राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
azadi ka amrit mahotsav

भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने नई दिल्ली में एनएचआरसी के 32वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया


पिछले 32 वर्षों में एनएचआरसी के कार्यों की सराहना करते हुए, उन्होंने सभी हितधारकों से मानवाधिकारों की निरंतर विकसित होती गतिशीलता में एक अधिक मानवीय, न्यायसंगत और समावेशी भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि आर्थिक प्रगति को हमेशा समाज के सभी वर्गों, विशेषकर अनौपचारिक क्षेत्रों के श्रमिकों की मानवीय गरिमा के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए, जो अपने श्रम से हमारे शहरों और सड़कों का संचालन करते  हैं और विकास को बनाए रखते हैं।

'जेल कैदियों के मानवाधिकार' पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए एनएचआरसी की सराहना करते हुए, श्री कोविंद ने सभी हितधारकों और विशेष रूप से जेल अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि जेलें केवल कारावास न होकर सुधार, पुनर्वास, आशा का स्थान बनें

एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री वी रामसुब्रमण्यन ने पिछले तीन दशकों में आयोग के बहुआयामी कार्यों का अवलोकन प्रस्तुत किया और वर्तमान सदस्यों, अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके पूर्ववर्तियों के योगदान को स्वीकार किया

Posted On: 16 OCT 2025 4:45PM by PIB Delhi

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने आज विज्ञान भवन, नई दिल्ली में अपने 32वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में 'जेल के कैदियों के मानवाधिकार' पर एक समारोह और राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। आयोग की स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को हुई थी। समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद ने कहा कि मानवाधिकारों की आधुनिक व्याख्या से बहुत पहले, हमारे ऋषियों और शास्त्रों ने धर्म की रक्षा, करुणा से कार्य करने और न्याय सुनिश्चित करने के कर्तव्य की बात की थी। यह स्थायी नैतिक आधार आज भी हमारा मार्गदर्शन करता है। यह हमें याद दिलाता है कि मानवाधिकारों की सुरक्षा न केवल एक कानूनी दायित्व है, बल्कि एक आध्यात्मिक और नैतिक अनिवार्यता भी है, जो भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग है।

  

श्री कोविंद ने कहा कि भारत ने मानवाधिकारों का एक मज़बूत और व्यापक ढाँचा तैयार किया है। वर्ष 1993 में अपनी स्थापना के बाद से, भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दुनिया के सबसे सम्मानित मानवाधिकार संस्थानों में से एक के रूप में विकसित हुआ है। इसका 32वाँ स्थापना दिवस मनाना सिर्फ़ एक संस्थागत उपलब्धि ही नहीं बल्कि यह हमारे संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के शाश्वत मूल्यों के प्रति हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता की पुष्टि करने समय  है। उन्होंने कहा कि अपनी जाँच-पड़ताल, परामर्श, हस्तक्षेप और वकालत के माध्यम से, आयोग ने बेज़ुबानों को आवाज़ दी है और मानवाधिकारों की चिंताओं को शासन के केंद्र में लाया है। इसने भारत के सभ्यतागत लोकाचार की पुष्टि की है कि किसी समाज का सही मापदंड यह है कि वह अपने सबसे कमज़ोर सदस्य के साथ कैसा व्यवहार करता है।

 

श्री कोविंद ने कहा कि पिछले तीन दशकों में हुई प्रगति का जश्न मनाते हुए, हमें अभूतपूर्व तकनीकी, पर्यावरणीय और सामाजिक परिवर्तन के इस युग में उभरती और जटिल चुनौतियों को भी स्वीकार करना होगा। अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों, जैसे ड्राइवर, सफाई कर्मचारी, निर्माण मजदूर और अनगिनत प्रवासी श्रमिकों के मानवाधिकार सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। जो लोग हमारे शहरों और सड़कों को चलाते हैं, वे अक्सर असुरक्षित कार्य परिस्थितियों, अनियमित आय और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में अपने मानवाधिकारों को जोखिम में डालते हैं। जिस प्रकार उनका श्रम हमारे विकास को बनाए रखता है, उसी प्रकार उनका कल्याण और सम्मान हमारी सफलता का पैमाना होना चाहिए। आर्थिक प्रगति को हमेशा मानवीय सम्मान के साथ-साथ चलना चाहिए।

श्री कोविंद ने प्रवासन और विस्थापन के कारण मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाली जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों पर भी चिंता जताई । उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसकी स्थिति कुछ भी हो, पहचान, सुरक्षा और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच का हकदार है। उन्होंने कहा कि आज के संदर्भ में मानसिक स्वास्थ्य को भी मानवाधिकार के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए और इस संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के परामर्शों की सराहना की।

 

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि जेल के कैदियों का मानवाधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। समाज के मूल्यों की असली परीक्षा इस बात में निहित है कि वह हिरासत में बंद लोगों सहित सबसे कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है। जेल अधिकारियों का यह पवित्र कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक कैदी के साथ हर इंसान बुनियादी शिष्टाचार का व्यवहार करे । उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि आयोग हमारी जेलों में लैंगिक संवेदनशीलता और बच्चों के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए 'जेल के कैदियों के मानवाधिकार' पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है। ये केवल कारावास के स्थान नहीं, बल्कि सुधार, पुनर्वास और आशा के स्थान होने चाहिए। उन्होंने सभी हितधारकों और विशेष रूप से जेल अधिकारियों से एक ऐसा अनुकूल वातावरण बनाने का आग्रह किया जहाँ प्रत्येक कैदी को एक उत्तरदायी नागरिक के रूप में समाज में पुनः एकीकृत होने का अवसर मिले।

श्री कोविंद ने स्वच्छता, बिजली, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास को मानवाधिकारों के एक मूलभूत पहलू के रूप में सुलभ बनाकर सभी नागरिकों, विशेषकर समाज के सबसे निचले तबके के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भारत सरकार के वर्षों के प्रयासों की भी सराहना की। उन्होंने जीवन को आसान बनाने के लिए पुराने कानूनों को निरस्त करने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 और ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 जैसे ऐतिहासिक अधिनियम, प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा और संवर्धन के लिए हमारे देश की अटूट प्रतिबद्धता को और भी स्पष्ट करते हैं।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान हमें याद दिलाता है कि अधिकार कर्तव्यों के साथ आते हैं। स्वतंत्रता का प्रयोग सर्वहित के अनुरूप होना चाहिए। इसी भावना से, मानवाधिकारों की रक्षा केवल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के इस स्थापना दिवस पर, आइए हम एक अधिक मानवीय, न्यायपूर्ण और समावेशी भारत के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करें जो वास्तव में सर्वे भवंतु सुखिनः की भावना को प्रतिबिम्बित करता हो। उन्होंने आग्रह किया कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि न्याय, समानता और करुणा केवल आदर्श न हों, बल्कि हमारे सभी नागरिकों के लिए जीवंत वास्तविकताएँ हों।

इससे पहले, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने पिछले 32 वर्षों में आयोग के कार्यों की जानकारी दी और कहा कि आयोग ने 23 लाख से अधिक मामलों और लगभग 2,900 स्व-प्रेरणा संज्ञान के मामलों को संभाला है। इसने मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को लगभग आठ हज़ार से अधिक मामलों में 263 करोड़ रुपये से अधिक की आर्थिक राहत की सिफारिश की है। इन मामलों में अक्टूबर 2024 से पिछले एक साल के दौरान दर्ज की गई लगभग 73 हज़ार शिकायतें और 100 से ज़्यादा स्वतः संज्ञान मामले शामिल हैं। इस दौरान, आयोग ने 63 मौके पर जाँच की; 38 हज़ार से ज़्यादा मामलों का निपटारा किया और मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को लगभग 200 मामलों में 9 करोड़ रुपये से ज़्यादा की आर्थिक राहत देने की सिफ़ारिश की। मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम चलाने के लिए एनएचआरसी ने विभिन्न संस्थाओं के साथ भी सहयोग किया है।

न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन ने कहा कि भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मानवाधिकारों से संबंधित विभिन्न विषयगत मुद्दों पर विशेषज्ञों, गैर सरकारी संगठनों और वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों के 12 कोर समूहों का गठन किया है ताकि सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का मूल्यांकन करने और सुधार हेतु सिफारिशें करने हेतु तंत्र तैयार करने में मदद मिल सके। उन्होंने पिछले वर्ष छात्रों, अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों और ग्लोबल साउथ के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के वरिष्ठ पदाधिकारियों के लिए आयोजित क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के अलावा, तीन कोर समूह बैठकों और 4 ओपन हाउस चर्चाओं के विषयों पर प्रकाश डाला। राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ हुई बातचीत के निष्कर्षों को रेखांकित करते हुए, उन्होंने विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के एक मंच के गठन के सुझाव का उल्लेख किया।

श्री रामसुब्रमण्यन ने कहा कि माननीय सदस्यों के कुशल मार्गदर्शन और कर्मचारियों की प्रभावी सहायता से आयोग हमारे प्रतिष्ठित पूर्ववर्तियों द्वारा निर्धारित मानकों पर खरा उतरने और मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों की वैध अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।

 

एनएचआरसी के महासचिव श्री भरत लाल ने अपने भाषण में, कहा कि आयोग ने सभी के मानवाधिकारों और विशेष रूप से देश में सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों की गरिमा की रक्षा के लिए अपने विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से हमारे लोकतंत्र में मानवाधिकारों के विवेक रक्षक के रूप में काम करने का प्रयास किया है।

 

उन्होंने कहा कि एनएचआरसी की मूल शक्ति उसके नैतिक और आचार-विचार वाले नेतृत्व में निहित है। आयोग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे लोगों, विशेषकर कमजोर वर्ग, का इसके कामकाज पर पूरा सम्मान और भरोसा है। हाल ही में, एनएचआरसी वरिष्ठ पुलिस और सुधार अधिकारियों के प्रशिक्षण, शासन प्रणालियों में सहानुभूति और जवाबदेही बढ़ाने के लिए विभिन्न मुद्दों पर संगोष्ठियों के माध्यम से क्षमता निर्माण और संवेदनशीलता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। दूर-दराज के गाँवों में रहने वाले नागरिक अब 22 भाषाओं में से किसी में भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं और पाँच लाख से अधिक कॉमन सर्विस सेंटरों से जुड़े मानवाधिकार आयोग नेटवर्क (एचआरसीनेट) के माध्यम से अपनी प्रगति पर ऑनलाइन नज़र रख सकते हैं, जो समावेशिता और सुलभ न्याय की दिशा में एक सच्चा कदम है।

श्री लाल ने कहा कि एनएचआरसी में भारत की भूमिका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विस्तारित हुई है। आयोग ने एनएचआरआई के वैश्विक गठबंधन, एशिया प्रशांत मंच और एनएचआरआई के राष्ट्रमंडल मंच में सक्रिय भूमिका निभाई है। हाल के वर्षों में, आयोग मानवाधिकारों के विभिन्न आयामों पर वैश्विक दक्षिण के एनएचआरआई के साथ जुड़ रहा है। ये पहल वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों को मजबूत करने में भारत की प्रतिबद्धता और योगदान को दर्शाती हैं। कल भारत को मानवाधिकार परिषद के लिए निर्विरोध चुना गया, जिसका कार्यकाल अगले वर्ष से शुरू होकर 3 वर्ष (2026-28) तक रहेगा। यह सातवीं बार है। यह चुनाव मानवाधिकारों के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता और उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को दर्शाता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत के सदस्य, न्यायमूर्ति (डॉ.) विद्युत रंजन सारंगी और श्रीमती विजया भारती सयानी, महानिदेशक (स्वतंत्र प्रभार), श्री आनंद स्वरूप, रजिस्ट्रार (विधि), श्री जोगिंदर सिंह, संयुक्त सचिव, श्री समीर कुमार, राज्य मानवाधिकार आयोगों और अन्य आयोगों के अध्यक्ष एवं सदस्य, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, शिक्षाविद, गैर सरकारी संगठन, मानवाधिकार रक्षक, शोधकर्ता, वरिष्ठ जेल अधिकारी आदि इस समारोह में शामिल हुए। आयोग 'जेल कैदियों के मानवाधिकार' पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का भी आयोजन कर रहा है।

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