विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने जनजातीय गौरव दिवस और जनजातीय गौरव वर्ष मनाया
Posted On:
27 NOV 2024 10:57AM by PIB Delhi
सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च (सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर) ने बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में 26 नवंबर, 2024 को जनजातीय गौरव दिवस और जनजातीय गौरव वर्ष मनाया। स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के नेता बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में बंगाल प्रेसीडेंसी के रांची जिले के उलिहातू गांव में हुआ था और उनकी मृत्यु सन् 1900 में जेल में हुई थी। उलिहातू अब झारखंड के खूंटी जिले में है। अपने जीवनकाल के दौरान उन्होंने सक्रिय रूप से ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज़ उठाई और जनजातीय समूहों की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
जनजातीय गौरव दिवस का उद्देश्य भारत की विरासत को संरक्षित करने और इसकी प्रगति को आगे बढ़ाने में जनजातीय आबादी की भूमिका का अवलोकन करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाना है।
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. योगेश सुमन जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम के अवसर पर अपने विचार साझा करते हुए
कार्यक्रम की शुरुआत सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. योगेश सुमन द्वारा बिरसा मुंडा और देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में संक्षिप्त भाषण के बाद हुई। उन्होंने सीएसआईआर अरोमा मिशन, उन्नत भारत अभियान और हींग की खेती परियोजना जैसे मिशनों के जरिए देश भर में जनजातीय आबादी के जीवन स्तर को सुधारने में सरकार की भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुमन रे ने सीएसआईआर के एरोमा मिशन के बारे में चर्चा करते हुए उनकी टीम द्वारा जनजातीय आबादी पर इस मिशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव के अध्ययन के निष्कर्षों को साझा किया। सबसे पहले उन्होंने इस अध्ययन की शुरुआत कैसे हुई और इसे कैसे क्रियान्वित किया गया, इस पर प्रकाश डाला। अध्ययन में पाया गया है कि सीएसआईआर एरोमा मिशन का जनजातीय आबादी पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने बताया कि कैसे किसानों को फसलों की नई किस्में पेश की गईं, कैसे प्रशिक्षण दिया गया, नई आसवन इकाइयों की स्थापना की गई और सामग्रियों के नमूने लेने से किसानों की आय दोगुनी हो गई। उन्होंने अध्ययन में यह भी पाया कि किसानों ने इन फसलों को अपनाना शुरू कर दिया और लगभग 60 प्रतिशत खेती योग्य भूमि को कवर किया और समय के साथ महिलाओं को भी सशक्त बनाया गया।
उन्होंने एक उदाहारण देते हुए तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के अन्नामलाई टाइगर रिजर्व के जनजातीय इलाकों में लेमन ग्रास की खेती के बारे में बताया। उनके द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि अरोमा मिशन के अंतर्गत फसलों की नई किस्में किसानों को दिए जाने के बाद तेल की गुणवत्ता और उपज में वृद्धि हुई है। उन्होंने किसानों का एक वीडियो भी दिखाया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि मिशन ने किसानों की वार्षिक आय को दोगुना करने में बहुत मदद की है। डॉ. सुमन ने एक वीडियो के माध्यम से दिखाया कि कैसे देश भर के 37 समूहों में अन्य जनजातियों ने मेंथा, रोजाग्रास, लैवेंडर, जंगली गेंदा जैसी फसलों से 400 जनजातियों को लाभान्वित किया।
प्रतिभागियों के साथ बातचीत के दौरान जनजातियों के समक्ष आने वाली अन्य चुनौतियों जैसे बोरवेल और पानी की कमी, उर्वरकों और कीटनाशकों की उच्च लागत, आसवन इकाइयों की सीमित संख्या, दूरस्थ क्षेत्र, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सुविधाओं की कमी पर चर्चा की गई।
कार्यक्रम का समापन सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के प्रशासन नियंत्रक श्री आरकेएस रौशन के संबोधन से हुआ। उन्होंने जनजातीय समुदायों के बीच तकनीक की बुनियादी ज़रूरत के बारे में बताया। डॉ. योगेश सुमन ने सभी वक्ताओं, जनजातीय दिवस समारोह समिति के सदस्यों डॉ. सुमन रे और डॉ. मनीष मोहन गोरे, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के वैज्ञानिकों और सभी प्रतिभागियों को इस कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया।
जनजातीय गौरव दिवस समारोह के दौरान सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के समस्त कर्मचारियों द्वारा संविधान दिवस के अवसर पर शपथ भी ली गई।
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