रक्षा मंत्रालय
ऑपरेशन सिंदूर ने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल को प्रदर्शित किया, जिसमें एकीकृत तत्क्षण संचालन की तस्वीर, समय पर निर्णय लेने में सक्षमता, स्थितिजन्य जागरूकता में वृद्धि और अपने नुकसान के जोखिम को कम करना शामिल है, जो एकजुटता का सच्चा उदाहरण है: रक्षा मंत्री
"भारतीय वायुसेना के आईएसीसीएस ने भारतीय सेना के आकाशतीर और भारतीय नौसेना के त्रिगुण के साथ मिलकर काम किया, जो ऑपरेशन के दौरान एक संयुक्त संचालन का आधार आधार बना"
"हमारी सरकार का उद्देश्य तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता और एकीकरण को और बढ़ावा देना है, यह केवल नीतिगत मामला नहीं है, बल्कि तेजी से बदलते सुरक्षा परिवेश में अस्तित्व का प्रश्न है"
एकजुटता का मार्ग संवाद, समझ और परंपराओं के प्रति सम्मान में निहित है; नई प्रणालियों का निर्माण करते समय तीनों सेनाओं को एक-दूसरे की चुनौतियों का सम्मान करना चाहिए: रक्षा मंत्री
Posted On:
30 SEP 2025 1:08PM by PIB Delhi
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 30 सितंबर, 2025 को नई दिल्ली के सुब्रतो पार्क में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) द्वारा आयोजित एक सेमिनार के दौरान कहा, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, तीनों सेनाओं के तालमेल ने एक एकीकृत, तत्क्षण संचालन की तस्वीर तैयार की। इसने कमांडरों को समय पर निर्णय लेने, स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने और अपने नुकसान के जोखिम को कम करने में सक्षम बनाया। यह निर्णायक परिणाम देने वाली एकजुटता का जीवंत उदाहरण है और यह सफलता भविष्य के सभी अभियानों के लिए एक मानक बननी चाहिए।” उन्होंने भारतीय वायुसेना की एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस) के महत्व पर भी प्रकाश डाला, जो भारतीय सेना के आकाशतीर और भारतीय नौसेना के त्रिगुण के साथ मिलकर काम कर रही है और ऑपरेशन के दौरान एक संयुक्त संचालन का आधार बना रही है।

'निरीक्षण एवं लेखापरीक्षा, विमानन मानकों और एयरोस्पेस सुरक्षा के क्षेत्र में साझा शिक्षण के माध्यम से अधिकाधिक संयुक्तता को बढ़ावा - तालमेल' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में आधुनिक युद्ध की मांगों को पूरा करने और रक्षा से जुड़ी तैयारियों को अधिकतम करने के लिए भारत के सशस्त्र बलों के लिए गहन एकीकरण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
रक्षा मंत्री ने कहा कि युद्ध का विकसित होता स्वरूप, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों के जटिल अंतर्संबंध के साथ, संयुक्तता को एक विकल्प के बजाय संचालन से जुड़ी एक प्रमुख आवश्यकता बनाता है। उन्होंने कहा, "आज संयुक्तता हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और संचालन की प्रभावशीलता के लिए एक मूलभूत आवश्यकता बन गई है। जहां हमारी प्रत्येक सेना स्वतंत्र रूप से जवाबी कार्रवाई की क्षमता रखती है, वहीं भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष और साइबरस्पेस की परस्पर संबद्ध प्रकृति सहयोगात्मक शक्ति को विजय की सच्ची गारंटी बनाती है।"
श्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कोलकाता में आयोजित संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन को याद किया, जहां स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्तता और एकीकरण के महत्व पर बल दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार की इस स्पष्ट प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि सशस्त्र बल न केवल मूल्यों और परंपराओं के मामले में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हों, बल्कि भविष्य के लिए तैयार प्रणालियों के अग्रदूत भी हों। उन्होंने जोर देकर कहा, "हमारी सरकार का उद्देश्य तीनों सेनाओं के बीच संयुक्तता और एकीकरण को और बढ़ावा देना है। यह केवल नीतिगत मामला नहीं है, बल्कि तेजी से बदलते सुरक्षा परिवेश में अस्तित्व का प्रश्न भी है।"

डिजिटल क्षेत्र में हुई प्रगति पर प्रकाश डालते हुए, रक्षा मंत्री ने सेना के कम्प्यूटरीकृत इन्वेंट्री नियंत्रण समूह (सीआईसीजी), वायु सेना की एकीकृत सामग्री प्रबंधन ऑनलाइन प्रणाली (आईएमएमओएलएस) और नौसेना की एकीकृत रसद प्रबंधन प्रणाली की सराहना की। उन्होंने कहा कि इन प्रणालियों ने स्वचालन, जवाबदेही और पारदर्शिता लाकर रसद व्यवस्था को पहले ही पूरी तरह बदल दिया है। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा कि तीनों सेनाओं के लिए लॉजिस्टिक एप्लिकेशन पर काम शुरू हो गया है, जो इन प्रणालियों को एकीकृत करके स्टॉक की साझा दृश्यता प्रदान करेगा, विभिन्न सेनाओं के संसाधनों का अनुकूलन करेगा और अनावश्यक खरीद को कम करेगा।
श्री राजनाथ सिंह ने बताया कि दशकों से, प्रत्येक सेना ने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अपने विशिष्ट अनुभवों के आधार पर संचालन प्रणालियां, निरीक्षण संरचना और लेखा परीक्षा प्रणालियां विकसित की हैं। उन्होंने बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर रेगिस्तान, घने जंगलों, गहरे समुद्र और खुले आसमान तक, विविध परिस्थितियों में सशस्त्र बलों की सशक्तता की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह का कठिन परिश्रम से अर्जित ज्ञान अक्सर एक ही सेना तक सीमित रह जाता है। उन्होंने कहा, "अगर सेना ने कुछ विकसित किया, तो वह सेना के पास ही रहा। अगर नौसेना या वायु सेना ने कुछ विकसित किया, तो वह उनकी अपनी सीमाओं के भीतर ही रहा। इस विभाजन ने मूल्यवान सबक के पारस्परिक आदान-प्रदान को सीमित कर दिया है।"
रक्षा मंत्री ने मांग करते हुए कहा कि आज के सुरक्षा परिवेश में, इस विभाजन की जगह खुले आदान-प्रदान और सामूहिक शिक्षा को जगह मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा, "दुनिया तेजी से बदल रही है। खतरे कहीं अधिक जटिल हो गए हैं और हमें यह स्वीकार करना होगा कि कोई भी सेना अलग-थलग होकर काम नहीं कर सकती। किसी भी संघर्ष में सफलता के लिए अब अंतर-संचालन और एकजुटता आवश्यक है।"

श्री राजनाथ सिंह ने सचेत करते हुए कहा कि विमानन सुरक्षा और साइबर युद्ध जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में मानकों में भिन्नता विनाशकारी साबित हो सकती है। उन्होंने कहा, "निरीक्षण में एक छोटी-सी भी त्रुटि व्यापक प्रभाव पैदा कर सकती है। अगर हमारी साइबर रक्षा प्रणालियां विभिन्न सेनाओं में भिन्न हैं, तो विरोधी इस अंतर का फायदा उठा सकते हैं। हमें अपने मानकों में सामंजस्य स्थापित करके इन कमजोरियों को दूर करना होगा।" साथ ही, श्री राजनाथ सिंह ने जोर देते हुए कहा कि एकीकरण में प्रत्येक बल की विशिष्टता का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा, "हिमालय की ठंड, रेगिस्तान की गर्मी से अलग होती है। नौसेना को थलसेना और वायुसेना से अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हम जहां उपयुक्त न हो, वहां एकरूपता नहीं थोप सकते। हमारा काम एक साझा बेसलाइन बनाना है जो अंतर-संचालन और विश्वास का निर्माण करते हुए विशिष्टता को बनाए रखे।"
रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि एकीकरण हासिल करने के लिए न केवल संरचनात्मक सुधार बल्कि मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता है। उन्होंने सभी स्तरों पर वरिष्ठ नेतृत्व से अपनी टीमों को एकीकरण के महत्व के बारे में लगातार बताने का आह्वान किया। उन्होंने माना कि ऐसा बदलाव आसान नहीं होगा और इसके लिए पुरानी आदतों और संस्थागत सीमाओं से उबरना होगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया, "संयुक्तता की ओर बढ़ते हुए हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन संवाद, समझ और परंपराओं के सम्मान के जरिए हम इन बाधाओं को पार कर सकते हैं। हर सेवा को यह महसूस होना चाहिए कि दूसरे उनकी चुनौतियों को समझते हैं, और जब हम मिलकर नई प्रणालियां बनाते हैं, तो हर परंपरा का सम्मान किया जाना चाहिए।"
श्री राजनाथ सिंह ने सशस्त्र बलों से आग्रह किया कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्तम प्रणालियों का अध्ययन जारी रखें और उन्हें भारत के संदर्भ में ढालें। उन्होंने यह भी कहा, "हम दूसरों से सीख सकते हैं, लेकिन हमारे जवाब भारतीय होने चाहिए जो हमारी भौगोलिक स्थिति, हमारी जरूरतों और हमारी संस्कृति के अनुरूप हों। तभी हम ऐसी प्रणालियां बना सकते हैं जो वास्तव में टिकाऊ और भविष्य के लिए तैयार हों।"
रक्षा मंत्री ने हर संभव तरीके से संयुक्तता का समर्थन करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई और भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) सहित सभी सेनाओं और संस्थानों से इस दिशा में निर्णायक रूप से आगे बढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने जोर देते हुए कहा, "जब हमारी सशस्त्र सेनाएं एकजुटता, सामंजस्य और पूर्ण समन्वय के साथ कार्य करेंगी, तभी हम सभी क्षेत्रों में विरोधियों का मुकाबला कर पाएंगे और भारत को गौरव की नई ऊँचाइयों पर ले जा पाएंगे। यह समय की मांग है और मुझे विश्वास है कि हम इसे अवश्य प्राप्त करेंगे।"
अपने संबोधन से पहले, श्री राजनाथ सिंह ने प्रादेशिक सेना के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजू बैजल के प्रति संवेदना व्यक्त की, जिनका आज सुबह निधन हो गया।
इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, महानिदेशक (निरीक्षण एवं सुरक्षा) एयर मार्शल मकरंद रानाडे, सशस्त्र बल, आईसीजी, बीएसएफ, डीजीसीए के वरिष्ठ अधिकारी और पूर्व-सैनिक उपस्थित थे।

सेमिनार के मुख्य परिणाम निरीक्षण प्रक्रियाओं में अधिक समानता की आवश्यकता और विमानन क्षेत्र में सेनाओं के बीच अंतर-संचालन क्षमता बढ़ाने के अवसरों की खोज पर आम सहमति थे। संयुक्त एयरोस्पेस सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित सत्र में सुरक्षा मानकों को बेहतर बनाने और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण के महत्व पर प्रकाश डाला गया। सेमिनार का समापन सहयोग बढ़ाने और विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में हुआ।
****
पीके/केसी/एसकेएस/एसके
(Release ID: 2173154)
Visitor Counter : 59