कोयला मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा 2020- कोयला मंत्रालय


कोयला क्षेत्र में सुधारों से पारदर्शिता बरकरार रखते हुए की गई कारोबारी सुगमता की पेशकश

व्यावसायिक कोयला खदानों की नीलामी: नवंबर, 2020 में 19 ब्लॉकों की सफलतापूर्वक की गई नीलामी

मंत्रालय हितधारकों के साथ मिलकर सक्रिय रूप से आयात प्रतिस्थापन हासिल करने के लिए कर रहा है प्रयास

1 अरब टन कोयला उत्पादन की दिशा में हो रहीहै प्रगति

शुरुआती छोर तक संपर्क : कोयला खनन क्षेत्रों में जीवन आसान बनाना

विविधता : एनएलसीआईएल ने नए क्षेत्रों में बढ़ाए कदम

सीबीएम के उपयोग और सतह कोयला गैसीकरण की शुरुआत जैसी हरित पहल

Posted On: 31 DEC 2020 2:56PM by PIB Delhi

कोयला सुधार- पृष्ठभूमि

वर्तमान में भारत लगभग 72.9 करोड़ टन कोयले का उत्पादन कर रहा है। हालांकि, वास्तविकता यही है कि घरेलू उत्पादन देश में कोयले की घरेलू जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। भारत ने बीते साल 24.7 करोड़ टन कोयले का आयात किया था और इस पर 1.58 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च हुई थी। भारत दुनिया का दूसरा बड़ा कोयला उत्पादक है और कोयला भंडार के मामले में 5वां बड़ा देश है तथा ये भंडार 100 साल या उससे ज्यादा वक्त तक बने रह सकते हैं। इसके बावजूद देश अपने घरेलू उद्योग और विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में कोयले का उत्पादन करने में असफल रहा है।

भारत सरकार का लक्ष्य देश के उभरते हुए क्षेत्रों में आर्थिक विकास में तेजी लाना है। चूंकि, ये राज्य संसाधनों के लिहाज से संपन्न हैं, इसलिए इन राज्यों के विकास में इन संसाधनों का उपयोग करना काफी अहम है। भारत सरकार द्वारा किए गए पारदर्शी उपायों के साथ कोयला खदानों की वाणिज्यिक नीलामी से देश में कोयले की मांग और आपूर्ति में अंतर को पाटने का उपयुक्त समय आ गया है। इससे न सिर्फ पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार के व्यापक अवसर उपलब्ध होंगे, बल्कि प्रति वर्ष 20,000 करोड़ रुपये से 30,000 करोड़ रुपये तक की विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।

इन सुधारों का कोयले पर निर्भर दूसरे क्षेत्रों पर भी असर पड़ेगा। कोयला उत्पादन में बढ़ोतरी का इस्पात, एल्युमीनियम, उर्वरकों और सीमेंट क्षेत्र के उत्पादन और निर्माण प्रक्रिया पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।

1. कोयला क्षेत्र के सुधारों से पारदर्शिता बनाए रखते हुए कारोबारी सुगमता की पेशकश- 2020 में कोयले के व्यावसायिक खनन की शुरुआत।

सरकार द्वारा नियुक्त (जून 2019) नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) ने पारदर्शिता को बनाए रखते हुए कोयला क्षेत्र को उदार बना दिया। इस एचएलसी ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए कई महत्वपूर्ण सिफारिशें (अक्टूबर 2019) कीं और इनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण एक बड़ा बदलाव था, जिसमें कोयले को राजस्व के एक स्रोत के रूप में नहीं देखा गया और इसकी जगह इसे कोयले की खपत वाले संबंधित क्षेत्रों के माध्यम से आर्थिक विकास के एक साधन के रूप में देखे जाने की सिफारिश की गई थी। इसके मुताबिक, सरकार को कोयले के तेज और अधिकतम उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और बाजार में इसकी पर्याप्त उपलब्धता की दिशा में काम करना चाहिए। बदलाव की दिशा में, इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सिफारिशें की गई है। सरकार ने कुछ संशोधनों के साथ इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है और कई कदम उठाए हैं।

कारोबारी सुगमता सुनिश्चित करने, अतिरिक्त प्रावधानों को खत्म करने और आवंटन में लचीलापन लाने के उद्देश्य से खनिज कानून (संशोधन) अधिनियम, 2020 के माध्यम से सीएमएसपी अधिनियम और एमएमडीआर अधिनियम के उपयुक्त प्रावधानों में संशोधन किया गया था। संशोधन से लाइसेंस सह खनन पट्टे की समग्र संभावनाओं के लिए ब्लॉकों के आवंटन को अनुमति मिली, पात्रता की शर्तों की सीमित व्याख्या की संभावना को खत्म किया गया जिससे कोयला खदान नीलामियों में भागीदारी बढ़ सके और आवंटन के उद्देश्य से फैसला लेने में केन्द्र सरकार को ज्यादा लचीलापन उपलब्ध कराया गया, चुनिंदा कोयला खदानों के लिए भागीदारी की पात्रता में सीमाएं खत्म की गई, केन्द्र सरकार द्वारा ब्लॉक के आवंटन के मामले में खनिज रियायतें देने के लिए पूर्व स्वीकृति की गईशर्त को खत्म करना और अन्य महत्वपूर्ण/ स्पष्टीकरण संशोधन किए गए।

कानून में बदलाव के अलावा, 2020 में नीलामी की प्रक्रिया और क्रियाविधि को सरल बना दिया गया। कोयले कीबिक्री और/या उपयोगिता पर किसी प्रकार की बंदिश के बिना कोयला ब्लॉक की नीलामी का फैसला लिया गया। लागू कानून के क्रम में कोयले के निर्यात को अनुमति दे दी गई। सुगम परिचालन सुनिश्चित करने के क्रम में, कोल बेड मीथेन (सीबीएम) और लघु खनिजों के दोहन का अधिकार उपलब्ध करा दिया गया। बोलीदाताओं को अपनी जरूरत, बाजार परिदृश्य आदि के आधार पर अपने कोयला उत्पादन कार्यक्रम का प्रबंधन करने और अन्वेषण के बाद आंशिक रूप से खोजी हुई खदानों को त्यागने के लिए लचीलापन प्रदान किया गया।

कोयला खदानों की नीलामी में राजस्व साझेदारी व्यवस्था की पेशकश के साथ एक अन्य बड़ा बदलाव किया गया, जिससे नीलामी को ज्यादा बाजार अनुकूल बना दिया गया है। नई व्यावसायिक खनन व्यवस्था में कोयले के गैसीकरण को प्रोत्साहन दिया गया है।

कानून और नीति में उक्त बदलाव के साथ, जून, 2020 में पहली किस्त में 38 ब्लॉकों के साथ व्यावसायिक खनन के लिए कोयला ब्लॉकों की नीलामी की शुरुआत की गई। नवंबर, 2020 में 38 ब्लॉकों में से 19 ब्लॉकों की नीलामी की प्रक्रिया पूर्ण हो गई। 9.5 प्रतिशत से 66.75 प्रतिशत के दायरे में राजस्व हिस्सेदारी के साथ कोयला ब्लॉकों की सफल नीलामी संपन्न हुई। उल्लेखनीय है कि निविदा दस्तावेज में न्यूनतम मूल्य राजस्व हिस्सेदारी का 4 प्रतिशत वर्णित था। अगर 51 एमटीपीए की उच्चतम दर क्षमता स्तर के साथ उत्पादन मान लें तो नीलामी से सालाना 6,656 करोड़ रुपये राजस्व मिलने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान राज्यों को कुल 262 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान प्राप्त होगा और बाकी 786 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान निविदा दस्तावेज में उल्लिखित उपलब्धियों के आधार पर राज्यों को बाद में प्राप्त होगा।

राज्यों को मिलने वाले संभावित राजस्व, आवश्यक पूंजी निवेश और पैदा होने वाले कुल रोजगार के अवसर से जुड़ा संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित तालिका में देखा जा सकता है :

 

क्र. सं.

राज्य का नाम

खदानों की संख्या

रॉयल्टी र कर (करोड़ रुपये में)

राजस्व हिस्सेदारी (करोड़ रुपये में)

खदान की पीआरसी के आधार पर अर्जित वार्षिक राजस्व (करोड़ रुपये में)

पीआरसी (एमटीपीए)

अनुमानित पूंजी निवेश (करोड़ रुपये में)

कुल अनुमानित रोजगार

1

छत्तीसगढ़

2

539

323

862

7.20

1,080

9,734

2

झारखंड

5

1,780

910

2,690

20.20

3,030

27,310

3

मध्य प्रदेश

8

1,157

567

1,724

10.85

1,628

14,669

4

महाराष्ट्र

2

184

137

321

1.80

270

2,434

5

ओडिशा

2

792

267

1,059

11.00

1,650

14,872

कुल

 

4,452

2,204

6,656

51.05

7,658

69,019

                   

 

2. आयात विकल्प

उक्त पृष्ठभूमि में देखा गया है कि वर्तमान में आयात की भरपाई करना भारत सरकार की पहली प्राथमिकता रही है। इस उद्देश्य से एक अंतर मंत्रालयी समिति (आईएमसी) की स्थापना की गई है। आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के साथ मंत्रालय सभी हितधारकों के साथ सक्रिय रूप से आयात प्रतिस्थापन के मिशन को हासिल करने के लिए काम कर रहा है। मुख्य रूप से निम्नलिखित वजहों से आयात प्रतिस्थापन की दिशा में तेजी से काम किया गया है:

• 2018-19 में 235 एमटी (मीट्रिक टन) कोयले का आयात हुआ था, जो 2019-20 में बढ़कर 247 एमटी हो गया है।

इसके चलते बहुमूल्य विदेशी मुद्रा (2018-19 में 1.71 लाख करोड़ रुपये) देश से बाहर गई।

सीआईएल की विभिन्न सहायक कोयला कंपनियों के साथ-साथ बिजली कंपनियों में कोयले की उपलब्धता 75 एमटी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।

सभी कोयला कंपनियों की उत्पादन की महत्वाकांक्षी योजना।

खुशकिस्मती से, देश में गैर कोकिंग कोयले का भंडार पर्याप्त मात्रा में है और उपभोक्ता अपनी आयातित कोयले की जरूरत को घरेलू कोयले से पूरा करने के लिए आत्मविश्वास के साथ आगे आ सकते हैं। आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहन देने के लिए, ई-नीलामियों के विभिन्न प्रारूपों के माध्यम से घरेलू कोयले की बड़ी मात्राओं की पेशकश के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे कोयले के आयात के प्रति उपभोक्ताओं का झुकाव कम हो। इसके अलावा, सीआईएल आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहन देने के लिए तटीय टीपीपी सहित प्रदर्शन प्रोत्साहन की छूट के माध्यम से रियायत भी दे रहा है। आयात प्रतिस्थापन की दिशा में तटवर्ती संयंत्रों के लिए रियायत के रूप में प्रदर्शन प्रोत्साहन शुल्क से छूट को अनुमति देने से एफएसए के प्रावधानों के तहत कोयले के कुल वार्षिक मूल्य भुगतान की तुलना में 5 प्रतिशत से ज्यादा का लाभ होगा, वहीं एफएसए के अंतर्गत न्यूनतम प्रतिबद्ध मात्रा को आयात प्रतिस्थापन मात्रा के साथ खत्म कर दिया गया है। जब एफएसए के अंतर्गत पूरी मात्रा को टीपीपी द्वारा आयात प्रतिस्थापन मात्रा के साथ हटाया जाता है, तब कोयले की लागत पर बचत का लाभ बढ़कर 15 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है। नीचे दिया गया ग्राफ बताता है कि किस तरह से बढ़ाया गया उत्पादन काफी हद तक आयात को रोकने में सक्षम हुआ है।

 

http://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image001X77K.jpg

 

उक्त से यह आकलन किया जा सकता है कि कोयला उत्पादन में बढ़ोतरी काफी हद तक आयात को रोकने में सफल रही है।

3. कोयला क्षेत्र का विस्तार

1 अरब टन कोयला उत्पादन की दिशा में प्रगति

देश में कोयला आयात की प्रतिस्थापन योग्य मात्रा को खत्म करने के लिए, हमनेउपभोक्ताओं को घरेलू कोयले की आपूर्ति बढ़ाने, कोयले की आवाजाही में सुधार, कुछ करों की समीक्षा, आर्थिक वजहों से कोयला आयात को आकर्षित होने वाले दूरदराज के उपभोक्ताओं को घरेलू कोयले की खपत के लिए प्रोत्साहन देने के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया है। इससे घरेलू कोयले की खपत अधिकतम होगी और देश आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ेगा। ऐसा अनुमान है कि कोयले की मांग 2019-20 के 955.26 एमटी से बढ़कर 2023-24 में 1.27 बीटी हो जाएगी। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला उत्पादन की एक योजना तैयार की गई है और सीआईएल को 2023-24 तक 1 बीटी उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है।

कोयले की निकासी की अवसंरचना के लिए कोयला कंपनियों द्वारा किया जाने वाला 44,000 करोड़ रुपये का निवेश कोयला रखरखाव संयंत्रों, बंदरगाहों, परिवहन श्रृंखला की मजबूती में लगने की संभावना है, क्योंकि हम सड़क से ढुलाई को न्यूनतम करना चाहते हैं और ढुलाई के लिए उन्नत कन्वेयर बेल्ट का इस्तेमाल करना चाहते हैं।

4. शुरुआती छोर तक संपर्क (फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी)

माननीय प्रधानमंत्री के कारोबारी सुगमता के साथ आसान जीवन की सहूलियत देने के लिए बेहतर प्रशासन के समग्र विजन के क्रम में शुरुआती बिंदु तक संपर्क के परिवर्तनकारी विचार का उद्देश्य कोयला खदानों के आसपास व्यस्त यातायात, सड़क हादसों, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव में कमी तथा मशीनीकृत वाहक व्यवस्था और रेलवे रैक्स में कंप्यूटरीकृत लदान जैसी वैकल्पिक परिवहन विधियों को लागू करके कोयला रखरखाव दक्षता बढ़ाकर कोयला खदान क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन को आसान बनाना है।

कोयला कंपनियों ने खदानों में कोयले की सड़क से ढुलाई को खत्म करने के लिए एकीकृत योजना के विकास की रणनीति तैयार की है।

449.5 एमटीवाई की कुल क्षमता वाली 39 एफएमसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के द्वारा इस लक्ष्य को हासिल किया जाएगा। जुलाई, 2019 से एफएमसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन से पहले सीआईएल के पास 151 एमटीवाई क्षमता वाली 19 परियोजनाओं में मशीनीकृत वाहक व्यवस्था और कंप्यूटरीकृत लदान की सुविधा थी। इन 39 एफएमसी परियोजनाओं की स्थापना के बाद, यह क्षमता 2023-24 तक बढ़कर 600 एमटीवाई हो जाएगी। इससे कई प्रकार के लाभ होंगे, जो डीजल की लागत, विलंब शुल्क और ढुलाई शुल्क में बचत, स्वास्थ्य लाभ आदि तक सीमित नहीं होंगे।

5. विविधता योजना

कोयला मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में दो बड़े पीएसयू- कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) आते हैं। सीआईएल 7 राज्यों में और एनएलसीआईएल 5 राज्यों में परिचालन करती है। सीआईएल 7 सहायक कंपनियों के साथ मुख्य रूप से कोयला कंपनी है, जबकि एनएलसीआईएल ने नए क्षेत्रों (बिजली उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला खनन) में उपक्रम स्थापित किए हैं। सीआईएल भारत के घरेलू कोयला उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत और कोयला खपत में 65 प्रतिशत योगदान करती है।

विशेषकर जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बहस, नए कारोबार हासिल करने, अपने बहीखाते में पर्याप्त भंडार/ धनराशि के बेहतर उपयोग, कोयला खदान कामगारों के दीर्घकालिक भविष्य की दिशा में न्यासी के रूप में जिम्मेदारी, विशेष रूप से पूर्वी क्षेत्र में आर्थिक विकास के दोहन, वैकल्पिक कोयला आयात को खत्म करने के लिए कोयला खदानों और संबंधित अवसंरचना में निवेश, 100 एमटी कोयला गैसीकरण को समर्थन देने और संभावित कोयला निर्यात के लिए विविधता आवश्यक हो गई थी।

विविधता के लिए परिकल्पित तीन व्यापक क्षेत्र निम्नलिखित हैं :

  1. सीआईएल/ एनएलसीआईएल को कोयला कंपनियों से ऊर्जा कंपनियों में बदलने के लिए नए कारोबारी क्षेत्र (विविधता)
  2. कोयला कारोबार को टिकाऊ बनाने के लिए स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी (प्रौद्योगिकी संबंधित)
  3. 2024 तक 1 अरब टन कोयला उत्पादन हासिल करने में सहायता के लिए कोयला खनन परियोजनाएं (कोयला कारोबार) और आवश्यक संबंधित अवसंरचना की स्थापना करना

 

2.46 लाख करोड़ रुपये की 117 परियोजनाओं से संबंधित विविधता योजना का अवलोकन

 

परियोजनाओं की प्रकृति

परियोजनाएं

(संख्या)

अनुमानित निवेश

निवेश का स्रोत

सीआईएल/ एनएलसीआईएल

बीओओ/एमडीओ/जेवी

नए कारोबारी क्षेत्र

26

141931 (57%)

27114

114817

स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकी

19

31140 (13%)

3390

27750

कोयला खनन

72

73002 (30%)

48136

24866

कुल

117

246073

78640

167433

 

6. हरित पहल

कोयला क्षेत्र के सुधार लागू होने से पर्यावरण को सुरक्षित रखने की भारत की प्रतिबद्धता सुनिश्चित होगी और कोयले की स्वीकार्यता जारी रहेगी जिससे क्षेत्र को कुछ प्रतिष्ठा हासिल करने में सहायता मिलेगी। कोयले को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए उठाए गए विभिन्न कदम निम्नलिखित हैं:

  1. कोल बेड मीथेन- ये कोयले की परतों के बीच दबी प्राकृतिक गैस होती है। प्राकृतिक गैस का एक अपरंपरागत स्रोत कोल बेड मीथेन अब भारत के ऊर्जा संसाधन को बढ़ाने के लिए एक वैकल्पिक स्रोत माना जाता है। भारत के पास दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा घोषित कोयला भंडार है, इसलिए यहां कोल बेड मीथेन की खोज और उसका इस्तेमाल करने की असीम संभावनाएं हैं। देश में सीबीएम की क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करने के लिए सरकार ने सीबीएम नीति सहित कई पहल शुरू की हैं।

तीन सीबीएम ब्लॉक की परियोजना व्यवहार्यता रिपोर्ट (पीएफआर)

(I) झरिया सीबीएम ब्लॉक-1, झरिया कोलफील्ड

(II) रानीगंज सीबीएम ब्लॉक, रानीगंज कोलफील्ड

(III) शोगापुर सीबीएम ब्लॉक-1 (एसईसीएल क्षेत्र), सोहागपुर कोल फील्ड को बीसीसीएल ईसीएल और एसईसीएल बोर्ड से सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है।

 

 

क्र. सं.

ब्लॉक

सहायक कंपनी

क्षेत्र (वर्ग किमी)

सीबीएम संसाधन (बीसीएम)

1.

झरिया सीबीएम ब्लॉक- I

बीसीसीएल

~24

25 बीसीएम

2.

रानीगंज सीबीएम ब्लॉक

ईसीएल

~40

2.2 बीसीएम

3

सोहागपुर सीबीएम ब्लॉक

एसईसीएल

~49

0.7 बीसीएम

 

2. सतही कोयला गैसीकरण: भारत में गैर कोकिंग कोयले का 289 अरब टन का भंडार है और उत्पादित कोयले का 80 प्रतिशत हिस्सा तापीय ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल होता है। कोयला गैसीकरण को कोयला जलाने के मुकाबले ज्यादा शुद्ध विकल्प माना गया हैऔर इसमें कोयले के रासायनिक गुणों का इस्तेमाल होता है। कोयला गैसीकरण से उत्पन्न सिंथेसिस गैस को सिंथेटिक प्राकृतिक गैस (एसएनजी), ऊर्जा ईंधन (मेथेनॉल, ऐथेनॉल), उर्वरकों के लिए यूरिया के उत्पादन और एसिटिक एसिड, मिथाइल एसीटेट, एसिटिक एनहाइड्राइट, डीएमई, एथिलीन और प्रोपलीन, ऑक्सो रसायन और पॉलिऑलीफिन जैसे रसायनों के उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। ये उत्पाद आयात का विकल्प बनने में सहायक होंगे और सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान में मदद करेंगे।

उक्त उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में कोयला मंत्रालय ने कोयला गैसीकरण के जरिए कोयले के पूर्ण उपयोग के लिए कदम उठाए हैं, और 2030 तक 100 एमटी कोयला गैसीकरण परियोजना स्थापित करने के लिए ऐसी ही एक कार्ययोजना तैयार की है। कोयला गैसीकरण परियोजनाएं स्थापित करने के लिए तीन स्तरीय रणनीति बनाई गई है।

पहला चरण: प्रायोगिक आधार पर परियोजना की स्थापना

तकनीक को स्थापित करने के लिए प्रायोगिक आधार पर दो गैसीकरण परियोजना की योजना बनाई गई है, पहले में हाई ऐश कोयले को पेट कोक में मिलाया जाएगा और दूसरे में लो-ऐश कोयले का इस्तेमाल होगा। इन 2 परियोजनाओं का विवरण निम्नलिखित है:

  • तालचर उर्वरक संयंत्र: यह हाई ऐश कोयले के पेट कोक से मिश्रण पर आधारित कोयला गैसीकरण परियोजना है। निवेश: 13277 करोड़ रुपये।सीआईएल, आरसीएफ और गेल इक्विटी साझेदार (28%) हैं और परियोजना को बैंकों के द्वारा वित्तपोषित (72%) किया जाएगा। कोयले का स्रोत: कोयले की उपलब्धता के लिए ओडिशा में टीएफएल को 2.5 एमटीका उत्तरी अर्कपाल ब्लॉक आवंटित किया गया है और पीईटी कोक की आपूर्ति तालचर रिफाइनरी से की जाएगी।
  • दनकुनी मेथेनॉल संयंत्र: यह लो ऐश कोयले पर आधारित कोयला गैसीकरण संयंत्र है। निवेश: 5800 करोड़रुपये। परियोजना बीओओ मॉडल आधारित होगी और संभावित निवेशकों के द्वारा निवेश किया जाएगा। कोयला स्रोत: 1.5 एमटी कोयले की आपूर्ति ईसीएल की झांझरा और सोनेपुर बजरी खदानों से होगी।

दूसरे चरण की परियोजनाएं : कोयला गैसीकरण के प्रयासों को आगे बढ़ाना

दनकुनी परियोजना के व्यवहार्यता अध्ययन और वित्तीय व्यवहार्यता तय होने के आधार पर दूसरे चरण में लो ऐश कोयले से गैसीकरण के विस्तार के लिए 5 परियोजनाओं की पहचान की गई है।

 

क्र. सं.

नाम

राज्य

कोयला फीड

गुणवत्ता

1

शिल्पांचल

पश्चिम बंगाल

1.0 एमटीपीए

कम राख (लो ऐश)

2

उत्कर्ष

महाराष्ट्र

1.0 एमटीपीए

कम राख (लो ऐश)

3

महामाया

छत्तीसगढ़

1.5 एमटीपीए

कम राख (लो ऐश)

4

अशोका

झारखंड

2.5 एमटीपीए

(ज्यादा राख)हाईऐश

5

नेवेली

तमिलनाडु

4.0 एमटीपीए

लिग्नाइट

 

तीसरे चरण की परियोजनाएं :

शुरुआत में, कई गैसीकरण परियोजनाओं को वहां स्थापित करने की योजना बनाई गई है, जहां सीआईएल कोयले का खनन और उत्पाद के विपणन का काम संभालेगी तथा गैसीकरण सह उत्पाद रूपांतरण सयंत्र को बीओओ/बीओएम/एलएसटीके अनुबंध के आधार पर स्थापित किया जाएगा। दूसरे चरण में झारखंड में हाई ऐश कोयले के साथ तकनीक को सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद कोयले के गैसीकरण के लिए अन्य सीआईएल परियोजनाओं की पहचान की जाएगी। भविष्य में व्यवसायिक कोयला खदान नीलामी के मामलों में राजस्व हिस्सेदारी में 20 प्रतिशत छूट के साथ, अनुमान है कि 2030 तक 100 एमटी कोयले के गैसीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा।

3. कोकिंग कोल वाशरीज की स्थापना: सरकार की इस्पात क्षेत्र को धुलाई किए गए कोकिंग कोयले की आपूर्ति 3 एमटी से बढ़ाकर 15 एमटी करने की योजना है। इसके लिए, 2 कोकिंग कोल वाशरीजी पहले ही शुरू की जा चुकी हैं, 3 कोकिंग कोल वाशरीज का निर्माण कार्य जारी है और 2 मामलों में आशय पत्र (एलओआई) जारी किए जा चुके हैं और 1 मामले में निविदा का मूल्यांकन जारी है। नॉन कोकिंग कोल वाशरी के लिए- 1 नॉन कोकिंग कोल वाशरी का निर्माण जारी है और नॉन कोकिंग कोल वाशरी के 2 मामलों में एलओआई जारी किए जा चुके हैं।

4. स्थायित्व विकास प्रकोष्ठ: कोयले के खनन में संवहनीयता के महत्व को मान्यता देते हुए कोयला मंत्रालय और साथ ही सभी कोयला पीएसयू में कोयला खदानों में पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन कार्य प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए स्थायित्व विकास प्रकोष्ठ बनाया गया है, जिससे काम करने वालों और आसपास रहने वालों को बेहतर पर्यावरण मिले और देश के संपूर्ण कोयला क्षेत्र की छवि भी सुधरे।

समाजिक और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारियां : अभी तक शुरू की गई हरित पहल से जुड़ी गतिविधियां

  • कोयला खदान पर्यटन से कोयला खनन को लेकर लोगों की धारणा में सुधार-
  • 23 जुलाई 2020 को 2 बड़ी इको-परियोजनाओं का उद्धाटन और 3 इको पार्क की आधारशिला रखी गई।
  • 2020-21 में 4 इको पार्क, 2021-22 और 2022-23 में 2-2 इको पार्क के पूरा होने की संभावना।
  • खनन की समाप्ति पर खदानों का जैव-उद्धार और जैव-बहाली (हेक्टेयर में)
  • वित्त वर्ष 21 में 3400 हेक्टेयर और 80 लाख पौधों के लक्ष्य के मुकाबले वित्त वर्ष 21 में (अक्टूबर 2020 तक) कुल 3520 हेक्टेयर और 81 लाख पौधों के रोपण का काम पूरा किया गया
  • घरेलू इस्तेमाल के लिए खदान के पानी की आपूर्ति औरपेयजल और सिंचाई के उद्देश्यसेखदान के जल का उपयोग

 

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एमजी/ एएम/ एसएस



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