विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

सीएसआईआर भारत की पहली ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी के 20 साल पूरे होने पर जश्न मना रहा है, विश्व में यह अपनी तरह की पहली लाइब्रेरी है

Posted On: 29 JAN 2021 12:31PM by PIB Delhi

साल 2022 में 80 वर्ष पूरे करने जा रहे वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने अपने संगठन की सफलता की 80 कहानियों को उभारकर बताने वाला एक अभियान शुरू किया है। इस अभियान का शुभारंभ हाल ही में किया गया क्योंकि सीएसआईआर की ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) भारत के पारंपरिक ज्ञान की हिफाजत करते हुए दो दशक पूरे कर रही है। इन दो दशकों की इस यात्रा को याद करते हुए "टीकेडीएल के दो दशक - भविष्य से जुड़ने की राह" इस विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक और डीएसआईआर के सचिव डॉ. रघुनाथ ए. माशेलकर, आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा, डीपीआईआईटी के सचिव श्री गुरुप्रसाद महापात्र, जेनेवा में डब्ल्यूआईपीओ की ट्रेडिशनल नॉलेज डिविजन की वरिष्ठ सलाहकार बगोना वनेरो और सीएसआईआर के महानिदेशक व डीएसआईआर के सचिव डॉ. शेखर सी. मांडे जैसे गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया।

टीकेडीएल की प्रमुख डॉ. विश्वजननी जे. सत्तिगेरी ने इस यात्रा के बारे में बताया और विशेष तौर पर उल्लेख किया कि 2001 में सीएसआईआर ने भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी विभाग (आईएसएमएच, जिसे अब आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) मंत्रालय के तौर पर जाना जाता है) के साथ संयुक्त रूप से मिलकर काम करते हुए ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) को विकसित किया है। ये पहल भारत के बहुमूल्य पारंपरिक ज्ञान को गलत तरीके से हथियाने से रोकने की कड़ी में ही अगला कदम था जो हल्दी, नीम, बासमती चावल और हमारे देश के ऐसे अन्य प्राचीन ज्ञान और प्रथाओं पर बौद्धिक संपदा अधिकारों की मंजूरी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कार्यालयों के साथ पूर्व में लड़ी गई कानूनी लड़ाइयों पर आधारित था। टीकेडीएल के डेटाबेस में भारतीय चिकित्सा प्रणाली (आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और सोवा रिग्पा) और योग के 3.9 लाख से ज्यादा नुस्खे / प्रथाएं हैं। ये डेटाबेस टीकेडीएल एक्सेस (गैर प्रकटीकरण) समझौते के जरिए सिर्फ पेटेंट परीक्षकों को ही उपलब्ध है और अब तक भारत समेत 13 अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कार्यालयों के साथ ऐसे एक्सेस समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं। टीकेडीएल के डेटाबेस में मौजूद पूर्व कला साक्ष्यों के आधार पर 239 पेटेंट आवेदन या तो किनारे कर दिए गए हैं / वापस ले लिए गए / या संशोधित कर दिए गए है। आयुष मंत्रालय और डीपीआईआईटी के साथ इस मूल्यवान साझेदारी और डब्ल्यूआईपीओ के सहयोग को स्वीकारा गया।

डॉ. आर. ए. माशेलकर ने जोर देकर कहा कि इन सूचनाओं को गबन से सुरक्षित रखने के अलावा टीकेडीएल को पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखना चाहिए और उसे वैश्विक ज्ञान भंडार के तौर पर उभरना चाहिए। बीते सालों में टीकेडीएल की शक्ति बढ़ी है और अब वो अपने दायरे का विस्तार करने की ओर अग्रसर है। ये रोग निदान, पशु चिकित्सा, कृषि प्रथाओं, भोजन, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री और धातु विज्ञान वगैरह जैसे पारंपरिक ज्ञान की जानकारियां कवर करने की परिकल्पना करता है और वास्तुकला, धातु विज्ञान, चित्रकला, नक्काशी, वस्त्र आदि पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों (टीसीई) की जानकारी भी। आगे डिजिकृत और प्रकाशित पांडुलिपियों से मिलने वाली सूचनाओं और साथ-साथ मौखिक ज्ञान को भी टीकेडीएल डाटाबेस में शामिल करने का प्रस्ताव है।

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