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योग की कालातीत यात्रा

Posted On: 17 JUN 2025 3:37PM

भारत 11वां अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहा है। इस वर्ष इसकी थीम एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग एकता और कल्याण का संदेश दे रही है। लद्दाख से लेकर केरल तक, लोग योग के साथ जुड़ रहे हैं। विश्‍वभर में आज लाखों लोग योगाभ्यास करते हैं, जिसका श्रेय उन प्रतिष्ठित योग गुरुओं को जाता है जिन्होंने सदियों से इस परंपरा को संरक्षित रखा है। यह अभ्यास लगातार मजबूत व अधिक जीवंत होता जा रहा है, जिससे स्वस्थ और अधिक संतुलित जीवन को बढ़ावा मिल रहा है।

योग का इतिहास भारत की प्राचीन सभ्यता में निहित है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन की एक अनूठी प्रणाली के रूप में हज़ारों वर्षों में विकसित हुई है। माना जाता है कि सभ्यता के आरंभ में ही योग अस्तित्व में आ गया था। इसका शुभारंभ प्राचीन सिंधु-सरस्वती घाटी संस्कृति में एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में हुआ। धीरे-धीरे यह आत्म-बोध की दिशा में एक अनुशासित मार्ग के रूप में विकसित हुआ। यह यात्रा भारत की स्थायी बुद्धिमत्ता और मानवता की भलाई में योग के निरंतर योगदान को दर्शाती है।

योग शब्द संस्कृत के मूल शब्द युज से आया है जिसका अर्थ है जुड़ना। यह शरीर, मन और आत्मा के एकाकार होने का प्रतीक है । यह दुनिया के साथ आंतरिक संतुलन और सामंजस्य लाता है, मन को शांत करता है और उसे विकर्षणों से मुक्त करता है।

वर्षों तक विद्वानों का मत ​​था कि योग की उत्पत्ति 500 ​​ईसा पूर्व के आसपास बौद्ध धर्म के उदय के दौरान हुई थी। हालांकि, सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्‍यों से ज्ञात होता है कि योग उससे भी कहीं पुराना है। उस युग की कई मुहरों पर ध्यान मुद्रा में बैठे मानव आकृतियां दिखाई देती हैं, जो योग के शुरुआती अभ्यासों का संकेत देती हैं। मां देवी जैसी मूर्तियों की पूजा भी आध्यात्मिक प्रथाओं की ओर इशारा करती हैं जो योग की परंपराओं से निकटता से जुड़ी हुई थीं।

योग की जड़ें वैदिक काल से जुड़ी हैं, जहां यह उपासना और जीवन संस्कारों का एक अभिन्न अंग था । सूर्य का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक था, जिसने सूर्य नमस्कार, प्राणायाम या श्‍वास पर नियंत्रण जैसी बाद की प्रथाओं को प्रभावित किया। यह पहले से ही दैनिक वैदिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में अंतर्निहित था। इस अवधि के दौरान, योग का अभ्यास गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में किया जाता था, जिसमें आध्यात्मिक परिवर्तन पर ज़ोर दिया जाता था।

 

योग के प्रमाण उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों, बौद्ध और जैन परंपराओं, पाणिनी के लेखन और महाभारत और रामायण से भी मिलते हैं। शैववाद , वैष्णववाद और तांत्रिकवाद जैसी आस्तिक धाराओं ने योग के ज्ञान और रहस्यमय अनुभवों को संरक्षित करना जारी रखा, जो दक्षिण एशिया के आध्यात्मिक ताने-बाने में व्याप्त योग के एक आदिम या शुद्ध रूप के अस्तित्व की ओर इशारा करता है।

 

योग के विकास में एक महत्वपूर्ण क्षण महर्षि पतंजलि के समय आया, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास के थे। योग का अभ्यास वैदिक काल के पूर्व से ही किया जा रहा था। हालांकि, पतंजलि के योग सूत्रों ने इसके विविध अभ्यासों, अर्थों और दार्शनिक आधारों को व्यवस्थित रूप से संहिताबद्ध किया। उनके कार्यों से एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब योग को अष्टांग योग के रूप में प्रसिद्धि मिली। पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और गुरुओं ने साहित्य और परिष्कृत विधियों के माध्यम से इसे और समृद्ध किया।

700 और 1900 ई. के बीच की अवधि शास्त्रीय और पूर्व-आधुनिक युग की पहचान थी, जहां हठ योग जैसी प्रणालियां उभरीं, जो शरीर को आध्यात्मिक विकास के साधन के रूप में महत्व देती थीं। हठयोगप्रदीपिका, घेरंड संहिता और गोरक्ष शतकम जैसे ग्रंथों में योग तकनीकों का विस्तार से वर्णन किया गया है। रमण महर्षि , रामकृष्ण परमहंस , परमहंस योगानंद और स्वामी विवेकानंद जैसे महान आध्यात्मिक गुरुओं ने इस अवधि के दौरान योग के विकास और वैश्विक स्‍तर पर योग को पहचान दिलाई। योग और वेदांत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत करने के स्वामी विवेकानंद के प्रयासों ने भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में मदद की।

आधुनिक समय में, स्वामी शिवानंद , टी. कृष्णमाचार्य , स्वामी कुवलयानंद , श्री अरविंद , बीकेएस अयंगर और पट्टाभि जोइस के योगदान के माध्यम से योग को और अधिक गति मिली , जिन्होंने योग के उपचारात्मक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक आयामों की खोज की।

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए ऐतिहासिक भाषण ने स्वास्थ्य और कल्याण के दृष्टिकोण में वैश्विक बदलाव की शुरुआत की। मन, शरीर और चेतना के लिए योग के महत्व पर आधारित उनके संबोधन ने इस प्राचीन भारतीय अभ्यास पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया। इसके कुछ ही महीनों बाद, 193 सदस्य देशों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया।

इसके बाद से, विश्‍वभर में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक दोनों कारणों से चुना गया था। यह तिथि ग्रीष्म संक्रांति को चिह्नित करती है, जो उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है। इस दिन, पृथ्वी का झुकाव सूर्य की ओर सबसे अधिक होता है। आध्यात्मिक रूप से, यह माना जाता है कि पहले योगी या आदि योगी भगवान शिव ने इस दिन सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था। यह योग की परंपरा की शुरुआत का प्रतीक है।

योग सिर्फ़ एक अभ्यास नहीं है, यह भारत के सद्भाव, करुणा और सभी के प्रति सम्मान के मूल्यों में निहित जीवन जीने का एक तरीका है। योग व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों तरह से समग्र कल्याण पर ध्‍यान केंद्रित कराता है। इसी कारण दुनिया भर के लोगों के लिए यह प्रासंगिक बनता जा रहा है। कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म, जाति या राष्ट्रीयता का हो, योग उसे एक स्वस्थ, अधिक संतुलित और सार्थक जीवन जीने की राह दिखाता है।

संदर्भ:

योग की कालातीत यात्रा का अन्वेषण

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एमजी/केसी/बीयू/केके

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