जल शक्ति मंत्रालय
जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग ने सुजलम भारत शिखर सम्मेलन के अंतर्गत "पेयजल की स्थिरता" पर एक वर्चुअल कार्यशाला का आयोजन किया
वर्चुअल कार्यशाला में जल जीवन मिशन के अगले चरण में जल स्रोतों की स्थिरता और संचालन तथा रखरखाव को प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया गया
राज्य जिन्होंने जल स्रोत स्थिरता पर अपने अनुभव और सर्वोत्तम अभ्यास साझा किए - असम, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक और मध्य प्रदेश
Posted On:
26 SEP 2025 6:24PM by PIB Delhi
सुजलम भारत के विज़न पर विभागीय शिखर सम्मेलन की तैयारियों के तहत विषयगत सम्मेलन के एक भाग के रूप में, जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने आज "पेयजल की स्थिरता" पर एक वर्चुअल कार्यशाला का आयोजन किया।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की विचारधारा से निर्देशित सुजलम भारत शिखर सम्मेलन, राष्ट्रीय नीति में ज़मीनी स्तर के अनुभवों को शामिल करने के लिए आयोजित छह विभागीय शिखर सम्मेलनों में से एक है। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संचालित और नीति आयोग द्वारा समन्वित, यह सम्मेलन नीतिगत ढाँचों को ज़मीनी हकीकत के साथ तालमेल करने का प्रयास करता है। यह सम्मेलन केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल की अध्यक्षता में नवंबर के अंत में आयोजित किया जाएगा।

कार्यशाला में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) के सचिव श्री अशोक के. के. मीणा ने भाग लिया और इसकी अध्यक्षता श्री कमल किशोर सोन, अपर सचिव एवं मिशन निदेशक (एसबीएम(जी) एवं जेजेएम) तथा श्रीमती अर्चना वर्मा, अपर सचिव तथा राष्ट्रीय जल मिशन (एनडब्ल्यूएम) के मिशन निदेशक ने की। इसमें राज्य नोडल अधिकारी तथा मिशन निदेशक, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट, क्षेत्र के विशेषज्ञ और विकास भागीदारों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस कार्यक्रम में राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों, हितधारकों, आरडब्ल्यूपीएफ भागीदारों और डीडीडब्ल्यूएस, एनडब्ल्यूएम और डीओडब्ल्यूआर के अधिकारियों सहित 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम में मुख्य भाषण देते हुए, श्रीमती अर्चना वर्मा ने कार्यशाला को क्षेत्र की चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने, नीतिगत कमियों की पहचान करने और उनका समाधान खोजने का एक अवसर बताया। उन्होंने चर्चा के लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों की रूपरेखा पेश की- जल का स्रोत, जल की गुणवत्ता और संचालन तथा रखरखाव (ओएंडएम)। उन्होंने प्रभावी अभिसरण के महत्व पर भी ज़ोर दिया और कहा कि पेयजल स्रोतों की स्थिरता को मज़बूत करने के लिए, हाल के संशोधनों के मुताबिक, मनरेगा निधियों का, जल संरक्षण कार्यों के लिए विवेकपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए।

अपने संबोधन के दौरान श्री कमल किशोर सोन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जल जीवन मिशन के छह वर्ष पूरे होने और अगले चरण में प्रवेश करने के साथ, यह आकलन करना ज़रुरी है कि क्या स्रोतों के सुदृढ़ीकरण, स्रोतों के संरक्षण और परिसंपत्तियों की स्थिरता पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने साफ किया कि स्थिरता का तात्पर्य केवल भौतिक या वित्तीय पहलुओं से नहीं, बल्कि एक व्यापक विचार से है। उन्होंने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को जल संरक्षण और पेयजल संबंधी मुद्दों से संबंधित, मनरेगा दिशानिर्देशों में किए गए नए संशोधनों का संदर्भ लेने का निर्देश दिया।
संस्थाओं को सशक्त बनाने की ज़रुरत पर बल देते हुए, उन्होंने जिला स्तर पर प्रभावी नियोजन, निगरानी और अभिसरण करने में जिला कलेक्टरों और जिला जल एवं स्वच्छता मिशनों (डीडब्ल्यूएसएम) की भूमिका पर ज़ोर दिया। उन्होंने राज्यों से एकल ग्राम योजनाओं (एसवीएस) और बहु-ग्राम योजनाओं (एमवीएस), दोनों के संचालन और रखरखाव को प्राथमिकता देने और सरपंचों तथा पंचायत सचिवों की सक्रिय भागीदारी के ज़रिए जमीनी स्तर पर संस्थागत तंत्र को मजबूत करने का आग्रह किया।

श्री प्रदीप सिंह, निदेशक, एनजेजेएम, डीडीडब्ल्यूएस ने जल जीवन मिशन की छह साल की यात्रा पर एक प्रस्तुति दी, जिसमें आगामी विचार-विमर्श की रूपरेखा तैयार की गई और कार्यक्रम के तहत हासिल की गई प्रमुख उपलब्धियाँ भी साझा की गईं।

इसके बाद केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की वैज्ञानिक डी श्रीमती मिनी चंद्रन ने भारत में भूजल परिदृश्य पर एक प्रस्तुति दी। उन्होंने एक्वीफर की स्थिति, भूजल-आधारित स्रोत स्थिरता पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी), पेयजल स्रोत स्थिरता के लिए सीजीडब्ल्यूबी की गतिविधियों, जिला स्तर पर रिचार्ज योजनाओं और सर्वोत्तम प्रथाओं पर भी प्रकाश डाला।
असम, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक और मध्य प्रदेश सहित राज्यों ने अपने अनुभव साझा किए, जिनमें प्रमुख उपलब्धियों, चुनौतियों, सर्वोत्तम प्रथाओं, प्रगति और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला गया। इसके अलावा, बायोम एनवायरनमेंटल सॉल्यूशंस और गुरुजल के प्रतिनिधियों ने कार्यशाला के दौरान तकनीकी प्रस्तुतियाँ दीं।


वीडब्ल्यूएससी के प्रतिनिधियों ने भी जल जीवन मिशन के समक्ष अपने क्षेत्रीय अनुभव और आने वाली चुनौतियों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे जल जीवन मिशन उनके गाँवों में सकारात्मक बदलाव ला रहा है।
एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र ने कार्यशाला को और समृद्ध बनाते हुए अतिरिक्त जानकारी प्रदान की।

समापन भाषण के दौरान श्रीमती अर्चना वर्मा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पेयजल सेवाओं की स्थिरता को स्रोतों की स्थिरता से अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर गतिविधि में सामुदायिक ज़रुरतों को एक्वीफर रिचार्ज, जलग्रहण प्रबंधन और जल संरक्षण की प्रथाओं के साथ संतुलित करना ज़रुरी है, ताकि जलस्तर में कमी को रोका जा सके।
श्री कमल किशोर सोन ने प्रतिभागियों को उनके बहुमूल्य योगदान के लिए बधाई और धन्यवाद दिया, जिससे कार्यशाला की चर्चा समृद्ध हुई।
इस कार्यशाला के अनुभव राज्य/संघ शासित प्रदेशों को जानकारी में मदद करेंगे और सुजलम भारत शिखर सम्मेलन के विचार-विमर्श में भी सहायक होंगे, जिससे देश में स्थायी जल और स्वच्छता प्रबंधन के लिए एक रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी।
***
पीके/केसी/एनएस/एसएस
(Release ID: 2171918)
Visitor Counter : 47