Farmer's Welfare
भारतीय किसानों को सशक्त बनाना
Posted On: 07 JUN 2025 10:06AM
“किसानों की आय बढ़ाना, खेती की लागत कम करना, बीज से लेकर बाज़ार तक किसानों को आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना हमारी सरकार की प्राथमिकता है।”
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
परिचय
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के केंद्र में है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती है और देश की पहचान को आकार देती है। पिछले ग्यारह वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत के कृषि क्षेत्र में एक गहरा परिवर्तन आया है, जो बीज से बाज़ार तक (सीड टू मार्केट) के दर्शन पर आधारित है।
यह परिवर्तन समावेशिता को बढ़ावा देता है, छोटे किसानों, महिलाओं के नेतृत्व वाले समूहों और संबद्ध क्षेत्रों का समर्थन करता है, जबकि भारत को वैश्विक कृषि नेता बनाता है। किसान नीति का केंद्र बन गया है, जिसमें आय सुरक्षा, स्थिरता और सुदृढ़ता सुनिश्चित करने वाला एक सक्रिय, प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण है।
आधुनिक सिंचाई और ऋण पहुँच से लेकर डिजिटल बाज़ारों और कृषि-तकनीक नवाचारों तक, भारत स्मार्ट खेती को अपना रहा है और बाजरा की खेती और प्राकृतिक खेती जैसी पारंपरिक प्रथाओं को पुनर्जीवित कर रहा है। डेयरी और मत्स्य पालन जैसे संबद्ध क्षेत्र भी फल-फूल रहे हैं, जिससे ग्रामीण समृद्धि और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा मिल रहा है। सबसे बढ़कर, मानसिकता बदल गई है, किसानों को अब भारत के विकास के प्रमुख हितधारकों और चालकों के रूप में पहचाना जाता है। जैसे-जैसे भारत अमृत काल में प्रवेश कर रहा है, इसके सशक्त किसान देश को खाद्य सुरक्षा से लेकर वैश्विक खाद्य नेतृत्व तक ले जाने के लिए तैयार हैं।
बढ़ा हुआ बजट आवंटन
कृषि भारत के अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में कार्य करती है, जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार प्रदान करने और समग्र आर्थिक विकास में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से की आजीविका का समर्थन करती है और भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। इसके महत्व को पहचानते हुए, भारत सरकार ने इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए विभिन्न पहलों को लागू किया है और बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
कृषि और किसान कल्याण विभाग के बजट अनुमानों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो 2013-14 में 27,663 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024-25 में 1,37,664.35 करोड़ रुपये हो गई है, जो इस अवधि में लगभग पाँच गुना वृद्धि है।

बजट आवंटन में इस पर्याप्त वृद्धि ने कृषि क्षेत्र को बदलने, बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश, खेती के तरीकों के आधुनिकीकरण, सहायता योजनाओं के विस्तार और देश भर के किसानों के लिए आय सुरक्षा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
भारत का खाद्यान्न उत्पादन 2014-15 में 265.05 मिलियन टन से बढ़कर 2024-25 में अनुमानित 347.44 मिलियन टन हो गया है, जो कृषि उत्पादन में मजबूत वृद्धि को दर्शाता है।

प्रमुख फसलों में चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, जौ, चना, अरहर, दालें, मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड और सरसों, तिलहन, गन्ना, कपास, तथा जूट और मेस्टा शामिल हैं।
एमएसपी में वृद्धि और किसानों के लिए समर्थन
2014-15 से 2024-25 की अवधि के दौरान, 14 खरीफ फसलों की खरीद 7871 एलएमटी थी, जबकि 2004-05 से 2013-14 की अवधि के दौरान खरीद 4679 एलएमटी थी।

गेहूं एमएसपी वृद्धि और रिकॉर्ड खरीद
गेहूं के लिए एमएसपी 2013-14 में 1,400 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2024-25 में 2,425 रुपये प्रति क्विंटल हो गई, जिससे गेहूं उत्पादकों को बेहतर रिटर्न सुनिश्चित हुआ। 2014-2024 के दौरान गेहूं के लिए एमएसपी भुगतान के रूप में कुल 6.04 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, जो 2004-2014 के दौरान भुगतान किए गए 2.2 लाख करोड़ रुपये की तुलना में काफी अधिक है।

धान एमएसपी वृद्धि और रिकॉर्ड खरीद
धान के लिए एमएसपी 2013-14 में 1,310 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2025-26 में 2,369 रुपये प्रति क्विंटल हो गई, जिससे लाखों धान किसानों को लाभ हुआ। 2014-15 से 2024-25 की अवधि के दौरान धान की खरीद 7608 एलएमटी थी, जबकि 2004-05 से 2013-14 की अवधि के दौरान धान की खरीद 4590 एलएमटी थी। 2014-15 से 2024-25 की अवधि के दौरान धान उत्पादक किसानों को भुगतान की गई एमएसपी राशि 14.16 लाख करोंड़ रु. जबकि 2004-05 से 2013-14 की अवधि में किसानों को भुगतान की गई राशि 4.44 लाख करोड़ रुपये थी।


ग्रेड-ए धान के लिए एमएसपी 2013-14 में 1,345 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2025-26 में 2,389 रुपये प्रति क्विंटल हो गया
दालें
पिछले ग्यारह वर्षों में, सरकार दालों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाई है। पहले कम खेती, सीमित खरीद, उच्च आयात निर्भरता और उच्च उपभोक्ता कीमतों से ग्रसित यह क्षेत्र अब बढ़ी हुई खेती, उच्च एमएसपी द्वारा संचालित पर्याप्त खरीद, कम आयात निर्भरता और उपभोक्ताओं के लिए बेहतर मूल्य स्थिरता प्रदर्शित करता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर दालों की खरीद में 7,350% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो 2009-2014 के दौरान 1.52 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) से बढ़कर 2020-2025 के दौरान 82.98 एलएमटी हो गई।

एमएसपी पर तिलहन की खरीद
पिछले ग्यारह वर्षों में एमएसपी पर तिलहन खरीद में 1,500% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो तिलहन किसानों के लिए सरकार के मजबूत समर्थन को दर्शाता है।
विपणन सीजन 2025-26 के लिए सभी खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य
क्र. सं.
|
फसल
|
एमएसपी 2013-14
(रु/क्विंटल)
|
एमएसपी 2025-26 (रु/क्विंटल)
|
2013-14 से %बृद्धि
|
1
|
धान (सामान्य)
|
1310
|
2369
|
81%
|
2
|
धान (ग्रेड ए)
|
1345
|
2389
|
78%
|
3
|
ज्वार (संकर)
|
1500
|
3699
|
147%
|
4
|
ज्वार (मालदंडी)
|
1520
|
3749
|
147%
|
5
|
बाजरा
|
1250
|
2775
|
122%
|
6
|
रागी
|
1500
|
4886
|
226%
|
7
|
मक्का
|
1310
|
2400
|
83%
|
8
|
तुअर/अरहर
|
4300
|
8000
|
86%
|
9
|
मूंग
|
4500
|
8768
|
95%
|
10
|
उड़द
|
4300
|
7800
|
81%
|
11
|
मूँगफली
|
4000
|
7263
|
82%
|
12
|
सूरजमुखी के बीज
|
3700
|
7721
|
109%
|
13
|
सोयाबीन (पीला)
|
2560
|
5328
|
108%
|
14
|
तिल
|
4500
|
9846
|
119%
|
15
|
काला तिल
|
3500
|
9537
|
172%
|
16
|
कपास (माध्यम रेशा)
|
3700
|
7710
|
108%
|
17
|
कपास (लंबा रेशा)
|
4000
|
8110
|
103%
|
किसानों के लिए वित्तीय सुरक्षा
पीएम-किसान सम्मान निधि
• अब तक 11 करोड़ से ज़्यादा किसानों को 3.7 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की राशि हस्तांतरित की जा चुकी है।
• किसान-केंद्रित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, बिचौलियों को खत्म करते हुए, देश भर के किसानों को पारदर्शी और सीधे लाभ पहुँचाने को सुनिश्चित करता है।
|
फरवरी 2019 में शुरू की गई केंद्र की योजना, पीएम-किसान योजना का उद्देश्य भूमि-धारक किसानों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करना है। यह प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से आधार से जुड़े बैंक खातों में सीधे तीन बराबर किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये प्रदान करता है, छोटे और सीमांत किसानों को गुणवत्तापूर्ण इनपुट में निवेश करने और उपज बढ़ाने के लिए समय पर सहायता सुनिश्चित करता है।
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)
• अब तक 7.71 करोड़ किसानों को 10 लाख करोड़ रु का ऋण दिया जा चुका है।
• केसीसी के तहत ऋण सीमा 2025-26 के लिए 3 लाख रु से बढ़ाकर 5 लाख रु की गई।
|
किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना किसानों को अल्पकालिक और दीर्घकालिक खेती, कटाई के बाद के खर्चों और उपभोग की जरूरतों के लिए परेशानी मुक्त और किफायती ऋण सुनिश्चित करती है। यह कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए ऋण तक आसान पहुंच प्रदान करता है, जिससे किसानों की वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
जोखिम कम करना और सुदृढ़ता बढ़ाना
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
• अब तक इस योजना के तहत 63.23 करोड़ किसान आवेदन कर चुके हैं।
• 19.91 करोड़ से ज़्यादा किसानों (अनंतिम) को बीमा दावे मिले।
• किसानों को दावों के रूप में 1.75 लाख करोड़ रु (अनंतिम) का भुगतान किया गया।
|
2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) का उद्देश्य भारतीय किसानों को एक सरल, किफायती और व्यापक फसल बीमा उत्पाद प्रदान करना है। यह योजना सभी गैर-रोकथाम योग्य प्राकृतिक जोखिमों को कवर करती है
बुवाई के पहले से लेकर कटाई के बाद तक के प्राकृतिक जोखिम, प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों के कारण फसल खराब होने की स्थिति में वित्तीय सहायता सुनिश्चित करना।
"एक राष्ट्र, एक फसल, एक प्रीमियम" सिद्धांत का पालन करते हुए, पीएमएफबीवाई अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले फसल नुकसान के खिलाफ़ एक व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है। यह सुरक्षा न केवल किसानों की आय को स्थिर करती है बल्कि उन्हें नवीन प्रथाओं को अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित करती है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
• अब तक 2021-26 के लिए 93,000+ करोड़ रु आवंटित किए गए हैं।
• 112 सिंचाई परियोजनाएँ लागू की गई हैं, जिससे मानसून पर निर्भरता कम हुई है।
|
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) वर्ष 2015-16 के दौरान शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य खेत पर पानी की भौतिक पहुँच को बढ़ाना और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, खेत पर पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना, स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को शुरू करना आदि है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड
मृदा स्वास्थ्य और उर्वरता योजना को सरकार ने 2014-15 से लागू किया है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी की पोषक स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है, साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और उसकी उर्वरता में सुधार के लिए पोषक तत्वों की उचित खुराक पर सिफारिश करता है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत उपलब्धियां (अभी तक):
• देश भर में 1.75 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) बनाए गए।
• कार्यान्वयन के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को ₹1,706.18 करोड़ जारी किए गए।
• देश भर में 8,272 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित की गईं
कृषि के लिए आधुनिक अवसंरचना
कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ)
2020-21 में शुरू की गई कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य खेत के दहलीज पर भंडारण, रसद और प्रसंस्करण अवसंरचना के विकास का समर्थन करके फसल कटाई के बाद के प्रबंधन के अंतराल को पाटना है। यह योजना गोदामों, कोल्ड स्टोरेज इकाइयों, ग्रेडिंग और प्रसंस्करण केंद्रों जैसी सुविधाओं की स्थापना को बढ़ावा देती है, जिससे किसानों की बाजारों तक सीधी पहुँच बढ़ती है और उनकी आय बढ़ाने में मदद मिलती है। 1 लाख करोड़ रु के कुल परिव्यय के साथ, यह निधि फसल कटाई के बाद और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण का समर्थन करती है, और 2020-21 से 2032-33 तक 13 वर्षों की अवधि के लिए लागू है।
वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) के तहत उपलब्धियाँ:
• 42,864 परियोजनाओं के लिए 21,379 करोड़ रु स्वीकृत किए गए।
• इसमें से 14,284 करोड़ रु योजना लाभ के अंतर्गत कवर किए गए।
• एआईएफ के तहत स्वीकृत प्रमुख परियोजनाओं में 12,550 कस्टम हायरिंग सेंटर, 8,015 प्रसंस्करण इकाइयाँ, 2,765 गोदाम, 843 छंटाई और ग्रेडिंग इकाइयाँ, 668 कोल्ड स्टोरेज परियोजनाएँ और लगभग 18,023 कटाई-पश्चात प्रबंधन और व्यवहार्य कृषि परिसंपत्ति परियोजनाएँ शामिल हैं।
प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र
प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र बीज, उर्वरक, उपकरण और खेती तथा सरकारी योजनाओं के बारे में समय पर जानकारी प्रदान करने वाले वन-स्टॉप सेंटर के रूप में काम करते हैं, जिससे किसानों के लिए खेती अधिक सुविधाजनक और जानकारीपूर्ण हो जाती है।
• 23 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में 1,473
मंडियों को ई-नाम के साथ एकीकृत किया गया
दिसंबर 2024 तक:
• 1.79 करोड़ किसान पंजीकृत
• 2.59 लाख व्यापारी पंजीकृत
कुल व्यापार दर्ज:• 11.02 करोड़ मीट्रिक टन जिंसें
• 36.39 करोड़ इकाइयाँ (बांस, पान, नारियल, नींबू और स्वीट कॉर्न)
कुल व्यापार मूल्य 4.01 लाख करोंड़ रु
|
• 1.8 लाख केंद्र वन-स्टॉप शॉप के रूप में स्थापित किए गए हैं जो किसानों को इनपुट और जानकारी प्रदान करते हैं।
ई-नाम एवं बाजार सुधार
राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम), एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल, कृषि जिंसों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए मौजूदा कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) मंडियों को जोड़ता है। इस पहल की शुरुआत 14 अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। ई-नाम प्लेटफॉर्म किसानों को ऑनलाइन प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी मूल्य खोज प्रणाली और ऑनलाइन भुगतान सुविधा के माध्यम से अपनी उपज बेचने के लिए बेहतर विपणन अवसरों को बढ़ावा देता है। ई-नाम पोर्टल एपीएमसी से जुड़ी सभी जानकारी और सेवाओं के लिए सिंगल विंडो सेवाएं प्रदान करता है। इसमें अन्य सेवाओं के अलावा कमोडिटी की आवक, गुणवत्ता और कीमतें, खरीद और बिक्री के प्रस्ताव और किसानों के खाते में सीधे ई-भुगतान भी शामिल हैं।
किसानों के खाते में अन्य सेवाओं के अलावा ऋण भी पहुंचाया जाएगा।
मेगा फूड पार्क
मेगा फूड पार्क योजना किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और खुदरा विक्रेताओं को जोड़कर कृषि उत्पादन को बाजारों से जोड़ती है, जिसका उद्देश्य मूल्य संवर्धन बढ़ाना, बर्बादी को कम करना और किसानों की आय को बढ़ाना है। क्लस्टर दृष्टिकोण के आधार पर, यह खाद्य प्रसंस्करण और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के लिए संग्रह केंद्र, प्रसंस्करण इकाइयाँ, कोल्ड चेन और औद्योगिक भूखंड जैसे आधुनिक बुनियादी ढाँचे प्रदान करता है।

कृषि में नवाचार और उद्यमिता
नमो ड्रोन दीदी
नमो ड्रोन दीदी एक केंद्र की योजना है जिसका उद्देश्य महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को कृषि सेवाएँ प्रदान करने के लिए ड्रोन तकनीक से लैस कर उन्हें सशक्त बनाना है। इस योजना का लक्ष्य 2024-25 से 2025-2026 के दौरान 15000 चयनित महिला एसएचजी को कृषि उद्देश्य (फिलहाल तरल उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग) के लिए किसानों को किराये की सेवाएँ प्रदान करने के लिए ड्रोन प्रदान करना है। इस पहल से प्रत्येक एसएचजी के लिए प्रति वर्ष कम से कम 1 लाख रुपये की अतिरिक्त आय उत्पन्न होने की उम्मीद है, जो आर्थिक सशक्तिकरण और सतत आजीविका सृजन में योगदान देगा।
एग्रीश्योर: कृषि नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना
भारत के कृषि क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता के एक नए युग की शुरुआत करते हुए 7,000 से अधिक कृषि और संबद्ध स्टार्टअप पंजीकृत किए गए हैं। वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत 1,943 कृषि-स्टार्टअप को वित्तीय और तकनीकी सहायता मिली है।
|
बजट 2022-23 की घोषणा के अनुरूप, भारत सरकार और नाबार्ड ने एग्रीश्योर (स्टार्ट-अप और ग्रामीण उद्यमों के लिए कृषि निधि) लॉन्च किया है, जो 750 करोड़ रु की श्रेणी-II वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) है, जिसे उच्च जोखिम, उच्च प्रभाव वाले कृषि स्टार्ट-अप को सशक्त बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
कृषि मूल्य श्रृंखला में नवाचार, स्थिरता और उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एग्रीश्योर एफपीओ समर्थन, किराये की कृषि मशीनरी और आईटी-आधारित कृषि तकनीक जैसे समाधानों पर काम करने वाले उद्यमों को इक्विटी और ऋण वित्तपोषण प्रदान करता है।
फंड का उद्देश्य है:
• कृषि और संबद्ध स्टार्ट-अप के लिए निवेश-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना।
• ग्रामीण उद्यमों में पूंजी अवशोषण क्षमता को बढ़ाना।
• कृषि-स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में तेजी लाना।
एग्रीश्योर अगली पीढ़ी के कृषि-उद्यमियों को सशक्त बनाकर भारतीय कृषि को बदलने की दिशा में एक साहसिक कदम है।
किसानों की आय में विविधता लाना
कृषि के अलावा, विविधीकरण किसानों को जोखिम प्रबंधन, अप्रत्याशित कारकों पर निर्भरता कम करने और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है। सरकार पशुधन, डेयरी, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण जैसी संबद्ध गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है, साथ ही गैर-कृषि रोजगार को बढ़ावा दे रही है, ताकि कई आय स्रोत बनाए जा सकें। ये प्रयास न केवल ग्रामीण आजीविका को बढ़ाते हैं बल्कि ग्रामीण भारत में संरचनात्मक परिवर्तन और आर्थिक विकास के व्यापक लक्ष्य में भी योगदान देते हैं।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: किसानों की आय वृद्धि का एक प्रमुख चालक
पिछले ग्यारह वर्षों में, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र किसानों की आय वृद्धि के एक शक्तिशाली प्रवर्तक के रूप में उभरा है। खेत से बाजार तक मजबूत संपर्क बनाकर, कटाई के बाद के नुकसान को कम करके और आधुनिक प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे के माध्यम से मूल्य संवर्धन का विस्तार करके, इस क्षेत्र ने कृषि उपज की लाभप्रदता में वृद्धि की है। सरकार की पहल, विशेष रूप से प्रधान मंत्री किसान संपदा योजना के तहत, प्रसंस्करण क्षमता और निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई है, साथ ही साथ पर्याप्त ऑफ-फार्म रोजगार भी पैदा हुआ है, जो ग्रामीण आजीविका का समर्थन करता है।
किसानों की आय में सहायक प्रमुख उपलब्धियाँ:
• खाद्य प्रसंस्करण क्षमता में 20 गुना से अधिक वृद्धि: 12 लाख मीट्रिक टन (2013-14) से 242 लाख मीट्रिक टन (2024-25) तक, जिससे किसानों के लिए अधिक मूल्य संवर्धन संभव हुआ
• प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात लगभग दोगुना हुआ: 4.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2013-14) से 9.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2024-25) तक, जिससे कृषि उपज के लिए बाज़ार का विस्तार हुआ
• यह क्षेत्र अब संगठित विनिर्माण क्षेत्र में कुल रोज़गार में 12.41% का योगदान देता है, जिससे ग्रामीण परिवारों के लिए वैकल्पिक आय स्रोत उपलब्ध होते हैं
|


नीली क्रांति
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जिसकी वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8% हिस्सेदारी है। पिछले दो दशकों में, भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि और परिवर्तन देखा गया है। तकनीकी प्रगति से लेकर नीतिगत सुधारों तक, 2014 से 2024 के बीच के वर्ष ऐसे मील के पत्थर रहे हैं, जिन्होंने वैश्विक मत्स्य पालन और जलीय कृषि में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। केंद्रीय बजट 2025-26 में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए अब तक का सबसे अधिक कुल वार्षिक बजटीय समर्थन 2,703.67 करोड़ रुपये प्रस्तावित किया गया है। उत्पादन बढ़ाने और क्षेत्र को मजबूत करने के लिए, सरकार ने मत्स्य पालन के लिए एक समर्पित विभाग बनाया।

उपलब्धियां (2014-2024):
• उत्पादन में वृद्धि: मछली उत्पादन 95.79 लाख टन (2013-14) और 63.99 लाख टन (2003-04) से बढ़कर 184.02 लाख टन (2023-24) हो गया, जो 10 वर्षों (2014-24) में 88.23 लाख टन की वृद्धि दर्शाता है, जबकि 2004-14 में 31.80 लाख टन की वृद्धि हुई थी।
• अंतर्देशीय और जलीय कृषि मछली उत्पादन में वृद्धि: अंतर्देशीय और जलीय कृषि मछली उत्पादन में 2004-14 में 26.78 लाख टन की तुलना में 2014-24 में 77.71 लाख टन की जबरदस्त वृद्धि हुई।
• समुद्री मछली उत्पादन 5.02 लाख टन (2004-14) से दोगुना होकर 10.52 लाख टन (2014-24) हो गया।
|
डेयरी क्षेत्र
इस क्षेत्र में 5.7% की औसत वार्षिक वृद्धि दर देखी गई है, जो वैश्विक औसत 2% से काफी अधिक है।
|
भारत दूध उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर है, जो वैश्विक उत्पादन में 25% का योगदान देता है। देश में दूध उत्पादन पिछले 10 वर्षों में 63.56% बढ़ा है - 2014-15 में 146.3 मिलियन टन से 2023-24 में 239.2 मिलियन टन तक। इसके अतिरिक्त, भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 48% बढ़कर 2023-24 में 471 ग्राम/व्यक्ति/दिन हो गई है, जबकि वैश्विक औसत 322 ग्राम/व्यक्ति/दिन है।
डेयरी दुनिया के लिए एक व्यवसाय है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में, यह रोजगार सृजन का मार्ग प्रशस्त करता है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक विकल्प है, कुपोषण की समस्याओं का समाधान प्रदान करता है और महिला सशक्तिकरण करता है।
19 मार्च, 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2021-22 से 2025-26 के लिए 2,790 करोड़ रु के कुल परिव्यय के साथ संशोधित राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी) 400 और 3, करोड़ रु के साथ संशोधित राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम) को मंज़ूरी दी। इन योजनाओं का उद्देश्य दूध की खरीद, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना, देशी मवेशियों के प्रजनन को बढ़ावा देना, डेयरी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना और ग्रामीण आय और विकास को बढ़ाना है।
• दूध उत्पादन में 63.56% की वृद्धि हुई, जो 146.3 मीट्रिक टन से बढ़कर 239.3 मीट्रिक टन हो गया।
• देशी मवेशियों के दूध में 69.27% की वृद्धि हुई, जो 29.48 मीट्रिक टन से बढ़कर 49.90 मीट्रिक टन हो गया।
• भैंस के दूध में 39.73% की वृद्धि हुई, जो 74.70 मीट्रिक टन से बढ़कर 104.38 मीट्रिक टन हो गया।
• दुधारू पशुओं की संख्या में 30.46% की वृद्धि हुई, जो 85.66 मिलियन से बढ़कर 111.76 मिलियन हो गई।
• डेयरी क्षेत्र में 8 करोड़ से अधिक किसान कार्यरत हैं।


मीठी क्रांति
राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (एनबीएचएम) को 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत लॉन्च किया गया था, जिसका कुल परिव्यय 2020-21 से 2022-23 की अवधि के लिए 500 करोड़ रु था। इस योजना को 2023-24 से 2025-26 तक तीन और वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया है, जिसका शेष बजट 370 करोड़ रु है। इसका उद्देश्य "मीठी क्रांति" को प्राप्त करने और आय सृजन और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन के समग्र विकास को बढ़ावा देना है।
मोदी सरकार के तहत शहद का निर्यात तीन गुना हो गया।
एनबीएचएम की प्रमुख उपलब्धियाँ:
- भारत ने 2022-23 में 1.42 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया और 79,929 मीट्रिक टन का निर्यात किया।
- सशक्तिकरण के लिए 167 महिला एसएचजी गतिविधियों का समर्थन किया गया।
- मधुमक्खी पालन केंद्रों की बढ़ती मांग के साथ, 31.12.2025 तक 2,000 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाया गया है।
- 6 विश्व स्तरीय और 47 मिनी शहद परीक्षण प्रयोगशालाएँ, साथ ही 6 रोग प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
- 8 कस्टम हायरिंग सेंटर, 26 शहद प्रसंस्करण इकाइयाँ और अन्य बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया गया है।
- ऑनलाइन पंजीकरण और ट्रेसबिलिटी के लिए मधुक्रांति पोर्टल लॉन्च किया गया - 14,800 से अधिक मधुमक्खी पालक और 22.39 लाख कॉलोनियाँ पंजीकृत हैं।
- ट्राइफेड, नेफेड और एनडीडीबी के तहत मधुमक्खी पालकों के लिए 100 एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) में से 7 का गठन किया गया।
इथेनॉल खरीद
इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि
भारत सरकार वैकल्पिक, पर्यावरण अनुकूल ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने और आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने के लिए इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम को लागू कर रही है। इस कार्यक्रम के तहत, तेल विपणन कंपनियाँ (ओएमसी) मुख्य रूप से गन्ने से उत्पादित इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाती हैं। सरकार का लक्ष्य ईएसवाई 2025-26 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण प्राप्त करना है, जो 2030 के लक्ष्य को आगे बढ़ाता है। 28 फरवरी 2025 तक, इथेनॉल मिश्रण 17.98% तक पहुँच गया है, जो जून 2022 में प्राप्त 10% से लगातार आगे बढ़ रहा है। यह पहल न केवल स्वच्छ ऊर्जा का समर्थन करती है, बल्कि इथेनॉल की निरंतर मांग पैदा करके गन्ना किसानों को एक स्थिर आय स्रोत भी प्रदान करती है। इथेनॉल की कीमतों में वृद्धि और जीएसटी और परिवहन शुल्क का अलग से भुगतान किसानों की आय को और मजबूत करता है। प्रमुख उपलब्धियाँ
• इथेनॉल की खरीद 2013-14 में 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2023-24 में 441 करोड़ लीटर हो गई।
• चीनी सीजन 2023-24 में गन्ना किसानों को 1,11,703 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
• किसानों के लिए बेहतर रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए सी-हैवी मोलासेस (सीएचएम) इथेनॉल की कीमत में 3% की बढ़ोतरी।
• अलग-अलग जीएसटी और परिवहन शुल्क से किसानों की कमाई में सीधा लाभ होता है।
यह कार्यक्रम किसानों की आय दोगुनी करने, कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करने, विदेशी मुद्रा बचाने और पर्यावरण की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है।
|

बंजर भूमि पर सौर पैनल
प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) का उद्देश्य कृषि में डीजल के उपयोग को कम करना और किसानों की आय को बढ़ाना है। यह स्टैंडअलोन सोलर पंप लगाने और मौजूदा पंपों को सोलराइज़ करने के लिए 30-50% केंद्रीय सब्सिडी प्रदान करता है। किसान बंजर भूमि पर 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट भी लगा सकते हैं और डिस्कॉम को बिजली बेच सकते हैं। यह योजना स्वच्छ ऊर्जा और आय सृजन को बढ़ावा देती है और इसे राज्य सरकार के विभागों द्वारा लागू किया जाता है।
पीएम-कुसुम योजना के तहत उपलब्धियां
Ø किसानों के लिए सौर पंपों की संख्या में 92 गुना से अधिक की वृद्धि देखी गई।
Ø इस योजना के तहत 49 लाख कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से संचालित किया जाएगा।
- स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा, डीजल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी।
|

प्राकृतिक और जलवायु-स्मार्ट कृषि की ओर
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)
परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) को 2015-16 में भारत में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पहली व्यापक, केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लॉन्च किया गया था। यह योजना क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देती है, प्राकृतिक खेती के तरीकों को प्रोत्साहित करती है और जैविक उत्पादों के प्रत्यक्ष विपणन के लिए एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध कराती है। इसके अतिरिक्त, इस योजना में आदिवासी क्षेत्रों, द्वीपों और पहाड़ी क्षेत्रों सहित पारंपरिक रूप से जैविक क्षेत्रों को प्रमाणित करने के लिए बड़े क्षेत्र प्रमाणन (एलएसी) कार्यक्रम शामिल है। पीकेवीवाई टिकाऊ कृषि को आगे बढ़ाने, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करने और जैविक प्रथाओं के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पीकेवीवाई और एलएसी के तहत प्रमुख उपलब्धियाँ
- वर्ष 2015-16 में इसकी शुरुआत से लेकर अब तक पीकेवीवाई के तहत कुल 2,078.67 करोड़ रु जारी किए गए हैं।
- 38,043 जैविक क्लस्टर (प्रत्येक 20 हेक्टेयर को कवर करता है) बनाए गए हैं, जिसमें कुल 8.41 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती (एलएसी के तहत क्षेत्र सहित) के अंतर्गत लाया गया है।
- प्राकृतिक खेती के तहत, 8 राज्यों में 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को समर्थन दिया गया है।
- नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत, 272.85 करोड़ रु जारी किए गए हैं; 9,551 क्लस्टर बनाए गए हैं, जो 1.91 लाख हेक्टेयर को कवर करते हैं।
- किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को जैविक उपज की सीधी बिक्री की सुविधा के लिए एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल, डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.जैविकखेती.कॉम, लॉन्च किया गया है। अब तक 6.23 लाख किसान इस प्लेटफॉर्म पर पंजीकरण करा चुके हैं।
- योजना के तहत जैविक उत्पादों के विपणन के लिए विभिन्न राज्य-विशिष्ट ब्रांड विकसित किए गए हैं।
• बड़े क्षेत्र प्रमाणन (एलएसी) पहल के तहत:
• कार निकोबार और नानकॉरी द्वीप समूह (एएंडएन द्वीप) में 14,445 हेक्टेयर भूमि को जैविक भूमि के रूप में प्रमाणित किया गया है।
• लक्षद्वीप में खेती योग्य पूरी 2,700 हेक्टेयर भूमि को जैविक के रूप में प्रमाणित किया गया है।
• 60,000 हेक्टेयर भूमि को प्रमाणित करने के लिए सिक्किम राज्य सरकार को 96.39 लाख रु जारी किए गए हैं।
• लद्दाख से 5,000 हेक्टेयर भूमि को प्रमाणित करने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ है, जिसमें से 11.475 लाख रु पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ़)
अब तक उत्पादन 15.99 मिलियन टन (2021-22) से बढ़कर 17.57 मिलियन टन (2023-24) हो गया है, जो 2023-24 में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 5.29% है। एमएसपी के तहत खरीद 6.3 लाख टन (2021-22) से बढ़कर 12.55 लाख टन (2023-24) हो गई।
|
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन 26 नवंबर, 2024 को शुरू किया गया था। इस मिशन का उद्देश्य एक करोड़ किसानों के बीच रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना और 2184 करोड़ रु के वित्तीय परिव्यय के साथ 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित करना है।
मोटा अनाज : श्री अन्न
भारत दुनिया में बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक बाजरा उत्पादन में 18.1% और वैश्विक मोती बाजरा (बाजरा) उत्पादन में 38.4% का प्रभावशाली योगदान देता है। इस प्राचीन अनाज के पोषण और पर्यावरणीय मूल्य को मान्यता देते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया है। भारत में इसे "श्री अन्न" के रूप में मनाया जाता है, जो इसे सुपरफूड के रूप में दर्शाता है, बाजरा मनुष्यों द्वारा उगाई जाने वाली सबसे पुरानी फसलों में से एक है और अब इसे भविष्य की फसलों के रूप में देखा जा रहा है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा, "बाजरा उपभोक्ता, किसान और जलवायु के लिए अच्छा है।"


बीज से लेकर बाजार तक सुधार
बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन (एसएमएसपी)
उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, ताकि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके, उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी, जलवायु-लचीली किस्मों का विकास किया जा सके और उनकी व्यापक उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन (एसएमएसपी), 2014-15 में शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य देश भर में बीज उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण और प्रमाणीकरण को बढ़ावा देकर किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
मुख्य उपलब्धियाँ:
• 6.85 लाख बीज गाँव बनाए गए; 1649.26 लाख क्विंटल गुणवत्तापूर्ण बीज का उत्पादन किया गया; 2.85 करोड़ किसान लाभान्वित हुए।
• 13.70 लाख क्विंटल बीज प्रसंस्करण और 22.59 लाख क्विंटल भंडारण क्षमता बनाई गई।
• ग्राम पंचायत स्तर पर 517 बीज प्रसंस्करण-सह-भंडारण इकाइयाँ स्थापित की गईं (2017-20)।
• राष्ट्रीय बीज भंडार के अंतर्गत 29.68 लाख क्विंटल बीज का रखरखाव किया गया।
• बीज गुणवत्ता नियंत्रण को मजबूत करने के लिए 67 बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं, 14 डीएनए फिंगरप्रिंटिंग प्रयोगशालाओं, 7 बीज स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं और 42 ग्रो-आउट परीक्षण सुविधाओं के लिए सहायता प्रदान की गई।
• बीज की उपलब्धता 351.77 लाख क्विंटल (2014-15) से बढ़कर 508.60 लाख क्विंटल (2023-24) हो गई। वर्ष 2024-25 के लिए प्रमाणित और गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता बढ़कर 531.51 लाख क्विंटल हो गई।
• बीज ट्रेसेबिलिटी के लिए साथी पोर्टल लॉन्च किया गया, जो 20 राज्यों में पहले से ही चल रहे हैं।
• कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश (2015) उचित मूल्य सुनिश्चित करता है; 2024 की कीमतें 635 रु (बीजी-I) और 864 रु (बीजी-II) प्रति पैकेट तय की गई हैं।
• 2014-15 से 2,593 कृषि और 638 बागवानी फसल किस्में अधिसूचित की गईं।

केंद्रीय बजट 2025-26 में प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना की घोषणा की गई
केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना राज्यों के साथ साझेदारी में 100 कम उत्पादकता वाले जिलों में शुरू की जाएगी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य कृषि उत्पादकता बढ़ाकर, सिंचाई के बुनियादी ढांचे में सुधार करके और अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह के ऋण तक पहुँच को सुविधाजनक बनाकर 1.7 करोड़ किसानों को लाभान्वित करना है।
यह व्यापक, बहु-क्षेत्रीय पहल कौशल, तकनीकी हस्तक्षेप, निवेश और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करके कृषि में कम-रोज़गार की समस्या से भी निपटेगी।
अन्य सरकारी पहल:
1. एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी)
773 जिलों से 1,240 उत्पादों की पहचान करके संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देता है। सार्वजनिक खरीद को बढ़ावा देने के लिए ओडीओपी जीईएम बाज़ार में 500 से अधिक श्रेणियाँ सूचीबद्ध की गई हैं।
2. मखाना बोर्ड
मखाना उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन को मज़बूत करने के लिए बिहार में स्थापित किया जाएगा। किसानों को एफपीओ में संगठित किया जाएगा तथा उन्हें प्रशिक्षण एवं सरकारी योजनाओं तक पहुंच प्रदान की जाएगी।
निष्कर्ष
किसान भारत के कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं, जो देश को जीविका प्रदान करते हैं। प्रगतिशील सुधारों, तकनीकी प्रगति और मजबूत सरकारी पहलों ने महत्वपूर्ण विकास और बेहतर दक्षता को बढ़ावा दिया है। मोदी सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर, सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए वित्तीय समावेशन, जलवायु-स्मार्ट कृषि और आधुनिक बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक और भविष्य के लिए तैयार दृष्टिकोण पेश किया है। खाद्य सुरक्षा से लेकर किसान समृद्धि तक भारत की यात्रा जारी है, जो दूरदर्शिता पर आधारित है, कार्यों से पोषित और अपने अन्नदाताओं के सपनों से प्रेरित है।
संदर्भ:
Click here to download PDF
*****
विश्लेषक 06/ सरकार के 11 वर्षों पर सीरीज
(Backgrounder ID: 154581)
Visitor Counter : 92