Social Welfare
सभी के लिए किफ़ायती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा
Posted On: 17 JUN 2025 9:33AM
परिचय
2014 से 2025 तक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुआयामी नेतृत्व में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में गहरा बदलाव आया है। लोगों को प्राथमिकता देने के दृष्टिकोण के साथ, सरकार ने सभी नागरिकों, विशेष रूप से वंचित और ग्रामीण आबादी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा को सुलभ और किफ़ायती बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है। चाहे वह दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत हो या दूरगामी ई-संजीवनी टेलीमेडिसिन प्लेटफ़ॉर्म, फ़ोकस स्पष्ट रहा है: सभी के लिए किफ़ायती, सुलभ और उत्तरदायी स्वास्थ्य सेवा।
भारत सिर्फ़ कोविड-19 संकट से ही नहीं निपटा बल्कि 220 करोड़ से ज़्यादा वैक्सीन की खुराक देते हुए दुनिया के लिए वैश्विक स्वास्थ्य भागीदार बनकर उभरा और आगे बढ़कर नेतृत्व किया। मिशन इंद्रधनुष जैसे बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियानों के ज़रिए निवारक देखभाल में तेज़ी आई है। एम्स संस्थानों और एमबीबीएस सीटों के रिकॉर्ड विस्तार के साथ चिकित्सा शिक्षा में व्यापक बदलाव किया गया है, जिससे देश के हर कोने से डॉक्टरों की एक नई पीढ़ी को सशक्त बनाया गया है। जन औषधि केंद्रों के माध्यम से जेनेरिक दवाएं आसानी से उपलब्ध हो गई हैं, जिससे परिवारों को चिकित्सा खर्चों में लाखों की बचत हो रही है। यह केवल बुनियादी ढांचे की कहानी नहीं है - यह प्रभाव की कहानी है। मातृ मृत्यु कम हुई है। पहुंच बढ़ी है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में विश्वास पहले कभी इतना मजबूत नहीं रहा। जैसे-जैसे भारत अमृत काल में प्रवेश कर रहा है, इसकी स्वास्थ्य यात्रा अब केवल बीमारी का इलाज करने तक सीमित न होकर, एक राष्ट्र के पोषण के लिये है। स्वास्थ्य अब एक अधिकार बन गया है, विशेषाधिकार नहीं। मोदी सरकार के तहत, सम्मान, देखभाल और आशा को केंद्र मे रखकर प्रत्येक भारतीय का जीवन मायने रखता है।
आयुष्मान भारत के द्वारा सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज
- आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई)
- 2018 में, सरकार ने आर्थिक रूप से कमज़ोर भारतीयों को मंहगे स्वास्थ्य सेवा व्यय से बचाने के उद्देश्य से दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य आश्वासन कार्यक्रम आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) शुरू किया। भारत की आबादी के 40 प्रतिशत निचले हिस्से को लक्षित करते हुए, इस योजना में लगभग 12.37 करोड़ परिवार शामिल हैं - जिससे लगभग 55 करोड़ लोग लाभान्वित होते हैं। 29 अक्टूबर 2024 को इसके ऐतिहासिक विस्तार में, सरकार ने आयुष्मान वय वंदना की शुरुआत की, जो 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को चाहे उनकी आय या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो एबी- पीएमजेएवाई लाभ प्रदान कर रही है। यह कदम बुजुर्गों की स्वास्थ्य समस्याओं को ध्यान में रखकर उनके बुढ़ापे में सम्मानजनक, चिंता मुक्त उपचार सुनिश्चित करता है।

इतना ही नहीं, यह योजना भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं, आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्ल्यूडब्ल्यूएस) और आंगनवाड़ी सहायकों (एडब्ल्यूएचएस) का भी ध्यान रखती है, जो राष्ट्र की सेवा करते हुए अपने स्वास्थ्य और कल्याण को भी सुनिश्चित करते हैं।
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम)

भारत सरकार ने पूरे देश में एक मजबूत और एकीकृत डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्टम स्थापित करने के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) की शुरुआत की। एबीडीएम सुरक्षित, अंतर-संचालन योग्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा इकोसिस्टम में विभिन्न हितधारकों-रोगियों, स्वास्थ्य प्रदाताओं और नीति निर्माताओं के बीच के अंतर को कम करता है। मिशन के केंद्र में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता (एबीएचए) है, जो नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाओं तक निर्बाध, कागज़ रहित पहुँच के लिए अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड को डिजिटल रूप से जोड़ने और प्रबंधित करने के लिए सक्षम करता है।
भारत की डिजिटल विविधता को पहचानते हुए, मिशन सीमित इंटरनेट कनेक्टिविटी या डिजिटल पहुँच वाले क्षेत्रों में एबीएचए निर्माण के लिए सहायता प्राप्त और ऑफ़लाइन मोड भी प्रदान करता है। उपयोग को और सरल बनाने और पहुँच सुनिश्चित करने के लिए एबीएचए ऐप और आरोग्य सेतु जैसे लोकप्रिय एप्लिकेशन को एकीकृत किया गया है।
- प्रधानमंत्री - आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) एक ऐतिहासिक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसमें चुनिंदा केंद्रीय क्षेत्र (सीएस) घटक हैं, जिसे 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए 64,180 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया है।

इस परिवर्तनकारी पहल का उद्देश्य प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर एक मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण है जो वर्तमान और भविष्य में महामारियों, सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों और आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम हो। केंद्रीय क्षेत्र के घटकों के हिस्से के रूप में, 12 केंद्रीय संस्थानों में क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल ब्लॉक (सीसीएचबी) के निर्माण को मंजूरी दी गई है, जो वर्तमान में विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम)
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), अपने दो उप-मिशनों - राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) के साथ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का प्रमुख कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का समर्थन करते हुए सबकी पहुँच किफायती, न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक करना है। सभी एनएचएम सेवाएँ उप-जिला और जिला स्तरों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर निःशुल्क उपलब्ध हैं।
एनएचएम का लक्ष्य न्यायसंगत, किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करना है जो लोगों की ज़रूरतों के प्रति जवाबदेह और उत्तरदायी हों। यह एनएचपी 2017 के लक्ष्यों को प्राप्त करने और सतत विकास लक्ष्य 3 (एसडीजी 3) - "सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और कल्याण को बढ़ावा देना" की दिशा में प्रगति करने के लिए प्राथमिक वाहन के रूप में कार्य करता है, जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) का महत्वपूर्ण उद्देश्य शामिल है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में इसके दो उप-मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) शामिल हैं। एनएचएम के क्रम में, सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी), 2017 पेश की, जो भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण - "सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर की प्राप्ति" को रेखांकित करती है। यह सभी विकास रणनीतियों में अंतर्निहित निवारक और प्रोत्साहन दृष्टिकोण पर जोर देता है, और वित्तीय कठिनाई के बिना गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच की गारंटी देता है।
- एनएचएम सेवाओं की बजटीय प्रतिबद्धता और विस्तार
सरकार ने पिछले एक दशक में एनएचएम के तहत निवेश और सेवाओं को काफी हद तक बढ़ाया है।

- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में बदलाव: आयुष्मान आरोग्य मंदिर
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का एक प्रमुख स्तंभ आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (एएएम) की स्थापना है - जिन्हें पहले आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र के रूप में जाना जाता था।

- एनएचएम के अंतर्गत प्रमुख कार्यक्रम/योजनाएं
एनएचएम में प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए स्वास्थ्य कार्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल और किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+ए) के क्षेत्र में, प्रमुख योजनाओं में जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके), राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके), राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके), सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम, मिशन इंद्रधनुष, जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई), प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएमए), नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (एनएसएसके), परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, और प्रसव कक्ष में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए लक्ष्य कार्यक्रम शामिल हैं।
पोषण संबंधी कमियों से निपटने के लिए, मिशन राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम, शिशु और छोटे बच्चों के आहार के लिए एमएए (माताओं का पूर्ण स्नेह) कार्यक्रम, फ्लोरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीसीएफ), और एनीमिया नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल जैसे कार्यक्रम चलाता है।
संचारी रोगों के क्षेत्र में, प्रमुख कार्यक्रमों में एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी), संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी), राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी), राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी), राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी), पल्स पोलियो कार्यक्रम, राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीएचसीपी), राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम और एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) की रोकथाम पर राष्ट्रीय कार्यक्रम शामिल हैं।
गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ को दूर करने के लिए, एनएचएम राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी), कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस), व्यावसायिक रोगों के नियंत्रण और उपचार के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम, बधिरता की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीसीडी), राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, अंधता और दृश्य हानि के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीबी और वीआई), प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (पीएमएनडीपी), बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीएचसीई), जलने से होने वाली चोटों की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीपीएमबीआई) और राष्ट्रीय मुख स्वास्थ्य कार्यक्रम का समर्थन करता है।
• राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी)
भारत ने राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत तपेदिक को खत्म करने में मजबूत प्रगति की है। ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 2015 और 2023 के बीच टीबी के मामलों में 17.7 प्रतिशत की कमी (237 से 195 प्रति लाख जनसंख्या) और टीबी से होने वाली मौतों में 21.4 प्रतिशत की कमी (28 से 22 प्रति लाख) आई है। उपचार कवरेज 53 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत हो गया है, जो स्वास्थ्य देखभाल तक आसान पहुंच में बड़ी प्रगति दर्शाता है। 2024 में, भारत में रिकॉर्ड 26.17 लाख टीबी मामले दर्ज किए गए, जो 2014 से अधिसूचनाओं में 69 प्रतिशत की वृद्धि है। निजी क्षेत्र ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें अधिसूचनाएं 1.06 लाख से बढ़कर 9.50 लाख हो गईं। पिछले दशक में उपचार की सफलता दर भी 85 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गई टीबी निवारक उपचार (टीपीटी) का विस्तार सभी घरेलू संपर्कों तक किया गया, जिसमें 2024 में 3 एचपी और 1 एचपी जैसे छोटे उपचारों का उपयोग करके 25 लाख लोगों को शामिल किया गया। वयस्कों में शुरुआती पहचान के लिए साइ-टीबी त्वचा परीक्षण शुरू किया गया। निक्षय पोषण योजना के तहत, 1.23 करोड़ टीबी रोगियों को 3,607 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं, नवंबर 2024 से मासिक सहायता दोगुनी होकर 1,000 रुपये हो गई है। निक्षय मित्र पहल के माध्यम से सामुदायिक समर्थन में वृद्धि हुई है, जिसमें 2.5 लाख से अधिक मित्र, 13.23 लाख रोगी समर्थित और 29.14 लाख खाद्य टोकरियाँ वितरित की गई हैं। एक प्रमुख अभियान, 100-दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान (दिसंबर 2024-मार्च 2025), ने 347 जिलों को कवर किया, 30,000 से अधिक नेताओं को संगठित किया और 13.46 लाख स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से 12.97 करोड़ लोगों की जांच की, जिसमें 2.85 लाख लक्षणहीन मामलों सहित 7.19 लाख टीबी मामलों की पहचान की गई।
• राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन
राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया था। मिशन ने 2047 तक सिकल सेल रोग को खत्म करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जो समुदाय-केंद्रित और एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से जनजातिय आबादी के बीच जागरूकता पैदा करने, सार्वभौमिक जांच और व्यापक रोग प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है। 3 जून 2025 तक, सिकल सेल रोग के लिए कुल 5.72 करोड़ लोगों की जांच की गई है, जो तीन साल के लक्ष्य का 75 प्रतिशत से अधिक है। उल्लेखनीय रूप से, अप्रैल 2024 से केवल एक वर्ष में 2.65 करोड़ से अधिक जांच की गईं। राज्यों ने 2.50 करोड़ सिकल सेल स्टेटस कार्ड जारी किए हैं, जिससे 1.98 लाख रोगग्रस्त रोगियों और सिकल सेल विशेषता वाले 14 लाख व्यक्तियों की पहचान करने में मदद मिली है। सभी निदान किए गए रोगियों को वर्तमान में उचित उपचार मिल रहा है।
• प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (पीएमएनडीपी)
पीएमएनडीपी को कुल 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 749 (48 जुड़े हुए) जिलों में 1674 केंद्रों पर 11757 हीमो-डायलिसिस मशीनें लगाकर लागू किया गया है। 03.06.2025 तक कुल 27.86 लाख मरीजों (संचयी) ने डायलिसिस सेवाओं का लाभ उठाया और 342.25 लाख हीमो-डायलिसिस सत्र (संचयी) आयोजित किए गए। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (पीएमएनडीपी) के परिणामस्वरूप अब तक कुल 8000 करोड़ रुपये के मरीजों की जेब से होने वाले महंगे खर्च की बचत हुई है और पीएमजेएवाई के माध्यम से डायलिसिस के तहत 8000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बचत हुई है।
• राष्ट्रीय निःशुल्क औषधि सेवा पहल और राष्ट्रीय निःशुल्क निदान सेवा पहल
यह पहल मरीजों की जेब से होने वाले खर्च को कम करने के लिए आवश्यक दवाओं और निदान सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों को देखते हुए, सरकार ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लक्ष्यों के अनुरूप, प्रारंभिक पहचान, बुनियादी ढांचे के विकास और किफायती उपचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक मजबूत बहु-स्तरीय रणनीति अपनाई है।
कैंसर नियंत्रण की आधारशिला प्रारंभिक निदान बनी हुई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग कार्यक्रमों ने कैंसर का प्रारंभिक पता लगाने में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं:
• ओरल कैंसर: 31.70 करोड़ से अधिक स्क्रीनिंग
• स्तन कैंसर: 16.68 करोड़ से अधिक स्क्रीनिंग
• गर्भाशय ग्रीवा कैंसर: 9.97 करोड़ से अधिक स्क्रीनिंग

ये स्क्रीनिंग मुख्य रूप से आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों) में की जाती हैं, जो समाज को उनके घर पर निवारक देखभाल पहुंचाती हैं। उपचार तक पहुँच बढ़ाने के लिए, एक मजबूत द्वितीयक और तृतीयक देखभाल बुनियादी ढाँचा विकसित किया जा रहा है। बजट घोषणा के बाद, जिला स्तर पर कैंसर के मामलों पर आधारित एक अंतर विश्लेषण किया गया, जिससे एनएचएम के कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना (पीआईपी) के तहत 46 डे केयर कैंसर सेंटर (डीसीसीसी) को मंजूरी मिली। ये केंद्र जिला अस्पतालों में देखभाल को विकेंद्रीकृत करने और तृतीयक सुविधाओं पर रोगी के बोझ को कम करने के लिए स्थापित किए जा रहे हैं। तृतीयक स्तर पर, सरकार ने पिछले दशक में 19 राज्य कैंसर संस्थानों और 20 तृतीयक कैंसर देखभाल केंद्रों के विकास के लिए 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। सभी 23 नए एम्स में कैंसर उपचार सुविधाएं भी स्थापित की गई हैं, जबकि झज्जर में राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) और चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (सीएनसीआई ) के दूसरे परिसर जैसे प्रमुख संस्थानों की स्थापना राष्ट्रीय कैंसर देखभाल इकोसिस्टम को और मजबूत करने के लिए की गई है। वहनीयता सुनिश्चित करना इस रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है। 217 अमृत फार्मेसियों के माध्यम से, 289 कैंसर की दवाएँ 50 प्रतिशत तक की छूट पर उपलब्ध कराई जाती हैं। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना जनता को सस्ती कैंसर रोधी दवाएँ उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
स्वास्थ्य सेवाओं को सभी तक पहुँचाना
- दवाइयों को किफ़ायती बनाना
सभी के लिए किफ़ायती दवाइयों तक पहुँच सुनिश्चित करना पिछले एक दशक में भारत के स्वास्थ्य सेवा सुधारों का एक केंद्रीय स्तंभ रहा है। यह समझते हुए कि उच्च चिकित्सा लागत, विशेष रूप से आवश्यक दवाओं के लिए, अक्सर परिवारों को वित्तीय कठिनाई में डाल देती है, भारत सरकार ने गुणवत्तापूर्ण दवाइयों को काफी कम कीमतों पर उपलब्ध कराने के लिए लक्षित पहलों को लागू किया है - जिससे लाखों नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा का अनुभव बदल गया है।
• जन औषधि केंद्र

इस संबंध में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) है, जिसे नवंबर 2016 में फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा लॉन्च किया गया था। इस पहल का उद्देश्य जन औषधि केंद्रों के एक समर्पित नेटवर्क के माध्यम से काफी कम कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाइयाँ उपलब्ध कराना है। ये आउटलेट ऐसी दवाइयाँ प्रदान करते हैं जो प्रभावकारिता और सुरक्षा में अपने ब्रांडेड समकक्षों के बराबर हैं, लेकिन उनकी कीमत बाजार दरों से 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत कम है - सस्ती और विश्वसनीय दवाइयाँ प्रदान करके, पीएमबीजेपी ने अनगिनत परिवारों को समय पर उपचार प्राप्त करने और स्वस्थ जीवन जीने के लिए सशक्त बनाया है।
• अमृत फ़ार्मेसीज़

पीमबीजेपी के पूरक के रूप में, सरकार ने उपचार के लिए सस्ती दवाइयाँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण (अमृत) पहल शुरू की, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से तृतीयक स्वास्थ्य सेवा का समर्थन करना है। अमृत फ़ार्मेसीज़ विशेष रूप से उच्च-स्तरीय उपचारों के लिए आवश्यक ब्रांडेड, ब्रांडेड-जेनेरिक और जेनेरिक दवाओं के साथ-साथ सर्जिकल आइटम, उपभोग्य सामग्रियों और मेडिकल इम्प्लांट्स के लिए केंद्रीकृत आपूर्ति बिंदुओं के रूप में कार्य करती हैं।
- डिजिटल स्वास्थ्य विभाजन को पाटना
• ई-संजीवनी-राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा


सरकार का टेलीमेडिसिन कार्यक्रम - ई-संजीवनी देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। ई-संजीवनी आपके स्मार्टफोन से डॉक्टरों और चिकित्सा विशेषज्ञों तक त्वरित और आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करता है। आप नज़दीकी आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र पर जाकर ई-संजीवनी के ज़रिए दूर स्थान से भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं।
बाल और मातृ स्वास्थ्य
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी)

भारत ने व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों, डिजिटल नवाचारों और कानूनी सुधारों की एक श्रृंखला के माध्यम से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को आगे बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। इन प्रयासों के केंद्र में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) है, जो दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महत्वाकांक्षी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में से एक है।
हर साल, यूआईपी 2.6 करोड़ नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं को लक्षित करता है, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक बच्चे का उसके जीवन के पहले वर्ष में पूरी तरह से टीकाकरण किया जाए।
एक बच्चे का पूरी तरह से टीकाकरण तब माना जाता है जब उसे राष्ट्रीय टीकाकरण अनुसूची के तहत निर्धारित सभी टीके मिलते हैं - जिसमें बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) की तीन खुराक, पेंटावेलेंट वैक्सीन की तीन खुराक और मीजल्स-रूबेला (एमआर) वैक्सीन की पहली खुराक शामिल है।
निरंतर प्रयासों और आउटरीच के परिणामस्वरूप, भारत का पूर्ण टीकाकरण कवरेज (एफआईसी) प्रभावशाली 94.1 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जो निवारक स्वास्थ्य सेवा के लिए सरकार की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
• मिशन इंद्रधनुष
इस संबंध में एक महत्वपूर्ण पहल मिशन इंद्रधनुष है जिसे 25 दिसंबर 2014 को यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के तहत एक विशेष कैच-अप टीकाकरण अभियान के रूप में लॉन्च किया गया था। मिशन इंद्रधनुष विशेष रूप से उन बच्चों और गर्भवती महिलाओं को लक्षित करता है जो नियमित टीकाकरण कार्यक्रम से चूक गए हैं। कम टीकाकरण कवरेज वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, कई चरणों के माध्यम से, अभियान सुनिश्चित करता है कि कोई भी बच्चा जीवन रक्षक टीके प्राप्त करने से छूट न जाए।
• यू-विन

टीकाकरण वितरण में दक्षता और जवाबदेही को और बढ़ाने के लिए, सरकार ने यूआईपी के तहत एक डिजिटल पहल, यू-विन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।
मई 2025 तक, यू-विन पर 10.48 करोड़ लाभार्थी पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें 93.91 लाख प्रसव, 1.88 करोड़ टीकाकरण सत्र और कुल 41.73 करोड़ वैक्सीन खुराक दर्ज की गई हैं।
यह प्लेटफॉर्म पारदर्शिता सुनिश्चित करने, सेवा वितरण में सुधार करने और वंचित आबादी तक पहुँचने में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है।
यूआईपी के पूरक के रूप में तीन प्रमुख मातृ स्वास्थ्य योजनाएँ हैं जो संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने और सम्मानजनक, गरिमापूर्ण देखभाल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। नि:शुल्क संस्थागत प्रसव और नवजात शिशु देखभाल को बढ़ावा देने के लिए शुरू किए गए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) के तहत, 2014-15 से 16.60 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को सेवा प्रदान की गई है। इसके साथ ही, जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई), जो सशर्त नकद हस्तांतरण के माध्यम से संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करती है, ने मार्च 2025 तक 11.07 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभान्वित किया है। इसके अलावा, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (सुमन) पहल ने गर्भवती महिलाओं के लिए सम्मानजनक और गुणवत्तापूर्ण देखभाल को मजबूत किया है, जिसके तहत मार्च 2025 तक पूरे भारत में 90,015 सुमन स्वास्थ्य सुविधाएँ अधिसूचित की गई हैं।
गर्भ का चिकित्सीय समापन (संशोधन) अधिनियम, 2021 एक ऐतिहासिक सुधार है जो महिलाओं को सूचित प्रजनन विकल्प बनाने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। यह सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का विस्तार करता है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी पृष्ठभूमि की महिलाएँ एक विनियमित, अधिकार-आधारित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में देखभाल प्राप्त कर सकें।



इन प्रयासों से स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरीन नतीजे सामने आए हैं। संयुक्त राष्ट्र मातृ मृत्यु दर अनुमान अंतर-एजेंसी समूह (यूएन-एमएमईआईजी) की 2000-2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) 2020 में प्रति लाख जीवित जन्मों पर 103 से घटकर 2023 में प्रति लाख जीवित जन्मों पर 80 रह गया, जो कि केवल तीन वर्षों में 23 अंकों की महत्वपूर्ण कमी है। इसी तरह, संयुक्त राष्ट्र बाल मृत्यु दर अनुमान अंतर-एजेंसी समूह (यूएन आईजीएमई) ने मार्च 2025 में रिपोर्ट दी कि भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 2015 से 2023 के बीच 48 से घटकर 28 प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर आ गई है – 42 प्रतिशत की गिरावट, जो वैश्विक औसत 14 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा है। इसी अवधि के दौरान नवजात मृत्यु दर 1,000 जीवित जन्मों पर 28 से घटकर 17 हो गया, जो वैश्विक औसत 11 प्रतिशत की तुलना में 39 प्रतिशत की कमी है। ये आँकड़े बाल जीवन दर में सुधार लाने में भारत की निरंतर प्रगति को दर्शाते हैं, जिससे वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है, संयुक्त राष्ट्र आईजीएमई ने प्रभावी रणनीतियों और नीतियों के माध्यम से बाल मृत्यु दर को कम करने में भारत को एक आदर्श के रूप में पहचाना है।
चिकित्सा शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य
पिछले 11 वर्षों में, मोदी सरकार ने भारत की चिकित्सा शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य परिदृश्य में व्यापक बदलाव लाए हैं, गहरी चुनौतियों का समाधान किया है और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य शिक्षा को और अधिक सुलभ बनाया है। इससे पहले, महत्वाकांक्षी मेडिकल छात्रों-विशेष रूप से ग्रामीण और कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों की कमी, निजी संस्थानों की महंगी फीस और अपारदर्शी, भ्रष्टाचार से भरी प्रवेश प्रक्रियाओं सहित कई बाधाओं का सामना करना पड़ता था।

इसमें सुधार के लिए, सरकार ने साहसिक और व्यवस्थित सुधार शुरू किए। इस प्रयास की आधारशिला कई राज्यों में एम्स की स्थापना और विस्तार थी, जिसमें पूर्वोत्तर (असम) में पहला एम्स भी शामिल है। मई 2025 तक, भारत में 23 एम्स और 2,045 मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें 780 एलोपैथी, 323 डेंटल और 942 आयुष संस्थान शामिल हैं। एमबीबीएस सीटों में 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई (51,348 से 1,18,190 तक), जबकि पीजी सीटों में 138 प्रतिशत की वृद्धि हुई (31,185 से 74,306 तक) इसका उद्देश्य प्रशिक्षित डॉक्टरों की निरंतर उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। स्वास्थ्य कार्यबल को और मजबूत करने के लिए, सरकार ने नए मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ 157 सह-स्थित नर्सिंग कॉलेजों को मंजूरी दी। अप्रैल 2025 तक, 106 ऐसे नर्सिंग संस्थानों के लिए धन जारी किया गया है। इसके साथ ही, बीएससी नर्सिंग सीटें 53 प्रतिशत बढ़कर 1,27,290 हो गईं और एम.एससी नर्सिंग सीटें 39 प्रतिशत बढ़कर 14,986 हो गईं, जिससे नर्सिंग शिक्षा की पहुंच और गहराई दोनों में वृद्धि हुई। चिकित्सा शिक्षा को पारदर्शी बनाने और योग्यता को बढ़ावा देने के ऐतिहासिक कदम के तहत, भारतीय चिकित्सा परिषद को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के माध्यम से प्रतिस्थापित किया गया। स्वास्थ्य शिक्षा को आधुनिक बनाने के लिए कई अन्य ऐतिहासिक कानून बनाए गए:
• राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय आयोग अधिनियम, 2021
• राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2023
• राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग अधिनियम, 2023
2016 में नीट की शुरूआत ने एक समान और पारदर्शी प्रवेश प्रक्रिया सुनिश्चित की, जिससे चिकित्सा संस्थानों में योग्यता स्थापित हुई।
स्वास्थ्य सेवा की उभरती मांगों के अनुरूप, एनसीएएचपी के तहत 10 संबद्ध स्वास्थ्य व्यवसायों के लिए योग्यता-आधारित पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं, जो सीखने के परिणामों को मानकीकृत करते हैं और देखभाल वितरण को बढ़ाते हैं। नर्सिंग डोमेन में अनुसंधान और अकादमिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए, भारतीय नर्सिंग परिषद द्वारा अक्टूबर 2024 में नर्सिंग में पीएचडी के लिए राष्ट्रीय संघ का गठन किया गया, जिसने साक्ष्य-आधारित नर्सिंग अभ्यास और नवाचार में एक नया अध्याय शुरू किया।
कोविड-19 के दौरान भारत की प्रतिक्रिया
कोविड-19 महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया दुनिया में सबसे सक्रिय, व्यापक और लोगों को प्राथमिकता देने वाली रणनीतियों में से एक के रूप में उभरी है। दूरदर्शिता और त्वरित कार्रवाई से प्रेरित होकर, देश ने जीवन की रक्षा, वायरस को नियंत्रित करने और दीर्घकालिक स्वास्थ्य सेवा में लचीलापन बनाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी लामबंदी शुरू की।
- सक्रिय नेतृत्व और प्रारंभिक कार्यक्रम
वैश्विक चेतावनी से बहुत पहले ही, भारत ने महत्वपूर्ण निवारक कदम उठा लिए थे। पहला घरेलू मामला सामने आने से पहले ही हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू हो गई थी, जो सरकार की सतर्कता को दर्शाता है। जिम्मेदार नेतृत्व के एक महत्वपूर्ण उदाहरण के रूप में , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मार्च 2020 के पहले सप्ताह में ही होली समारोह में भाग लेने से परहेज किया, और राष्ट्र से बड़ी सभाओं से बचने का आग्रह किया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोई भी वैश्विक सलाह जारी करने से बहुत पहले ही कई राज्यों में मास्क अनिवार्य कर दिया गया था। भारत डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों से पहले ही रैपिड एंटीजन टेस्ट शुरू करने वाले पहले देशों में से एक था, जिसने निदान और रोकथाम में तेज़ी लाई।
जबकि दुनिया बढ़ती हुई मौतों से जूझ रही थी, भारत ने अप्रैल 2020 में ही एक समर्पित कोविड-19 वैक्सीन टास्क फोर्स का गठन कर दिया था, जिसने दुनिया के सबसे व्यापक टीकाकरण अभियान की नींव रखी। समय से पहले और रणनीतिक रूप से समयबद्ध राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने देश को चिकित्सा बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और आगे की लड़ाई के लिए तैयार होने का बहुमूल्य समय दिया - एक ऐसा निर्णय जिसे वैश्विक विशेषज्ञों ने व्यापक रूप से स्वीकार किया।
- दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान

स्वदेशी रूप से विकसित टीकों द्वारा संचालित और कोविन जैसे मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे द्वारा समर्थित, भारत का कोविड-19 टीकाकरण अभियान एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपलब्धि है।
भारत ने सफलतापूर्वक 220.67 करोड़ से अधिक वैक्सीन खुराकें दी हैं – जो पैमाने और गति के मामले में विश्व स्तर पर बेजोड़ उपलब्धि है।
यह भारत की स्वास्थ्य सेवा यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाता है, जिसने तात्कालिकता में अंतिम छोर तक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की देश की क्षमता को प्रदर्शित किया। भारत का राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम, जो दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम है, 16 जनवरी 2021 को शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य कम समय में देश की वयस्क आबादी को कवर करना था। इस कार्यक्रम का विस्तार 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी व्यक्तियों को शामिल करने और 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी व्यक्तियों के लिए एहतियाती खुराक के लिए किया गया।
- ऐतिहासिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार

भारत की महामारी प्रतिक्रिया केवल चिकित्सा उपचार तक सीमित नहीं थी - यह बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विस्तार और अभिनव समाधानों द्वारा समान रूप से परिभाषित की गई थी:
• ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें: भारतीय रेलवे ने लगभग 900 ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें चलाईं, जिनमें 36,840 टन से अधिक तरल चिकित्सा ऑक्सीजन गंभीर रूप से प्रभावित राज्यों में पहुँचाई गई। दूसरी लहर के दौरान यह त्वरित कार्रवाई महत्वपूर्ण थी।
• भारतीय वायु सेना की तैनाती: भारतीय वायु सेना को क्रायोजेनिक ऑक्सीजन टैंकरों और आवश्यक चिकित्सा उपकरणों को एयरलिफ्ट करने के लिए जुटाया गया, जिससे लाने लेजाने के समय की महत्तवपूर्ण कमी आई और समय पर सहायता सुनिश्चित हुई।
• आइसोलेशन कोच: मौजूदा संपत्तियों के रचनात्मक उपयोग में, 4,176 रेलवे कोचों को पूरी तरह कार्यात्मक आइसोलेशन और क्वारंटीन सुविधाओं में परिवर्तित किया गया, जिससे पूरे देश में रोगी क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
• अस्थायी क्वारंटीन सुविधाएँ: अर्धसैनिक बलों और केंद्रीय एजेंसियों ने शहरी और दूरदराज के क्षेत्रों में अस्थायी क्वारंटीन केंद्र स्थापित और संचालित किए, जिससे तेजी से आइसोलेशन और रिकवरी संभव हुई।
• पीएसए ऑक्सीजन प्लांट: सरकार ने 1,563 से अधिक प्रेशर स्विंग एडसोर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन प्लांट को मंजूरी दी, जिससे ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ी और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं को और अधिक आत्मनिर्भर बनाया गया, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
- आपातकालीन कोविड प्रतिक्रिया पैकेज (ईसीआरपी)
स्वास्थ्य सेवा इकोसिस्टम को और मजबूत करने के लिए, भारत सरकार ने दो चरणों में आपातकालीन कोविड प्रतिक्रिया पैकेज (ईसीआरपी) शुरू किया:
• ईसीआरपी-I के तहत, कुल 8,584.33 करोड़ रुपये जारी किए गए।
• ईसीआरपी-II के तहत, 12,740.22 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के माध्यम से वितरित इन निधियों का उपयोग मौजूदा स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे को उन्नत करने, आईसीयू बेड जोड़ने, वेंटिलेटर खरीदने, प्रयोगशाला नेटवर्क बढ़ाने और परीक्षण और निगरानी क्षमता का विस्तार करने के लिए किया गया।
निष्कर्ष
पिछले 11 वर्षों में भारत का स्वास्थ्य सेवा परिवर्तन व्यापक और सहानुभूतिपूर्ण रहा है। "सभी के लिए स्वास्थ्य" के दृष्टिकोण से निर्देशित, सरकार ने पहुँच का विस्तार करने, गुणवत्ता में सुधार करने और सामर्थ्य सुनिश्चित करने में अभूतपूर्व प्रगति की है। खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में-आयुष्मान भारत, पीएम-एबीएचआईएम और ई-संजीवनी जैसी ऐतिहासिक पहलों ने चिकित्सा सेवा को लोगों के करीब ला दिया है। बुनियादी ढांचे, डिजिटल स्वास्थ्य, टीकाकरण, मातृ एवं शिशु देखभाल और चिकित्सा शिक्षा में निवेश ने भविष्य की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया है। यह प्रगति केवल संख्याओं को लेकर नहीं है - यह जीवन में सुधार, सम्मान की स्थापना और आशा के नवीनीकरण के बारे में है। जैसे-जैसे भारत अमृत काल में कदम रख रहा है, समावेशी, लचीले और लोगों पर केंद्रित स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। संदेश स्पष्ट है: हर जीवन मायने रखता है, और एक स्वस्थ भारत ही एक मजबूत भारत है।
संदर्भ:
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
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विश्लेषक 16/ सरकार के 11 वर्षों पर सीरीज*
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