Economy
जीएसटी सुधार 2025: कैसे गुजरात की अर्थव्यवस्था विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करेगी
Posted On:
06 OCT 2025 12:17 AM
- मक्खन और घी पर 5% जीएसटी से मुख्य खाद्य पदार्थ ~6-7% सस्ते होंगे
- सूरत के जरी उद्योग को जीएसटी घटाए जाने से लाभ होगा, 1.50 लाख श्रमिकों को फायदा पहुंचेगा
- कच्छी कढ़ाई और संखेड़ा फर्नीचर जैसे पारंपरिक वस्त्र और हस्तशिल्प 5% जीएसटी से और अधिक किफायती होंगे
- केमिकल इनपुट, सेरामिक और एगेट पर दरें घटने से वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी
- हीरों पर आईजीएसटी में छूट से एमएसएमई को लाभ होगा और सूरत की वैश्विक व्यापारिक केंद्र के तौर पर स्थिति बेहतर होगी
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हाल ही में हुए जीएसटी सुधारों से गुजरात पर बड़ा प्रभाव दिखने की उम्मीद है, क्योंकि गुजरात की अर्थव्यवस्था मैन्युफैक्चरिंग, औद्योगिक उत्पादन, कृषि और डेयरी, पारंपरिक शिल्प जैसे संबंधित क्षेत्रों और वैश्विक निर्यात के मिश्रण पर आधारित है। जरूरी वस्तुओं और पारंपरिक उत्पादों पर दरें घटाकर, औद्योगिक इनपुट और व्यापार सुविधा उपायों में राहत प्रदान कर, इन सुधारों से राज्य की अर्थव्यवस्था को बहुत प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।

ये सुधार विभिन्न क्षेत्रों में लागू होंगे और ग्रामीण, कारीगर और बड़े उद्योगों, दोनों को लाभान्वित करेंगे। ये लाखों लोगों की आजीविका को आगे बढ़ाएंगे, पारंपरिक शिल्पकला को संरक्षित करेंगे और औद्योगिक विस्तार को गति देंगे। साथ ही, ये ग्राहकों के लिए कीमतों को घटाकर और खरीदने की सामर्थ्य में सुधार करके घरेलू बजट को भी आसान बनाएंगे।
गुजरात के लिए, जहां डेयरी सहकारी समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, जीएसटी सुधार विशेष तौर पर असर डालने वाले हैं। यह राज्य एक प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्य है, जो भारत के कुल दुग्ध उत्पादन में लगभग 7.7% का योगदान देता है। अमूल ब्रांड का स्वामित्व रखने वाला गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ), 18 सदस्यीय संघों का एक नेटवर्क है, जो लगभग 3.6 मिलियन दुग्ध उत्पादकों से दूध खरीदता है। यह संपूर्ण वैल्यू चेन लाखों लोगों की आजीविका का आधार बनती है।
मक्खन और घी पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% करने से गुजरात की डेयरी वैल्यू चेन को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। संशोधित दरों से कीमतों में ~6-7% की तत्काल गिरावट आएगी। उदाहरण के लिए, घी का एक किलो का पैकेट, जिसकी कीमत पहले ₹700 थी, अब ₹40-₹45 सस्ता हो सकता है। टैक्स का बोझ घटाकर, जीएसटी में बदलाव से घरेलू बचत और खपत को बढ़ावा मिलेगा।
सूरत वस्त्र एवं जरी उद्योग
सूरत, जिसे अक्सर "भारत का मैनचेस्टर" कहा जाता है, गुजरात की कपड़ा अर्थव्यवस्था का केंद्र है, जहां नवसारी और पलसाना भी प्रमुख केंद्र हैं। जरी बॉर्डर पर जीएसटी को हाल ही में 12% से घटाकर 5% करने से बुनकरों, रंगरेजों, डिजाइनरों और कारोबारियों को राहत मिली है, जो इस उद्योग में कार्यरत हैं। सूरत के जरी उद्योग में लगभग 1,25,000 से 1,50,000 लोग प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं, जिनमें लगभग 70% महिलाएं हैं, जो अपने घरों से ही मशीनों का संचालन करती हैं। सूरत भारत का लगभग 40% मानव निर्मित कपड़े का उत्पादन करता है और अमेरिका, ब्रिटेन और इटली जैसे बाजारों को देश के कुल निर्यात का लगभग 18% हिस्सा यहीं से आता है।
नई जीएसटी दर सजावट की लागत को कम करती है, जिससे मध्यम तौर पर सजी हुई साड़ियों की कीमत में ~2-3% कम हो जाती है। इससे बुनकरों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और बिक्री में बढ़ोतरी होगी।
कच्छी हस्तशिल्प
कच्छ के हस्तशिल्प, विशेष रूप से कढ़ाई की वस्तुओं और शॉलों को, जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने से एक नया प्रोत्साहन मिला है। भुज, अंजार और होडका के नजदीकी गांवों के साथ-साथ जामनगर और राजकोट के कुछ इलाकों में स्थित, यह उद्योग मुख्य तौर पर क्षेत्रीय समुदायों की महिला कारीगरों की मदद से आगे बढ़ाया जाता है। इन परिवारों के लिए, कढ़ाई एक कला से कहीं अधिक है; यह अतिरिक्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
कच्छ की कढ़ाई, जो अपने शीशे के जटिल काम और चमकते धागों के लिए प्रसिद्ध है, भारत और विदेशों में भी इसकी अच्छी मांग है। परिधान, घरेलू साज-सज्जा और अन्य सामानों में इस्तेमाल होने वाली इस कला को जीआई टैग भी मिला हुआ है, जो इसकी जड़ों और विरासत मूल्य को दर्शाता है। इसने शहरी ग्राहकों और पर्यटकों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई है, जहां इसके उत्पाद एंपोरियम, प्रदर्शनियों और तेजी से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचे जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इन हस्तशिल्पों का निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात को किया जाता है।
जीएसटी में कटौती से हस्तनिर्मित उत्पादों की ग्राहकों की खरीदने की क्षमता में सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए, ₹3,500 की कीमत वाली एक हाथ से कढ़ाई वाली शॉल पर अब टैक्स ₹420 से घटकर ₹175 हो गया है, यानी ₹245 की बचत।
बांधनी (टाई-डाई) वस्त्र
गुजरात का प्रतिष्ठित बांधनी वस्त्र, कच्छ और जामनगर, जो इसके दो सबसे महत्वपूर्ण उत्पादन केंद्र हैं, में अपनी जड़ें जमाए हुए है। बांधनी एक श्रम-प्रधान प्रक्रिया है, जिसका अभ्यास मुख्य तौर पर क्षेत्रीय समुदायों के द्वारा किया जाता है, जहां कारीगर, विशेषकर महिलाएं, इस जटिल बांधने की प्रक्रिया में कुशल होती हैं। यह उद्योग हजारों लोगों की आजीविका का आधार है, और सौराष्ट्र क्षेत्र 5,000 से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है।
इन वस्त्रों का गहरा सांस्कृतिक महत्व है और ये गुजरात और पूरे भारत में शादी-ब्याह के साज-सामान और त्योहारों के परिधानों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। घरेलू बाजार के अलावा, जामनगर जैसे केंद्रों से 70% से अधिक उत्पादन गुजरात के बाहर अन्य भारतीय राज्यों में बेचा जाता है, जबकि इसका एक हिस्सा उन देशों के अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों तक भी पहुंचता है, जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी हैं।
5% जीएसटी स्लैब की सीमा बढ़ाकर 2500 रुपये करने से अधिकत मध्यम श्रेणी की साड़ियां और दुपट्टे ग्राहकों के लिए किफायती हो गए हैं और इनकी बिक्री की मात्रा लगातार बनी हुई है। इससे उन कारीगरों की आजीविका को सहारा मिलेगा, जो इन वस्तुओं की भारी बिक्री पर निर्भर हैं।

संखेड़ा लकड़ी के लाह के बर्तनों का फर्नीचर
छोटा उदयपुर जिले में स्थित संखेड़ा कस्बे में, पारंपरिक दस्तकारी वाले लकड़ी के लाह के बर्तन आज भी इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन को परिभाषित करते हैं। यह जीआई-टैग शिल्प उन कारीगर परिवारों के द्वारा किया जाता है, जिन्होंने इन कौशलों को पीढ़ियों से आगे बढ़ाया है। यह शिल्प संखेड़ा और उसके नजदीकी सैकड़ों कारीगर परिवारों का भरण-पोषण करता है, उन्हें प्राथमिक आजीविका प्रदान करता है, विरासत को आर्थिक संपोषण के साथ जोड़ता है।
अपने चटख रंगों और पॉलिश की हुई लाख की फिनिश के लिए प्रसिद्ध, यह पारंपरिक समारोहों और सजावटी कलाकृतियों के लिए पूरे भारत में अत्यधिक डिमांड में है। घरेलू डिमांड के अतिरिक्त, इस शिल्प ने निर्यात बाजारों में भी अपनी जगह बना ली है और अमेरिका, ब्रिटेन और मॉरीशस के खरीदारों तक पहुंच रहा है।
हाल ही में हस्तनिर्मित लकड़ी के सामान और फर्नीचर पर जीएसटी की दर 12% से घटाकर 5% करने से खरीदारों और कारीगरों, दोनों को सीधी राहत मिली है। कीमतों में लगभग 6-7% की गिरावट से हेरिटेज फर्नीचर ग्राहकों के लिए और भी किफायती हो गया है और विदेशों में इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ी है, जिससे इस अनूठी सांस्कृतिक शिल्प को संरक्षित करने में मदद मिली है।
खंभात एगेट का पत्थर शिल्प
आणंद जिले का खंभात एगेट अपने प्राचीन पत्थर शिल्प के लिए जाना जाता है, जो हजारों साल पुरानी परंपरा है। इस क्षेत्र के कई कारीगर परिवारों के लिए, यह कला आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह शिल्प कुशल श्रमिकों के एक बड़े समूह को एक साथ लाता है जो एगेट के खनन, कटाई, पॉलिशिंग और उससे बेहतरीन सजावटी और जरूरी वस्तुओं को गढ़ने में महारत रखते हैं।
भारत में, एगेट उत्पादों की बाजार में लगातार मौजूदगी बनी हुई है, खासकर पर्यटन स्थलों और आध्यात्मिक केंद्रों में, जहां इन्हें विशेष डीलरों और हस्तशिल्प दुकानों के जरिए बेचा जाता है। वैश्विक स्तर पर, खंभात अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को मोतियों, हीलिंग क्रिस्टल और सजावटी चीजों का निर्यात करता है, जिससे एगेट के एक प्रमुख वैश्विक केंद्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा और मजबूत हुई है।
खनिज नक्काशी और पत्थर की कलाकृतियों पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने से कीमतों में बड़ा असर हुआ है। सजावट की वस्तुओं की कीमत आमतौर पर ₹500 से ₹2,000 प्रति कैरेट के बीच होती है, ऐसे में लगभग 6-7% की कमी से उपभोक्ताओं को काफी लाभ होता है और कारीगरों के लिए ऑर्डर की मात्रा में भी संभावित रूप से बढ़ोतरी होती है।
गुजरात फरसाण और नमकीन जैसे स्नैक्स का दूसरा नाम है। ये स्वादिष्ट व्यंजन राजकोट, अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा जैसे शहरों में फैले कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की ओर से तैयार किए जाते हैं। यह क्षेत्र अर्ध-कुशल श्रमिकों को रोजगार देता है, महत्वपूर्ण उद्यमशीलता के मौके प्रदान करता है, और मैन्युफैक्चरिंग, पैकेजिंग और वितरण के जरिए हजारों लोगों की आजीविका को बनाए रखता है।
गुजरात का स्नैक्स बाजार लगभग ₹12,000 करोड़ का है। निर्यात अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े भारतीय प्रवासियों वाले देशों तक पहुंचता है। 5% जीएसटी दर पैकेज्ड नमकीन की कीमत को सीधे ~6-7% तक कम कर देती है। इससे एमएसएमई की बिक्री मात्रा बढ़ेगी, असंगठित क्षेत्र के खिलाड़ियों के मुकाबले उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होगा और मांग में बढ़ोतरी होगी।
केमिकल एवं सेरामिक उद्योग
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केमिकल इंडस्ट्री इनपुट
वापी, अंकलेश्वर, दहेज और वडोदरा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में केंद्रित गुजरात के रसायन उद्योग को सल्फ्यूरिक एसिड और अमोनिया जैसे प्रमुख इनपुट पर जीएसटी में कमी से काफी लाभ हुआ है। 18% से 5% तक संशोधित दर से उर्वरक, रंग और दवा जैसे डाउनस्ट्रीम उद्योगों की मैन्युफैक्चरिंग लागत में कमी आने की उम्मीद है।
एक पूंजी-प्रधान क्षेत्र होने के नाते, गुजरात की केमिकल इंडस्ट्री केमिकल इंजीनियरों, संयंत्र संचालकों और तकनीशियनों जैसे उच्च कुशल कार्यबल को रोजगार देता है। लगभग 10 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करने वाला यह क्षेत्र राज्य की औद्योगिक अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु है। भारत के कुल केमिकल प्रोडक्शन में गुजरात का योगदान लगभग 60% है, जिसमें रंग, मध्यवर्ती पदार्थ और विशिष्ट रसायन शामिल हैं, और यह सालाना हजारों करोड़ रुपये का कारोबार करता है।
रासायनिक इनपुट पर कर कम करने से अंतिम प्रोडक्ट लगभग 2-4% सस्ते होने की उम्मीद है। इससे गुजरात के केमिकल निर्माताओं की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
मोरबी सेरामिक क्लस्टर
भारत की सेरामिक राजधानी के रूप में प्रसिद्ध मोरबी जिला, 1,100 से अधिक मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के साथ, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सेरामिक उत्पादन केंद्र है। इसका वार्षिक कारोबार लगभग $6.5 बिलियन का है और भारत के सेरामिक उत्पादन में 90% से अधिक का योगदान देता है। यह उद्योग कुशल और अर्ध-कुशल मजदूरों, इंजीनियरों और तकनीशियनों को रोजगार प्रदान करता है, जिसमें 7,00,000 से अधिक लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार में लगे हुए हैं। इस उद्योग का वैश्विक असर काफी महत्वपूर्ण है, पिछले वित्त वर्ष में इसका निर्यात $2.3 बिलियन तक पहुंच गया, और यह अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के बाजारों में उत्पादों की आपूर्ति करता है।
सेरामिक टेबलवेयर पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने से उत्पाद करीब 6-7% सस्ते हो गए हैं, जिससे आतिथ्य क्षेत्र और खुदरा उपभोक्ताओं की घरेलू मांग में बढ़ोतरी हुई है। निर्माताओं के लिए, यह लागत राहत बढ़ते ईंधन खर्च का मुकाबला करने में मदद करती है, साथ ही निर्यात बाजारों में प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहन देती है।
सूरत, जिसे दुनिया के सबसे बड़े हीरा तराशने और पॉलिश करने के केंद्र के तौर पर देखा जाता है, 1.5 मिलियन से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह उद्योग मुख्य रूप से सौराष्ट्र क्षेत्र से आने वाले विशाल कार्यबल को रोजगार देता है, जो कच्चे हीरों को काटने और पॉलिश करने में विशेषज्ञता रखते हैं। सूरत का परिचालन असाधारण है और दुनिया के 90% से अधिक कच्चे हीरों की प्रोसेसिंग यहीं की जाती है।
डाइमंड इंप्रेस्ट ऑथराइजेशन (डीआईए) योजना के अंतर्गत छोटे, कटे और पॉलिश किए हुए हीरों (25 सेंट तक) के आयात को आईजीएसटी से छूट देने का निर्णय एक प्रमुख व्यापार सुविधा का तरीका है। इससे हीरा निर्यातकों, विशेष रूप से एमएसएमई के लिए वर्किंग कैपिटल की रुकावट दूर होगी और वर्गीकरण के बाद इन हीरों के पुनर्निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे सूरत की वैश्विक व्यापार केंद्र के रूप में स्थिति और मजबूत होगी।

जीएसटी दरों के सुव्यवस्थीकरण से गुजरात के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, जिससे ग्रामीण आजीविका, औद्योगिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को एक साथ जोड़ा जा सकेगा। इन उपायों से न केवल घरेलू बचत और ग्राहकों की खरीदने की क्षमता में बढ़ोतरी होगी, बल्कि आय और निर्यात में भी बढ़ोतरी होगी।
जीएसटी दरों में कमी से, विरासत शिल्प संरक्षित होंगे और बड़े उद्योगों का विस्तार होगा, जिससे गुजरात समावेशी विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए तैयार होगा।
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(Factsheet ID: 150342)
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