उप राष्ट्रपति सचिवालय
सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी अवार्ड्स के 19वें संस्करण में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
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10 JUL 2025 6:58PM by PIB Delhi
आप सभी को शुभ संध्या।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में मेरा तीन वर्षों का कार्यकाल सदैव मेरी स्मृतियों में ताजा रहेगा । प्रत्येक दिन सीखने का दिन था, लेकिन सबसे सुखद बात यह थी कि आईटीसी का मुख्यालय वहीं स्थित था और संजीव पुरी, पूरे कार्यकाल के दौरान, अध्यक्ष रहे। आईटीसी और उसके लीडर के बारे में, मैंने उसी दौरान जाना। पूर्णतया व्यवसाय, प्रतिबद्धता, मार्गदर्शक दृष्टिकोण और समाज को शत-प्रतिशत लौटाने की भावना।
वहीं मैंने एक किसान के बेटे के तौर पर सीखा कि आईटीसी का कृषि, ग्रामीण विकास और स्थिरता से बहुत गहरा नाता है। आपको यहाँ पाकर और आपकी वजह से यहाँ आकर प्रसन्नता हुई। गंभीर, सज्जन और शालीन डॉ. अशोक खोसला ने बहुत अच्छा काम किया है। सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी अवार्ड्स के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष। सभी पुरस्कार विजेताओं को मेरी बधाई। आईटीसी और उसके अध्यक्ष को भी बधाई, विशेष रूप से, इस प्रशंसा और सम्मान के लिए, जो उचित रूप से प्रदान किया गया है। अन्य कॉर्पोरेट्स के लिए भी यह अनुकरणीय होगा।
सम्मानित श्रोतागण, सस्टेनेबिलिटी (या स्थिरता), जो अब कॉर्पोरेट जगत, सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय निकायों में वैश्विक लोकप्रिय शब्द बन चुका है, सदियों से हमारे लोकाचार में गहराई से समाहित रहा है। दुनिया ने इसे नज़रअंदाज़ किया और हमने इसे भुला दिया और अब हम अपने संकट के लिए इसे समझ रहे हैं, क्योंकि स्थिति बेहद अनिश्चितापूर्ण है। समय तेजी से बीत रहा है और हमारे पास अपनी पूरी क्षमता से, सामंजस्यपूर्ण ढंग से, एक साथ और एकजुटता से कार्य करने के अलावा कोई उपाय नहीं है।
मित्रों, सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी अवार्ड्स के 19वें संस्करण में आपके साथ शामिल होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है, क्योंकि ऐसे कदम प्रेरणादायक, प्रेरक होते हैं और इस बात की याद दिलाते हैं कि धरती पर हर किसी को अपना कर्तव्य निभाना है। पिछले कुछ वर्षों में यह मंच उद्योग जगत के लिए संवाद के मंच से कहीं बढ़कर, सौभाग्य से और महत्वपूर्ण रूप से परिवर्तन के एक केंद्र के रूप में भी उभरा है।
मित्रों, ऐसे समय में जब दुनिया दिशा खोज रही है, जब अर्थव्यवस्थाएँ प्रगति और पृथ्वी के बीच संतुलन खोज रही हैं, जब व्यवसाय विकास के मूल सिद्धांतों के बारे में पुनर्विचार कर रहे हैं, सीआईआई विजन, नेतृत्व, आशा और समाधान प्रदान करते हुए दृढ़ता से खड़ा है। पिछले दो दशकों से, सीआईआई-आईटीसी सस्टेनेबिलिटी अवार्ड्स ने कॉर्पोरेट उत्कृष्टता को सम्मानित किया है, जिसका कुछ समय पहले आपने यहाँ अवलोकन किया, जो सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार, पर्यावरण के प्रति जागरूक और आर्थिक रूप से समावेशी है। वास्तव में, यह आश्चर्यजनक है कि कभी-कभी दुनिया के कुछ लोग भारत को समावेशिता का पाठ पढ़ाने की कोशिश करते हैं। भारत सहस्राब्दियों से समावेशिता का घर रहा है। हर मायने में, उसकी भव्यता में और सामंजस्यपूर्ण समाज के लिए उसके योगदान में ।
इसलिए मित्रों, ये पुरस्कार नई औद्योगिक नैतिकता के इरादे के प्रकाश स्तंभों की पुष्टि करते हैं जो स्थिरता को व्यावसायिक रणनीति के केंद्र में रखते हैं, कुछ ऐसा जो वर्षों पहले ज्ञात नहीं था और अब यह हर व्यावसायिक निर्णय और कार्य संस्कृति में सम्मिलित हो चुका है।
मित्रों, इन पुरस्कारों की बात करें, तो प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं। 18 वर्षों में 1,199 आवेदक और 410 सम्मान, लेकिन सबसे अधिक प्रेरणादायक है इनके पीछे की भावना। प्रत्येक विजेता उद्यम नवाचार, साहस और सहयोग की कहानी बयान करता है, जो अनुपालन से आगे बढ़कर उद्देश्य को लाभ में समाहित करता है और एक ऐसे भविष्य में निवेश करता है, जो पर्यावरण के अनुकूल, निष्पक्ष और अधिक मानवीय है। स्थिरता भी, इरादे को प्रभाव में परिष्कृत करने की दिशा में निरंतर विकास की एक यात्रा है क्योंकि केवल दोनों का अभिसरण ही फल और परिणाम लाता है।
प्रत्येक पुरस्कार विजेता आज एक आदर्श उदाहरण है, जो दर्शाता है कि उद्योग उत्कृष्टता और समता, लाभ और उद्देश्य, दोनों का अनुसरण कर सकता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए। मित्रों, संजीव पुरी ने कॉर्पोरेट भारत पर विचार व्यक्त किए। जब मैं कॉर्पोरेट भारत को वैश्विक परिप्रेक्ष्य से देखता हूँ, तो मुझे लगता है कि यह प्रतिभा का एक अद्वितीय भंडार है तथा प्रतिबद्धता और समाज को लौटाने का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें अपार संभावनाएँ हैं। सरकार और सरकारी अधिकारियों के साथ इसका तालमेलपूर्ण उपयोग, बड़ी उन्नति और ज्यामितीय परिणाम ला सकता है। यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो पूरा पारिस्थितिकी तंत्र एक अलग राह पर होगा। भारत आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है और यह मोड़ हमने पहले कभी नहीं देखा।
हम पृथ्वी पर सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश हैं। मानवता का छठा हिस्सा भारत में निवास करता है। हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और हम एक ऐसे विकास परिप्रेक्ष्य के अग्रदूत हैं, जो आर्थिक, पर्यावरणीय और नैतिक, तीनों में सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं। मैंने अपनी राजनीतिक यात्रा 1989 में शुरू की थी जब मैं लोकसभा के लिए चुना गया और मुझे मंत्री बनने का सौभाग्य मिला। मैं उस समय की अर्थव्यवस्था और उसके आकार को जानता था। अब भी जानता हूँ।
मंत्री के तौर पर मैंने यह दर्द सहा है। सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत। देश के सोने को दो स्विस बैंकों में जमा करने के लिए हवाई मार्ग से भेज दिया गया, क्योंकि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार घटकर लगभग एक बिलियन डॉलर तक हो रहा था। कल्पना कीजिए कि हम कहाँ पहुँच गए हैं। हम प्रगति के पथ पर हैं जो निरंतर और टिकाऊ है। सतत विकास के लिए वैश्विक 2030 एजेंडा इस ग्रह पर भारत की भागीदारी के बिना, भारत के योगदान के बिना, भारत के सक्रिय सकारात्मक रुख के बिना सफल नहीं हो सकता। सौभाग्य से, अपने नेतृत्व की दूरदर्शिता की बदौलत, भारत ने इस जिम्मेदारी को स्पष्टता और दृढ़ विश्वास के साथ स्वीकार किया है। सरकार-केंद्रित दृष्टिकोण से आगे बढ़ते हुए भारत सरकार एक समग्र समाज के ढांचे की ओर बढ़ गई है। उप-राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारें, सामाजिक संगठन, निजी क्षेत्र प्रतिभागी और समुदाय, सभी प्रगति के इस इंजन के महत्वपूर्ण पुर्जे हैं। लेकिन दोस्तों, अगर हमें ठोस सफलता हासिल करनी है, तो इस इंजन को पूरी क्षमता से काम करना होगा।
प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित आदर्श वाक्य ‘सबका साथ, सबका विकास’और उनकी सकारात्मक नीतियों द्वारा इसे जमीनी स्तर पर साकार भी किया गया है । ‘सबका विकास’ केवल एक नारा भर नहीं है, यह राष्ट्रीय लोकाचार है।
भारत का आर्थिक परिदृश्य मज़बूत बना हुआ है। हम सिर्फ़ वापसी ही नहीं कर रहे, बल्कि पुनर्परिभाषित भी कर रहे हैं। आर्थिक समीक्षा 2024-25 के अनुसार, मज़बूत निर्माण और ऊर्जा क्षेत्रों द्वारा संचालित हमारे औद्योगिक क्षेत्र में 6.2% की वृद्धि का अनुमान है। हमारी प्रगति निरंतर सुधारों, बुनियादी ढाँचे में निवेश और रणनीतिक डिजिटलीकरण का परिणाम है। कल्पना कीजिए, अगर हम पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालें, तो तेज़ी से आर्थिक उछाल, बुनियादी ढाँचे का अभूतपूर्व विकास, गहरी तकनीकी पहुँच, लगभग हर घर में शौचालय, गैस कनेक्शन, बिजली कनेक्शन, इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से जन-केंद्रित राहत। पाइप से जलापूर्ति हो रही है, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध हैं और सभी के लिए कनेक्टिविटी उपलब्ध है। ऐसा कुछ जिसकी मेरी पीढ़ी ने अपनी युवावस्था में कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैंने इसे अपनी आँखों से देखा है।
भारत केवल 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की ही आकांक्षा नहीं कर रहा है। अर्थव्यवस्था का आकार मायने रखता है, लेकिन एक सीमा तक ही। नंबर एक अर्थव्यवस्था बनना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अंततः हमें ज़मीनी स्तर पर भी वास्तविकता का एहसास होना चाहिए। इसलिए, भारत एक विश्वसनीय अर्थव्यवस्था, वैश्विक मूल्य परिवर्तन में एक विश्वसनीय भागीदार और अस्थिर दुनिया में स्थिर आधार बनने की सही राह पर है। इस समय दुनिया हलचल और उथल-पुथल से जूझ रही है। वैश्विक स्तर पर संघर्ष कम होने का नाम नहीं ले रहा है। आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान आ रहा है। इस अशांत परिदृश्य में, भारत एक प्रमुख आवाज़ है। इन मुद्दों का समाधान बातचीत और कूटनीति से ही निकालना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ये शब्द बताते हैं कि हम सदियों से किस राह पर चलते आए हैं।
इस देश में, हम उद्देश्यपूर्ण समृद्धि, समावेशितापूर्ण विकास और समग्रता के साथ नवाचार चाहते हैं। पिरामिडनुमा प्रगति भारत, उसकी विचारधारा, उसके लोकाचार, उसकी भावना और उसके सभ्यतागत सार के अनुकूल नहीं है। विकास एक ऊंची चौरस भूमि की तरह होना चाहिए, जिसका अर्थ है जन-केंद्रित, सर्व-लाभकारी, सशक्त होते लोग, राष्ट्र के प्रति अपनेपन की भावना से ओतप्रोत लोग, इन मोर्चों पर सरकार की भूमिका केवल एक प्रवर्तक की है। कॉर्पोरेट जगत पर भारी दायित्व हैं, लेकिन सरकार अपना योगदान दे रही है, चाहे वह मंजूरी के लिए राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली हो, गति शक्ति अवसंरचना योजना हो, लॉजिस्टिक्स पर ध्यान केंद्रित करना हो, और डिजिटल कनेक्टिविटी हो। उद्देश्य टकराव को कम करना और उत्पादकता बढ़ाना है। इससे अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं, लेकिन अगर मैं ऐसा कह सकता हूँ, तो अकेले सरकार पेनल्टी गोल नहीं कर सकती।
सरकार अकेले वे कॉर्नर और कॉर्नर किक नहीं कर सकती, जिनसे लक्ष्य प्राप्त होते हैं। निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि अंततः उद्योग ही नवाचार को बढ़ावा देता है, आजीविका का सृजन करता है और राष्ट्रीय विकास की संरचना का निर्माण करता है। इसलिए, मेरा आग्रह है कि निजी क्षेत्र को न केवल एक आर्थिक कर्ता के रूप में, बल्कि भारत के भविष्य के सह-निर्माता के रूप में भी अपनी भूमिका निभानी चाहिए। यह राष्ट्र के विकास हासिल करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कारक है। और यहाँ, मित्रों, मैं वैश्विक आर्थिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण क्रमिक विकास पर प्रकाश डालना चाहता हूँ जिस पर संजीव पुरी ने विचार किया था।
पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक ईएसजी मानकों का उदय। ये मानक भले ही पश्चिमी अवधारणा के रूप में उभरे हों, लेकिन इनके पूर्ववृत्त और डीएनए पर भारत की छाप है। यह गहराई से संरेखित है, मैं सभ्यतागत मूल्यों के बिना ईएसजी का उल्लेख कर रहा हूँ। हाल के समय में, मैं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वापस नहीं जाना चाहता। महात्मा गांधी द्वारा व्यक्त ट्रस्टीशिप की अवधारणा ने व्यवसायों से धन के संरक्षक के रूप में कार्य करने का आग्रह किया ताकि वे केवल शेयरधारकों के रूप में ही नहीं, बल्कि समग्र समाज की सेवा कर सकें।
एक समय था जब स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र व्यवसायों द्वारा समाज को कुछ वापस देने के साधन हुआ करते थे। लेकिन अब की प्रवृत्ति यह है कि स्वास्थ्य और शिक्षा लाभदायक व्यवसाय बनते जा रहे हैं। इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का व्यावसायीकरण और वस्तुकरण, जो मूलतः समाज की सेवा का एक मार्ग मात्र हैं, समाज को कुछ वापस देने के लिए एक ऐसा पहलू है जिस पर कॉर्पोरेट भारत को विचार करना होगा और एक तंत्र विकसित करना होगा। इसलिए मैं सीआईआई से आग्रह करता हूँ कि वह एक ऐसी व्यावसायिक संस्कृति को बढ़ावा देकर उदाहरण प्रस्तुत करे जो न्यायसंगतता पारदर्शिता और दीर्घकालिक मूल्य सृजन को प्राथमिकता दे। भारतीय उद्यमों के डीएनए में ईएसजी को एकीकृत करके हम जोखिमों को कम कर सकते हैं और हरित वित्त से लेकर वैश्विक सहयोग तक के नए अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
मित्रों, भारत अब केवल संभावनाओं वाला राष्ट्र नहीं रहा, इसका उत्थान निरंतर और अबाध है। 2047 में विकसित भारत हमारा सपना नहीं है, यह हमारी निर्धारित मंजिल है, हम इसे प्राप्त करने के लिए बाध्य हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम 2047 में विकसित भारत की ओर अपना मार्ग प्रशस्त करते हैं, हमें विकास का एक ऐसा दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहिए जो साहसिक, समावेशी और टिकाऊ हो। मित्रों, यह दृष्टिकोण पाँच आधारभूत स्तंभों पर आधारित होना चाहिए। पहला, डीकार्बोनाइजेशन और हरित विकास। जलवायु कार्रवाई कोई पसंद नहीं है, कोई विकल्प नहीं है, बल्कि यह एकमात्र विकल्प है। हमारे पास साथ रहने के लिए कोई अन्य ग्रह 'धरती माँ' नहीं है। यह आवश्यकता है, यह एक आकर्षक व्यावसायिक अवसर भी है यदि हम इसे उस दृष्टिकोण से देखें, तो भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। यह एक कठिन लक्ष्य है, लेकिन सही नीतिगत वित्तपोषण और मंच पर जिस तरह का उद्योग नेतृत्व मैं देख रहा हूँ और इन संगठनों से जो प्रतिबद्धता मैं देख रहा हूँ, उसके साथ यह प्राप्त करने योग्य है।
आइए, भारतीय उद्योग इस हरित क्रांति का अग्रदूत बनें। आइए, हम नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, सर्कुलर इकॉनोमी मॉडल और कार्बन मार्केट में आविष्कार करें। आइए, हम स्थिरता को अनुपालन के बजाय प्रतिस्पर्धात्मक लाभ के स्रोत के रूप में देखें। जैसे ही हम इसे अनुपालन के दायरे में लाते हैं, लड़ाई हार दी जाती है। यह हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। दूसरा, तकनीकी नेतृत्व और नवाचार। यूपीआई से लेकर भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, जिसकी अब हमारे सभी मोर्चों तक पहुँच है और जिसकी विदेशों में भी बहुत अच्छी स्वीकार्यता है, और आधार से लेकर ओएनडीसी तक, ने एक वैश्विक मानदंड स्थापित किया है, लेकिन मित्रों, अगला मोर्चा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, सेमीकंडक्टर और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में है।
उद्योग जगत से जुड़े होने के नाते, आप सभी इस बात से अवगत हैं कि जब क्वांटम कंप्यूटिंग की बात आई, तो एक देश के रूप में हम 6000 करोड़ रुपये के वित्तपोषण के संदर्भ में सबसे पहले स्थान पर थे। जब हरित हाइड्रोजन मिशन की बात आई, तो उसके लिए 18000 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई गई। इसलिए, हम इन वैश्विक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले एकल संख्या वाले देश हैं। लेकिन हमें जैव प्रौद्योगिकी और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भी बहुत सतर्क रहना होगा और आर्थिक सुरक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
उद्योग जगत को अनुसंधान और विकास में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए और स्वदेशी डिज़ाइन में निवेश करना चाहिए। मैं इस पर एक पल के लिए विचार करूँगा। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। कॉर्पोरेट जगत का व्यापक रूप से एक साथ आना। मोटे तौर पर, जैसा कि मैंने देखा है और मैंने कई मंचों पर कहा है, अनुसंधान केवल अपने लिए नहीं हो सकता। अनुसंधान केवल दिखावटी नहीं हो सकता। अनुसंधान केवल आत्मसात या सतही कानहीं हो सकता। अनुसंधान को जमीनी स्तर पर बदलाव लाने से जोड़ना होगा और जिसे उद्योग आसानी से पहचान सकता है।
इसलिए आइए, हम भारतीय नवाचार के साथ वैश्विक उत्पाद बनाएँ। हम यह कर सकते हैं। हमारे पास प्रतिभा है। हमारे पास मानवीय प्रतिभा है। हमारा डीएनए बहुत मज़बूत है। आइए, हम आयातित तकनीक के उपयोगकर्ता होने के स्थान पर अत्याधुनिक समाधानों के निर्माता बनें। अपने इतिहास पर नज़र डालें। इन सभी पहलुओं में हम अग्रणी रहे हैं। उन नामों पर गौर कीजिए, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। भारतीय ज्ञान प्रणाली। जितना अधिक हम इस पर ध्यान केंद्रित करेंगे, उतना ही हमें एहसास होगा कि हम शिखर पर थे।
मित्रों, तीसरा है युवा और कौशल विकास। हमारी लगभग दो-तिहाई आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। हमारा जनसांख्यिकीय युवा लाभांश, जिसकी औसत आयु 28 वर्ष है,हम चीन और अमेरिका से 10 वर्ष छोटे हैं। युवाओं के लिए हमारा जनसांख्यिकीय लाभांश दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय है। लेकिन पिछले 10 वर्षों में हम ऐसे अभूतपूर्व विकास के साक्षी बने हैं, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। इसने देश को दुनिया का सबसे आकांक्षी राष्ट्र बना दिया है, क्योंकि लोगों ने विकास के लाभों का अनुभव किया है। उन्होंने ऐसी सुविधाएँ और नीतिगत लाभ प्राप्त किए हैं जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इसलिए जब कोई राष्ट्र इतना आकांक्षी होता है, तो वहाँ अशांत वातावरण या असहजता की आशंका हमेशा बनी रहती है।
इसलिए, विशेष रूप से कॉर्पोरेट्स का यह कर्तव्य है कि हमारी इस सबसे बड़ी दौलत को सही दिशा में निर्देशित किया जाए। इसलिए, युवाओं और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। सरकार कई नवोन्मेषी कदम उठाकर अपना योगदान दे रही है, लेकिन प्रभावी परिवर्तन के लिए उद्योग जगत को अपना बड़ा योगदान देना होगा। यह हमारी सबसे बड़ी दौलत है, लेकिन कोई भी दौलत तभी सबसे बड़ी होती है जब हम उसका दूरदर्शिता और तत्परता से उपयोग करें। मैं उद्योग जगत से आग्रह करता हूँ कि वे भविष्य के अनुकूल पाठ्यक्रम तैयार करने हेतु शिक्षा जगत, प्रशिक्षण संस्थानों और सरकार के साथ मिलकर काम करें। मैं लंबे अरसे से कहता आ रहा हूँ कि यदि उद्योग और सरकार एकमत हों, तो परिणाम अभूतपूर्व, सुव्यवस्थित और राष्ट्रीय प्रगति के लिए सुखद होंगे। उदाहरण के लिए, अप्रेंटिसशिप, इंटर्नशिप, स्किल लैब और मेंटरशिप को औद्योगिक रणनीति का अभिन्न अंग बनना चाहिए। लेकिन आप इसमें माहिर हैं। आप सरकार में किसी भी अन्य से ज़्यादा इसके बारे में जानते हैं। इसलिए आपको इन क्षेत्रों की ओर आनुवंशिक रूप से आकर्षित होकर इन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। आइए, हम एक ऐसा कार्यबल तैयार करें, जो डिजिटल रूप से निपुण, नैतिक रूप से सशक्त और स्थायी रूप से साक्षर हो।
चौथा, वैश्विक पदचिह्न और नेतृत्व। भारत की जी-20 की अध्यक्षता ने वैश्विक सहमति बनाने, सहयोग करने और उसे उत्प्रेरित करने की हमारी क्षमता का प्रदर्शन किया। जी-20 के परिणामों पर गौर कीजिए। पहला, हमने सर्वोच्च मानक स्थापित किया, जिसकी वैश्विक मंचों पर सराहना हुई। दूसरा, हम यूरोपीय संघ के साथ-साथ अफ्रीकी संघ को भी जी-20 के सदस्य के रूप में शामिल करने के अपने सिद्धांतों पर खरे उतरे। प्रधानमंत्री के विजन से ग्लोबल साउथ की सहमति वैश्विक रडार पर आई। और फिर, एक बात जो आप सभी के लिए रुचिकर है, ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस से लेकर डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना रिपॉजिटरी तक, हमने दुनिया को दिखाया कि नेतृत्व का मतलब प्रभुत्व नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी है। मैं फिर से विषय से थोड़ा हटकर कुछ साल पहले प्रधानमंत्री द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करूँगा। हम युद्ध या विस्तार के ऐसे युग में नहीं रह रहे हैं जो हमारी संस्कृति को परिभाषित करता हो।
मित्रों, भारत के उद्योग जगत को अब अपनी वैश्विक उपस्थिति का विस्तार करना होगा, केवल बाज़ारों में ही नहीं, बल्कि विचारों, मानकों और समाधानों में भी। आइए, हम चार स्तंभों पर ब्रांड इंडिया का निर्माण करें। गुणवत्ता, विश्वास, नवाचार और आधुनिक प्रासंगिकता के लिए पुनर्कल्पित प्राचीन ज्ञान।
मैं आप सभी के सामने अपनी बात खुलकर कहना चाहता हूँ। आइए, हम ग्रीनफील्ड परियोजनाओं पर ध्यान दें, स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ाएँ, शिक्षा क्षेत्र को बढ़ाएँ, महानगरों के आसपास सुविधाएँ बढ़ाना ठीक है, लेकिन इससे न्यायसंगत संतुलन नहीं बनता। न्यायसंगत संतुलन, असमानतापूर्ण आचरण को कम करने के लिए आवश्यक है। और इसलिए, मैं लंबे समय से कहता आ रहा हूँ और मुझे अपना दृष्टिकोण साझा करना चाहिए, यदि कॉर्पोरेट्स के सीएसआर फंड का उपयोग कॉर्पोरेट्स और समूह स्वयं करें, तो जो क्षेत्र अब तक छूट गए हैं, उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में विश्वस्तरीय संस्थान मिलेंगे।
पाँचवाँ, और यह भारत की अनूठी विशेषता है, नैतिकता, न्यायसंगतता और उत्कृष्टता। हम भाड़े के सैनिक नहीं हैं, हम शोषण के पक्षधर नहीं हैं। हम व्यापक रूप से समाज के लाभ के लिए अपने सपनों को साकार करने हेतु अपनी ऊर्जा के सकारात्मक उपयोग में विश्वास करते हैं। सही मायने में विकसित राष्ट्र वह होता है, जहाँ अवसर केवल कुछ मुट्ठी भर लोगों का विशेषाधिकार न होकर सभी का अधिकार होते हैं। एक समय था जब कानून के समक्ष समानता एक भ्रम हुआ करती थी। कुछ लोग यह सोचते थे कि वे कानून से ऊपर हैं। वे कानून की पहुँच से परे थे। हम अक्सर विशेषाधिकार प्राप्त वंश की बात करते थे, जो अब हमारे बीच नहीं है। यह उन महान उपलब्धियों में से एक है जिसने एक लोकतांत्रिक जीवन को एक नई मूल्य प्रणाली दी है। मित्रों, उद्योग जगत को एमएसएमई का समर्थन करके और नेतृत्व में लैंगिक और जातिगत विविधता को बढ़ावा देकर समावेशिता की एक शक्ति बनना चाहिए। कहना आसान है, करना मुश्किल।
लैंगिक और जातिगत विविधता को सही अर्थों में आकलन करना होगा। जब महिला या पुरुष की बात आती है, तो हम सकारात्मक कार्रवाई के पक्षधर होते हैं। लेकिन असली समस्या तब होती है जब लैंगिक भेदभाव अप्रत्यक्ष होता है। जब प्रभुत्व की सामान्य इच्छा के कारण लैंगिक भेदभाव को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, तो वह जेंडर को कमज़ोर कर देता है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि संसद में मेरे लिए वह सबसे गौरवपूर्ण क्षणों में से एक था जब तीन दशकों की रुकावटों के बाद महिला आरक्षण विधेयक पारित हुआ। यह शासन में सतत विकास के लिए है।
अब लोकसभा में कम से कम एक-तिहाई सदस्य और राज्य विधानसभाओं में कम से कम एक-तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात, जिस पर अब दुनिया गौर कर रही है, और जो भारत की अनूठी विशेषता है, वह यह है कि महिला आरक्षण ऊर्ध्वाधर भी है और क्षैतिज भी। स्थिरता के पहलू को ध्यान में रखते हुए, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं को भी उचित स्थान दिया गया है।
मित्रों, मैं सीआईआई से आग्रह करता हूँ कि वह भारतीय उद्योग के लिए एक नैतिक दिशासूचक के रूप में कार्य करे और उसे नैतिक उद्यमिता और मूल्य-आधारित विकास की ओर ले जाए। मैं आपको एक ऐसी बात बताता हूँ जिसके बारे में आप मुझसे ज़्यादा जानते हैं। आर्थिक राष्ट्रवाद मूल रूप से स्थिरता से जुड़ा है। अगर भारत जैसे देश में हम पतंगें, मोमबत्तियाँ, दीये, फ़र्नीचर, कालीन जैसी अनावश्यक चीज़ें आयात करते हैं, तो हम तीन काम कर रहे हैं। पहला, हम अपने विदेशी मुद्रा भंडार में एक ऐसा छेद कर रहे हैं जिसे टाला जा सकता है। लेकिन यह बहुत ज़्यादा नहीं है। असली समस्या यह है कि कपड़े आदि के लिए हम उन्हें लाभ पहुँचाकर, अपने ही लोगों से काम छीन रहे हैं। और तीसरा, जो आप सभी के लिए मायने रखता है, हम इस प्रक्रिया में उद्यमिता को भी कमजोर कर रहे हैं। मित्रों, यही बात तब भी लागू होती है जब इस देश से कच्चा माल निर्यात किया जाता है।
कच्चे माल का निर्यात दुनिया के लिए इस बात का संकेत है कि देश उसमें मूल्यवर्धन करने की स्थिति में नहीं है। हमारे कामकाज पर इस तरह की छाप वांछनीय नहीं है। इसलिए, हमें राष्ट्र और आम आदमी को ध्यान में रखते हुए जवाबदेही और उद्देश्यपूर्ण संस्कृतियाँ बनानी होंगी।
मित्रों, हम उस दौर से गुज़र रहे हैं जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उचित रूप से 'अमृत काल' कहा है, जो सदियों में एक बार आने वाला परिवर्तनकारी अवसर का काल है। अब समय आ गया है कि भारत की टुकड़ों में नहीं, बल्कि उसकी संपूर्ण परस्पर संबद्ध क्षमता के साथ नए सिरे से कल्पना की जाए।
आज जब हम इस 19वें संस्करण के बैनर तले एकत्रित हुए हैं, तो आइए हम एक ऐसे विकसित भारत के स्वप्न के प्रति पुनः प्रतिबद्ध हों जो कभी हुआ करता था, समृद्ध, समावेशी, नवोन्मेषी और पारिस्थितिकीय रूप से संतुलित। एक ऐसा भारत जो करुणा के साथ नेतृत्व करे, आत्मविश्वास से प्रतिस्पर्धा करे और साहस के साथ सहयोग करे।
मैं सीआईआई के सदस्यों से आग्रह करता हूँ कि आपके हाथों में नेतृत्व की मशाल है, कृपया इसे गर्व के साथ थामे रहें, लेकिन इसे एक उद्देश्य के साथ भी थामे रहें, एक ऐसा उद्देश्य जो आपको उस आम आदमी से जोड़े जो अपने आज और कल को बेहतर बनाना चाहता है। विकसित भारत की यात्रा एक ऐसा मार्ग है जिसे हम अपने प्रत्येक नैतिक निर्णय, प्रत्येक पर्यावरण-अनुकूल निवेश, प्रत्येक सृजित रोजगार और प्रत्येक रूपांतरित जीवन के साथ बनाते हैं।
मित्रों, मुझे राज्य सभा, उच्च सदन, यानी वरिष्ठ सदन, जिसे आम बोलचाल में राज्यसभा कहते हैं, का सभापति होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं विभिन्न मतों को देखता हूँ, लेकिन दो बातें मुझे बहुत परेशान करती हैं। पहली, हमारा असली रत्न संवाद, विमर्श, विचार-विमर्श, चर्चा, विचारों का अभिसरण और सर्वमान्य दृष्टिकोण था। ये सब संविधान सभा द्वारा परिभाषित थे, जिसमें एक भी व्यवधान या गड़बड़ी की घटना नहीं हुई। अब, जब लोकतंत्र के ये मंदिर कभी-कभी अपवित्र हो जाते हैं, तो हमें गहरी चिंता होनी ही चाहिए क्योंकि इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है।
इसलिए, मैं एक चेतावनी के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ। आइए, देश के बाहर से फैलाई जा रही धारणाओं से प्रभावित न हों। आइए, दूसरों को हमारा मूल्यांकन करने का मौका न दें। आइए, इस राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से स्थापित करें और इस राष्ट्र को सदैव सर्वोपरि रखें। अपने राष्ट्र के लिए हमारी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही है कि हम सतत विकास के प्रति अपना विश्वास प्रमाणित करें।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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एमजी/केसी/आरके
(Release ID: 2143947)