राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग(एनएचआरसी), भारत ने मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में ‘दैनिक आवश्यकताओं की सुनिश्चितता: सार्वजनिक सेवाएं और सभी के लिए गरिमा’ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया
एनएचआरसी अध्यक्ष, न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियन ने कहा कि सिविल सेवकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कल्याणकारी योजनाओं के लाभ आम आदमी तक पहुंचें
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने वर्ष 2014 से पूर्व की कानून-केंद्रित अधिकार आधारित प्रणाली की तुलना वर्ष 2014 के बाद अपनाए गए संतृप्ति मॉडल से की, जो अंतिम छोर तक की खाइयों को पाटने पर केंद्रित है
प्रविष्टि तिथि:
10 DEC 2025 8:54PM by PIB Delhi
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने आज नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में ‘दैनिक आवश्यकताओं की सुनिश्चितता: सार्वजनिक सेवाएं और सभी के लिए गरिमा’ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए, एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन ने कहा कि आयोग ने इस वर्ष के मानवाधिकार दिवस के विषय को भारत में सार्वजनिक सेवाओं और नागरिकों की गरिमा के नजरिए से देखा है। हमने सार्वजनिक सेवाओं और व्यक्ति के सम्मान को ‘दैनिक आवश्यकताएं’ के तौर पर इसलिए चुना है क्योंकि हमारा देश एक कल्याणकारी राज्य है, जैसा कि राज्य के नीति निदेशक तत्वों से साफ तौर पर पता चलता है।
उन्होंने कहा कि नीतियां आम-लोगों के कल्याण के लिए जन-प्रतिनिधियों द्वारा बनाई जाती हैं, वहीं उनका क्रियान्वयन संघ या राज्य की सिविल सेवाओं में कार्यरत अधिकारियों द्वारा किया जाता है, जिन्हें लोक सेवक कहा जाता है। इसलिए, चुनी हुई सरकार को लोगों की भलाई के लिए नीतियां बनाने में सक्षम बनाना और सहायता करना तथा यह सुनिश्चित करना कि उन नीतियों का लाभ आम आदमी तक पहुंचे, यह लोक सेवकों का काम है। रामायण का उद्धरण देते हुए उन्होंने किसी भी कार्य की शुरूआत के लिए तीन आदर्शों पर जोर दिया— ऐसा कार्य जो न्यूनतम लागत में, बिना विलंब के, अधिकतम लाभ प्रदान करे।
मुख्य वक्तव्य देते हुए, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा ने मानवाधिकार दिवस को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्पुष्टि बताया। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 25 का उल्लेख करते हुए, उन्होंने पिछले दशक में आवास, पोषण, वस्त्र, चिकित्सा देखभाल और आजीविका सुरक्षा के माध्यम से जीवन स्तर को बेहतर बनाने में भारत की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने UDHR में लैंगिक-संवेदनशील भाषा सुनिश्चित करने में हंसा मेहता के योगदान को याद किया और डिजिटल परिवर्तन एवं पर्यावरणीय चेतना से आकार लेने वाले नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों से सामाजिक-आर्थिक, पारिस्थितिक और सांस्कृतिक अधिकारों की ओर भारत के विकास पर ध्यान दिया।
डॉ. मिश्रा ने वर्ष 2014 से पूर्व अपनाई गई कानून-केंद्रित अधिकार दृष्टि की तुलना वर्ष 2014 के बाद के संतृप्ति (सैचुरेशन) मॉडल से की, जिसका केंद्र अंतिम छोर तक की खाइयों को पाटना है ताकि प्रत्येक अधिकार और लाभ हरेक नागरिक तक पहुंच सके। उन्होंने प्रमुख उपलब्धियों के बारे में विस्तार से चर्चा की, जिनमें पीएमएवाई के तहत 4 करोड़ पक्के घर, जल जीवन मिशन के तहत 12 करोड़ नल-जल कनेक्शन, स्वच्छ भारत के तहत स्वच्छता कवरेज, सौभाग्य योजना के माध्यम से विद्युतीकरण, उज्ज्वला योजना के तहत स्वच्छ रसोई गैस, 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न, आयुष्मान भारत के माध्यम से 42 करोड़ नागरिकों को लाभ, और गिग व प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों सहित सामाजिक सुरक्षा में विस्तार और सुधार शामिल हैं। उन्होंने बहुआयामी गरीबी में तेजी से गिरावट, आकांक्षात्मक जिलों की सफलता, कोविड-19 के दौरान की गई प्रतिक्रिया, तथा जारी विकसित भारत संकल्प यात्रा पर भी प्रकाश डाला।
एनएचआरसी से उभरती चुनौतियों, जलवायु तथा पर्यावरणीय अधिकारों, एआई और प्रौद्योगिकी शासन, गिग अर्थव्यवस्था से जुड़े सुरक्षा उपाय तथा डिजिटल निगरानी की जांच करने का आह्वान करते हुए, उन्होंने कहा कि सुशासन अपने आप में एक मानवाधिकार है, जो सहानुभूति और गरिमा में निहित है।
इससे पहले, अपने संबोधन में एनएचआरसी के महासचिव श्री भरत लाल ने कहा कि आयोग विभिन्न प्रकार के हस्तक्षेपों के माध्यम से आवश्यक सेवाओं तक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम कर रहा है। इस वर्ष के मानवाधिकार दिवस का विषय इस बात को रेखांकित करता है कि मानवीय गरिमा हर दिन लोगों को बुनियादी सुविधाओं और जरूरी सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच के अनुभव से तय होती है। ये प्रशासनिक सुविधाएं नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार हैं। उन्होंने कॉन्फ्रेंस के दो थीम वाले सेशन के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी, जिनमें 'सभी के लिए बुनियादी सुविधाएं: एक मानवाधिकार दृष्टिकोण' और 'सभी के लिए सार्वजनिक सेवाएं और गरिमा सुनिश्चित करना' शामिल है।
एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन ने 'सभी के लिए बुनियादी सुविधाएं: एक मानवाधिकार दृष्टिकोण' पर आयोजित प्रथम सत्र की अध्यक्षता की। पैनलिस्ट के रूप में बोलते हुए, एनएचआरसी की सदस्य श्रीमती विजया भारती सयानी ने कहा कि सेवा वितरण, निगरानी और शिकायत निवारण के स्पष्ट मानक होने चाहिए। उन्होंने भ्रष्टाचार और लापरवाही के प्रति शून्य सहनशीलता पर जोर देते हुए कहा कि सेवाएं उन लोगों तक अवश्य पहुंचे, जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी जीवन के अलग-अलग पहलुओं में मानवाधिकारों से जुड़ी कई तरह की चिंताओं को दूर कर रहा है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आश्रय गृह, बुजुर्गों की देखभाल वगैरह शामिल हैं।
नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी. के. पॉल ने पैनलिस्ट के रूप में बोलते हुए WHO की स्वास्थ्य की परिभाषा पर जोर दिया, जिसमें स्वास्थ्य को पूरी तरह से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण बताया गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि संविधान में सीधे तौर पर स्वास्थ्य के अधिकार का स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 21 के अंतर्गत समाहित किया है। उन्होंने लगातार बनी हुई असमानताओं की ओर ध्यान दिलाया, जिसमें गरीब समुदायों को बीमारियों का ज्यादा बोझ उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य जैविक, सामाजिक, पर्यावरणीय और वाणिज्यिक निर्धारकों जैसे तंबाकू और अस्वस्थ भोजन के विपणन से प्रभावित होता है।
उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से भारत की प्रगति को रेखांकित किया, जिसके तहत 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण संभव हुआ। जल जीवन मिशन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में नल से जल की पहुंच 5-वर्षों में 17% से बढ़कर 83% हो गई है। आयुष्मान भारत–पीएम-जेएवाई के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जो अब लगभग 60 करोड़ लोगों को कवर करता है और प्रतिदिन 70,000 से अधिक अस्पताल में भर्ती दर्ज होती हैं, जिससे जेब से होने वाला स्वास्थ्य खर्च घटकर लगभग 39% रह गया है। 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर अब विस्तारित सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, जिनमें गैर-संचारी रोग (NCDs) और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं। डॉ. पॉल ने सुदृढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, NCD नियंत्रण और एक नए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को भी प्रमुख उपलब्धियों के रूप में रेखांकित किया।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की सदस्य डॉ. शामिका रवि ने उन कई क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जहां बेहतर पहुंच ने रोज़मर्रा की ज़िंदगी की गरिमा को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि भारत अब सभी के लिए पर्याप्त खाद्यान्न का उत्पादन करता है। उन्होंने स्पष्ट तैर पर उल्लेख किया कि चुनौती अब कमी की नहीं, बल्कि पोषण की है। सबसे गरीब परिवारों में खाने-पीने के तरीकों में ज़्यादा विविधता और सेहतमंद खाने की तरफ एक अच्छा बदलाव दिखाई दे रहा है। 120 मिलियन से अधिक शौचालयों के निर्माण ने न सिर्फ सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ किया है, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण सुधार किया है। डॉ. रवि ने बताया कि पिछले दशक में 302 मिलियन लोग मध्यम गरीबी से बाहर निकले हैं, और यह प्रगति सभी प्रमुख सामाजिक समूहों में देखी गई है।
‘सार्वजनिक सेवाओं और सभी के लिए गरिमा सुनिश्चित करना’ विषय पर आयोजित दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए एनएचआरसी, के सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ.) विद्युत रंजन सरंगी ने कहा कि भोजन, वस्त्र और आवास बुनियादी ज़रूरतें पूरी करते हैं, लेकिन सच्चे राष्ट्र निर्माण के लिए न्यूनतम अधिकारों से आगे बढ़कर हरेक व्यक्ति के लिए सम्मान, सशक्तिकरण और सार्थक कल्याण सुनिश्चित करने की की आवश्यकता है। उन्होंने एक मजबूत और अधिक मानवीय भारत के निर्माण के लिए आत्मचिंतन और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव श्री सुधांशु पंत ने शिक्षा और उद्यमिता के माध्यम से विभिन्न वर्गों को सम्मान का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता के साथ कौशल विकास के अवसरों को रेखांकित किया। उन्होंने स्वच्छता उद्यमी योजना, वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायक उपकरण, और आधार-सक्षम सार्वजनिक सेवा वितरण के माध्यम से सम्मानजनक डिजिटल पहुंच जैसी प्रभावी पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब शिकायत निवारण, बैंकिंग, टिकटिंग और आवश्यक सेवाएं लोगों की उंगलियों पर उपलब्ध होती हैं, तो सम्मान मज़बूत होता है।
यूआईडीएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री भूवनेश कुमार ने विभिन्न सेवाओं के लिए प्रमाणीकरण में आधार की उपयोगिता को रेखांकित किया। उन्होंने सामान्य भ्रमों को दूर करते हुए स्पष्ट किया कि आधार एक विशिष्ट पहचान संख्या है—यह नागरिकता, निवास या जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है। 1.42 अरब आधार नंबर जारी किए जा चुके हैं और अरबों प्रमाणीकरण किए गए हैं, जिससे पहचान धोखाधड़ी में उल्लेखनीय कमी आई है और जन धन, आधार और मोबाइल (JAM) त्रिमूर्ति के माध्यम से लाभों के वितरण को सुदृढ़ किया गया है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने में स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार के महत्व पर जोर दिया। प्रगति का उल्लेख करते हुए, उन्होंने स्वच्छता, ऊर्जा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अधिक नवोन्मेषी, व्यापक और संस्थागत समर्थन वाली समाधान प्रणालियां विकसित करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने आग्रह किया कि सार्वजनिक संस्थानों को इस प्रकार मज़बूत किया जाए कि अधिकार सिर्फ नीतिगत आकांक्षाएं न बनें, बल्कि वास्तविक जीवन में अनुभव किए जाने वाले अधिकार हों।
एनएचआरसी, की संयुक्त सचिव सैडिंगपूई चहकचुआक ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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पीके/केसी/पीकेपी
(रिलीज़ आईडी: 2202052)
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