयुक्त परियोजनाओं और कार्यक्रमों को विकसित करने की दृष्टि से भेद्यता आंकलन को एक महत्वपूर्ण कवायद माना जाता है। भले ही विभिन्न राज्यों और जिलों के लिए जलवायु भेद्यता आकलन पहले से मौजूद हैं, लेकिन राज्यों और जिलों की आपस में एक दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इनके आकलन के लिए उपयोग किए जाने वाले फ्रेमवर्क अलगअलग होते हैं, जिससे नीतिगत और प्रशासनिक स्तरों पर निर्णय लेने की क्षमता सीमित हो जाती है। इसी स्थिति ने एक साझा भेद्यता फ्रेमवर्क के उपयोग जरिए एक आकलन को अनिवार्य बना दिया।

 

इस जरूरत को ध्यान में रखते हुए, डीएसटी और एसडीसी ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर - सरकारी पैनल की नवीनतम 5वीं आकलन रिपोर्ट (आईपीसीसी[एआर5]) में प्रदान की गई परिभाषा के आधार पर हिमालयी क्षेत्र के भेद्यता आकलन के लिए एक साझा फ्रेमवर्क के विकास में सहयोग दिया। फ्रेमवर्क को लागू करने से संबंधति एक नियमपुस्तिका (मैनुअल) के साथ इस साझा फ्रेमवर्क को आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बैंगलोर द्वारा विकसित किया गया। इस फ्रेमवर्क को क्षमता निर्माण प्रक्रिया के माध्यम से सभी 12 राज्यों (विभाजनपूर्व के जम्मू एवं कश्मीर सहित) को शामिल करते हुए भारतीय हिमालयी क्षेत्र में लागू किया गया।

 

इस कवायद के नतीजों, जिन्हें हिमालयी राज्यों के साथ साझा किया गया था,की वजह से भेद्यता संबंधी इन आकलनों के आधार पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े अनुकूलन को प्राथमिकता देने और लागू करने वाली कार्रवाइयों में से कुछ के संदर्भ में कई सकारात्मक विकास हुए हैं।

 

जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अनुकूलन की कार्रवाइयों को लागू करने के लिए राज्यों से प्राप्त सकारात्मक प्रतिक्रिया और हिमालयी राज्यों में इसकी उपयोगिता के आधार पर राज्यों की क्षमता निर्माण के जरिए पूरे देश के लिए जलवायु भेद्यता आकलन की कवायद को लागू करने का निर्णय लिया गया।

 

यह काम उसी टीम को सौंपा गया, जिसने भेद्यता आकलन के लिए क्षमता निर्माण की दिशा में भारत में राज्य सरकारों के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं की एक श्रृंखला का समन्वय किया था।

 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग जलवायु परिवर्तन से संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना के एक अंग के तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े 2 राष्ट्रीय मिशनों को लागू कर रहा है। ये दोनों मिशन हैं - नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम (एनएमएसएचई) और नेशनल मिशन फॉर स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज (एनएमएसकेसीसी)। इन मिशनों के एक हिस्से के रूप में, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग 25 राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों के राज्य जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों को सहयोग दे रहा है। राज्यों के इन जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठों को सौंपे गए अन्य कार्यों के अलावा, जिला और उप-जिला स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के कारण भेद्यता का आकलन करना इनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है और राष्ट्रीय स्तर पर भेद्यता का आकलन उसी प्रक्रिया का एक विस्तार है।

 

विस्तृत रिपोर्ट के लिए देखें :

https://dst.gov.in/sites/default/files/Full%20Report%20%281%29.pdf

 

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