शिक्षा मंत्रालय

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने “उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों पर सम्मेलन” के समापन सत्र को संबोधित किया


केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने अप्रेंटिसशिप / इंटर्नशिप युक्त डिग्री कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यूजीसी के दिशा निर्देशों का वर्चुअल शुभारंभ किया

अप्रेंटिसशिप युक्त कार्यक्रम युवाओं की रोजगार पाने की संभावनाओं को बढ़ाएंगे: श्री रमेश पोखरियाल 'निशंक’

Posted On: 07 AUG 2020 7:09PM by PIB Delhi

केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने आज यहां वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों पर सम्मेलन” के समापन सत्र को संबोधित किया। शिक्षा राज्यमंत्री श्री संजय धोत्रे भी इस अवसर पर उपस्थित थे। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव श्री अमित खरे, यूजीसी के चेयरमैन श्री डी. पी. सिंह और मंत्रालय व यूजीसी के वरिष्ठ अधिकारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। इस मौके पर एचआरडी मंत्री ने अप्रेंटिसशिप / इंटर्नशिप युक्त डिग्री प्रोग्राम प्रस्तुत करने हेतु उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यूजीसी के दिशा निर्देशों को वर्चुअल रूप से शुरू किया।

सम्मेलन के समापन सत्र में केंद्रीय मंत्री ने प्रधानमंत्री के विचारों और अपेक्षाओं को दोहराया और सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से अपने-अपने संस्थानों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर वेबिनार आयोजित करने का अनुरोध किया। उन्होंने इस सम्मेलन से मिली समृद्ध जानकारियों की भी सराहना की और मुख्य बातों को सार रूप में सहेजने का सुझाव दिया। उन्होंने यह भी कहा कि रोजगार सृजन के साथ-साथ युवाओं की रोजगार संभावनाओं में बढ़ोतरी भी इस सरकार की प्राथमिक चिंता है और इसे एनईपी- 2020 में भी परिलक्षित किया गया है।

यूजीसी के दिशा निर्देशों को लॉन्च करते हुए श्री पोखरियाल ने कहा कि 2030 तक दुनिया में सबसे अधिक कामकाजी उम्र वाली आबादी भारत की होने वाली है। भारत के उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय लाभांश को भुनाने के लिए, न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है बल्कि रोजगार के अवसर मुहैया करवाने के लिहाज से इसे प्रासंगिक बनाना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए उद्योग की बदलती जरूरतों के हिसाब से संचालित होने वाली शिक्षा के नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मंत्री महोदय ने कहा कि चूंकि युवाओं के रोजगार पाने की संभावना को बढ़ाना सरकार की प्राथमिक चिंता का विषय है, इसलिए 2020-21 के केंद्रीय बजट में आम विषयों वाले छात्रों की रोजगार क्षमता में सुधार के लिए अप्रेंटिसशिप युक्त डिग्री कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।

श्री पोखरियाल ने कहा कि अप्रेंटिसशिप / इंटर्नशिप युक्त डिग्री कार्यक्रम पेश करने हेतु उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यूजीसी के दिशा निर्देश दरअसल आम विषयों के डिग्री कार्यक्रमों में बड़ा बदलाव लाने और पाठ्यक्रम में रोजगार प्राप्ति सहायता जोड़ने को लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों को सक्षम बनाएंगे। उन्होंने कहा कि यूजीसी अधिनियम, 1956 की धारा 22 (3) के तहत यूजीसी द्वारा निर्दिष्ट सभी यूजी डिग्री कार्यक्रमों में अप्रेंटिसशिप / इंटर्नशिप को जोड़ने के सिलसिले में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए यूजीसी के दिशा निर्देश एक विकल्प मुहैया कराएंगे।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए श्री धोत्रे ने इस सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी लोगों को धन्यवाद दिया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस नीति को प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त किए गए तरीके से ही अस्तित्व में लाया जाएगा और ये राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में ऐतिहासिक परिवर्तन लाने में सक्षम होगी। उन्होंने इस नीति का मसौदा बनाने के सिलसिले में अपार योगदान के लिए श्री के. कस्तूरीरंगन जी और उनकी टीम का विशेष आभार व्यक्त किया।

यहां सभी प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए श्री खरे ने कहा कि एनईपी वैज्ञानिक मिजाज के साथ छात्रों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करती है। उन्होंने समानता और समावेश पर जोर दिया और कहा कि “एक भारत श्रेष्ठ भारत” का रास्ता इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति से होकर ही गुजरेगा। उन्होंने कहा कि समग्र, बहु-विषयक और भविष्यवादी शिक्षा, गुणवत्तापरक अनुसंधान और शिक्षा में बेहतर पहुंच के लिए प्रौद्योगिकी के समानतामूलक उपयोग पर एक पूरे दिन चले इस सम्मेलन के दौरान कई सत्र संचालित किए गए। ये सत्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत कवर किए गए शिक्षा के महत्वपूर्ण पहलुओं को समर्पित हैं। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, संस्थानों के निदेशकों और कॉलेजों के प्राचार्यों और अन्य हितधारकों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।

इस सम्मेलन का सत्र-1 “समग्र, बहुविषयक और भविष्यवादी शिक्षा” के विषय पर आयोजित किया गया था और इसकी अध्यक्षता प्रोफेसर डी. पी. सिंह ने की। ड्राफ्ट एनईपी की समिति के सदस्य प्रो. एम.के. श्रीधर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कुलपति प्रो. नजमा अख्तर और ईएफएलयू के कुलपति प्रोफेसर ई. सुरेश कुमार इस सत्र के अतिथि वक्ता थे। इन वक्ताओं ने एनईपी की परामर्श प्रक्रिया की यात्रा, 21वीं सदी में ज्ञान की बड़ी भारी वृद्धि, स्टेम के साथ मानविकी और कला के एकीकरण और मूल्य आधारित शिक्षा जैसे पहलुओं पर बात की।

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजयराघवन ने “गुणवत्तापरक अनुसंधान को उत्प्रेरित करना” विषय पर सत्र-2 की अध्यक्षता की। जाने-माने गणितज्ञ और ड्राफ्ट एनईपी पर समिति के सदस्य प्रो. मंजुल भार्गव, यूजीसी के उप-सभापति प्रो. भूषण पटवर्धन और आईआईएससी, बेंगलुरु के पूर्व निदेशक प्रो. अनुराग कुमार इस सत्र के माननीय पैनलिस्ट थे। देश के विकास में अकादमिक अनुसंधान द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर इस सत्र ने अंतदृष्टि मुहैया कराई। इन वक्ताओं ने भारत के सामने आने वाली सामाजिक चुनौतियों और शीर्ष वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचारों में निहित उनके समाधानों पर जोर देकर बात की।

अगले सत्र में हुई विषयगत चर्चा “शिक्षा में बेहतर पहुंच के लिए प्रौद्योगिकी के समानतामूलक उपयोग” को लेकर थी जिसमें आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो. भास्कर राममूर्ति, इग्नू के कुलपति प्रो. नागेश्वर राव, एनआईटी त्रिची की निदेशक डॉ. मिनी शाजी थॉमस पैनलिस्ट के तौर पर मौजूद थे। एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने इस सत्र का संचालन किया। इन वक्ताओं ने विस्तार से बताया कि कैसे आईसीटी में एक वैश्विक नेता के रूप में भारत को उच्च शिक्षा की पहुंच का विस्तार करने के लिए प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने की आवश्यकता है। इन वक्ताओं ने उभर रही विघटनकारी प्रौद्योगिकियों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

 

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