संस्कृति मंत्रालय
“गीता 5,000 वर्षों से प्रासंगिक रही है और आगे भी रहेगी”– गजेन्द्र सिंह शेखावत
भगवद् गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को रजिस्टर में शामिल किए जाने के उपलक्ष्य में आईजीएनसीए की ओर से दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
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30 JUL 2025 9:49PM by PIB Delhi
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए), भगवद् गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल किए जाने के उपलक्ष्य में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। इस संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 30 जुलाई, मंगलवार को अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में आयोजित किया गया। संगोष्ठी का विषय: ‘शाश्वत ग्रंथ एवं सार्वभौमिक शिक्षाएं: यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में भगवद् गीता एवं नाट्यशास्त्र का अंकन’ है।

इस अवसर पर संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए ट्रस्ट के अध्यक्ष पद्म भूषण श्री राम बहादुर राय ने की। विशिष्ट अतिथि जी.आई.ई.ओ. गीता और गीता ज्ञान संस्थानम, कुरुक्षेत्र के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज तथा पूर्व संसद सदस्य (राज्यसभा) पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह रहीं। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने उद्घाटन भाषण दिया, जबकि प्रो. (डॉ.) रमेश चंद्र गौड़, प्रभारी, यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड नोडल सेंटर और डीन (प्रशासन), आईजीएनसीए ने स्वागत भाषण दिया और अतिथियों का परिचय कराया। उल्लेखनीय है कि आईजीएनसीए ने इन दो महत्वपूर्ण भारतीय ग्रंथों-भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र- को यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस अवसर श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा, “निःसंदेह, गीता का ज्ञान 5,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है, और भरतमुनि का नाट्यशास्त्र 2,500 वर्षों से भी अधिक पुराना है। आज अनेक राष्ट्र, जो वैश्विक प्रभाव का दावा करते हैं और सभ्यता के पथप्रदर्शक के रूप में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, शायद उस समय अस्तित्व में भी नहीं थे। फिर भी, उस प्राचीन युग में, भारत ने प्रदर्शन कलाओं पर सूक्ष्म और विस्तृत ग्रंथ की रचना पहले ही कर दी थी। उस समय हमने जो सांस्कृतिक शिखर प्राप्त किया था, उसकी हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। गीता का ज्ञान ‘सर्वभूत’ – अर्थात सभी जीवों के लिए है। इसलिए यूनेस्को द्वारा इसकी वैश्विक मान्यता न केवल उपयुक्त, बल्कि आवश्यक भी है। मेरा मानना है कि वर्ल्ड मेमोरी रजिस्टर में इसका अंकित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर इसलिए क्योंकि शायद औपनिवेशिक मानसिकता के कारण, हम लंबे समय से यह मान चुके हैं कि पश्चिम से जो आता है वह स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ है। लेकिन अब जब पश्चिम ने इसे स्वीकार कर लिया है, तो मुझे आशा है कि औपनिवेशिक विरासत के कारण अपनी जड़ों से कटी हुई युवा पीढ़ी हमारी समृद्ध विरासत को पहचानना और उस पर गर्व करना शुरू करेगी।” उन्होंने कहा कि गीता 5,000 वर्षों से प्रासंगिक रही है और आने वाली सहस्राब्दियों तक प्रतिध्वनित होती रहेगी। उन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए आईजीएनसीए और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीओआरआई) दोनों को बधाई दी।

स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा, “हम डिजिटल युग में जी रहे हैं। अगर हम 'डिजिटल' शब्द से पहले दो अक्षर ‘डी’ और ‘आई’ तथा अंतिम अक्षर ‘एल’ हटा दें, तो जो शब्द बचता है वह ‘गीता’ है। जब गीता हृदय में निवास करती है, तो तकनीक भी सही दिशा तलाश लेती है। गीता हमें पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की सीख देती है। आज के तेज़-रफ्तार तकनीकी युग में, गीता का संदेश हमें संतुलित निर्णय लेने और सद्भाव के मार्ग पर चलने का ज्ञान प्रदान करता है।”
डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि दोनों ग्रंथों - भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र - का यूनेस्को इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल होना स्वयं यूनेस्को के लिए सम्मान की बात है। दोनों ग्रंथों के बीच समानताएँ दर्शाते हुए उन्होंने कहा कि दोनों ही ग्रंथों में कर्म योग पर ज़ोर दिया गया है। जहाँ एक ओर गीता ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ के माध्यम से 'निष्काम कर्म' की शिक्षा को प्रतिष्ठापित करती है, वहीं नाट्यशास्त्र कलाकार को अपनी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसका परिणाम दर्शकों के अनुभव में निहित होता है। उन्होंने कहा कि दोनों ग्रंथ कर्म को आध्यात्मिक अनुशासन के रूप में देखते हैं - जहाँ कृष्ण का उपदेश और ‘नाट्यशास्त्र’ की आत्मा योग और समर्पण में एकाकार हो जाती है।
श्री राम बहादुर राय ने कहा कि भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल करना केवल रस्मी सम्मान मात्र नहीं है, बल्कि दूरगामी सांस्कृतिक यात्रा का आरंभ है - जिसमें विश्व समुदाय को धर्म, लोकतंत्र और आत्म-चेतना की ओर ले जाने की क्षमता है। यह उस परंपरा का स्मरण है, जहाँ कृष्ण संवाद के माध्यम से मोह को दूर करते हैं और भरतमुनि कला को एक पवित्र अनुशासन के रूप में ऊँचा उठाते हैं।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यद्यपि गीता को किसी विधिमान्यकरण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यूनेस्को इंटरनेशनल रजिस्टर में इसका समावेश इसके सार्वभौमिक महत्व का प्रतीक है। इसी तरह, इस मान्यता से नाट्यशास्त्र की वैश्विक प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। उन्होंने बताया कि इन दोनों ग्रंथों के लिए नामांकन पत्र आईजीएनसीए के विद्वानों द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार किए गए थे। उन्होंने कहा, “यदि आज हम किसी पांडुलिपि को पढ़ पाते हैं, तो इसका कारण यह है कि सदियों पहले किसी समर्पित विद्वान ने उसे अत्यंत सावधानी से संरक्षित किया था। उसी तरह, जो कार्य आज किया जा रहा है, उसे दो या तीन सौ साल बाद पढ़ा जाएगा।” उन्होंने भारत सरकार की ओर से शुरू किए गए नए मिशन ‘ज्ञान भारतम्’ का भी उल्लेख किया।
प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने कहा, “यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का शामिल होना केवल उत्सव का क्षण ही नहीं, बल्कि भारत की सभ्यतागत ज्ञान प्रणालियों की वैश्विक मंच पर ऐतिहासिक पुष्टि है। श्री राम बहादुर राय और डॉ. सच्चिदानंद जोशी के नेतृत्व में आईजीएनसीए ने भारत की दस्तावेजी विरासत की सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए इन नामांकनों को तैयार और प्रस्तुत करने में एक नोडल एजेंसी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
इस अवसर पर, ‘फ्रॉम मैन्युस्क्रिप्ट् टू मेमोरी’ नामक एक पुस्तक का विमोचन किया गया, जो इन अभिलेखों के अभिलेखीय और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। इसी विषय पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें आगंतुकों को प्राचीन ज्ञान से वैश्विक मान्यता तक का इन ग्रंथों का सफ़र दर्शाती दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक अभिलेखों और क्यूरेटोरियल व्याख्याओं की झलक देखने को मिली। यूनेस्को, पेरिस में भारत के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि श्री विशाल वी. शर्मा ने एक विशेष वीडियो संदेश साझा किया जिसमें आईजीएनसीए के योगदान की सराहना की गई और वैश्विक बौद्धिक विरासत के हिस्से के रूप में इन ग्रंथों के महत्व को दोहराया गया।
गौरतलब है कि यह संगोष्ठी इन दो महत्वपूर्ण भारतीय ग्रंथों को प्रतिष्ठित यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल किए जाने के उपलक्ष्य में आयोजित की गई है, जिसका उद्देश्य उनके वैश्विक महत्व और स्थायी प्रासंगिकता को रेखांकित करना है। इस संगोष्ठी का समापन सत्र 31 जुलाई 2025 को शाम 5:00 बजे समवेत सभागार, आईजीएनसीए, जनपथ में होगा। इसमें भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री विवेक अग्रवाल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे, जबकि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वाराखेड़ी विशिष्ट अतिथि होंगे। सत्र की अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानंद जोशी करेंगे और प्रो. रमेश चंद्र गौड़ स्वागत भाषण देंगे और चर्चाओं का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करेंगे। दिन भर कई सत्र आयोजित किए जाएंगे। इस संगोष्ठी के माध्यम से, आईजीएनसीए का उद्देश्य विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों और विरासत पेशेवरों को एक साथ लाना है ताकि वे भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र में निहित शाश्वत ज्ञान पर विचार कर सकें और समकालीन वैश्विक विमर्श में जीवंत ग्रंथों के रूप में उनकी प्रासंगिकता की पुनः पुष्टि कर सकें।
दिन भर कई सत्र आयोजित किए जाएँगे। इस संगोष्ठी के माध्यम से, आईजीएनसीए विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों और विरासत विशेषज्ञों को भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र में निहित शाश्वत ज्ञान से जुड़ने और समकालीन वैश्विक विमर्श में जीवंत ग्रंथों के रूप में उनकी प्रासंगिकता की पुष्टि करने का एक मंच प्रदान करना चाहता है। कार्यक्रम का समापन डॉ. मयंक शेखर द्वारा औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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(Release ID: 2150531)