उप राष्ट्रपति सचिवालय

उपराष्ट्रपति ने जातिहीन और वर्गहीन समाज की स्थापना का आह्वान किया


जाति प्रणाली को समाप्त करने का आंदोलन समाज के मन-मस्तिष्क से पैदा हो : उपराष्ट्रपति

हर तरह के भेदभाव को दूर करने के लिए धार्मिक नेताओं से आग्रह

समान अवसरों वाले समतावादी विश्व के सृजन का आह्वान

विविधता और असहमति के लिए देश सहनशील हो : उपराष्ट्रपति

एकता पर विभाजनकारी ताकतें हावी न होने पायें : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने श्री नारायण गुरु को श्रद्धांजलि दी

उपराष्ट्रपति द्वारा केरल के वर्कला में 87वें शिवगिरि तीर्थ समागम का उद्घाटन

Posted On: 30 DEC 2019 3:17PM by PIB Delhi

उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने जातिहीन और वर्गहीन समाज की स्थापना करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि हमें ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहिए, जहां सबको समान अवसर मिलें और लोग अपने जीवन को सार्थक रूप से जी सकें। वे आज केरल के वर्कला में 87वें शिवगिरि तीर्थ समागम का उद्घाटन कर रहे थे।

श्री नायडू ने गुरुओं, मौलवियों, बिशपों और अन्य धार्मिक नेताओं से आग्रह किया कि वे जाति के नाम पर हर तरह के भेदभाव को मिटाने का प्रयास करें। उन्होंने धार्मिक नेताओं से यह भी कहा कि वे ग्रामीण क्षेत्रों और गांवों को अधिक से अधिक समय दें तथा श्री नारायण गुरु जैसे महान संतों से प्रेरणा लेकर दमित और उत्पीड़ित लोगों की उन्नति के लिए कार्य करें।

श्री नायडू ने नारायण गुरु के कथन शिक्षा द्वारा बोध, संगठन द्वारा शक्ति, उद्योगों द्वारा आर्थिक स्वतंत्रता का उल्लेख करते हुए कहा कि नारायण गुरु के उपदेश सामाजिक रूप से अत्यंत प्रासांगिक हैं, विशेषतौर से सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन देने के सम्बंध में। उन्होंने कहा कि नारायण गुरु तीर्थादनम् को प्रोत्साहन देते थे, जिसका अर्थ तीर्थाटन के जरिये ज्ञान प्राप्त करना है। इसे हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए।

श्री नारायण गुरु सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे और कहते थे कि मूल रूप से सभी धर्म समान हैं। उन्होंने जाति प्रणाली का बहिष्कार किया और लोगों को एक-दूसरे के विरूद्ध करने वाली विभाजनकारी शक्तियों का विरोध किया। इसका उल्लेख करते हुए श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि श्री नारायण गुरु का वास्तविक संदेश अद्वैत है, जो एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर का शक्तिशाली दर्शन प्रस्तुत करता है।

श्री नायडू ने कहा कि देश ने आर्थिक और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन देश में जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयां अब भी जीवित हैं। उन्होंने कहा कि हमें यह जानना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र में होने वाला अन्याय दरअसल न्याय के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य जातिहीन और वर्गहीन होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान में छुआछूत को अमानवीयता और अपराध की श्रेणी में रखा गया है तथा सरकार ने इसके सम्बंध में कई कानून बनाए हैं। इन कानूनों का क्रियान्वयन समाज के मन-मस्तिष्क पर आधारित होता है। उन्होंने कहा कि जाति प्रणाली को समाप्त करने का आंदोलन समाज के मन-मस्तिष्क से पैदा हो, जिसके लिए बौद्धिक क्रांति, भावात्मक क्रांति और मानवता क्रांति की आवश्यकता है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि एकता पर विभाजनकारी ताकतें हावी न होने पायें।

इस अवसर पर केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान, केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री श्री वी. मुरलीधरन, केरल के सहकारिता, पर्यटन और देवस्वोम मंत्री श्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन, केरल के पूर्व मुख्यमंत्री तथा विधायक श्री ओमन चांडी और अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे।      

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आर.के.मीणा/आरएनएम/एएम/एकेपी/सीएस-5035


(Release ID: 1597996)
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