पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
संसदीय प्रश्न: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी
Posted On:
18 AUG 2025 4:53PM by PIB Delhi
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) का पक्षकार होने के नाते भारत आवधिक आधार पर यूएनएफसीसीसी को राष्ट्रीय संचार एवं द्विवार्षिक नवीएन रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। इन रिपोर्ट में राष्ट्रीय ग्रीन हाउस गैस इन्वेंटरी के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) दिशानिर्देशों पर आधारित राष्ट्रीय ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) की एक सूची शामिल है। यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत भारत की चौथी द्विवार्षिक नवीन रिपोर्ट (बीयोआर-4) के अनुसार, 2020 में शुद्ध जीएचजी उत्सर्जन 2,436.7 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड था और यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत तीसरे राष्ट्रीय संचार के अनुसार, 2019 में शुद्ध जीएचजी उत्सर्जन 2,646.6 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड था। राज्य स्तरीय जीएचजी इन्वेंटरी को यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है और इसलिए भारत सरकार द्वारा तैयार नहीं की जाती है।
भारत सरकार ने आन्ध्र प्रदेश सहित पूरे देश में जीएचजी उत्सर्जनों का निवारण करने के लिए अनेक पहलें की हैं। सरकार जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) कार्यान्वित कर रही है, जो जलवायु कार्रवाइयों के लिए सर्वसमावेशी ढांचा है। एनएपीसीसी में सौर ऊर्जा, संवर्धित ऊर्जा दक्षता, जल, कृषि, हिमालयी पारिस्थितिकी, सतत पर्यावास, हरित भारत, मानव स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर रणनीतिक ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों में राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं। चूंकि जलवायु परिवर्तन परस्पर महत्वपूर्ण विषय है, इसलिए मिशनों का कार्यान्वयन संबंधित मंत्रालयों/विभागों द्वारा किया जाता है। एनएपीसीसी सभी जलवायु कार्यों के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनएपीसीसी के अनुरूप 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी राज्य कार्य योजनाएं (एसएपीसीसी) तैयार की हैं।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक सामूहिक कार्रवाई समस्या है जो मुख्य रूप से विकसित देशों के अत्यधिक ऐतिहासिक और वर्तमान उत्सर्जन से उपजी है। वर्ष 1850 से वर्ष 2019 तक ऐतिहासिक संचयी उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी वैश्विक संचयी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 4 प्रतिशत से भी कम है, जबकि यह विश्व की 17 प्रतिशत से अधिक आबादी का घर है। भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है जहां अपने विकास और गरीबी उन्मूलन लक्ष्यों की खोज में, कम आधार से जीएचजी उत्सर्जन में वृद्धि होना तय है। इस प्रकार जलवायु परिवर्त्न के लिए भारत की जिम्मेदारी न्यूनतम रही है; आज भी, इसका वार्षिक प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत का केवल एक तिहाई है। इसके बावजूद, भारत बहुपक्षवाद के दृढ़ अनुपालन के साथ और यूएनएफसीसीसी में उचित प्रतिष्ठापित समानता और साझा किंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों के आधार पर जलवायु परिवर्तन का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है। जीएचजी उत्सर्जनों को कम करने के लिए कंपनियों/फर्मों को अधिदेशित करने वाला कोई कानूनी ढांचा नहीं है। हालांकि, कई संस्थाओं और संगठनों ने शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए स्वैच्छिक घोषणाएं की हैं।
इको क्लब ऐसी गतिविधियां करते हैं जो पर्यावरण सुधार के लिए स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच पर्यावरण जागरूकता पैदा करती हैं और उनके बीच पर्यावरण-मित्रता और पर्यावरण संरक्षण की संस्कृति को विकसित करती हैं। इको क्लबों ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) और संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा भी शुरू किए गए कई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई है जिसमें हरित दिवाली-स्वस्थ दिवाली, स्वच्छ भारत अभियान, विश्व पर्यावरण दिवस समारोह आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए ग्रीन गुड डीड्स कार्यक्रम को भी स्कूलों और कॉलेजों में इको क्लबों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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पीके/केसी/एमकेएस
(Release ID: 2157696)