उप राष्ट्रपति सचिवालय
बेंगलुरू में प्रमुख उद्योगपतियों और उद्यमियों को उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
Posted On:
07 JUN 2025 8:34PM by PIB Delhi
सभी को मेरा नमस्कार,
बेंगलुरु के बिल्डरों और व्यापारियों का यह वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण संगम है। जनसांख्यिकीय स्थिति, आर्थिक प्रगति के संदर्भ में बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली के साथ देश के तीन शीर्ष शहरों में से एक है। सबसे पहले, मैं यहाँ की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए संवेदना व्यक्त करता हूँ, शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूँ, और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।
विशिष्ट श्रोतागण, राष्ट्र को पहलगाम में बहुत पीड़ा झेलनी पड़ी। वहाँ क्रूरता, बर्बरता और निशाना बनाकर हत्याएं की गईं। भारत की शक्ति को चुनौती दी गई, हमारी सभ्यता को आघात पहुंचाया गया, लेकिन यह हमारे लिए अपने सशस्त्र बलों को सलाम करने का अवसर है। उन्होंने निर्णायक वार किया, उन्होंने पूरी दुनिया की वाहवाही बटोरी। ऑपरेशन सिंदूर ने सटीक, अचूक आकलन और योजनाबद्ध कार्रवाई के साथ अपना लक्ष्य हासिल किया।
मुरीदके और बहावलपुर हमारे सैन्य बलों की ताकत के गवाह हैं। दुनिया को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। इसका सीधा सा कारण यह है कि ताबूतों को उस देश के सैन्य अधिकारियों, उस देश के राजनेताओं और आतंकवादियों के साथ कब्रिस्तान ले जाया गया।
भारत, जहाँ की आबादी का छठा हिस्सा रहता है- ने समूची दुनिया को एक स्पष्ट संदेश दिया है । भारत अब आतंकवाद को हरगिज बर्दाश्त नहीं करेगा और इसीलिए भारत में निर्मित हमारे ब्रह्मोस की शक्ति जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालयों पर किए गए विध्वंस से प्रदर्शित हुई। हमारे सशस्त्र बलों की वीरता का आभार व्यक्त करने के लिए आप सभी के साथ मेरे पास भी शब्द नहीं हैं, लेकिन इस अवसर पर, लोगों के बीच उपस्थित रहते हुए मैं अपने विचार साझा करना चाहता हूँ।
चाहे अर्थव्यवस्था हो या राष्ट्रीय सुरक्षा, आप लोगों को बहुत बड़ी भूमिका निभानी होगी। यह भूमिका इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पारंपरिक युद्ध के दिन अब लद चुके हैं। युद्ध तकनीकी कौशल पर लड़ना होगा। जब भारत की तकनीकी शक्ति, तकनीकी कौशल को परिभाषित करने की बात आती है, तो हमें बेंगलुरु को याद रखना चाहिए। इसकी प्रतिभा, इसका योगदान, बेंगलुरु दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय बन गया है। यह एक ऐसी जगह है, जहाँ हमारे युवाओं ने कमाल कर दिखाया है।
वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थान और कॉर्पोरेट यहीं से निकले हैं। इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि नवाचार के इस क्रुसिबल ने अतीत में बड़े बदलावों को प्रोत्साहित किया है, लेकिन अब उसके समक्ष और भी बड़ी चुनौती प्रस्तुत है, क्योंकि हम एक अलग युग में रह रहे हैं। विघटनकारी तकनीकें, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन और इस तरह की अन्य तकनीकें नए मानदंड बन चुके हैं। ये ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिन्हें अवसरों में बदला जा सकता है। अन्यथा ये चुनौतियाँ हमारी अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी नहीं होंगी।
इसलिए यह सुनिश्चित करने के इष्टतम प्रयास होने चाहिए कि हमारे संसाधन, मानव संसाधन, प्रौद्योगिकी के दोहन में बड़े बदलाव लाने के लिए सामान्यीकृत हों। और ऐसे में उच्चतम स्तर के अनुसंधान में संलग्न होना कॉरपोरेट्स, व्यवसाय, व्यापार और उद्योग के लिए एक चुनौती है। हमारी शोध क्षमता यह निर्धारित करेगी कि भारत दुनिया में कितना शक्तिशाली होगा। हमारी तकनीकी पैठ, हमारा तकनीकी नवाचार यह निर्धारित करेगा कि हम कितने सुरक्षित हैं।
व्यापार के विकास और लोगों के बीच सद्भाव के लिए शांति अत्यंत महत्वपूर्ण है। शांति कभी सौदेबाजी से हासिल नहीं की जाती, शांति ताकत की स्थिति से आती है। यह शक्ति की स्थिति से आती है। जब हम युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, तभी सबसे बड़ी शांति प्राप्त होती है । एक समय था, जब उद्योग जगत की भूमिका शस्त्रागार, घातक शस्त्रागार बनाने से ज़्यादा नहीं थी, लेकिन अब उद्योग जगत को पूरी तरह अलग खांचे में योगदान देना होगा और वह खांचा है तकनीक का । और इसी खांचे में हमें अनुसंधान के ज़रिए दुनिया का नेतृत्व करना होगा, क्योंकि अनुसंधान ही दीर्घावधि में इसकी अंतिम ताकत है। यदि हम अंतरराष्ट्रीय सीमा में गहराई तक जाकर दुनिया भर में संदेश भेजने पर गर्व महसूस करते हैं, तो यह तकनीक के अलावा और कुछ नहीं था।
ब्रह्मोस का निर्माण उत्तर प्रदेश में हुआ था। हमें कवर आकाश ने प्रदान किया, लेकिन ये सब तकनीक से निर्मित हैं और इसलिए मैं सही जगह पर हूँ, क्योंकि बेंगलुरु एक ऐसी जगह है, जहाँ प्रतिभा फलती-फूलती है, जहाँ प्रतिभा समृद्ध होती है, जहाँ उद्योग जगत आगे बढ़ रहा है और समूचे विश्व समुदाय के ज्ञान को झिलमिला रहा है। इसलिए सबसे कठिन चुनौती का समाधान बेंगलुरु में निहित है।
सम्मानित श्रोतागण, बीते दस वर्षों में भारत असाधारण विकास का साक्षी रहा है। तीव्रतम आर्थिक प्रगति, बुनियादी ढांचे का अभूतपूर्व विकास, गाँवों तक डिजिटल प्रौद्योगिकी की गहरी पैठ। इस अवधि के दौरान हम दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था रहे हैं। हम 11वें स्थान से एकल अंक तक पहुँचे, 5वें स्थान पर पहुँचे, फिर 4वें स्थान पर पहुँचे। और अब हम बहुत जल्द दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। लेकिन हमारे बीच मौजूद वरिष्ठ राजनेताओं और उद्योग जगत से मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ ।
भारत अब मात्र संभावनाओं वाला देश नहीं रहा है। भारत पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यह वृद्धि क्रमिक है, यह वृद्धि अबाध है, लेकिन हमें और भी बहुत कुछ करना है और इसका कारण मैं आपको बताता हूँ। विकसित भारत अब हमारा सपना भर नहीं है। यह हमारा उद्देश्य है। हम निश्चित रूप से उस उद्देश्य को प्राप्त करेंगे। लेकिन उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमें लंबी छलांग लगानी होगी और यह लंबी छलांग हमें प्रति व्यक्ति आय में कई गुना वृद्धि करके लगानी होगी। अर्थव्यवस्था का आकार ठीक है, लेकिन हमें अपनी अर्थव्यवस्था की वृद्धि की स्थिति को अपने जनसांख्यिकीय आकार के साथ जोड़कर देखना होगा, हम 1.4 बिलियन लोग हैं। इसलिए, अनुभवजन्य अनुमान के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय में 8 गुना वृद्धि करनी होगी।
अब इस विकास इंजन में, मेरे सामने जो लोग हैं, जिनके साथ मैं अपने विचार साझा कर रहा हूँ, वे सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं। आपके योगदान को देखते हुए विकास का इंजन सभी सिलेंडरों पर चल सकता है, लेकिन एक बात यह है कि राजनीति जगत के लोगों के विपरीत, उद्योग जगत के लोग बैलेंस शीट से संतुष्ट हैं। राजनीति जगत के लोग नहीं। वे ऊपर उठने के लिए योगदान करते रहते हैं और इसलिए, देश में ग्रीन फील्ड परियोजनाओं का उदय उस गति से नहीं हो रहा है जिस गति से होना चाहिए। मैं आपसे अपील करता हूँ, कि कृपया इस बारे में सोचें।
ग्रीन फील्ड परियोजनाओं के लिए क्लस्टर्स में एकत्र हों, उसी परियोजना की क्षमता बढ़ाना ठीक है, लेकिन यदि आपके पास ग्रीन फील्ड परियोजना है, तो रोजगार, अवसर और विकास की संभावनाओं का न्यायसंगत वितरण होगा। दूसरा पहलू यह है कि मेरा संबंध किसान समुदाय से है । देश के विकास में कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका है। लेकिन फिलहाल कृषि क्षेत्र का योगदान कृषि उत्पादों की पैदावार और उसकी मार्केटिंग तक ही सीमित है। वह मार्केटिंग मैकेनिज्म का हिस्सा नहीं है। कृषि क्षेत्र मार्केटिंग चेन का हिस्सा नहीं है। उद्योग मुख्य रूप से कृषि-उत्पादों पर आधारित है। अब उद्योग जगत को खेत और उद्योग के बीच बेहतर तालमेल लाने के लिए मंथन करना होगा, गहन चिंतन करना होगा।
किसान का हाथ थामना होगा। कृषि क्षेत्र से उद्यमी लाने होने होंगे। मैं उन्हें कृषि उद्यमी कहता हूँ, लेकिन वे अपने बूते पर वहाँ नहीं हो सकते। खाद्य प्रसंस्करण एक मूलभूत कारक है। उद्योगों की संख्या। मूल्य संवर्धन हो सकता है। तकनीक यह तय करेगी कि क्या उत्पादन प्रचुर मात्रा में है, तो ऐसे में किसान को निश्चित रूप से नुकसान होगा। क्योंकि कीमतें गिरती हैं। ये बाज़ार द्वारा संचालित होती हैं। हम कीमत को कैसे बनाए रखते हैं? हम खेत या उसके आस-पास प्रचुर उत्पादन में मूल्य संवर्धन करके बनाए रखते हैं।
टमाटरों को सड़क पर फेंके जाने का प्रदर्शन हमारी राष्ट्रीय मानसिकता के लिए अच्छा नहीं है। हमें एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए, जहां यदि बहुतायत हो, तो मोबाइल औद्योगिक इकाइयां उसे कच्चे माल में बदल सकें और संबंधित औद्योगिक क्षेत्र को भेज सकें। इसलिए अब समय आ गया है कि कॉरपोरेट अपने मुनाफे को कृषि क्षेत्र के साथ साझा करें।
याद रखें, आपका निवेश, चाहे वह शोध में हो या खेत में, वह निवेश आपके लाभ के लिए होगा। यह स्थायी अर्थव्यवस्था के उद्भव की भरपाई होगा। मैं कॉरपोरेट, व्यवसाय, व्यापार और वाणिज्य जगत से भी आग्रह करता हूँ कि हमें आर्थिक राष्ट्रवाद की अवधारणा को अपनाना चाहिए। जब मैं सांसद और मंत्री था, और यह लगभग साढ़े तीन दशक पहले की बात है, तो हमारे कीमती सोने को दो बैंकों में जमा करने के लिए स्विट्जरलैंड भेजा गया था, क्योंकि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार लगभग एक बिलियन डॉलर था।
अब यह 700 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा है, लेकिन ज़रा सोचिए यदि हम अपने देश में बनने वाली चीज़ों का आयात करना बंद कर दें, तो यह 700 बिलियन डॉलर नहीं होगा। यह 800 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा होगा। जब हम पतंग, मोमबत्ती, दीये, फ़र्नीचर, पर्दे, कपड़े सब कुछ आयात करते हैं, तो हम तत्काल रूप से तीन काम ऐसे करते हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं। एक, हम अपने ही लोगों से काम छीन लेते हैं। दूसरा, हम उद्यमशीलता को कुंद कर देते हैं और तीसरा, हम अपनी विदेशी मुद्रा में सुराख कर देते हैं।
अब इसे किया कैसे जाए? इसके दो तरीके हैं। एक, लोग यह कर सकते हैं, लेकिन एक आसान तरीका है, क्योंकि आयात कॉर्पोरेट, व्यापार, उद्योग और व्यवसाय द्वारा किया जाता है। आपको तय करना होगा। यह सरकार के तय करने का विषय नहीं है, क्योंकि हमारे पास वैश्विक नियामक व्यवस्था है। लेकिन लोग तय कर सकते हैं। महात्मा गांधी को हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने लोगों से स्वदेशी में विश्वास करने का आह्वान किया था। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे एक नया आयाम दिया है ‘बी वोकल फॉर लोकल’।
मैं आपसे विनती करता हूँ कि सभी संघों को एक साथ लाएँ। इस पर विचार करें। देश हमेशा आपका आभारी रहेगा। और जब हम ऐसे देशों से आयात करते हैं, जो संकट के समय हमारे हितों के लिए हानिकारक साबित होते हैं, तो वे हमारी सुरक्षा को भी खतरे में डालते हैं। हम क्यों नहीं देशभक्ति प्रदर्शित करते! इसलिए मैं दूसरे पहलू पर आता हूँ। देश के राजनीतिक दलों को राजनीतिक तापमान घटाना होगा। राजनीतिक दलों के बीच संवाद टकराव का नहीं हो सकता। संवाद सुखदायी होना चाहिए। मित्रों, लोकतंत्र संवाद और विमर्श से परिभाषित होता है।
वेदांत का सिद्धांत है, प्रजातांत्रिक मूल्यों का बखान, बिना अभिव्यक्ति की आज़ादी और वाद-विवाद के बिना नहीं हो सकता। जिसको हम ‘अनंतवाद’ कहते हैं,उसका क्या मतलब है? आपको अभिव्यक्ति का अधिकार है। यदि अगर कोई आपके अभिव्यक्ति के अधिकार पर कुठाराघात करता है, कुंठित करता है या नियंत्रित करता है, तो प्रजातंत्र के अंदर कमी आती है। पर अभिव्यक्ति का आधार इतना बढ़ जाए कि दूसरे की बात ही नहीं सुनी जाए, और अभिव्यक्ति करने वाला यह समझ जाए कि जो मैंने कह दिया, वह अंतिम वाक्य है। मतलब वाद-विवाद को समाप्त कर दिया गया।
जीवन में मेरा अपना अनुभव यह रहा है कि आपको अपने दृष्टिकोण पर गर्व होना चाहिए, लेकिन यह कभी न भूलें कि हमेशा दूसरा दृष्टिकोण भी होता है। और दूसरा दृष्टिकोण, अक्सर सही दृष्टिकोण होता है। क्योंकि लोकतंत्र में अहंकार या घमंड के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन यदि विमर्श प्रदूषित हो तो राजनीतिक तापमान बढ़ जाता है। यह देश के लिए अच्छा नहीं है।
इसलिए मैं सभी राजनीतिक दलों से अपील करता हूँ। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे, राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे, विकास से जुड़े मुद्दे, सभी को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, न कि दलीय दृष्टिकोण से। मुझे राजनीतिक क्षेत्र में लोगों की राजनीतिक सूझबूझ पर जरा भी संदेह नहीं है। और वे सभी राजनीतिक दलों में मौजूद है। भारत एक फलता-फूलता संघीय समाज है, जहाँ केंद्र और राज्य के बीच तालमेल होना चाहिए। इसलिए, राजनीतिक नेताओं, राजनीतिक दलों के बीच संवाद होना चाहिए। उस संवाद का अभाव हमारे राष्ट्रीय दृष्टिकोण के लिए अच्छा नहीं होगा।
मैं आपका ध्यान परेशान करने वाली दो अन्य बातों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। हम देश में सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था लोकतंत्र के लिए चुनौती है। हम ऐसी मानसिकता कैसे रख सकते हैं कि लोग सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देने के लिए सड़कों पर उतरें! यह ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक अव्यवस्था आम बात थी और अब सार्वजनिक व्यवस्था आम बात है। और दूसरी बात, कल्पना करें कि सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है, लूटा जा रहा है, आगजनी की जा रही है, निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। इन लोगों का नाम उजागर किया जाना चाहिए और इन्हें शर्मिंदा किया जाना चाहिए। व्यवस्था को बहुत तेज़ी से आगे बढ़ना होगा। हम ऐसे लोगों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिनकी मानसिकता राष्ट्रवादी नहीं है। इसलिए हमें मनोवृत्ति विकसित करनी होगी।
माननीय राज्यपाल महोदय मुझे बता रहे थे कि जब भी कोई भारतीय विदेश जाता है, तो वह उस देश के अनुशासन, शिष्टाचार और कानून में विश्वास का प्रतीक होता है। चाहे वह सड़क पर हो या कहीं और। जैसे ही वह इस देश की धरती पर कदम रखता है, चीजें अलग हो जाती हैं। इसलिए, हमें शिक्षा से शुरुआत करनी होगी। कर्नाटक से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती, उपमुख्यमंत्री जी। प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों पर विचार करने के लिए बेंगलुरु से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती। और हमें अपने घरों से शुरुआत करनी होगी।
हमें बच्चे को सिखाना पड़ेगा बड़ों का आदर करो, गुरुजन का आदर करो, पड़ोसी का आदर करो, समाज का आदर करो। बच्चों को सिखाना पड़ेगा पर्यावरण का ध्यान दो, बच्चों को सिखाना पड़ेगा स्वदेशी ग्रहण करो, बच्चों को सिखाना पड़ेगा नागरिक का दायित्व क्या है। यह हमारे वेदों में परिलक्षित है, एक बार सिखा देंगे चमत्कारिक नतीजे हमारे सामने आएंगे।
बेंगलुरु में मैं एक और महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ। जब मैंने आर्थिक राष्ट्रवाद की बात की थी, तो उसमें देश में बनने वाली वस्तुओं का आयात शामिल था। अब मैं ऐसी वस्तुओं के आयात की बात कर रहा हूँ, जो देश में नहीं बनतीं। कृपया आयात प्रतिस्थापन के लिए काम करें। क्षेत्रवार, आपको पहचान करनी होगी कि हम इन वस्तुओं का आयात क्यों कर रहे हैं। इसलिए, कॉरपोरेट्स बहुस्तरीय हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हैं। वहाँ दूसरी परत है, तीसरी परत है। लेकिन मेरे हिसाब से सबसे ज़्यादा संभावनाओं से भरपूर दूसरी और तीसरी परत है। और उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है उद्यमियों का वर्ग। क्योंकि, मैं अपने युवा मित्रों को संबोधित करना चाहता हूँ।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को निवेश और अवसरों के लिए वैश्विक गंतव्य के रूप में मान्यता दी है, जो निश्चित रूप से सरकारी नौकरियों के लिए नहीं थी। यह अवसरों के लिए थी । इसलिए हमारे युवाओं को याद रखना चाहिए। वे स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं। वे अपने विचारों को पंख दे सकते हैं। उन्हें यह जानने की जरूरत है कि उनके लिए अवसर लगातार बढ़ रहे हैं।
भारत आज आशा और संभावनाओं से भरपूर है। शासन की सकारात्मक नीतियों की बदौलत ऐसा वातावरण तैयार हो चुका है, जहाँ हर व्यक्ति अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग कर सकता है और अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं को साकार कर सकता है, लेकिन पहला कदम आपको उठाना होगा। उद्यमियों को प्रोत्साहित करें और उनका साथ दें। कृपया उद्यमियों के साथ प्रतिस्पर्धा न करें। उद्यमियों को आपका पूरा समर्थन मिलना चाहिए।
चूँकि आप व्यापार, व्यवसाय और वाणिज्य में हैं, इसलिए आप जानते हैं कि दिन-प्रतिदिन वैश्विक चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। वैश्विक संघर्ष कम नहीं हो रहे हैं। यूक्रेन, रूस संघर्ष वस्तुतः अनिश्चित युद्ध में बदल रहा है। हमास, इज़राइल। आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हो रही हैं। इस चुनौतीपूर्ण माहौल में अवसरों का भंडार भी छिपा है। जब दुनिया अनिश्चितता और अप्रत्याशितता से परिभाषित होती है, तो प्रतिभा जड़ पर प्रहार करती है और आगे बढ़ती है। हमारे लिए अवसर का लाभ उठाने का समय आ गया है।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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एमजी/आरपीएम/केसी/आरके
(Release ID: 2134966)