सूचना और प्रसारण मंत्रालय
'सांड की आंख' के निर्देशक तुषार हीरानंदानी: भारत में वास्तविक जीवन के नायकों की कई छुपी हुई कहानियां हैं, जिन्हें बताया जाना चाहिए
भारत में शूटिंग करना एक अच्छा अनुभव है, स्थानीय लोग बहुत मददगार और सहायता देनेवाले हैं: हीरानंदानी
गैर-फ़ीचर श्रेणी की उद्घाटन फ़िल्म: गुजराती लघु-फ़िल्म 'पंचिका', दोस्ती की कहानी है, जो सभी सामाजिक प्रथाओं के बावजूद बची रहती है
‘पंचिका’ बच्चों का एक खेल है, जिसे पांच कंचों की सहायता से खेला जाता है। यह उस कहानी के लिए एक उपयुक्त शीर्षक की तरह भी लगता है, जहां दोस्ती दांव पर लग सकती है, जब बच्चे समाज द्वारा दिए जाने वाले आदेश को सुनने के लिए बाध्य होते हैं। भारत आज भी जाति और धर्म के आधार पर फैसले लेता है। फिल्म निर्देशक अंकुर कोठारी कहते हैं कि 'पंचिका' (पांच कंचे) यह दर्शाती है कि दोस्ती इन सभी सामाजिक प्रथाओं के बावजूद कैसे बची रहती है। 51 वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में उनकी फिल्म भारतीय पैनोरमा गैर-फीचर श्रेणी के लिए उद्घाटन फिल्म है।
युवा निर्देशक ने मराठी लेखक व्यंकटेश मडगुलकर द्वारा 1950 के दशक में लिखी गयी एक लघु कहानी को अपनी भाषा और परिदृश्य, यानी गुजरात और कच्छ के रण के रूप में रूपांतरित किया है।कोठारी ने आज एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "मैं अपने परिवेश में दोस्ती की कहानी को दिलचस्प तरीके से पेश कर रहा हूं। मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ था और नमक के पिरामिड जैसे प्रतीक और रूपक मुझे उत्साहित करते थे।“ कोठारी ने ‘पंचिका’ में बाल-कलाकारों के साथ काम किया। इस अनुभव के बारे में उन्होंने कहा," बच्चे कभी अक्षम नहीं होते, केवल निर्देशक अक्षम होते हैं।“ सेट में वे बाल कलाकारों को निर्देश देते थे और उनके साथ सख्त थे, लेकिन निर्माता श्रेया कपाड़िया एक अच्छे शॉट के बाद प्रेरित करने के लिए उन्हें चॉकलेट और जलपान प्रदान करती थीं।
'सांड की आंख' के निर्देशक तुषार हीरानंदानी ने कहा, यह बायोपिक न केवल महिला-सशक्तीकरण के बारे में है, बल्कि यह प्रेरणादायक कहानी बताती है कि साठ साल की उम्र में भी कोई क्या हासिल कर सकता है जब अधिकांश लोग कोशिश करना छोड़ देते हैं। निर्माता रिलायंस बिग एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के ग्रुप सीईओ शिभाशीष सरकार ने कहा, "कभी-कभी कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो वास्तव में आपको बाध्य करती हैं। इन कहानियों को मानवीय भावना और मानवीय मूल्यों की सराहना करने के लिए समर्थन देने की आवश्यकता होती है।“ उन्होंने कहा कि फिल्म में दिखाई गई बाधाएं, पात्रों की नहीं बल्कि समाज की हैं। इसके अलावा, निर्देशक का कहना है कि वह इस कहानी को; सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण इस मुद्दे को उपदेश देने की बजाय एक मजेदार तरीके से बताना चाहते थे। इसका बेहतर प्रभाव पड़ा। हीरानंदानी आगे कहते हैं, बायोपिक्स की शैली उन्हें सबसे अधिक प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि भारत में कई छिपी हुई कहानियां हैं, जिन्हें बताया जाना चाहिए। फिल्म के वास्तविक जीवन के पात्र, चंद्रो और प्रकाश को मेरठ शहर के लोग भी नहीं जानते थे। उन्होंने कहा, "जब मैंने यह फिल्म बनाई, तो मुझे उम्मीद थी कि उन पर ध्यान दिया जाएगा।" उन्होंने कहा कि मैं भविष्य में भी ऐसे अज्ञात लोगों के प्रेरक किस्से बताने पर ध्यान केंद्रित करूंगा। भारत में फिल्म की शूटिंग के संदर्भ में, हीरानंदानी कहते हैं, स्थानीय लोग बहुत मददगार और सहयोगी थे तथा मेरठ में शूटिंग करना एक शानदार अनुभव रहा। व्यावसायिक सफलता हासिल करने के लिए प्रतिष्ठित अभिनेताओं और बड़े सितारों के बारे में, हीरानंदानी ने कहा, भारतीय फिल्मों में कई प्रतिभाशाली अभिनेता हैं और बायोपिक्स के लिए ऐसे प्रतिभाशाली, कड़ी मेहनत करने वाले अभिनेताओं की आवश्यकता होती है।
पंचिका की संक्षिप्त कहानी: सात वर्षीय मिरी, नमक पिरामिड के एक रेगिस्तान में दोपहर का भोजन देने के लिए रवाना होती है। समाज से बहिष्कृत सूबा एक दूरी रखकर उसके पीछे-पीछे चलती है, क्योंकि उन्हें साथ खेलने की मनाही है। इसके बाद दोस्ती की यह कहानी समाज की सीमाओं को एक समय में एक कंचे से खोलती है।
सांड की आंख की संक्षिप्त कहानी: राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी और शार्प शूटिंग के कोच, डॉ यशपाल उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित जोहरी गाँव में 10 मीटर की शूटिंग रेंज शुरू करते हैं। इसमें सब कुछ था, लेकिन छात्र नहीं थे। ग्राम प्रधान रतन सिंह तोमर ने केवल परिवार के बेटों को शूटिंग सीखने की अनुमति दी। दो छोटे भाई थे - भंवर सिंह, जो चंद्रो के पति थे और जय सिंह, जो प्रकाशी के पति थे। तीन भाइयों के परिवारों में कुल 40 बच्चे थे। चंद्रो और प्रकाशी दोनों अपनी बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए शूटिंग बंदूक उठाती हैं। जो आगे हुआ, वह किसी चमत्कार से कम नहीं था। उन दोनों ने शार्प शूटर के रूप में 352 पदक जीते।
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(Release ID: 1690406)
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