उप राष्ट्रपति सचिवालय
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नई दिल्ली में राज्य सभा प्रशिक्षुता कार्यक्रम के सातवें बैच के प्रतिभागियों के साथ उपराष्ट्रपति की बातचीत का मूल पाठ (अंश)

Posted On: 27 MAY 2025 3:52PM by PIB Delhi

आप सभी को सुप्रभात।

मुझे विश्वास है कि यह एक वास्तविक गुड मॉर्निंग है। क्या आप एक-दूसरे को थोड़ा-बहुत जान पाए हैं? इसमें थोड़ा समय लगेगा लेकिन यह एक बेहतरीन जुड़ाव होगा। जीवन भर के लिए जुड़ाव।

राज्य सभा के महासचिव श्री पी.सी. मोदी अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। 1982 बैच के भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी, सीबीडीटी के अध्यक्ष के रूप में सबसे लंबे समय तक रहे, और अब मेरे कार्यकाल के दौरान राज्य सभा के महासचिव के रूप में कार्य कर रहे हैं। वह मेरे बहुत प्रतिष्ठित पूर्ववर्ती एम. वेंकैया नायडू जी के कार्यकाल के दौरान भी कार्यरत रहे हैं। इसलिए, वे निरंतर  साथ रहे हैं, उनके शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री के मिशन, उनके जुनून को मुख्य रूप से उन लोगों द्वारा ही क्रियान्वित किया जा सकता है जो दुनिया में लोकतंत्र के लिए मूलभूत हैं।

दुनिया के लिए मैं कहता हूं- युवा महत्वपूर्ण हैं और भारत को युवाओं का उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त हैं। हमारे युवाओं की औसत उम्र लगभग 28 वर्ष है, जबकि अमेरिका और चीन की उम्र लगभग 38, 39 वर्ष है। इसलिए, हमारा युवा जनसांख्यिकीय लाभांश दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय है। आपको इसे ध्यान में रखना चाहिए।

विकास का इंजन सिर्फ़ आपकी सक्रिय भागीदारी से ही पूरी तरह से चल सकता है। आप शासन और लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं। सौभाग्य से, आप ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां देश उम्मीद और संभावना से भरा हुआ है। मेरे दिनों में यह बहुत दूर की स्थिति थी। अब उम्मीद और संभावना सब कुछ आपकी पहुंच में है।

जब वैश्विक संगठन भारत के बारे में बात करते हैं तो आपको अपने बारे में जानना होगा, उस पर गौर करना होगा। आईएमएफ के लिए भारत निवेश और अवसर का एक पसंदीदा वैश्विक गंतव्य है। विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा है कि हमारा डिजिटलीकरण छह साल से भी कम समय में पूरा हुआ है। इसे चार दशकों में भी हासिल करना मुश्किल था। अब, ये संस्थाएं हमारी प्रशंसा कर रही हैं, हमारी सराहना कर रही हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर बदलाव हुआ है, जन-केंद्रित नीतियां बनाई गई हैं। इसलिए, हमारे लिए गर्व करने का समय है - हम भारतीय हैं। हम दुनिया के सबसे बड़े, सबसे पुराने और सबसे अधिक कार्यशील लोकतंत्र से संबंधित हैं। हमारा 5000 हजार से अधिक वर्षों का अनूठा इतिहास है। कोई भी देश इसके करीब नहीं आता।

मैं आज विशेष रूप से उन लोगों का स्वागत करना चाहता हूं, जिनकी उपस्थिति की मैंने आकांक्षा की थी और वे हैं डॉ. एस. राधाकृष्णन चेयर, डॉ. एमएल राजा। उनके साथ डॉ. शंकरेश्वरी भी हैं। मेरी पत्नी भी डॉक्टरेट हैं, उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की है। इसलिए, मैं डॉ. एमएल राजा की तरह ही हूं, क्योंकि हमारे घर और आस-पास हमेशा उच्च अधिकारी होते हैं।

इस चेयर की शुरुआत भारत के एक प्रतिष्ठित सपूत के नाम पर की गई थी। पहले उपराष्ट्रपति, जो राष्ट्रपति बने, डॉ. एस. राधाकृष्णन एक दार्शनिक थे और एक शिक्षक के रूप में अपनी शैक्षणिक प्रतिबद्धता के लिए भी जाने जाते थे। इस चेयर की शुरुआत पहली बार वर्ष 2009 में की गई थी। तकनीकी रूप से, डॉ. एमएल राजा तीसरे प्राप्तकर्ता हैं, वास्तव में - दूसरे।

मेरे कार्यकाल के दौरान इस चेयर को क्रियाशील बनाया गया, जब जम्मू और कश्मीर राज्य के एक प्रतिष्ठित पत्रकार जवाहर कौल, जो राष्ट्रवाद के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखते हैं, को चेयर प्राप्त करने का सम्मान मिला और तमिलनाडु के सुदूर दक्षिण राज्य से डॉ. एमएल राजा इसे प्राप्त करने वाले दूसरे व्यक्ति हैं। वे एक उच्च योग्य चिकित्सा पेशेवर हैं, जिन्हें चिकित्सा अभ्यास में व्यापक अनुभव है और मानविकी में उनका असाधारण योगदान है।

आम तौर पर, दोनों एक साथ नहीं चलते। इसलिए, आपके पास दोनों का समरूपण है, नेत्र विज्ञान के अलावा, वह प्राचीन इतिहास, पुरातत्व और अभिलेख विज्ञान के विशेषज्ञ हैं। लेकिन मैं कुछ अलग कहना चाहता हूं। नेत्र रोग विशेषज्ञ केवल भौतिक दृष्टि को ठीक कर सकते हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब आलंकारिक दृष्टि में विकृति होती है जो नेत्र विज्ञान से परे है। यह केवल राष्ट्रीय मानसिकता में बदलाव से ही प्राप्त किया जा सकता है। वह ऐतिहासिक और वैज्ञानिक विषयों पर तमिल और अंग्रेजी में पहले से ही 13 पुस्तकें लिख चुके हैं। केवल तमिलनाडु के राज्यपाल ने उन्हें उनके तमिल साहित्यिक कार्यों के लिए सराहा और मान्यता दी। राज्यसभा सचिवालय वास्तव में इस चेयर के ऐसे प्राप्तकर्ता को पाकर धन्य है और मुझे यकीन है कि वह अनुकरणीय तरीके से योगदान देंगे।

चेयर के बारे में बता दूं, 1962 में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया था। यह डॉ. एस. राधाकृष्णन का जन्मदिन है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि आप राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति किसी भी पद पर हो सकते हैं। आप एक दार्शनिक हो सकते हैं, आप एक महान लेखक हो सकते हैं। लेकिन सामाजिक मान्यता आपको शिक्षक होने के कारण मिली है। हमेशा इस बात को ध्यान में रखें। अपने शिक्षकों का उतना ही सम्मान करें जितना आप अपने माता-पिता का करते हैं। कहते हैं ना गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपनो गोविंद दियो बताय।" 

अब फिर से इस प्रशिक्षु कार्यक्रम की चर्चा पर वापस आते हैं, युवा मस्तिष्कों के लिए संसद, इसके भवन, इसके लोकाचार, इसकी पृष्ठभूमि, इसकी कार्यप्रणाली और इसके समृद्ध मूल्यों का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का एक बेहतरीन अवसर है। संसद की नई इमारत, जो कोविड के दौरान 30 महीने से भी कम समय में बनकर तैयार हुई, पूरी तरह सुसज्जित और कार्यात्मक है और हमारे 5000 से अधिक वर्षों के सांस्कृतिक इतिहास को दर्शाती है।

यह इंटर्नशिप आपमें जिम्मेदारी की भावना भरेगी, आपमें राष्ट्रवाद का जोश भरेगी और बदले में आपको हमारे लोकतंत्र के मूल मूल्यों से परिचित कराएगी, जो कि समावेशिता है। आपको हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि भारत का जन्म 1947 में नहीं हुआ था। हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जिसकी परंपराएं बहुत पुरानी हैं।

भारतीय संसद एक विधायी निकाय से कहीं बढ़कर है। यह वर्तमान में 1.4 बिलियन लोगों की इच्छा का प्रतिबिंब है। यह एकमात्र वैध संवैधानिक मंच है जो प्रामाणिक रूप से लोगों की इच्छा को दर्शाता है। इसलिए, संसद की प्रधानता है। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां कार्यपालिका की प्रधानता है। शासन कैसे करें। न्यायपालिका की प्रधानता है, न्याय प्रणाली से कैसे निपटें।

संसद को दो मामलों में प्राथमिकता प्राप्त है। पहला, यह कानून बनाने का अंतिम अधिकार है। दूसरा, यह कार्यपालिका को जवाबदेह बनाता है क्योंकि शासन कुछ बुनियादी बातों से परिभाषित होता है और एक बुनियादी बात है पारदर्शिता। दूसरा है जवाबदेही। और आधुनिक समय में, हमने इसमें एक तीसरा पहलू भी जोड़ दिया है। संस्थानों द्वारा इष्टतम निष्पादन हमारी प्रगति की गति को तेज करते हैं।

संसद बहस, संवाद, चर्चा और विचार मंथन का एक स्थान है, अंतिम स्थान है। जब आप संसदीय कार्यप्रणाली, समितियों के कामकाज से परिचित होंगे, तो आपको अत्यधिक जिज्ञासु होना पड़ेगा। कुल मिलाकर, कई मुद्दों पर, आपको स्वयं सीखना होगा। स्व-शिक्षण सीखने का एक नया तरीका है क्योंकि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से निकलने वाले लोग भी निरंतर सीखते रहते हैं। अगर हम समय के साथ नहीं बदलते हैं तो हम समय के दलदल में फंस जाएंगे। इसलिए, जैसा कि सुकरात के युग से पहले के दार्शनिक हेराक्लिटस ने सही ही कहा था, जीवन में एकमात्र स्थिर चीज परिवर्तन है।

बच्चों, हमारा संविधान, एक बहुत ही पवित्र दस्तावेज है। आपको जानोगे कि कैसे इसे तीन साल से भी कम समय में औपचारिक रूप दिया गया। हमारे संस्थापक जनकों द्वारा, जिन्होंने विभाजनकारी मुद्दों, विवादास्पद मुद्दों, अत्यधिक भड़काऊ मुद्दों का समाधान किया। लेकिन उन्होंने इसे समन्वय, सहयोग, आम सहमति के दृष्टिकोण से निपटाया। आपको जीवन में कुछ सीखना है और इसके लिए, जो महत्वपूर्ण है वह यह है कि आपको हमेशा दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि अगर आपको लगता है कि आप अकेले सही हैं, तो दूसरा व्यक्ति गलत है, तो आप खुद को सूचना के बड़े लाभ से वंचित कर रहे हैं। दूसरा, मेरा अपना अनुभव है, अक्सर ऐसा होता है कि दूसरा दृष्टिकोण सही दृष्टिकोण होता है।

अगर आप संविधान निर्माताओं द्वारा हस्ताक्षरित संविधान पर गौर करें तो पाएंगे कि इसमें 22 लघुचित्र हैं। प्रत्येक लघुचित्र हमारे ऐतिहासिक और गौरवशाली अतीत को दर्शाता है। इसमें गुरुकुल दिखाया गया है, इसमें सिंधु घाटी के बैल को दिखाया गया है, इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत के बाद राम, सीता और लक्ष्मण को अयोध्या वापस आते हुए दिखाया गया है। यह संविधान के तीसरे भाग, मौलिक अधिकारों में है। जब राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों की बात आती है, तो आप भगवान कृष्ण को कुरुक्षेत्र में अर्जुन को प्रवचन देते हुए पाएंगे। और जब आप इसके अन्य पहलुओं पर जाते हैं, तो आपको इसके बारे में और बहुत कुछ पता चल जाएगा।

संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, लेकिन संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करने के अलावा प्रत्येक नागरिक को कर्तव्य निभाने का भी आदेश देता है। अधिकारों का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक कि उन्हें लागू न किया जा सके। इसलिए, आप सभी लोग इस पर ध्यान दें। भारत दुनिया के उन बहुत कम देशों में से है जहां मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए आप देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं। आप अपने मौलिक अधिकारों को सही साबित करने के लिए उच्चतम स्तर की न्यायपालिका तक पहुंच सकते हैं। लेकिन प्रत्येक नागरिक और संस्था को संवैधानिक सीमाओं के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। संवैधानिक आदर्शों को कायम रखना चाहिए।

हम अपने पड़ोसी से तभी प्यार कर सकते हैं जब हम पड़ोसी के विशेष अधिकार क्षेत्र में किसी भी प्रकार का दखल न दें। इस संवैधानिक अधिकार क्षेत्र की पवित्रता को हर स्थिति में बनाए रखना आवश्यक है। यदि इसमें कोई व्यवधान होता है, तो आप खतरे को महसूस कर सकते हैं। संस्थाओं की तरह, यहां तक कि राजनीतिक व्यक्तियों का भी राष्ट्रीय हित के प्रति नैतिक कर्तव्य है क्योंकि, अंततः सभी संस्थाओं, विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका का केंद्र बिंदु राष्ट्रीय विकास, राष्ट्रीय कल्याण, जन कल्याण ही है जिससे कि पारदर्शिता, जवाबदेही, ईमानदारी पैदा की जा सके।

राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रगति के मुद्दों पर सभी धड़ों को राष्ट्रीय हित को दलीय प्राथमिकताओं से ऊपर रखना चाहिए। मैं राजनीतिक कार्यक्षेत्र में सभी से अपील करूंगा कि वे गंभीरता से विचार करें, इस निष्कर्ष पर पहुंचें कि राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास के मुद्दों, हमारी आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों पर आम सहमति हो। कभी-कभी राजनीति राष्ट्रवाद और सुरक्षा के लिए अति संवेदनशील हो जाती है, जिस पर हमें काबू पाना होगा।

पहलगाम और वहां की प्रतिक्रिया के बाद, पूरे देश में राष्ट्रवाद की भावना का उभार देखने को मिल रहा है। हमारे भीतर देशभक्ति की एक नई भावना है। पूरा देश एकजुट हो गया है, क्योंकि पहली बार भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया है कि आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह साहसी, शक्तिशाली भारत है और इसलिए इतिहास में कुछ ऐसा ही दर्ज किया जाएगा। हमारे देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, और दुनिया में भी ऐसा बहुत कम हुआ है। मुरीदके, बहावलपुर में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय और ठिकानों को सटीक, भेदने वाले, विनाशकारी तरीके से निशाना बनाया गया, जिससे शांतिप्रिय लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। केवल आतंकवादियों को निशाना बनाया गया, क्योंकि हमारी सभ्यता का सार 'वसुधैव कुटुम्बकम' है, विश्व एक है।

इसलिए भारत की रणनीति नागरिकों को नहीं, बल्कि सिर्फ़ आतंकवादियों को निशाना बनाने की रही है और यह एक बहुत ही स्पष्ट प्रतिक्रिया थी। आतंकवादियों के ताबूतों को उनकी सेना, उनके राजनेता अपने संरक्षण में ले गए। किसी सबूत की ज़रूरत नहीं है। इसलिए, मैं इस बात पर ज़ोर देता हूं कि हम स्वदेशी अपनाकर प्रभावशाली ढंग से देश की सेवा कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास कर्तव्यों के पालन के द्वारा अपना योगदान करने का अवसर है। हमें संतुलन बनाए रखना होगा। हमें बेहद सावधानी से लोगों का चुनाव करना होगा। ऐसा नहीं कि हम केवल मौलिक अधिकारों की ही बात करें, उन पर चौबीसों घंटे दावा करें और अपने मौलिक कर्तव्यों से पूरी तरह बेखबर रहें।

बच्चों, आपको संविधान पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा, लेकिन संविधान का भाग-III इसका केंद्रबिन्दु है। अनुच्छेद 12 से 35 तक छह मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। समानता का अधिकार। पहले हमारे पास विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली थी, योग्यता का कोई स्थान नहीं था। संरक्षण एक नौकरी, एक अनुबंध के लिए एक पासवर्ड था। कुछ लोगों को लगा कि हम कानून से ऊपर हैं, कुछ लोगों को लगा कि हम कानून की पहुंच से परे हैं, हम कानून से मुक्त हैं और कानून लागू करना कोई बाध्‍यकारी प्रक्रिया नहीं है।

अब हम जानते हैं कि सभी बराबर हैं। जो लोग सोचते थे कि वे कानून की पहुंच से बाहर हैं, उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। दूसरा अधिकार स्वतंत्रता का है। अब यह अधिकार बहुत मौलिक है क्योंकि अभिव्यक्ति और संवाद, बहस लोकतंत्र को परिभाषित करते हैं। लेकिन इसके साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी जुड़ी है। सभी अधिकार जिम्मेदारी के साथ आते हैं। शोषण के खिलाफ अधिकार। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार। सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपायों का अधिकार। लेकिन अगर हम केवल अपने अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और कर्तव्यों पर नहीं, तो हम सबसे बड़े लोकतंत्र, सबसे पुराने, सबसे कार्यात्मक लोकतंत्र में एक नागरिक के रूप में हम अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर रहे हैं।

मूल कर्तव्य 11 हैं। ये कर्तव्य शुरू में संविधान में नहीं थे और मैं आपको इसका कारण बताता हूं। हमारे संस्थापकों को इसकी पूरी उम्मीद थी कि हम इन कर्तव्यों के प्रति सजग रहेंगे। हम उन कर्तव्यों का सम्मान करेंगे लेकिन जब यह देखा गया कि उन्हें संविधान में व्यक्त करना आवश्यक है ताकि विशेष रूप से लोग इनके बारे में जागरूक हों तो इन्हें 42वें संशोधन और 86वें संशोधन द्वारा पेश किया गया।

अगर मुझे मौलिक कर्तव्यों की समझ प्रदान करनी है, तो मैं राष्ट्रीय कल्याण को प्राथमिकता देना पसंद करूंगा। सार्वजनिक संवाद, सार्वजनिक व्यवस्था, सार्वजनिक अनुशासन, पर्यावरण, जीवन में सभी के लिए जो कुछ भी अच्छाई के रूप में जाना जाता है, उसके लिए अधिकतम योगदान देना ही इसका अर्थ है।

इसलिए, मुझे लगता है कि आपको यह संकल्प लेना चाहिए कि मैं अपने राष्ट्र के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए, राष्ट्रीय कल्याण के लिए कैसे योगदान दे सकता हूं। हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर ने हमारी मानसिकता को व्यापक स्तर पर बदल दिया है। हम पहले से कहीं ज़्यादा राष्ट्रवादी हैं। यह हमारे शांति के संदेश और आतंकवाद के प्रति हमारी पूर्ण असहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए विदेश गए प्रतिनिधिमंडलों में सभी राजनीतिक परिदृश्यों की भागीदारी में परिलक्षित होता है। इसलिए, हाल की घटनाओं को देखते हुए, हमारे पास एकजुट रहने और मजबूत होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमें स्वदेशी शक्ति की जरूरत है। ताकतवर स्थिति में युद्ध से बचना ही बेहतर है। शांति तभी तक सुरक्षित है जब आप युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इसलिए ताकत तकनीकी कौशल, पारंपरिक हथियारों की ताकत के अलावा लोगों से भी आती है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा।

आप जैसे संवेदनशील लोगों को मैं पांच सिद्धांत देना चाहता हूं, जिनका आपको अभ्यास करना चाहिए। वे बहुत आसान हैं, लेकिन वे आपके जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाएंगे। वे समाज के लिए परिवर्तनकारी होंगे और ये सभी सिद्धांत हमारी सभ्यतागत लोकाचार से निकले हैं:

   एक, सामाजिक समरसता। वैमनस्य क्यों होना चाहिए? प्रेम, स्नेह क्यों नहीं हो सकता? हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान क्यों नहीं कर सकते? हमें दूसरे के दृष्टिकोण को नापसंद क्यों करना चाहिए? अगर हमें कोई दृष्टिकोण पसंद नहीं है, तो हमें उसे समझाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें दयालु होना चाहिए।

   दूसरा, पारिवारिक ज्ञान, चीजों की शुरुआत परिवार से, बचपन से ही होनी चाहिए। हमें अपनी संस्कृति, अपने मूल्यों को सीखना चाहिए, माता-पिता का सम्मान करना चाहिए। मैंने पाया है कि ज़्यादातर घरों में वेद नहीं होते। वे हमारी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, हमारी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर ध्यान नहीं देते। हमें वहां ध्यान देने की आवश्यकता है।

   तीसरा है पर्यावरण के प्रति जागरूकता। अब हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरा ग्रह नहीं है। यही एक है, लेकिन अगर आप हमारे प्राचीन ज्ञान को देखें, जो एक ऐसा खजाना है, जिससे दुनिया ईर्ष्या करती है, तो आपको पता चलेगा कि इस देश ने हमेशा धरती माता का सम्मान किया है। धरती सिर्फ़ इंसानों के लिए नहीं है। यह सभी जीवों, वनस्पतियों और पशु पक्षियों के लिए है। इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक स्पष्ट आह्वान किया। यह अब एक क्षण बन गया है, लेकिन सिर्फ़ एक ही क्यों, ज़्यादा क्यों नहीं? एक पौधा लगाना इसका अंत नहीं है, यह तो शुरुआत है। आपको इसे पोषित करना होगा। मुझे यकीन है कि यह वहां है।

   अब मैं, स्वदेशी पर ध्यान केन्द्रित करूंगा। कभी-कभी लोग सोचते हैं कि हम कैसे योगदान कर सकते हैं। स्वदेशी का आर्थिक राष्ट्रवाद से गहरा संबंध है। आर्थिक राष्ट्रवाद का मतलब है कि हमें स्वदेशी का उपभोग करना चाहिए। हमें हमेशा लोकल फॉर वोकल होने का ध्यान रखना चाहिए। इससे हमारे लोगों को भी हमारी ज़रूरतों को पूरा करने की प्रेरणा मिलेगी। लेकिन अगर हम दूसरे देशों से ऐसी चीज़ें आयात करना शुरू कर देते हैं जो हमारे देश में पैदा होती हैं, जो हमारे देश में बनाई जा सकती हैं, तो हम तुरंत तीन मुसीबतों को आमंत्रित कर रहे हैं:

1. इससे एक समस्या यह पैदा होती है कि हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में इससे अनावश्यक कमी आती है और यह कमी अरबों डॉलर में होती है।

2. दूसरा, जब हम ऐसी चीज़ें बाहर से लाते हैं जो हमारे देश में बन सकती हैं, तो हम अपने ही लोगों से काम छीन रहे होते हैं। हम उन्हें काम से वंचित कर रहे होते हैं। और;

3. तीसरी बात यह है कि तब हम उद्यमिता की धार कुंद कर रहे होते हैं। इसलिए हर व्यक्ति यह योगदान दे सकता है कि वह क्या कपड़े पहनता है, क्या खाता है, क्या जूते पहनता है, सब कुछ। ये उपभोग्य वस्तुएं हैं। हम विदेशों से आने वाली चीजों को पसंद करते हैं और इस बात की परवाह नहीं करते कि हम अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

   इसलिए मैं जोर देकर कहता हूं कि आर्थिक राष्ट्रवाद लोगों का व्यवसाय है। वे इसे नियंत्रित कर सकते हैं। दूसरे, मैं व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और कंपनियों से अपील करता हूं। मैं उनसे कहता हूं कि कृपया कच्चे माल का निर्यात न करें, कच्चे माल में मूल्य जोड़ें। यदि आप कच्चे माल का निर्यात करते हैं, तो आप दुनिया को दो बातें बता रहे हैं। एक, कि आप मूल्य जोड़ने में सक्षम नहीं हैं, जो आप कर रहे हैं। और इसी तरह, ये तीनों चीजें होती हैं। हमारे पास अधिक विदेशी मुद्रा हो सकती है। यदि मूल्य जोड़ा जाता है, तो हमारे लोगों को रोजगार मिलेगा। हमारी उद्यमशीलता फलेगी-फूलेगी। इसलिए यदि ये पांच परिणाम, जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय चेतना को जगाने के लिए हैं, आप उनका अभ्यास करते हैं, तो राष्ट्र ऊपर उठेगा।

एक राष्ट्र की पहचान उसके नागरिकों के अनुशासन, समर्पण और राष्ट्रवाद से भी होती है। और मैं आपको बताता हूं, हमारे यहां सार्वजनिक अव्यवस्था कैसे होती है? सार्वजनिक अव्यवस्था अब आम बात हो गई है। लोग सड़कों पर उतर आते हैं, यहां तक कि कोर्ट का नोटिस भी जारी हो जाता है। क्यों? हमें अपने सोशल मीडिया का इस्तेमाल इस भयावह सोच का खंडन करने के लिए करना चाहिए।

दूसरा, हम सार्वजनिक संपत्ति को कैसे आग लगा सकते हैं या नष्ट कर सकते हैं? हमें ऐसे लोगों को शर्मिंदा करने की ज़रूरत है जो इस प्रकार की शर्मनाक हरकतें करते हैं। यह कितना कष्टदायी दृश्य होता है जब कुछ लोग वंदे भारत और दूसरी ऐसी सार्वजनिक संपत्तियों, जो हमारे विकास के प्रतीक हैं, पर पत्थर फेंक कर उन्‍हें नष्ट कर रहे होते हैं। 

इसलिए, आपको नए विचारों के साथ नए भारत का राजदूत बनना होगा। ऐसे विचार, जो लोकतंत्र को समृद्ध करें, प्रगति उत्पन्न करें और वैश्विक स्तर पर हमारी प्रतिष्ठा को बढ़ाएँ। मैं आपसे आग्रह करूँगा कि आप इस दलदल से बाहर निकलें। अभी हमारे युवा, आम तौर पर, अपने पास विद्यमान अवसरों के बारे में नहीं जानते हैं। अवसरों की संख्‍या अब और भी बड़ी होती जा रही है। अगर आईएमएफ ने कहा है कि भारत निवेश और अवसर का गंतव्य है, तो यह निश्चित रूप से सरकारी नौकरियों के कारण नहीं है। यह सरकारी नौकरियों से परे अवसरों के कारण है। हमें आधुनिक क्षेत्र में उतरना होगा। सामुद्रिक अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां चुनौतियां पेश करती हैं, लेकिन अवसर भी अधिक प्रदान करती हैं। सरकार के पास सकारात्मक नीतियां हैं, उस पर ध्यान दें। मुझे यकीन है कि हम ऐसा करेंगे।

इस अवसर पर मैं एक नीतिगत घोषणा भी करना चाहता हूँ। एक नहीं, दो-दो। बच्चों, ये राज्यसभा इंटर्नशिप का सातवां बैच है। हम इसे एक मंच पर लाने के बारे में विचार कर रहे हैं, ताकि आप अपने पुराने साथियों से भी जुड़ सकें। हम एक अवसंरचना तंत्र बनाने जा रहे हैं। हम जल्द ही एक ऐसा मंच बनाने जा रहे हैं, जो देश के हर हिस्से में और कुछ बाहर के पूर्व छात्रों को जोड़ेगा। इससे एक ऐसा समुदाय तैयार होगा जो विचारों का आदान-प्रदान करेगा, राष्ट्र कल्याण के लिए विचारों को साझा करेगा।

दूसरा, राज्य सभा के पास एक स्वायत्त संस्था होगी जो शोध और प्रसार के माध्यम से सार्वजनिक संवाद को बढ़ाने और सूचित करने में मदद करेगी। शोध उद्योग के लिए मौलिक है, विकास के लिए मौलिक है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी शोध होना चाहिए। मैंने कई अवसरों पर इस पर ध्यान केंद्रित किया है। शोध को जमीनी हकीकत, जमीनी प्रभाव से जुड़ा होना चाहिए। शोध स्वयं के लिए नहीं है, शोध का निरंतर उपयोग होना ही चाहिए। शोध प्रामाणिक होना चाहिए, शोध से जमीनी हकीकत अवश्य प्रभावित होनी चाहिए। यह लोक केंद्रित होना चाहिए।

जब हम इस नए तंत्र को अपनाएंगे, तो यह समय के साथ सांसदों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों से भी जुड़ेगा। स्पष्ट है, इसका विधायी इको-सिस्टम पर रुपांतरकारी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि आपके काम में यह शामिल है कि आप किस प्रकार किसी सांसद को प्राथमिक सहायता प्रदान करते हैं। यह मूल रूप से आपका काम है। आप संसदीय कार्य से संबंधित कानूनी प्रक्रिया में पूरी तरह से शामिल होकर ही किसी सांसद को प्राथमिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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एमजी/केसी/एसकेजे/एसके


(Release ID: 2131732)
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