जनजातीय कार्य मंत्रालय
त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं का संरक्षण
Posted On:
21 AUG 2025 4:19PM by PIB Delhi
आज श्रीमती कृति देवी देबबर्मन के अतारांकित प्रश्न का उत्तर देते हुए केन्द्रीय जनजातीय कार्य राज्यमंत्री श्री दुर्गादास उइके ने लोकसभा को बताया कि जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार, केंद्र प्रायोजित योजना 'जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को सहायता' के अंतर्गत, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में जनजातीय अनुसंधान एवं सांस्कृतिक संस्थान, त्रिपुरा सहित 29 जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इस योजना के अंतर्गत, अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं, अनुसंधान एवं प्रलेखन गतिविधियों, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, जनजातीय उत्सवों के आयोजन, अनूठी सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यात्राओं और आदिवासियों द्वारा आदान-प्रदान यात्राओं के आयोजन से संबंधित प्रस्ताव प्राप्त किये जाते हैं ताकि उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण और प्रसार किया जा सके। टीआरआई मुख्य रूप से राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आने वाले संस्थान हैं। इस योजना के अंतर्गत, स्वदेशी जनजातीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए शुरू की गई परियोजनाएँ/गतिविधियाँ निम्नानुसार हैं:
- जनजातीय भाषाओं में द्विभाषी शब्दकोश और त्रिभाषी प्रवीणता मॉड्यूल तैयार करना।
- नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप बहुभाषी शिक्षा (एमएलई) उपाय के अंतर्गत कक्षा 1, 2 और 3 के विद्यार्थियों के लिए जनजातीय भाषाओं में प्राइमर तैयार करना। जनजातीय भाषाओं में वर्णमाला, स्थानीय कविताएँ और कहानियाँ प्रकाशित करना।
- जनजातीय साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न जनजातीय भाषाओं पर पुस्तकें, पत्रिकाएँ प्रकाशित करना।
- जनजातीय लोक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन हेतु विभिन्न जनजातियों की लोकगीतों और लोककथाओं का दस्तावेजीकरण करना। मौखिक साहित्य (गीत, पहेलियाँ, गाथागीत आदि) एकत्र करना।
- सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के अंतर्गत आने वाले राज्यों में स्थानीय जनजातीय बोलियों में सिकल सेल एनीमिया रोग जागरूकता मॉड्यूल I और निदान एवं उपचार मॉड्यूल II पर प्रशिक्षण मॉड्यूल का अनुवाद और प्रकाशन।
- सम्मेलन, सेमिनार, कार्यशालाएँ और काव्य गोष्ठियाँ आयोजित करना।
इसके अलावा, जैसा कि बताया गया है, जनजातीय अनुसंधान और सांस्कृतिक संस्थान (टीआर एंड सीआई), त्रिपुरा सरकार ने त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए निम्नलिखित पहलें की हैं:
1. 'त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं का अध्ययन' पर पुस्तकें और शब्दकोश आदि प्रकाशित करना।
2. त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं पर प्रतिवर्ष 'एसएआईएमए' नामक 1 (एक) साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित करना।
3. ‘टीयूआई’ नामक 1 (एक) शोध पत्रिका का द्विवार्षिक प्रकाशन।
4. त्रिपुरा विश्वविद्यालय (एक केंद्रीय विश्वविद्यालय) के सहयोग से 'त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातीय भाषाओं और बोलियों' पर संगोष्ठी/कार्यशाला आयोजित करना। शोधपत्रों का दस्तावेजीकरण और प्रकाशन करना।
5. त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं में जनजातीय विरासत, जीवन आदि पर दृश्य-श्रव्य दस्तावेजीकरण तैयार करना।
6. त्रिपुरा के जनजातीय लोकगीतों के स्वरांकन तैयार करना।
7. त्रिपुरा की जनजातीय भाषाओं पर प्राइमर त्रिपुरा के सरकारी स्कूलों में पहले ही शुरू किए जा चुके हैं। सभी पुस्तकें/प्राइमर/दस्तावेज़ टीआर एंड सीआई, त्रिपुरा के सामाजिक विज्ञान पुस्तकालय में संरक्षित हैं और वेबसाइट लिंक: https://trci.tripura.gov.in/e-book-publication, जनजातीय कार्य मंत्रालय के रिपॉजिटरी पोर्टल और यूट्यूब चैनल https://www.youtube.com/@tribalresearchandculturali7184 पर भी अपलोड किए गए हैं।
पिछले पांच वर्षों के दौरान त्रिपुरा में स्वदेशी जनजातीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए किए गए वित्तीय आवंटन निम्नानुसार हैं:
(लाख रुपए में)
वित्तीय वर्ष 2020-21
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वित्तीय वर्ष 2021-22
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वित्तीय वर्ष 2022-23
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वित्तीय वर्ष 2023-24
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वित्तीय वर्ष 2024-25
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0.00
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5.00
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0.00
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0.00
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8.00
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आवंटित धनराशि का उपयोग त्रिपुरा के प्रतिष्ठित जनजातीय लेखक, कवि, लेखक से त्रिपुरा की जनजातीय भाषा पर लेख एकत्र करने, पुस्तकों के मुद्रण और प्रकाशन, त्रिपुरा विश्वविद्यालय (एक केंद्रीय विश्वविद्यालय) के सहयोग से त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातीय भाषाओं और बोलियों पर संगोष्ठी (सेमिनार), कार्यशाला आयोजित करने और संचालित करने में किया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 2013 में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर के अंतर्गत "लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण एवं परिरक्षण योजना (एसपीपीईएल)" की शुरुआत की। संस्थान ने कोर कमेटी की मदद से पहले चरण में त्रिपुरा की दारलोंग, रंगलोंग और उचाई भाषाओं सहित 117 भाषाओं की पहचान की, जिन पर चरणबद्ध तरीके से काम किया जाएगा। एसपीपीईएल का उद्देश्य प्राइमर, द्वि/त्रिभाषी शब्दकोश (इलेक्ट्रॉनिक और मुद्रित प्रारूप), व्याकरणिक रेखाचित्र, चित्रात्मक शब्दावलियाँ और समुदाय की नृजातीय-भाषाई प्रोफ़ाइल तैयार करके 10,000 से कम बोलने वालों द्वारा बोली जाने वाली भारत की मातृभाषाओं/भाषाओं की भाषा और संस्कृति का दस्तावेजीकरण करना है। विवरण https://sanchika.ciil.org पर उपलब्ध हैं। स्थानीय समुदाय के लोग एसपीपीईएल भाषा दस्तावेजीकरण प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं। क्षेत्रीय कार्य के दौरान समुदाय के लोग भाषा सलाहकार के रूप में शामिल होते हैं। यहां तक कि समुदाय के लोगों को भी भाषा प्रलेखन से संबंधित कार्यशाला, सेमिनार और सम्मेलनों में शामिल किया जाता है और आमंत्रित किया जाता है।
इसके अलावा, भाषा संचिका, केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) का डिजिटल भाषा संग्रह है, जहाँ भाषा संरक्षण, प्रसार और तकनीकी प्रगति एक अग्रणी पहल के रूप में एक साथ मिलकर काम करती है। इस संग्रह पोर्टल का मुख्य उद्देश्य विविध स्वरूपों - पाठ, चित्र, श्रव्य और दृश्य - में भारतीय भाषाई संसाधन उपलब्ध कराना है; भाषा प्रौद्योगिकी संसाधन, भाषा शिक्षण सामग्री और अन्य भाषा-संबंधी उत्पादों और सेवाओं के निर्माण में सहायता करना है। ब्यौरे निम्नलिखित लिंक https://sanchika.ciil.org/home पर उपलब्ध हैं|
सीआईआईएल ने एनसीईआरटी, नई दिल्ली के सहयोग से 117 भाषाओं (अनुसूचित, गैर-अनुसूचित और जनजातीय) पर प्राइमर भी विकसित किए हैं। ब्यौरे निम्नलिखित लिंक https://ciil.org/primers_book.पर उपलब्ध हैं|
इसके अलावा, भारत सरकार की डिजिटल इंडिया पहल के एक भाग के रूप में, सीआईआईएल भारतवाणी परियोजना का क्रियान्वयन कर रहा है, जो 22 अनुसूचित और 99 गैर-अनुसूचित भाषाओं सहित लगभग 121 भारतीय भाषाओं में ज्ञान संसाधन उपलब्ध कराने के लिए समर्पित है। ये संसाधन इसके गतिशील और उपयोगकर्ता-अनुकूल वेब पोर्टल (www.bharatavani.in) और मोबाइल ऐप (http://bit.ly/1XYqodI) के माध्यम से उपलब्ध हैं। कोकबोरोक, हलम, मोघ और चकमा गैर-अनुसूचित/जनजातीय भाषाएँ हैं, जो त्रिपुरा में बोली जाती हैं तथा जिनकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है, और भारतवाणी पोर्टल में इनका प्रमुख स्थान है। भारतवाणी इन भाषाओं के ज्ञान को डिजिटल रूप से संरक्षित और प्रसारित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उपलब्ध संसाधनों को विभिन्न ज्ञान क्षेत्रों में निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है:
क्रम सं.
|
डोमेन
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कोकबोरोक
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हलम
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मोघ
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चकमा
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1
|
भाषाकोश | भाषा सीखने की सामग्री
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02
|
00
|
00
|
00
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2
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पाठ्यपुस्तककोश | पाठ्यपुस्तकें
|
16
|
03
|
03
|
05
|
3
|
ज्ञानकोश | विश्वकोश सामग्री
|
04
|
00
|
00
|
00
|
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कुल
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22
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03
|
03
|
05
|
|
पीडीएफ शब्दकोश
|
02
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भारतीय भाषाओं के लिए भाषाई डेटा कंसोर्टियम (एलडीसी-आईएल) विभिन्न मातृभाषाओं सहित सभी भारतीय भाषाओं में उच्च-गुणवत्ता वाले भाषाई संसाधन विकसित कर रहा है। एलडीसी-आईएल ने भारत की मातृभाषा समानांतर पाठ्य संग्रह खंड I जारी किया है और इसमें अंग्रेज़ी और भारत की 147 मातृभाषाएँ शामिल हैं। प्रत्येक भाषा में 5,332 वाक्य हैं, जो देश की समृद्ध भाषाई विविधता को दर्शाते हुए 152 व्याकरणिक श्रेणियों के आधार पर व्यवस्थित रूप से संरचित हैं।
समानांतर संग्रह में त्रिपुरा की जनजातीय भाषाएँ और शब्द संख्या:
- कोकबोरोक (त्रिपुरी) – 27,063 शब्द
- रियांग – 36,123 शब्द
- मणिपुरी में पाईते और कुकी प्रमुख हैं, लेकिन यह त्रिपुरा में भी मौजूद है। पाईते – 32,627 शब्द, कुकी – 32,695 शब्द
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पीके/केसी/डीवी
(Release ID: 2159511)