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आईएनएस विक्रांत: भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत और नौसेना की क्षमता में मील का पत्थर
Posted On:
24 OCT 2025 7:06PM
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मुख्य बिंदु
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- भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को 2 सितंबर 2022 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया, जो देश की आत्मनिर्भरता और नौसैनिक क्षमता में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।
- इस परियोजना में 76% स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया, जिसमें स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड का 30,000 टन विशेष इस्पात शामिल है। निर्माण कार्य में 550 से अधिक ओईएम और 100 एमएसएमई की भागीदारी रही, जिससे लगभग 2,000 प्रत्यक्ष तथा 12,500 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित हुए।
- अत्याधुनिक स्वचालन प्रणालियों से लैस आईएनएस विक्रांत, मिग-29के, कामोव-31, एमएच-60आर, मिग-29केयूबी, चेतक और एएलएच ध्रुव जैसे विमानों सहित लगभग 30 विमानों का संचालन करने में सक्षम है।
- मार्च 2025 में गोवा के पश्चिम में 230 समुद्री मील दूर स्थित एमवी हीलन स्टार से घायल चालक दल के सदस्यों को सफलतापूर्वक निकालकर इस पोत ने अपनी उच्च स्तरीय परिचालन क्षमता एवं मानवीय तत्परता का प्रदर्शन किया।
- आईएनएस विक्रांत इतना शक्तिशाली है कि यह पोत लगभग 5,000 घरों के लिए पर्याप्त विद्युत उत्पादन करने में सक्षम है।
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देश का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत (आईएसी-1) ‘आईएनएस विक्रांत’ आत्मनिर्भर भारत की महत्वाकांक्षा और सामर्थ्य का गौरवशाली प्रतीक है। भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो द्वारा डिजाइन किया गया और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा निर्मित, यह पोत भारत में अब तक निर्मित सबसे बड़ा व सर्वाधिक जटिल युद्धपोत है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 2 सितंबर 2022 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया आईएनएस विक्रांत, देश की स्वदेशी क्षमता, संसाधनों तथा कौशल का सजीव उदाहरण है।
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भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2025 की दिवाली भारतीय नौसेना के गौरव, स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर मनाई।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय नौसेना के नाविकों तथा सशस्त्र बलों के कर्मियों के समर्पण, साहस और राष्ट्रसेवा की भावना को नमन किया। यह यात्रा अग्रिम एवं रणनीतिक क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के साथ दिवाली मनाने की उनकी परंपरा का प्रतीक रही, जो राष्ट्र की सीमाओं और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करने वाले प्रत्येक रक्षक के प्रति एकजुटता और सम्मान को दर्शाती है। प्रधानमंत्री ने 19 से 20 अक्टूबर 2025 तक अपने भ्रमण के इस विशेष अवसर के दौरान, आईएनएस विक्रांत पर रात्रिकालीन समुद्री उड़ान गतिविधि में भाग लिया, जिसमें निम्नलिखित प्रमुख कार्यक्रम आयोजित किये गए:
- दिन एवं रात का वायु शक्ति प्रदर्शन
- पनडुब्बी रोधी रॉकेट फायरिंग अभ्यास
- रात्रिकालीन जलक्षेत्र ईंधन पुनःपूर्ति
- निकट-सीमा वायु-रोधी फायरिंग प्रदर्शन
- भव्य स्टीम पास्ट और फ्लाई पास्ट
- सांस्कृतिक कार्यक्रम और बड़ाखाना
- माननीय प्रधानमंत्री का संबोधन एवं चालक दल के साथ संवाद
- समुद्र में योग सत्र और विशेष बलों के प्रदर्शन का अवलोकन
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आईएनएस विक्रांत का नाम भारत के पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (आर11) के सम्मान में रखा गया है, जिसे 1997 में सेवामुक्त किया गया था। पूर्ववर्ती आईएनएस विक्रांत ने 1961 के गोवा मुक्ति अभियान और 1971 के भारत-पाक युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिससे उसने भारत के नौसैनिक इतिहास में एक अमिट तथा गौरवपूर्ण अध्याय जोड़ा था। वर्तमान आईएनएस विक्रांत (आएसी-1) इस समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारत की स्वदेशी नौसैनिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और उन्नत जहाज निर्माण कौशल का जीवंत प्रतीक बन चुका है। यह न केवल अतीत की गौरवगाथा को पुनर्जीवित करता है, बल्कि भारत की भविष्य की समुद्री शक्ति का भी सशक्त प्रतीक है।
- निर्माण प्रारंभ: इस जहाज के निर्माण कार्यक्रम का शुभारंभ फरवरी 2009 में कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में किया गया, जिससे इसके निर्माण की औपचारिक शुरुआत हुई।
- जलावतरण और परीक्षण: अगस्त 2013 में जलावतरित; पहला समुद्री परीक्षण अगस्त 2021 में शुरू हुआ।
- डिजाइन: भारतीय नौसेना के आंतरिक युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो (डब्ल्यूडीबी) द्वारा संकल्पित और तैयार किया गया।
- कमीशनिंग: इसे 2 सितंबर 2022 को कोच्चि में कमीशन किया गया, जिससे भारत उन कुछ देशों में से एक बन गया जो स्वदेशी रूप से विमानवाहक पोतों का डिजाइन और निर्माण करने में सक्षम हैं।
- स्वदेशी सामग्री: जहाज का 76 प्रतिशत हिस्सा स्वदेश में निर्मित है, जिसमें स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) द्वारा आपूर्ति किया गया लगभग 30,000 टन विशेष इस्पात भी शामिल है।
- रक्षा उद्योग जगत की भागीदारी: इस परियोजना में 550 से अधिक मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) और उप-ठेकेदारों के साथ-साथ 100 सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) शामिल थे।
- रोजगार सृजन: कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में लगभग 2,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और लगभग 12,500 लोगों को संबद्ध उद्योगों तथा आपूर्तिकर्ताओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का प्रतीक आईएनएस विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं है, बल्कि यह 21वीं सदी में भारत की कड़ी मेहनत, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है।
आईएनएस विक्रांत की तकनीकी और परिचालन क्षमताएं निम्नलिखित में परिलक्षित होती हैं:
- यह विमान वाहक पोत 262.5 मीटर लंबा और 61.6 मीटर चौड़ा है, जिसका भार विस्थापन लगभग 45,000 टन है।
- यह चार गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित है, जो मिलकर लगभग 88 मेगावाट बिजली उत्पन्न करते हैं।
- आईएनएस विक्रांत 28 समुद्री मील की अधिकतम गति प्राप्त कर सकता है।
- इस पोत में महिला अधिकारियों और नाविकों सहित लगभग 1,600 कर्मी रह सकते हैं और इसमें लगभग 2,200 कम्पार्टमेंट्स हैं।
- यह शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी (स्टोबार) प्रणाली पर काम करता है, जो विमान को स्की-जंप का उपयोग करके उड़ान भरने और अरेस्टर तारों की मदद से उतरने की सुविधा प्रदान है।
- आईएनएस विक्रांत, मिग-29के, कामोव-31, एमएच-60आर, मिग-29केयूबी, चेतक और एएलएच ध्रुव जैसे विमानों सहित लगभग 30 विमानों का संचालन करने में सक्षम है।
- यह जहाज इतना शक्तिशाली है कि लगभग 5,000 घरों के लिए पर्याप्त विद्युत उत्पादन करने में सक्षम है। इसकी आंतरिक तारें इतनी हैं कि उन्हें कोच्चि से काशी तक फैलाया जा सकता है।
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आईएनएस विक्रांत की उपलब्धियां
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आईएनएस विक्रांत ने अपने जलावतरण के बाद से भारत की समुद्री शक्ति की आधारशिला के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ किया है। इसकी प्रमुख उपलब्धियां न केवल इसके उन्नत तकनीकी और परिचालन कौशल को उजागर करती हैं, बल्कि ‘सागर’ — क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास की भावना के प्रति भारत की अटूट वचनबद्धता को भी सशक्त बनाती हैं। आईएनएस विक्रांत वास्तव में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सामूहिक प्रगति को प्रोत्साहित करने हेतु भारत की सकारात्मक व जिम्मेदार समुद्री भूमिका का प्रतीक है।
- प्रथम समुद्री परीक्षण (4 अगस्त 2021): आईएनएस विक्रांत ने कोच्चि से अपनी पहली यात्रा शुरू की, प्रणोदन, नेविगेशन और हथियार प्रणालियों का सत्यापन किया और पूर्ण परिचालन तत्परता की नींव रखी।
- एलसीए (नौसेना) और मिग-29के की पहली लैंडिंग (फरवरी 2023): वाहक ने स्वदेशी एलसीए नौसेना और मिग-29 के जेट की पहली लैंडिंग की।

रात्रि लैंडिंग ऑपरेशन (मई 2023): आईएनएस विक्रांत ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में जटिल मिशनों के लिए तत्परता का प्रदर्शन करते हुए सफल रात्रि लैंडिंग की।
- अंतिम परिचालन मंजूरी (जनवरी-नवंबर 2024): लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों द्वारा दिन तथा रात की उड़ानों सहित 750 घंटे से अधिक के उड़ान संचालन ने वाहक की परिचालन तत्परता को प्रमाणित किया।
- मिलन 24: आईएनएस विक्रांत ने फरवरी 2024 में भारतीय नौसेना द्वारा आयोजित द्विवार्षिक बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, मिलन 24 में भाग लिया। इस अभ्यास में छह महाद्वीपों के 36 से अधिक जहाजों, दो पनडुब्बियों, 55 विमानों और 47 मित्र देशों के वरिष्ठ नेतृत्व ने भाग लिया। इस आयोजन ने हिंद महासागर क्षेत्र में एक पसंदीदा सुरक्षा भागीदार के रूप में अपनी प्रमुख स्थिति की पुष्टि की और भारतीय नौसेना की संरचना को युद्ध के लिए तैयार, विश्वसनीय, एकजुट और भविष्य के लिए तैयार बल के रूप में सुदृढ़ किया।

राष्ट्रपति का दौरा और परिचालन प्रदर्शन (7 नवंबर 2024): भारत की माननीय राष्ट्रपति ने उड़ान, लैंडिंग, मिसाइल प्रदर्शन और बेड़े के युद्धाभ्यास देखे, जिससे समुद्री शक्ति के एक दुर्जेय प्रतीक के रूप में आईएनएस विक्रांत की भूमिका रेखांकित हुई।
- वरुण 2025 अभ्यास: आईएनएस विक्रांत ने मार्च 2025 में कैरियर स्ट्राइक ग्रुप चार्ल्स डी गॉल के साथ वरुण 25 (भारत-फ्रांसीसी नौसेना द्विपक्षीय अभ्यास) में भाग लिया। इसके अंतर्गत उन्नत पनडुब्बी रोधी युद्ध और वायु रक्षा अभ्यासों में आईएन कैरियर बैटल ग्रुप तथा एफएफएन सीएसजी शामिल थे।
- परिचालन उपलब्धि (मार्च 2025): अरब सागर में तैनाती के दौरान, आईएनएस विक्रांत, आईएनएस दीपक के साथ, पनामा ध्वज वाले बल्क कैरियर एमवी हीलन स्टार से जुड़ी एक आपातकालीन स्थिति पर कार्रवाई के लिए तुरंत रवाना किया गया था। आईएनएस विक्रांत के एक सी किंग हेलीकॉप्टर ने एक चुनौतीपूर्ण चिकित्सा निकासी (मेडेवैक) को अंजाम दिया, जिसमें तीन घायल चालक दल के सदस्यों को एमवी हीलन स्टार से आईएनएस हंसा, गोवा पहुंचाया गया।
- युद्ध क्षेत्र स्तरीय परिचालन तत्परता अभ्यास (ट्रोपेक्स 2025): हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के सबसे बड़े द्विवार्षिक अभ्यास में भाग लिया, जिसमें 150 से अधिक युद्धपोत, पनडुब्बियां तथा विमान शामिल थे और समुद्री युद्ध के सभी पहलुओं का परीक्षण किया गया।
- कोंकण अभ्यास 2025: मुंबई के तट पर ब्रिटेन की रॉयल नेवी के साथ एक द्विपक्षीय अभ्यास किया, जिसमें वायु, सतह और उप-सतह सैन्य संचालन शामिल थे।
- ऑपरेशन सिंदूर: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विक्रांत वाहक जहाज भारतीय नौसेना की आक्रामक निवारक स्थिति के केंद्र में था। उत्तरी अरब सागर में तैनात विक्रांत ने विशिष्ट रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे पाकिस्तानी नौसेना को रक्षात्मक मुद्रा में आने और तत्काल युद्धविराम का अनुरोध करने पर मजबूर होना पड़ा।
- समुद्र में प्रधानमंत्री का एक दिन (अक्टूबर 2025): इस जहाज ने माननीय प्रधानमंत्री की रात्रिकालीन समुद्री यात्रा की मेजबानी की। 19 से 20 अक्टूबर 2025 तक, दिवाली के अवसर पर।
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आईएनएस विक्रांत: मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) का एक स्तंभ
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आईएनएस विक्रांत अपनी सामरिक सैन्य क्षमताओं के अलावा, मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) अभियानों में एक दुर्जेय संपत्ति के रूप में साबित हुआ है।
- एचएडीआर अभियानों के लिए सामरिक क्षमताएं
आईएनएस विक्रांत अत्याधुनिक तकनीक और उन्नत बुनियादी ढांचे से सुसज्जित है, जो इसे विविध अभियानों के लिए एक बहुआयामी मंच बनाता है। इसके डिजाइन में मशीनरी संचालन, जहाज संचालन और उत्तरजीविता तंत्रों में उच्च स्तर का स्वचालन शामिल है, जिससे आपातकालीन परिस्थितियों या त्वरित तैनाती के दौरान इसकी दक्षता एवं प्रतिक्रिया क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। विक्रांत की एक प्रमुख विशेषता इसकी शक्तिशाली विद्युत उत्पादन प्रणाली है, जो लगभग 5,000 घरों के लिए पर्याप्त बिजली उत्पन्न करने में सक्षम है। यह क्षमता इसे दूरस्थ या आपदा प्रभावित क्षेत्रों में भी निरंतर संचालन सुनिश्चित करने में समर्थ बनाती है। इसके अतिरिक्त, इस विमानवाहक पोत की विस्तृत विमानन और संचार सुविधाएं इसे संकट की स्थिति में एक मोबाइल कमांड सेंटर, तैरता हुआ अस्पताल और आपूर्ति केंद्र के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे यह न केवल युद्धकाल में, बल्कि मानवीय राहत अभियानों में भी एक अमूल्य संपत्ति सिद्ध होता है।
- भारत की क्षेत्रीय रणनीति के साथ संरेखण
एचएडीआर अभियानों में आईएनएस विक्रांत की भूमिका भारत की व्यापक समुद्री रणनीति, विशेष रूप से 'सागर' (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) पहल के साथ संरेखित है। भारतीय नौसेना आपदाओं और आकस्मिकताओं के दौरान मानवीय सहायता तथा आपदा राहत प्रदान करने में अग्रणी रही है। इन कार्यों ने हिंद महासागर क्षेत्र में 'मुख्य सुरक्षा भागीदार' और 'प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता' के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है।


आईएनएस विक्रांत के एक सी किंग हेलीकॉप्टर ने गोवा से लगभग 230 समुद्री मील पश्चिम में पनामा ध्वज वाले एमवी हीलन स्टार से आई एक संकटकालीन सूचना पर प्रतिक्रिया देते हुए तीन घायल चालक दल के सदस्यों को चिकित्सा देखभाल के लिए आईएनएस हंसा तक सफलतापूर्वक पहुंचाया। यह अभियान राष्ट्रीय जल सीमा से परे मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) के लिए भारतीय नौसेना की दृढ़ प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
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भारत की समुद्री आत्मनिर्भरता में एक मील का पत्थर
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भारतीय शिपयार्ड 2014 से अब तक नौसेना को 40 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत एवं पनडुब्बियां प्रदान कर चुके हैं और औसतन हर 40 दिनों में एक नया प्लेटफॉर्म शामिल किया जा रहा है। यह समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में क्षमता निर्माण के प्रति देश के उत्साह और जोश का सच्चा प्रमाण है। आईएनएस विक्रांत का विकास और संचालन भारतीय नौसेना की आत्मनिर्भरता की यात्रा में एक ऐतिहासिक अध्याय है।
स्वदेशी डिजाइन और निर्माण
आईएनएस विक्रांत का डिज़ाइन भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो (डब्ल्यूडीबी) द्वारा तैयार किया गया और इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) में किया गया। यह भारत की स्वदेशी नौसैनिक डिजाइन और निर्माण क्षमता का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस पोत में बड़ी संख्या में स्वदेशी उपकरणों और मशीनरी का उपयोग किया गया है। इसमें देश के अग्रणी औद्योगिक संगठनों जैसे बीईएल, बीएचईएल, जीआरएसई, केलट्रॉन, किर्लोस्कर, लार्सन एंड टुब्रो, वार्टसिला इंडिया सहित 100 से अधिक सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) की भागीदारी रही है। आईएनएस विक्रांत के लिए स्वदेशी युद्धपोत-ग्रेड स्टील का विकास और उत्पादन भारतीय नौसेना, डीआरडीओ तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के बीच सफल साझेदारी का परिणाम है। इस सहयोग ने भारत को युद्धपोत निर्माण के लिए आवश्यक इस्पात उत्पादन में पूर्ण आत्मनिर्भरता प्रदान की है, जो “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
समुद्री क्षमताओं में वृद्धि
जून 2023 में, भारतीय नौसेना ने आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य सहित अपने विविध जहाज़ों, पनडुब्बियों और विमानों के बेड़े के साथ एक बहु-वाहक अभियान संचालित किया। इस अभियान ने भारत की समुद्री परिचालन क्षमता, तकनीकी दक्षता और समन्वित युद्धक क्षमता का सशक्त प्रदर्शन किया। यह न केवल भारतीय नौसेना की नेटवर्क-सक्षम संचालन की परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सामरिक उपस्थिति और समुद्री श्रेष्ठता को भी सुदृढ़ करता है।
रणनीतिक अधिग्रहण: राफेल-मरीन जेट
अप्रैल 2025 में, भारत ने फ्रांस के साथ 26 राफेल-मरीन लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए 63,000 करोड़ रुपये का समझौता किया। इन विमानों को विशेष रूप से विमानवाहक पोतों से संचालित करने योग्य बनाया गया है, जिससे भारत की नौसैनिक वायु शक्ति में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी। इस अधिग्रहण में पायलट प्रशिक्षण, उड़ान सिमुलेटर, अत्याधुनिक हथियार प्रणाली और दीर्घकालिक रखरखाव सहायता शामिल है। इसके अतिरिक्त, इसमें भारतीय रक्षा विनिर्माण को सशक्त करने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भी शामिल है, जो स्वदेशी कौशल और औद्योगिक क्षमताओं को बढ़ावा देगा। राफेल-मरीन जेट आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य दोनों के वायु विंग की क्षमता को सुदृढ़ करेगा, जिससे भारतीय नौसेना की युद्ध तत्परता और संचालन क्षमता में अभूतपूर्व मजबूती सुनिश्चित होगी।
स्वदेशी जहाज निर्माण के लिए प्रतिबद्धता
भारतीय नौसेना का दूसरा स्वदेशी विमानवाहक पोत बनाने का दृष्टिकोण और पूर्वी नौसेना कमान को सुदृढ़ करने के लिए विशाखापत्तनम में आईएनएस विक्रांत की तैनाती इसकी आत्मनिर्भरता व क्षेत्रीय सुरक्षा के प्रति अटूट वचनबद्धता को दर्शाता है। दिसंबर 2024 तक, भारत में 133 से अधिक जहाजों और पनडुब्बियों का निर्माण तथा कमीशनिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया जा चुका है, जिससे भारतीय नौसेना देश के जहाज निर्माण उद्योग के विकास में एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरी है। नौसेना में शामिल किए जाने वाले 64 युद्धपोतों में से 63 भारत में ही निर्मित हैं। इनमें भव्य आईएनएस विक्रांत विमानवाहक पोत के साथ-साथ आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात जैसी परमाणु पनडुब्बियां भी शामिल हैं, जो भारत की स्वदेशी सैन्य क्षमता एवं समुद्री ताकत का प्रतीक हैं।
आईएनएस विक्रांत भारत के समुद्री पुनरुत्थान और आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता का एक स्थायी उदाहरण है। यह स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत न केवल समुद्र में भारत की सैन्य शक्ति और संचालन क्षमता को प्रदर्शित करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को पूर्ण रक्षा स्वदेशीकरण के लिए प्रेरित भी करता है। जिस तरह से भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सामरिक उपस्थिति मजबूत कर रहा है, आईएनएस विक्रांत देश की वैश्विक रक्षा महत्वाकांक्षा और दुनिया के शीर्ष रक्षा निर्यातकों में शामिल होने की क्षमता को भी दर्शाता है।
इस पोत ने भारतीय नौसेना और राष्ट्र को नई शक्ति, आत्मविश्वास एवं गर्व से भर दिया है। यह देश की सुरक्षा, सामरिक श्रेष्ठता और समुद्री प्रभुत्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ है।
संदर्भ
पत्र सूचना कार्यालय
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https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2024/nov/doc2024117431801.pdf
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