Economy
टेराकोटा से कपड़ा तक: जीएसटी सुधारों से मजबूत होंगे बंगाल के उद्योग
Posted On:
04 OCT 2025 15:24 PM
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जीएसटी 12 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत किए जाने से हस्तशिल्पों, हथकरघा उत्पादों तथा जूट और चमड़े के वस्त्रों की कीमतें 6 से 11 प्रतिशत तक कम होंगी।
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10 लाख से ज्यादा आजीविकाओं को लाभ। इनमें 4000 बांकुड़ा टेराकोटा हस्तशिल्पी और 5 लाख चमड़ा कामगार भी शामिल हैं।
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2500 रुपए तक के वस्त्रों पर अब 5 प्रतिशत जीएसटी लगेगा जिससे 5 लाख होजरी कामगारों को लाभ होने के साथ ही निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
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प्रसंस्करित खाद्य वस्तुओं पर 5 प्रतिशत की नई जीएसटी दर से मालदा आम और दार्जीलिंग चाय जैसे विशिष्ट कृषि उत्पादों को लाभ होगा।
पश्चिम बंगाल को लंबे समय से उसके पारंपरिक हस्तशिल्पों, हथकरघा उत्पादों और कृषि आधारित उद्योगों के लिए जाना जाता है। विष्णुपुर के टेराकोटा मंदिरों से लेकर नक्शी कांथा की महीन कसीदाकारी, पुरूलिया के रंगबिरंगे मुखौटों और विश्व भर में प्रशंसित दार्जीलिंग चाय तक, बंगाल की हस्तशिल्प और औद्योगिक विरासत लाखों लोगों को आजीविका देती है। जीएसटी सुधारों ने हस्तशिल्प और उद्यम के केंद्र के रूप में बंगाल की पहचान को मजबूती दी है। इससे यह भी सुनिश्चित हुआ है कि स्थानीय समुदाय स्वदेशी और अंतरराष्ट्रीय, दोनों तरह के बाजारों में फल-फूल सकें।
इन बदलावों से बंगाल के हस्तशिल्पियों, किसानों और छोटे उद्यमियों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा। उनके बनाए उत्पाद स्वदेशी और वैश्विक, दोनों बाजारों में ज्यादा प्रतिस्पर्धी होंगे। इससे बंगाल की हस्तशिल्प परंपरा को बढ़ावा मिलने के साथ ही राज्य के सभी जिलों की स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी मजबूती मिलेगी

नक्शी कांथा
नक्शी कांथा बंगाल की सबसे प्रतिष्ठित कसीदाकारी परंपराओं में से एक है। यह बीरभूम, मुर्शिदाबाद और नदिया जैसे ग्रामीण जिलों में व्यापक रूप से प्रचलित है। इसकी जड़ें पुरानी साड़ियों और धोतियों से रजाइयां और गद्दे तैयार करने की किफायत में हैं। जीवंत कला में विकसित हो चुकी कांथा कसीदाकारी ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता और सर्जनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती है। यह आम तौर पर स्वयं सहायता समूहों या पारिवारिक इकाइयों मे काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का महत्वपूर्ण स्रोत बन चुकी है।
जीएसटी 12 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत किए जाने के परिणामस्वरूप कीमतों में लगभग 6.25 प्रतिशत गिरावट आने से इस क्षेत्र को प्रत्यक्ष लाभ होगा। मिसाल के तौर पर, कांथा कसीदाकारी से भरी हुई 8000 रुपए की साड़ी या शॉल की कीमत 500 रुपए कम हो जाएगी। इससे हाथ से कसीदाकारी वाले असली कांथा वस्त्र ज्यादा किफायती होंगे। मशीन से कसीदाकारी वाले नकली कांथा वस्त्रों की तुलना में उनकी प्रतिस्पर्धिता में भी वृद्धि होगी।
इस परंपरागत कसीदाकारी को हाथ के महीन काम और अनूठी सुंदरता की वजह से वैश्विक बाजारों और विशेष रूप से यूरोप, अमेरिका और जापान में सराहा जाता है। इन क्षेत्रों में मेला-व्यापार और संवहनीय फैशन बाजारों में भी इसे विशेष स्थान प्राप्त है। कांथा उत्पादों की कीमतों में कमी आने से इनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धिता बढ़ेगी और बाजार में पहुंच का भी विस्तार होगा।
जूट हैंडबैग और शॉपिंग बैग

पश्चिम बंगाल भारत के जूट उद्योग का केंद्र है। इस उद्योग से 2.5 लाख से ज्यादा कामगारों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलने के साथ ही लगभग 40 लाख किसान परिवारों को भी सहायता मिलती है।
इस उद्योग का सालाना कारोबार 10000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। इसके कुल उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा पारंपरिक बोरियों का है जिन्हें सरकार खाद्यान्नों की पैकेजिंग के लिए खरीदती है। इसके अलावा फैशनेबल बैग और सजावटी सामान जैसे विविधीकृत जूट उत्पादों की मांग में भी वृद्धि हुई है।
जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत किए जाने से जूट उत्पादों की खुदरा कीमतों में लगभग 6.25 प्रतिशत की कमी आएगी। इसके परिणामस्वरूप 1000 रुपए के किसी बैग पर खरीददार को 60 रुपए से अधिक की बचत होगी। इससे प्लास्टिक और सिंथेटिक विकल्पों की तुलना में पर्यावरण के लिए अनुकूल जूट ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनेगा। स्वदेशी शहरी बाजारों में जूट उत्पादों की मांग बढ़ेगी और निर्यात को भी बल मिलेगा। विविधीकृत जूट उत्पादों को वैश्विक बाजारों में पहले से ही अच्छी कीमत मिलती रही है।
टैक्स में इस राहत से पश्चिम बंगाल के शिल्पकारों और कामगारों के लाभ, बाजार तक पहुंच और प्रतिस्पर्धिता में वृद्धि होगी। मूल्य वर्धित और उपभोक्ता उन्मुख उत्पादों पर जीएसटी में इस कटौती से आधुनिक जीवनशैली के लिए प्रासंगिक सुनहरे रेशे की पहचान पुख्ता होगी।
होजरी और सिलाए वस्त्र
होजरी और सिलेसिलाए वस्त्र पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और इसमें लगभग 5 लाख कामगार लगे हुए हैं। कोलकाता ऐतिहासिक तौर पर भारतीय होजरी उद्योग का जन्मस्थल है। मेटियाब्रुज, बारुईपुर और सिलिगुड़ी इस उद्योग के प्रमुख केंद्र हैं। इस उद्योग के लक्स, रूपा और डॉलर जैसे बड़े ब्रांड अपना उत्पादन अक्सर हजारों छोटी और गैरपंजीकृत इकाइयों के जरिए करते हैं।
5 प्रतिशत जीएसटी के लिए ऊपरी सीमा बढ़ा कर 2500 रुपए किया जाना सबसे प्रभावशाली बदलाव है। जीएसटी दर तो 5 प्रतिशत ही बरकरार रखी गई है मगर इसकी ऊपरी सीमा में बदलाव से ज्यादातर मध्यम मूल्य के सिलेसिलाए वस्त्र, अंदरूनी और बच्चों के परिधान तथा टीशर्टें कम टैक्स वाली श्रेणी में आ जाएंगी।
टैक्स में इस राहत का लाभ उपभोक्ताओं और उत्पादकों, दोनों को ही होगा। उत्पाद सस्ते हो जाने से उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी होने की संभावना है। पश्चिम बंगाल के हथकरघा और कपड़ा उत्पादों का लगभग 12 प्रतिशत हिस्सा निर्यात किया जाता है। नई दरों से निर्यात की प्रतिस्पर्धिता बढ़ेगी। जीएसटी दरों में सुधार के अंतर्गत टैक्स का बोझ घटाए जाने से पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था और विरासत के लिए महत्वपूर्ण श्रम की प्रधानता वाले क्षेत्र को मजबूती मिलेगी।
दार्जिलिंग चाय का निष्कर्षण और सत्त्व
दार्जिलिंग और कलिम्पोंग ज़िलों की कोहरे से ढकी हुई पहाड़ियों से प्राप्त दार्जिलिंग चाय, विश्व भर में प्रसिद्ध और बहुत महंगी चाय है, जिसे अक्सर "चाय का शैम्पेन" कहा जाता है। इसकी अनोखी मस्काटेल गंध इस क्षेत्र की विशिष्ट कृषि-जलवायु की वजह से आती है, इसमें ऊँचाई, ठंडा मौसम और चीनी कैमेलिया साइनेंसिस चाय की झाड़ियाँ शामिल हैं। इस उद्योग ने ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को आकार दिया है। यह उद्योग बागान मॉडल के तहत संचालित होता है और लाखों लोगों को रोजगार देता है, जिसमें अधिकांश महिलाएँ शामिल हैं। ये श्रमिक बागानों में रहते हैं और चाय की खेती उनकी आजीविका का मुख्य आधार है।
सामान्य चाय पर जीएसटी 5% ही रखा गया है, चाय के अर्क, सत्त्व और कन्संट्रेट पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% कर दिया गया है। इससे लागत में लगभग 11% की कमी आने की उम्मीद है। परिणामस्वरूप, इंस्टेंट चाय, रेडी-टू-ड्रिंक पेय पदार्थ और खाद्य एवं सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले अर्क जैसे मूल्यवर्धित उत्पाद काफी सस्ते हो जाएँगे।
इस कर कटौती से दार्जिलिंग चाय के निर्यात को भी सीधा लाभ होगा। यह जीआई टैग प्राप्त करने वाला भारत का पहला उत्पाद था। यह एक निर्यात-उन्मुख उत्पाद है और यह जापान, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में बड़े बाज़ारों में बिकता है। इन देशों में प्रसंस्कृत चाय उत्पादों की माँग लगातार बढ़ रही है। मूल्य-वर्धित क्षेत्रों में विविधीकरण के जरिये यह चाय पारंपरिक पत्ती वाली चाय की बिक्री पर अत्यधिक निर्भरता को कम करती है और राजस्व के नए स्रोत खोलती है।
कुल मिलाकर, जीएसटी में कटौती से दार्जिलिंग चाय उद्योग की आर्थिक व्यवहार्यता मजबूत होगी और यह सुनिश्चित होगा कि यह परम्परागत उत्पाद घरेलू बाजारों और वैश्विक प्रीमियम पेय उद्योग दोनों जगह फलता-फूलता रहे।
मालदा आम प्रसंस्करण उद्योग
बंगाल की "आम की राजधानी" कहे जाने वाले मालदा ज़िले में आम की 200 से ज़्यादा किस्में उगाई जाती हैं। इसके प्रसिद्ध आम, फ़ज़ली, लक्ष्मण भोग और खिरसापति (हिमसागर) को जीआई टैग दिया गया है, यह इस क्षेत्र की पहचान का प्रतीक हैं। आम की खेती मालदा की अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु है क्योंकि लगभग 4.5 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्योग से जुड़े हुए हैं जिनमें लगभग 80,000 उत्पादक हैं।
मालदा में औसतन सालाना लगभग 3.5 लाख मीट्रिक टन आम की पैदावार होती है, जिसके एक बड़े हिस्से को गूदे, जूस, जैम और अचार बनाने के लिए प्रसंसकृत किया जाता है। इन उत्पादों की घरेलू और वैश्विक मांग बहुत अधिक है और 2023 में मालदा से आम का निर्यात 80 करोड़ रुपये से ज़्यादा तक पहुँच गया था। जीआई-टैग वाली किस्मों का निर्यात मध्य पूर्व, ब्रिटेन, यूरोप और हाल ही में स्वीडन और न्यूज़ीलैंड जैसे नए बाज़ारों में किया जा रहा है।
प्रसंस्कृत आम उत्पादों जैसे जूस और जैम पर जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% करने से उनकी खुदरा कीमत लगभग 6.25% कम हो जाएँगी। इससे प्रसंस्कृत उत्पाद घरेलू उपभोक्ताओं के लिए ज़्यादा किफ़ायती हो जाएँगे और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। माँग में वृद्धि और उनके उत्पादों के लिए एक सुनिश्चित बाज़ार के साथ, किसानों की आय भी बढ़ेगी।

बांकुड़ा पंचमुरा टेराकोटा शिल्प
बांकुड़ा जिले में, विशेष रूप से पंचमुरा गाँव और बिष्णुपुर क्षेत्र में, टेराकोटा शिल्प क्षेत्रीय समुदायों का एक वंशानुगत व्यवसाय है। प्रसिद्ध बांकुड़ा पंचमुरा टेराकोटा आकृतियाँ, विशेष रूप से शैलीबद्ध बांकुरा घोड़ा, जो एक प्रसिद्ध टेराकोटा कलाकृति है, की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में 17वीं शताब्दी में बिष्णुपुर के मल्ल शासकों के संरक्षण में हुई थी। आज यह शिल्प 4,000 से अधिक कारीगरों द्वारा बनाया जाता है। यह अधिकांशतया पारिवारिक उद्यम हैं, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं। इनकी बिक्री ज्यादातर स्थानीय बाज़ार और कोलकाता में सरकारी प्रदर्शनियों और हस्तशिल्प मेलों में होती है।
बांकुड़ा के टेराकोटा हस्तशिल्प के लिए जीएसटी में 12% से 5% की नई कटौती इस उद्योग के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इससे खुदरा कीमतों में लगभग 6.25% की कमी आएगी। उदाहरण के लिए, 5,000 रूपये में बिकने वाले एक बड़े सजावटी टेराकोटा घोड़े पर उपभोक्ता को लगभग 312 रुपये कर की बचत होगी। यह बचत माँग और बिक्री को बढ़ावा देगी, जिससे इस उद्योग से जुड़े परिवारों की आजीविका में सुधार होगा।
मदुरकाठी चटाई और विविध उत्पाद
पूर्व और पश्चिम मेदिनीपुर ज़िलों में, हज़ारों परिवार मदुरकाठी चटाई और अन्य उत्पाद बनाते हैं। पश्चिम मेदिनीपुर का सबांग इलाका इस शिल्प का सबसे बड़ा केंद्र है, जहाँ महिलाएँ बुनाई की प्रक्रिया में अग्रणीय भूमिका में हैं। कई परिवारों के लिए चटाई बुनना सिर्फ़ एक परंपरा ही नहीं है उनकी आय का मुख्य स्रोत भी है यहाँ 77% से ज़्यादा कारीगर इसे अपनी आय का मुख्य जरिया मानते हैं। लगभग 1 लाख किसान परिवार चटाई बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली घास की खेती और बुनाई का काम करते हैं, जबकि मेदिनीपुर के 11 ब्लॉकों के 4,432 कारीगर आधिकारिक तौर पर मदुर बुनकर के रूप में पंजीकृत हैं।
बंगाल की आर्द्र जलवायु में, मदुर चटाईयाँ घरों में आमतौर से इस्तेमाल की जाती हैं, जबकि बैग, टेबल रनर, फोल्डर और कोस्टर जैसे मूल्यवर्धित उत्पाद देश में और विदेशों में काफी लोकप्रय हैं।
जीएसटी दर में 12% से 5% की कटौती से मदुरकाठी चटाईयाँ और विविध उत्पाद लगभग 6.25% सस्ते हो जाएँगे। इससे कारीगरों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और उपभोक्ता में इनकी माँग बढ़ेगी।
पुरुलिया छाऊ मुखौटे
पुरुलिया जिले के चरिदा गाँव के जीवंत छाऊ नृत्य मुखौटे स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं। चरिदा के 310 परिवारों के लगभग 500 लोग इस शिल्प से सीधे जुड़े हुए हैं और चरिदा के 85% कारीगर मुख्य आजीविका के लिए इसी पर निर्भर हैं। ये मुखौटे पुरुलिया छाऊ नृत्य परंपरा का केंद्र हैं और सजावटी कला के रूप में भी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापक रूप से बेचे जाते हैं।
हाल ही में इस शिल्प पर जीएसटी दर में 12% से 5% की कटौती से इसकी खरीद और प्रतिस्पर्धात्मकता पर सीधा असर पड़ेगा। इससे कीमतों में 6.25% की गिरावट आई है, जो यहाँ की सांस्कृतिक और व्यावसायिक दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, 4,000 रुपये की कीमत वाले मुखौटे पर अब खरीदार लगभग 250 रुपये बचा सकते हैं। नृत्य मंडलियों के लिए इन सुन्दर मुखोटों को खरीदना और भी आसान हो गया है। कम लागत से पारंपरिक हस्तशिल्प वस्तुओं की पहुँच और माँग में भी सुधार होता है। ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस और जापान जैसे निर्यात बाज़ारों में ये मुखौटे प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किए जाते हैं। जीएसटी में कटौती से कारीगरों का मुनाफा और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
इस प्रकार, कर राहत से न केवल 150 वर्ष पुरानी परंपरा जीवित रहेगी, बल्कि चरिदा के लोगों की आजीविका भी सुरक्षित होगी जिससे सांस्कृतिक संरक्षण और ग्रामीण आय दोनों को बल मिलेगा।
कुशमंडी के लकड़ी के मुखौटे
कुशमंडी के लकड़ी के मुखौटे दक्षिण दिनाजपुर के कुशमंडी मंडल, खासकर महिसबाथान गाँव का एक सदियों पुराना शिल्प है। मुख्य रूप से क्षेत्रीय समुदायों से जुड़ी यह कला गोमीरा नृत्य से जुड़ी हुई है। यहाँ कारीगर मुखौटा बनाने की प्रक्रिया को भक्ति का कार्य मानते हैं। लगभग 250-300 कारीगर इन लकड़ी के मुखौटों को बनाने में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। यह शिल्प इन परिवारों के लिए अतिरिक्त आय और सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
जीएसटी दर को 12% से घटाकर 5% करने से इस समुदाय को वास्तव में राहत मिली है। इस कटौती से कीमतों में लगभग 6.25% की कमी आई है यानी 5,000 रूपये वाले मुखोटे पर 312 रूपये कर की बचत होगी। इससे कारीगरों को मेलों और ऑनलाइन पोर्टलों के माध्यम से सीधी बिक्री से ज़्यादा लाभ मिल सकेगा।
मुनाफे और किफ़ायत में बढ़ोतरी के साथ, जीएसटी की दरों में किया गया सुधार कारीगरों की कला को जीवित रखेगा, जिससे 300 साल पुरानी लकड़ी के मुखौटे की पारम्परिक कला सांस्कृतिक रूप से जीवंत और आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनी रहेगी।
शोलापीठ शिल्प
शोलापीठ शिल्प बंगाल की सबसे नाजुक और पवित्र पारम्परिक कलाओं में से एक है, जिसे बर्धमान, मुर्शिदाबाद, बीरभूम, नादिया, हुगली, मालदा और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों के लगभग 5,000 कारीगर जिन्दा रखे हुए हैं। परंपरागत रूप से, शोलापीठ की मालाएँ देवताओं और कुलीनों को चढ़ाई जाती थीं। आज, यह बंगाल के सांस्कृतिक अनुष्ठानों, खासकर दुर्गा पूजा और शादियों का अभिन्न अंग बन गया है। पश्चिम बंगाल में लगभग 5,000 कारीगर इस शिल्पकला में लगे हुए हैं और ये कारीगर महीनों तक इन महीन कलाकृतियाँ को बनाने में लगे रहते हैं।
जीएसटी दर को 12% से घटाकर 5% करने से इस श्रम-प्रधान शिल्प की प्रतिस्पर्धिता सीधे तौर पर बढ़ गई है। संशोधित कर दरों से लागत में 6.25% की कमी आई है, यानी 2,500 रूपये की कीमत वाला एक सजावटी सामान अब लगभग 156 रूपये सस्ता हो गया है। लागत में यह राहत ऐसे बाज़ार में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है जहाँ कारीगर कुशल श्रमिकों पर निर्भर हैं। कीमतों में कमी इन पर्यावरण-अनुकूल और पारंपरिक वस्तुओं को प्लास्टिक या थर्मोकोल से बनी सजावट के मुक़ाबले ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनाती है।
घरेलू और निर्यात दोनों बाज़ारों में, कर कटौती से माँग बढ़ने और अधिक लाभ की उम्मीद है। ये सुधार लागत कम होने और बिक्री बढ़ने से इस शिल्प को बनाए रखने में मदद करेंगे। इसे "बंगाल का हर्बल हाथीदांत" कहा जाता है।
शांतिनिकेतन का चमड़े का सामान
बीरभूम ज़िले के शांतिनिकेतन-बोलपुर क्षेत्र और सुरुल व बल्लवपुर जैसे आस-पास के गाँवों में स्थित शांतिनिकेतन चमड़ा उत्पाद समूह, लंबे समय से अपने हाथ से उकेरे गए बाटिक और चमड़े पर एप्लिक डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध है। विश्वभारती विश्वविद्यालय के ग्रामीण विकास कार्यक्रमों से प्रेरित, यह शिल्प सीमित वैकल्पिक रोज़गार वाले क्षेत्रों में आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह उद्योग छोटे एमएसएमई का एक वितरित मॉडल है जो सैकड़ों कारीगरों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। कोलकाता और उसके आसपास के व्यापक चमड़ा उत्पाद उद्योग में लगभग 5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
इन वस्तुओं का घरेलू बाज़ार काफ़ी जीवंत है, जहाँ ये उत्पाद बुटीक, एम्पोरिया और जीआई टैग और जीआईहेरिटेज जैसे ऑनलाइन जीआई-केंद्रित प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए बेचे जाते हैं। छोटे उद्यमों का वार्षिक कारोबार 50 लाख रूपये से 2.5 करोड़ रूपये के बीच है जो इस क्षेत्र के आर्थिक महत्व को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इस चमड़े के काम की मांग जापान, अमेरिका और यूरोप में अधिक है, यहाँ के खरीदार बड़े पैमाने पर उत्पादित विकल्पों की तुलना में उत्पाद की प्रमाणिकता को महत्व देते हैं।
जीएसटी दर को 12% से घटाकर 5% करने से कीमतों में लगभग 6.25% की प्रत्यक्ष कमी आई है। उदाहरण के लिए, 2,000 रूपये की कीमत वाले एक हैंडबैग की खरीद पर अब उपभोक्ता को 125 रूपये की बचत होगी। कारीगरों द्वारा संचालित एमएसएमई के लिए यह कर राहत सिंथेटिक वस्तुओं की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी होती है। यह राहत उनका मुनाफा बढ़ाएगी और डिज़ाइन, गुणवत्ता और मार्केटिंग में पुनर्निवेश के अवसर प्रदान करेगी। इन सुधारों से उपभोक्ताओं के लिए कीमत कम होगी और उत्पादकों का लाभ के बढ़ने से ग्रामीण आजीविका मजबूत होगी और साथ ही वैश्विक बाजारों में शांतिनिकेतन चमड़ा शिल्प की अनूठी पहचान को बनाये रखने में मदद भी मिलेगी।

पश्चिम बंगाल के पारंपरिक उद्योगों की समृद्ध विरासत को नई जीएसटी व्यवस्था से काफ़ी फ़ायदा होगा। शांतिनिकेतन के चमड़े से लेकर मालदा के आम उत्पादों तक, सरकार का लक्ष्य नई कर दरों से उपभोक्ताओं के लिए सस्ते उत्पाद उपलब्ध कराना और कारीगरों का मुनाफ़ा बढ़ाना है। इससे त्योहारों के मौसम में और उसके बाद भी बिक्री बढ़ेगी, रोज़गार सुरक्षित रहेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये बदलाव ग्रामीण परिवारों को जीवनदान देंगे, सदियों पुरानी परंपराओं को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे और उनके उत्पाद आधुनिक बाज़ारों तक पहुंचाएंगे।
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