पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय
श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि भारत ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश का एक आकर्षक केन्द्र है
भारत पर्यावरण और जलवायु संबंधी हितों के प्रति सबसे अधिक समर्पित है;
भारत को विकास के वर्तमान चरण में ऊर्जा की खपत में तेजी से विस्तार करने और मजबूत ऊर्जा सुरक्षा की जरूरत है
Posted On:
23 DEC 2020 7:22PM by PIB Delhi
केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने आज स्टैनफोर्ड एलुमनी ग्रुप के साथ “भारत में ऊर्जा के भविष्य” पर चर्चा की। श्री प्रधान ने कहा कि भारत का विकासात्मक चरण ऊर्जा की खपत का तेजी से विस्तार करने और मजबूत ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता को पूरा करता है। भारत वर्तमान में विश्व की प्राथमिक ऊर्जा का केवल 6 प्रतिशत ही उपयोग कर रहा है, जबकि ऊर्जा की खपत प्रति व्यक्ति अभी भी वैश्विक औसत का एक तिहाई ही है। यह, हालांकि, तेजी से बदल रहा है। हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय मंचों और एजेंसियों द्वारा जारी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि विश्व की कुल प्राथमिक ऊर्जा की मांग वर्ष 2040 तक एक प्रतिशत से भी कम की दर से प्रति वर्ष बढ़ेगी। वहीं दूसरी तरफ, वर्ष 2040 तक भारत की ऊर्जा मांग लगभग 3 प्रतिशत की दर से प्रति वर्ष बढ़ेगी। विश्व में तेल की मांग वर्ष 2030 के आसपास स्थिर हो जाएगी, जबकि यही स्थिति भारत के लिए वर्ष 2035 में होगी। वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में तेल और कोयला की जगह प्राकृतिक गैस का हिस्सा बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस ऊर्जा वृद्धि का मुख्य रूप से भारत और एशिया के अन्य देशों द्वारा समर्थन किया जाएगा।
श्री प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के लिए एक स्वच्छ, हरित और अधिक समावेशी भविष्य की परिकल्पना की है। इस संदर्भ में, उन्होंने कहा, “हम गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के अपने प्रयासों में तेजी ला रहे हैं। हम जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से पेट्रोलियम और कोयले के स्वच्छ उपयोग की ओर भी तेजी से बढ़ रहे हैं। जैव ईंधन के उपयोग के लिए घरेलू स्रोतों पर अधिक निर्भरता है। हम वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट के नवीकरणीय लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं, डी-कार्बोनाइज गतिशीलता में विद्युत के योगदान को बढ़ा रहे हैं, हाइड्रोजन सहित उभरते हुए ईंधन की ओर बढ़ रहे हैं और ऊर्जा प्रणालियों में डिजिटल नवाचार पर भी जोर दे रहे हैं।”
श्री प्रधान ने कहा कि भारत ने ऊर्जा दक्षता को अपनाने और सौर तथा पवन जैसी हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने का संकल्प लिया है। पिछले 6 वर्षों में, भारत ने नवीनीकरण ऊर्जा पोर्टफोलियो को 32 गीगावाट से बढ़ाकर लगभग 100 गीगावाट कर दिया है। हम वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीनीकरण ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सही दिशा में हैं और हमने वर्ष 2030 तक नवीनीकरणीय ऊर्जा क्षमता के अपने लक्ष्य को बढ़ाकर 450 गीगावाट कर दिया है। जैव ईंधन एक और ऐसा क्षेत्र है जहां इसकी पर्याप्त क्षमता का उपयोग करने के लिए हम पूरे जोश से काम कर रहे हैं, जिसके जरिए हमें ऊर्जा सुरक्षा तथा निरंतरता प्राप्त होगी और किसान समुदाय को भी मदद मिलेगी। उन्होंने एलईडी बल्ब वितरण और एलईडी स्ट्रीट लाइटिंग जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम के माध्यम से प्रत्येक वर्ष 43 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने में सफलता का भी उल्लेख किया।
श्री प्रधान ने कहा कि ऊर्जा उपलब्धता और पहुंच को बढ़ाने के लिए, हम देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर भागों में लगभग 17,000 किलोमीटर गैस पाइपलाइनों के साथ "एक राष्ट्र-एक गैस-ग्रिड" की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके अलावा, सभी अधिकृत क्षेत्रों में "सिटी गैस वितरण" नेटवर्क के कार्यान्वयन के साथ, जल्द ही, भारत की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास स्वच्छ और सस्ती प्राकृतिक गैस की पहुंच सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा, “हमने गैस की खपत के स्तर को बढ़ा दिया है - परिणामस्वरूप, हम देश में प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश और विस्तार में तेजी की उम्मीद कर रहे हैं। हमारा मानना है कि हमने जो सक्रिय मॉडल अपनाया है, वह भारत की वर्तमान विकास यात्रा के लिए पूरी तरह अनुकूल है।''
श्री प्रधान ने कहा कि भारत बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण और जलवायु संबंधी हितों के प्रति पूरी तरह समर्पित है। उन्होंने कहा, “कुल मिलाकर, मैं कहूंगा कि प्रत्येक देश को मांग और संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव का अपना रास्ता खुद तैयार करना होगा। यद्यपि, हम हमेशा प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के आधार पर तर्क देते हैं, जो यह दर्शाता है कि ओईसीडी देशों की तरह भारत एक उत्सर्जक नहीं है, हालांकि, भारत ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में स्वच्छ और हरित भविष्य के लिए सतत विकास और ऊर्जा परिवर्तन का जिम्मेदारी भरा रास्ता अपनाया है तथा यह सभी के लिए बेहतर है।”
केन्द्रीय मंत्री श्री प्रधान ने कहा कि तेल विपणन कंपनियों ने अप्रैल 2020 से बीएस-VI ईंधन की खुदरा बिक्री शुरू कर दी है, जो यूरो-VI ईंधन के समतुल्य है। यह पहल सड़क परिवहन क्षेत्र में उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के हमारे प्रयासों का हिस्सा है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे देश के नागरिकों को बेहतर वायु गुणवत्ता प्राप्त होगी। उन्होंने उल्लेख किया कि भारत घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए अन्वेषण और उत्पादन, रिफाइनरी, विपणन, प्राकृतिक गैस तथा वैश्विक सहयोग में सक्रिय एवं दूरगामी सुधारों के माध्यम से हाइड्रोकार्बन क्षेत्र को बदलने का प्रयास जारी रखे हुए है।
भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश का आकर्षक केन्द्र बताते हुए, श्री प्रधान ने कहा कि कई नीतिगत सुधारों ने इज-ऑफ-डूइंग-बिजनेस को बढ़ाया है। उन्होंने कहा, “भारतीय तेल एवं गैस क्षेत्र में करीब 143 बिलियन डॉलर का अनुमानित निवेश इस बात का एक प्रमाण है, जिसमें से करीब 56 बिलियन डॉलर ई-एंड-पी में, करीब 66 बिलियन डॉलर गैस में और करीब 20 बिलियन डॉलर रिफाइनिंग में है। हम देश में ऊर्जा के बुनियादी ढांचे को और मजबूत करने के लिए वैश्विक कंपनियों और निवेशकों के साथ साझेदारी करने के इच्छुक हैं।"
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के बारे में बात करते हुए, उन्होंने सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) पहल के तहत अपशिष्ट से संपत्ति निर्माण (वेस्ट-टू-वेल्थ जेनरेशन) का उल्लेख किया। "हम 15 एमएमटी के उत्पादन लक्ष्य और लगभग 20 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ वर्ष 2024 तक 5000 संपीडित बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र स्थापित कर रहे हैं।"
श्री प्रधान ने कहा कि सशक्तिकरण और इज-ऑफ-लिविंग के लिए मोदी सरकार की विकास रणनीति के मूल में खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन की पहुंच सुनिश्चित करना है। “पिछले छह वर्षों में, एलपीजी परिदृश्य बदल गया है। भारत में एलपीजी की पहुंच 2014 के 55 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 98 प्रतिशत होने के साथ इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। भारत में एलपीजी प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के माध्यम से ऊर्जा के मामले में तंगहाली को दूर करने, सामाजिक उत्थान और सामाजिक परिवर्तन का एक वाहक बन गयी है। इस नीली लौ क्रांति ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक आंदोलन शुरू किया है। महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, आर्थिक सशक्तिकरण और स्वच्छ पर्यावरण के रूप में एलपीजी की सफलता ने आम नागरिकों के जीवन में काफी लाभ पहुंचाया है।”
ऊर्जा सुरक्षा रणनीति के बारे में बोलते हुए, मंत्री श्री प्रधान ने कहा कि हमने इस वर्ष विशाखापत्तनम, मंगलौर और पाडुर में 5.33 एमएमटी की कुल क्षमता वाले सभी सामरिक पेट्रोलियम भंडार को भरने की उपलब्धि हासिल की है। "हमने सार्वजनिक-निजी साझेदारी मॉडल के तहत दो स्थानों चांडिकोल और पाडुर में एक और 6.5 एमएमटी वाणिज्यिक-सह-रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारण सुविधा स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की है।"
भारत की संभावित ऊर्जा परिदृश्य में मांग के पक्ष में, श्री प्रधान ने कहा कि भारत की ऊर्जा मांग बढ़ती ही रहेगी। बढ़ी हुई मांग पर महत्वपूर्ण ऊर्जा दक्षता उपायों द्वारा अंकुश लगाया जा सकेगा। अगले 15 वर्षों में विद्युत की खपत बढ़ने की उम्मीद है। कोयले के मुकाबले नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ने से विद्युत उत्पादन की कार्बन तीव्रता कम हो जाएगी। ईवी के बढ़े हुए निवेश के साथ गतिशीलता को फिर से परिभाषित किया जाएगा; यात्री और माल परिवहन में सीएनजी और एलएनजी आधारित वाहन का उपयोग किया जाएगा। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बढ़ती आय तथा तेजी से शहरीकरण के कारण आवासीय क्षेत्र में विद्युत की मांग में कई गुना वृद्धि होगी।
आपूर्ति पक्ष के बारे में बात करते हुए मंत्री श्री प्रधान ने कहा कि अगले 15 वर्षों में ऊर्जा मिश्रण अधिक विविध और स्वच्छ हो जाएगा। पवन और सौर ऊर्जा के नेतृत्व में नवीकरणीय ऊर्जा के ऊर्जा के सबसे तेजी से बढ़ते स्रोत के रूप में उभरने की उम्मीद है। बढ़ती ऊर्जा मांग के कारण अगले 15 वर्षों में कच्चे तेल की मांग में वृद्धि जारी रहने की संभावना है। भारत को उच्च गुणवत्ता वाली प्रौद्योगिकी के साथ स्वच्छ संयंत्रों की दिशा में बढ़ने की आवश्यकता हो सकती है। जैव ऊर्जा का महत्व बढ़ जाएगा। हाइड्रोजन (नीला और हरा) का उपयोग भी बढ़ेगा।
श्री प्रधान ने कहा कि भारतीय ऊर्जा कंपनियों ने औद्योगिक क्रांति 4.0 के तहत नवीनतम तकनीकों को अपनाकर एक सही रणनीतिक मानसिकता विकसित की है। औद्योगिकीकरण का यह नया युग ऊर्जा क्षेत्र के लिए अपेक्षाकृत अधिक उन्नत डिजिटल उपकरणों को अपनाकर अपनी क्षमता और उत्पादकता में सुधार लाने हेतु बेहतरीन अवसर प्रदान करता है। अगली पीढ़ी की उन्नत प्रौद्योगिकियों के उपयोग के साथ, प्रक्रिया संयंत्र तेज, विश्वसनीय और लागत प्रभावी निर्णय ले सकते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि उत्पादकता और क्षमता में सुधार करते हुए इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से वर्ष 2050 तक प्राथमिक ऊर्जा की लागत में 20 से 25 प्रतिशत की कमी हो सकती है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि पश्चिमी देशों की ऊर्जा कंपनियों की तरह ही प्रमुख भारतीय ऊर्जा कंपनियों ने नेट जीरो नीति की घोषणा की है।
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एमजी/एएम/पीकेपी/एसके
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