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डॉ. जितेंद्र सिंह ने मॉरीशस के नौकरशाहों को संबोधित किया, 'ब्लू इकोनॉमी' में साझा हिस्सेदारी पर जोर दिया


भारत-मॉरीशस साझेदारी के नए अवसर के रूप में महासागर प्रौद्योगिकी, मत्स्य पालन और विलवणीकरण पर जोर दिया

भारत ने एनसीजीजी कार्यक्रम के तहत लोक प्रशासन को मजबूत करने के लिए वरिष्ठ मॉरीशस नौकरशाहों को प्रशिक्षित किया

भारत और मॉरीशस ने बुनियादी ढांचे, डिजिटल शासन और क्षमता निर्माण पहल के माध्यम से संबंधों को गहरा किया

Posted On: 12 NOV 2025 5:17PM by PIB Delhi

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज यहां मॉरीशस के नौकरशाहों के एक समूह को संबोधित करते हुए 'ब्लू इकोनॉमी' में दोनों देशों की साझा हिस्सेदारी पर जोर दिया।

श्री सिंह ने मत्स्य पालन, महासागर प्रौद्योगिकी और विलवणीकरण जैसे उभरते क्षेत्रों में भारत और मॉरीशस के बीच गहन सहयोग का आह्वान किया और इन्हें दोनों समुद्री राष्ट्रों के लिए "स्थायी विकास और पारस्परिक समृद्धि के नए मोर्चों" के रूप में वर्णित किया।

नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (एनसीजीजी) में मॉरीशस के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि समुद्री संसाधन प्रबंधन और महासागर आधारित प्रौद्योगिकियों में भारत का विशाल अनुभव मॉरीशस के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

मॉरीशस के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के लिए दूसरे क्षमता निर्माण कार्यक्रम में भाग ले रहे वहां के 14 मंत्रालयों के 17 वरिष्ठ अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने डीप ओशन मिशन जैसी पहलों के माध्यम से समुद्री संसाधनों के दोहन में भारत की सफलता के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि समुद्री जल को पीने योग्य बनाने में भारत की विशेषज्ञता ने लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों का पहले ही कायाकल्प कर दिया है और यह मॉरीशस के लिए व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत कर सकता है, जो समुद्र से घिरा होने के बावजूद पेयजल की कमी की समस्या से जूझ रहा है।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बातचीत के दौरान कहा, "हर जगह पानी ही पानी है, और पीने लायक भी नहीं है—इस विरोधाभास को तकनीक के ज़रिए दूर किया जा सकता है। हमारे विलवणीकरण संयंत्रों ने खारे पानी को पीने योग्य पानी में सफलतापूर्वक बदला है और उसी प्रक्रिया से हरित ऊर्जा भी पैदा की है।"

केंद्रीय मंत्री ने मॉरीशस के अधिकारियों को समुद्री अर्थव्यवस्था और समुद्री अनुसंधान में सहयोगी परियोजनाओं की संभावना तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि भारत के पृथ्वी विज्ञान संस्थान और संबंधित एजेंसियां, समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दस वर्षीय खाका तैयार करने हेतु मॉरीशस के समकक्षों के साथ मिलकर काम कर सकती हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समुद्री विज्ञान, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल शासन में साझेदारी न केवल आर्थिक विकास को गति दे सकती है, बल्कि जलवायु और संसाधन संबंधी दबावों का सामना कर रहे द्वीपीय देशों की सहनशीलता को भी मज़बूत कर सकती है।

एनसीजीजी में 10 से 15 नवंबर तक चलने वाला यह कार्यक्रम मार्च 2025 में भारत और मॉरीशस के बीच हस्ताक्षरित एक दीर्घकालिक सहयोग ढांचे का हिस्सा है, जिसके तहत मॉरीशस के 500 प्रशासनिक अधिकारियों को पांच वर्षों में प्रशिक्षित किया जाएगा। मॉरीशस के लोक सेवा एवं प्रशासनिक सुधार मंत्रालय के वरिष्ठ मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. धनंजय कावोल के नेतृत्व में वर्तमान प्रतिनिधिमंडल इस पहल के तहत भारत आने वाले सबसे वरिष्ठ बैचों में से एक है।

बातचीत के दौरान, मॉरीशस के प्रतिभागियों ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और शासन सुधारों में भारत के सहयोग की सराहना की, जिसमें नई फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना, फ्लोटिंग सोलर पैनल जैसी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं, और शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा में डिजिटलीकरण के प्रयास शामिल हैं। उन्होंने प्रदर्शन-आधारित बजट, राजकोषीय जवाबदेही और सार्वजनिक सेवा दक्षता के लिए भारत की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाने में भी रुचि दिखाई।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रौद्योगिकी पारदर्शिता और जवाबदेही का एक सशक्त माध्यम है, जो सरकारों को भरोसा बनाने और बेहतर परिणाम देने में मदद करती है। उन्होंने पिछले एक दशक में देश में डिजिटल शासन के प्रदर्शन को रेखांकित करते हुए कहा, "प्रौद्योगिकी पारदर्शिता में योगदान देती है और पारदर्शिता बदलाव की ओर ले जाती है।"

भारत और मॉरीशस के बीच इतिहास, संस्कृति और लोगों के आपसी संबंधों में निहित एक अनूठा बंधन है। लगभग 70 प्रतिशत मॉरीशसवासी भारत से हैं और दोनों देशों के बीच सहयोग बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, समुद्री सुरक्षा और कौशल विकास तक फैला हुआ है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि सिविल सेवा क्षमता निर्माण में चल रहा सहयोग "भविष्य के शासन में एक सार्थक निवेश" का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे दोनों देशों को पारदर्शी, कुशल और नागरिक-केंद्रित प्रशासनिक प्रणालियां विकसित करने में मदद मिलेगी।

सप्ताह भर चलने वाले इस कार्यक्रम के दौरान, दोनों पक्षों से नीली अर्थव्यवस्था, नवीकरणीय ऊर्जा और विलवणीकरण प्रौद्योगिकी में संभावित परियोजनाओं का पता लगाए जाने की उम्मीद है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, "ये ऐसे क्षेत्र हैं जो भारत-मॉरीशस साझेदारी के अगले दशक को परिभाषित कर सकते हैं।"

 

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पीके/केसी/एके/एसके


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