विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय

निष्क्रिय ट्यूमर के लिए मैग्नेटिक हाइपरथर्मिया-मीडिएटेड कैंसर थैरेपी को वांछित चिकित्सा बनाने के लिए आईएनएसटी के प्रयास


"आईएनएसटी मोहाली का उदाहरण कुछ ऐसे मजबूत पहलुओं के बारे में बताता है कि कैसे नैनो तकनीक कई तरीकों से ट्यूमर के निदान और चिकित्सा के लिए समाधान प्रदान कर रही है": प्रो. आशुतोष शर्मा

Posted On: 14 AUG 2020 11:31AM by PIB Delhi

     मैग्नेटिक हाइपरथर्मिया-मीडिएटेड कैंसर थैरेपी (एमएचसीटी) कैंसर के इलाज की एक गैर-आक्रामक तकनीक है जिसमें लक्षित ट्यूमर स्थल के अंदर चुंबकीय सामग्रियों की आपूर्ति और स्थानीयकरण का कार्य शामिल होता है जिसके बाद एक वैकल्पिक चुंबकीय क्षेत्र (एएमएफ) को लगाया जाता है जिससे ट्यूमर की जगह गर्मी पैदा होती है। ये ग्लियोब्लास्टोमा जैसे गहराई में बैठे दुर्गम ठोस ट्यूमर के खिलाफ कुशलता से कार्य कर सकता है और अपने स्वस्थ समकक्षों के खिलाफ न्यूनतम विषाक्तता के साथ सामान्य कोशिकाओं के प्रति अत्यधिक थर्मो-सेंसेटिव भी है। वैज्ञानिक ऐसी नई सामग्रियों की तलाश में हैं जो इस उपचार को और अधिक कुशल बना सकें।

     भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) के वैज्ञानिकों ने कैंसर थैरेपी के लिए चुंबकीय हाइपरथर्मिया कारकों के तौर पर सफल अनुप्रयोग के लिए विभिन्न नैनो-ट्रांसड्यूर संश्लेषित किए हैं जैसे स्टेवीयोसाइड-लेपित मैग्नेटाइट नैनोपार्टिकल्स, सिट्रिक एसिड-लेपित चुंबकीय नैनोक्लस्टर और मैंगनीज व जस्ता के रोग़न वाले मैग्नेटाइट नैनोपार्टिकल्स।

     आईएनएसटी से डॉ. दीपिका शर्मा और उनकी टीम ने एक हाइड्रोथर्मल दृष्टिकोण का उपयोग करके चुंबकीय नैनो सामग्रियों को संश्लेषित किया है। उन्होंने आर्द्रक के तौर पर एक बायोमॉलीक्यूल यानी जैवाणु के साथ एक जल-स्थिर नैनोमटीरियल भी विकसित किया है। ताकि नैनो-आधारित रणनीतियों की नैदानिक ​​अनुप्रयोगों में तब्दीली के संबंध में दो मुख्य चिंताओं को संबोधित किया जा सके, जो हैं- प्रयुक्त सामग्री की जैव अनुकूलता और इन नैनो प्रणालियों की चिकित्सीय प्रतिक्रिया। वैज्ञानिकों ने हाइपरथर्मिया आउटपुट के डिजाइन एवं विकास और जैविक घटनाओं को समझने पर ध्यान केंद्रित किया है जिनमें इनऑपरेबल ट्यूमर से लड़ने के लिए जैविक बाधाओं के बीच से उनकी गतिविधि शामिल है।

     संश्लेषित "नैनो-हीटर्स" को चुंबकीय हाइपरथर्मिया के अधीन किया जाता है या तो अकेले या फोटोथर्मल थैरेपी जैसी अन्य सहायक चिकित्सा के साथ संयोजन में। इसके बाद इसका मूल्यांकन कोशिका व्यवहार्यता, ऑक्सीडेटिव तनाव उत्पादन, माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली क्षमता में कमी, कॉन्फोकल माइक्रोस्कोपी द्वारा साइटोस्केलेटल क्षति और कैंसर कोशिकाओं में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी स्कैनिंग द्वारा रूपात्मक परिवर्तन आदि के लिहाज से किया गया और इसके नतीजे एसीएस एप्लाइड नैनोमटीरियल्स और जर्नल ऑफ रेडिएशन एंड कैंसर में प्रकाशित किया गया। अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न की विभिन्न नैनोप्रणालियों के लिए आईएनएसटी की टीम ने पारंपरिक गोलाकार नैनोकणों के बजाय नैनोक्लस्टर उत्पन्न करने और आर्द्रक अर्धांशों के सतही संशोधनों के साथ उन्नत हाइपरथर्मिया आउटपुट प्राप्त किया है। इस तरह के बढ़े हुए हाइपरथर्मिया आउटपुट इसे कैंसर थेरेपी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक कुशल प्रणाली बनाते हैं।

     नैनो-मेग्नेट कोशिकाओं में सम्मिलित हो जाते हैं जिससे चुंबकीय हाइपरथर्मिया की दक्षता में कमी की अंतर्निहित समस्या पैदा होती है। इसे देखते हुए आईएनएसटी की टीम ने हाइपरथर्मिया आउटपुट को बढ़ाने के लिए विभिन्न आकारों, आकृतियों और सर्फेक्टेंट के प्रभावों की जांच की और इसे नैदानिक अध्ययनों के लिए एक संभव विकल्प बनाने के लिए जैविक बाधा में से उसके गुजरने का विश्लेषण भी किया।

     आईएनएसटी की टीम द्वारा नैनो-हीटरों के आकार, आकृति और आर्द्रक अर्धांशों जैसे विभिन्न मापदंडों का अनुकूलन सामान्य कोशिकाओं पर न्यूनतम दुष्प्रभावों के साथ सफल ग्लियोब्लास्टोमा के लिए गायब पायदान के तौर पर चुंबकीय हाइपरथर्मिया स्थापित करने की दिशा में योगदान कर सकता है।

     डीएसटी के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा ने कहा, आईएनएसटी मोहाली का उदाहरण कुछ ऐसे मजबूत पहलुओं के बारे में बताता है कि कैसे नैनो तकनीक कई तरीकों से ट्यूमर के निदान और चिकित्सा के लिए समाधान प्रदान कर रही है जिसमें कीमोथैरेपी में लक्षित और नियंत्रित दवा देना और हाइपरथर्मिया से लेकर जीन थैरेपी और फोटोडायनैमिक थैरेपी और सर्वोत्कृष्ट नतीजों के लिए उनके संयोजन वगैरह शामिल हैं

 

 

[प्रकाशन लिंक:

 

  1. https://doi.org/10.1088/2053-1591/aa5d93
  2. https://doi.org/10.1080/02656736.2019.1565787
  3. https://dx.doi.org/10.1021/acschemneuro.8b00652
  4. https://dx.doi.org/10.1021/acsanm.0c00121
  5. https://doi.org/10.4103/jrcr.jrcr_19_20

 

ज्यादा जानकारी के लिए डॉ. दीपिका शर्मा ( deepika@inst.ac.in ) से संपर्क किया जा सकता है।]

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