Industries
सुधारों की कड़ी
Posted On:
17 SEP 2025 15:45 PM
वस्त्र, परिधान एवं लॉजिस्टिक में जीएसटी सुधार
सितंबर 17, 2025
- ₹2,500 तक के रेडीमेड कपड़ों पर जीएसटी अब 5% हो गया है, जिससे कपड़े ज़्यादा किफायती हुए हैं और घरेलू मांग में बढ़ोतरी हुई है।
- मानवनिर्मित फ़ाइबर और धागों पर जीएसटी 12%/18% से घटाकर 5% कर दिया गया है, जिससे इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर ख़त्म हो गया है और लघु और मध्यम उद्यमों को मज़बूती मिली है।
- कालीन और अन्य कपड़े के फ़्लोर कवरिंग पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ी है।
- व्यावसायिक माल वाहनों पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया गया है, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत कम हुई है और निर्यात को मदद मिली है।
परिचय
माल और सेवा कर (जीएसटी) का हाल में किया गया सुसंगतिकरण एक महत्वपूर्ण सुधार है, जिसका उद्देश्य ढाँचागत विसंगतियों को दूर करना, लागत को कम करना और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा देना है। ये बदलाव विशेष रूप से कपड़ा और लॉजिस्टिक्स उद्योगों में प्रभावशाली हैं, ये दोनों ही घरेलू विकास, रोजगार और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
वैल्यू चेन में कर दरों को एक समान करके जीएसटी सुधार उपभोक्ताओं के लिए सामान को किफायती बनाता है, श्रम-गहन क्षेत्रों में रोजगार को बनाए रखता है और भारत की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता को बढ़ाता है। कपड़ा क्षेत्र में, यह सुसंगतिकरण फाइबर से लेकर परिधान तक की पूरी वैल्यू चेन को मजबूत करता है। यह विसंगतियों को कम करके, परिधान को और अधिक किफायती बनाकर, खुदरा मांग को पुनर्जीवित करके और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता का समर्थन करके यह संभव होता है।
इन सुधारों से दूरगामी लाभ मिलने की उम्मीद है, जिससे लंबे समय से चली आ रही विसंगतियाँ दूर होंगी और साथ ही "मेक इन इंडिया" पहल के लिए एक मजबूत नींव बनेगी, जिससे देश एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित होगा।
भारतीय वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार की पहल
भारत सरकार भारतीय वस्त्रों को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही है। उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने सितंबर 2021 में ₹10,683 करोड़ के परिव्यय के साथ वस्त्रों के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को मंज़ूरी दी है। इस योजना का लक्ष्य एमएमएफ कपड़े, एमएमएफ परिधान और तकनीकी वस्त्र हैं, ताकि बड़े पैमाने पर विनिर्माण और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिल सके। सरकार राज्य एवं केंद्रीय करों व लेवी में छूट (आरओएससीटीएल) और निर्यात योग्य उत्पादों पर ड्यूटी एवं करों में छूट (आरओडीटीईपी) जैसी योजनाओं के जरिए निर्यात को बढ़ावा दे रही है। ये योजनाएं निर्यात (विशेषकर परिधान, वस्त्र, अन्य तैयार वस्तुएं) पर लगने वाले राज्य व केंद्रीय करों एवं शुल्क की छूट या वापसी प्रदान करती हैं। सरकार पीएम मित्र टेक्सटाइल पार्क के जरिए बुनियादी ढाँचे में सहयोग करती है और नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन और समर्थ योजना के माध्यम से नवाचार व कौशल उन्नयन को बढ़ावा देती है।
रेडीमेड कपड़े एवं परिधान
₹2,500 प्रति पीस पर 5% जीएसटी (पहले यह सीमा ₹1,000 थी)
बढ़ी हुई सीमा का प्रभाव:
- मध्यम और निम्न-आय वाले परिवारों के लिए किफायती कपड़े – निचले टैक्स स्लैब का विस्तार करने से आम खरीदारों के लिए लागत कम होती है।
- घरेलू मांग को प्रोत्साहन – उपभोग में वृद्धि की उम्मीद है, जिसका छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
- श्रम-प्रधान विकास – मांग बढ़ने से कपड़ों के विनिर्माण में रोजगार के अधिक अवसर पैदा होंगे, खासकर महिलाओं के लिए।
- 'मेक इन इंडिया' को समर्थन – कम टैक्स से घरेलू ब्रांडों और निर्यातकों को कम और मध्यम कीमत वाले सेगमेंट में सस्ते आयात के खिलाफ प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलती है।
मानव निर्मित फाइबर एवं धागे
मानव मिर्मित फाइबर पर जीएसटी 18% से घटाकर 5%; मानव निर्मित धागों पर 12% से कम कर अब 5%
घटी हुई जीएसटी दरों का प्रभाव:
- इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (आईडीएस) का समाधान – यह फाइबर, यार्न और कपड़े की दरों को संरेखित करता है, जिससे उन पुरानी विसंगतियों को दूर किया जाता है जो विनिर्माताओं के लिए वर्किंग कैपिटल का बोझ बढ़ाती थीं।
- लघु और मध्यम उद्यमों को मजबूती – एमएमएफ के कई उत्पादक छोटे और मध्यम इकाइयाँ हैं; कम जीएसटी उनके नकदी प्रवाह को बेहतर बनाता है और लागत का बोझ कम करता है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता – भारतीय सिंथेटिक वस्त्र और अधिक मूल्य-प्रतिस्पर्धी बनते हैं, जिससे आयात पर निर्भरता कम होती है और निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- टेक्सटाइल हब बनने की महत्वाकांक्षा को समर्थन – यह भारत को अंतरराष्ट्रीय एमएमएफ आधारित परिधान बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है, जिससे भारत के वैश्विक कपड़ा हब बनने की महत्वाकांक्षा को बल मिलता है।
कालीन एवं अन्य कपड़ों के फ्लोर कवरिंग्स
जीएसटी 12% से घटाकर 5%
यह कटौती घरेलू बाज़ारों में अफोर्डबिलिटी बढ़ाती है और भारतीय कालीनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है, जिससे एक ऐसे पारंपरिक क्षेत्र को बढ़ावा मिलता है जिसमें निर्यात की मजबूत क्षमता है।
लॉजिस्टिक
व्यावसायिक माल वाहनों (जैसे- ट्रक, डिलीवरी वैन, आदि) पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया गया
जीएसटी सुधार परिवहन क्षेत्र तक भी विस्तारित हैं, जो लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ट्रक और डिलीवरी वैन, जो भारत के लगभग 65-70% माल का परिवहन करते हैं, को कर सुसंगतिकरण से बहुत लाभ हुआ है।
सस्ते लॉजिस्टिक्स से कपड़ा उद्योग को प्रमुख लाभ:
- सस्ता माल ढुलाई आवागमन – प्रति टन-किमी लागत में कमी से कपड़ा, एफएमसीजी और ई-कॉमर्स डिलीवरी के परिवहन को लाभ मिलता है।
- मुद्रास्फीति नियंत्रण – लॉजिस्टिक्स लागत कम होने का व्यापक प्रभाव कुल मूल्य दबावों को कम करने में मदद करता है।
- निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता – कम लॉजिस्टिक्स लागत भारतीय वस्त्रों को विदेशों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है।
निष्कर्ष
वस्त्र और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में जीएसटी का सुसंगतिकरण भारत के विनिर्माण आधार को मजबूत करने, सामानों को अधिक किफायती बनाने और निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। ढाँचागत विसंगतियों को कम करके और लागत के दबाव को आसान बनाकर, ये सुधार सीधे तौर पर उपभोक्ताओं, छोटे व्यवसायों और निर्यातकों को लाभ पहुँचाते हैं। ये लचीली सप्लाई चेन और एक आगे बढ़ते वस्त्र क्षेत्र द्वारा संचालित विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी भारत की सोच को मजबूत करते हैं।
संदर्भ
वस्त्र मंत्रालय
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2152545
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2146758
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