उप राष्ट्रपति सचिवालय
उपराष्ट्रपति ने तमिलनाडु के राज्य, केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में कहा कि राज्यपाल रवि अपनी शपथ का पालन कर रहे हैं और संवैधानिक आदेशों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं
उपराष्ट्रपति ने शासन में सभी से कुलपति संस्था पर विश्वास व्यक्त करने का आह्वान किया उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुलपतियों को भारत के शैक्षणिक परिदृश्य के संरक्षक के तौर पर काम करना चाहिए भारत दुनिया का सबसे शांतिप्रिय देश है: उपराष्ट्रपति आतंकवाद एक वैश्विक खतरा है, इसका सामना एकजुट होकर करने की आवश्यकता है: उपराष्ट्रपति राष्ट्रीय शिक्षा नीति सरकारी नीति नहीं; यह राष्ट्र के लिए नीति है: उपराष्ट्रपति तमिलनाडु जीवंत शिक्षण केंद्र रहा है: उपराष्ट्रपति उपराष्ट्रपति ने उदगमंडलम में तमिलनाडु के राज्य, केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया
Posted On:
25 APR 2025 4:59PM by PIB Delhi
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज तमिलनाडु के उदगमंडलम में कुलपतियों के सम्मेलन में तमिलनाडु के राज्यपाल की सराहना करते हुए कहा कि माननीय राज्यपाल संवैधानिक आदेशों के अनुरूप यह सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं, जिसकी उन्होंने अनुच्छेद 159 के तहत भारतीय संविधान के तहत शपथ ली है। उनकी शपथ बहुत महत्वपूर्ण है। राज्यपाल के रूप में उनकी शपथ संविधान और कानून को संरक्षित, सुरक्षित और उसे बनाए रखने की है। अपनी शपथ द्वारा, उन्हें तमिलनाडु के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए समर्पित होने का आदेश मिला है। शिक्षा के क्षेत्र के लिए अत्यंत प्रासंगिक ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर राज्यपाल रवि अपनी शपथ का पालन कर रहे हैं। मैं उनके द्वारा 2022 में कुलपतियों के सम्मेलन आयोजित करने की विचारशील पहल आरंभ करने की सराहना करता हूं। इसी श्रृंखला में वर्तमान सम्मेलन आयोजित हो रहा है।
उदगमंडलम में तमिलनाडु के राज्य, केंद्रीय और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि अतीत में भारत के महान शिक्षण संस्थानों में दूरदर्शी प्रणेता थे, जिन्हें आज हम कुलपति कहते हैं। आज के कुलपति अत्यंत प्रतिभाशाली हैं। वे किसी भी तरह पहले के शिक्षण प्रमुखों की तुलना में कम दूरदर्शी नहीं हैं। वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे हैं। उन्हें कोई बड़ा काम, दुर्गम या वायु क्षेत्र मिले, वे सबका सामना कर सकते हैं। मुझे उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर पूर्ण विश्वास है। वे योग्य शिक्षाविद हैं जिनमें परिणाम देने की क्षमता है। वे हमारे प्राचीन कुलपतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हीं के प्रतीक हैं। मैं केंद्र और राज्य स्तर पर शासन में सभी से कुलपति की संस्था पर विश्वास व्यक्त करने का आह्वान करता हूं कि वे मिलकर सामान्य परिस्थितियों में भी बिना थमे कार्य करें।
श्री धनखड़ ने शैक्षणिक परिदृश्य में बदलाव के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि आज भारत ही नहीं, पूरा विश्व विकट चुनौतियों, तेजी से बढ़ते तकनीकी व्यवधानों का सामना कर रहा है। यह औद्योगिक क्रांतियों से भी कहीं अधिक बड़ा है। हर पल एक बड़ा बदलाव हो रहा है। तालमेल बैठाना मुश्किल है। इस दृष्टि से देखें तो वैश्विक व्यवस्था निरंतर जटिल होती जा रही है। जीवन का हर पहलू प्रभावित हो रहा है और इसलिए, कुलपतियों के कुशल नेतृत्व में विश्वविद्यालयों को भारत के शैक्षणिक परिदृश्य के संरक्षक के तौर पर कार्य करने की आवश्यकता है। जितनी अधिक चुनौतियां हैं, जितनी बड़ी चुनौतियां हैं, हमें उनसे पार पाने के लिए अभेद्य बनकर उभरना होगा और देश और विश्व के लिए परिणाम देना होगा। एक चुनौती जिसका कुलपतियों को सामना करना पड़ रहा है, वह है शिक्षण संकाय। शिक्षकों की उपलब्धता, संकाय को बनाए रखना और इनमें नये शिक्षक जोड़ना एक चुनौती है। मैं आप सबसे एक-दूसरे के साथ ज्ञान साझा करने के लिए जुड़ने की अपील करूंगा। आप प्रौद्योगिकी का उपयोग करें, अपने आप में एक अलग-थलग न बनें। यह अकेले रहने और नयेपन को न अपनाने का समय नहीं है, क्योंकि इस चुनौती का सामना करना है और हमारे पास समय नहीं है।
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श्री धनखड़ ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा की मैं आज पहलगाम में हुए जघन्य आतंकवादी हमले पर गहरा दुख और आक्रोश व्यक्त करने में राष्ट्र के साथ शामिल हूं, जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान चली गई। यह गंभीर चेतावनी है कि आतंकवाद एक वैश्विक खतरा है, जिसका समाधान मानवता को एकजुट होकर करना होगा। भारत दुनिया का सबसे शांतिप्रिय देश है और हमारी सभ्यतागत लोकाचार वसुधैव कुटुम्बकम को दर्शाता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में हमारा दूरदर्शी नेतृत्व अपने तीसरे कार्यकाल में है और वही हमें प्रबलता से आश्वस्त कराता है कि राष्ट्र के उत्थान को किसी भी आंतरिक या बाह्य कारणों से बाधित नहीं किया जा सकता। लेकिन हम सबको यह ध्यान रखना होगा कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। डॉ. बीआर अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम संबोधन में इसे दोहराया था। इसलिए हमें राष्ट्र को सदैव प्रथम रखने का संकल्प लेना होगा। राष्ट्रीय हितों को पक्षपातपूर्ण हितों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, इसे सर्वोच्च होना ही होगा। यह किसी भी राजनीतिक, व्यक्तिगत या समूह हित के अधीन नहीं हो सकता।
उपराष्ट्रपति ने परिवर्तनकारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि तीन दशकों के बाद व्यापक स्तर पर हितधारकों के अभिमत विचारों को शामिल कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति विकासित की गई। यह नीति हमारी सभ्यतागत लोकाचार के अनुरूप है। यह बहु-विषयक शिक्षा को प्रोत्साहित करती है। यह भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देती है। यह शिक्षा को व्यक्ति के विकास के रूप में देखती है, न कि केवल रोजगार पाने के उपकरण के रूप में।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सबसे अहम पहलू छात्रों को अपनी मातृभाषा में सीखने का अवसर देना है। यह हमें औपनिवेशिक शासन से बाहर निकालता है। अब स्थानीय भाषाओं में चिकित्सा और इंजीनियरिंग की शिक्षा साकार हो रही है, जो पहले सपने में भी नहीं सोची जा सकती थी।
उन्होंने संस्थानों से इस नीति को पूर्ण भावना से अध्ययन करने और उसे अपनाने का आह्वान करते हुए कहा कि मैं आप सबसे और जहां भी आप हैं, वहां के संकाय और निदेशकों से आग्रह करता हूं कि कृपया राष्ट्रीय शिक्षा नीति को गहनता से पढ़ें, ताकि इसके लक्ष्य और उद्देश्य को समझा जा सके और हम इसका लाभ उठाएं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस मंच से वे बताना चाहते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति सरकारी नीति नहीं, यह राष्ट्र के लिए नीति है। उन्होंने सबसे अपील की कि इसे अपनाने, इसे समझने, इसे लागू करने और इसके फल प्राप्त करने का समय आ गया है।
श्री धनखड़ ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारतीय उच्च शिक्षा का भविष्य पारंपरिक ढांचे से आगे विस्तारित होने में निहित है। उन्होंने कहा कि हम अलग विशिष्ट संस्थानों के युग से काफी आगे निकल चुके हैं। अब ये सिर्फ आईआईएम और आईआईटी आदि नहीं हो सकते। संस्थानों के लिए अलग विशिष्टता का युग पहले ही पीछे छूट चुका है। संस्थानों को अत्याधुनिक बनाने के लिए अब विभिन्न क्षेत्रों में अभिसरण की आवश्यकता है। शैक्षणिक गतिविधियों में बहु-विषयक दृष्टिकोण ही अब एकमात्र समाधान है। अपने संकाय की प्रतिभा को आभासी, तकनीकी और अन्य तरीकों से साझा करें। इसका दोहरा उद्देश्य यह होगा कि इसे देने के साथ-साथ आप कुछ ज्ञान प्राप्त भी करेंगे। शिक्षण संस्थानों में नवाचार और बदलाव की बयार को मुक्त मार्ग मिलना चाहिए। एक तंत्र विकसित करें। हमें अलग-अलग विचारों के प्रति सहिष्णुता की भावना भी रखनी पड़ेगी। एक विचार के प्रति असहिष्णुता लोकतंत्र को गलत तरीके से परिभाषित करती है। विश्वविद्यालय का अमृत ज्ञान तो यह है कि बहुमत से अलग राय को संवाद और विचार सत्र में शामिल कर सम्मान के साथ सुना जाता है, न कि इस पर कोई पहले से पूर्वाग्रह बनाकर।
भारत के शैक्षणिक विकास में तमिलनाडु की ऐतिहासिक भूमिका का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि तमिलनाडु जीवंत शिक्षण केंद्रों की भूमि रही है, अब उन शिक्षण केंद्रों को हमारा ध्रुव तारा बनकर ज्ञान का प्रकाश बिखेरना चाहिए। तमिलनाडु में कांचीपुरम और एन्नायिरम जैसे व्यापक रूप से प्रशंसित शिक्षण केंद्र रहे हैं। एन्नायिरम में संपूर्ण भारत से हजारों छात्रों पढ़ने आते हैं। मैं इन सम्मेलनों में विचारों के ऐसे तत्त्वों का उभार देखता हूं जो कांचीपुरम की भावना को फिर से जागृत करेंगे और एन्नायिरम के ज्ञान गौरव को पुनर्स्थापित करेंगे। हमें इस बात पर गौरव होना चाहिए कि मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना 1857 में तमिलनाडु में ही हुई थी। आधुनिक शिक्षा का उदाहरण इसी भूमि से स्थापित हुआ था।
श्री धनखड़ ने भारत की समृद्ध भाषाई विरासत, विशेषकर तमिलभाषा की ऐतिहासिक मान्यता पर भावपूर्ण विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारी भाषाएं, उनकी समृद्धि और गहराई हमारा गौरव और विरासत हैं। यह हमारी संस्कृति की पूर्णता और विशिष्टता को और व्यापक बनाता है। किसी भी देश में चले जाइए, आपको वह नहीं मिलेगा जो हमारे यहां है। हमारा खजाना अथाह है। संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, हिंदी, बांग्ला और अन्य भाषाएं साहित्य और ज्ञान की स्वर्णिम खान हैं। ये राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर व्याप्त हैं। शैक्षणिक संस्थानों को इस अनमोल निधि को बहुत ध्यान से पोषित करना होगा।
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उपराष्ट्रपति ने कहा कि तमिलनाडु और पूरे देश के लिए यह गौरव की बात है कि तमिल पहली भाषा है जिसे शास्त्रीय भाषा के रूप में सबसे पहले प्रतिष्ठा मिली। हालांकि वर्ष 2004 में पूर्णता से मान्यता प्रदान की गई। इसका अर्थ है कि शासन में चीजें बदलने लगीं। आज 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं। मुझे राज्यसभा के सभापति के रूप में राज्यसभा में यह घोषणा करने का अवसर मिला है कि मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को हाल ही में शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा दिया गया है, लेकिन पहले हमारे पास, जैसा कि मैंने कहा, तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया ही थे। आप पूरी दुनिया में कहीं भी जाएं, हम बेमिसाल हैं। हमें अपनी शक्ति, अपनी क्षमता का एहसास करना होगा और तुच्छ बातों की भावनाओं में बहने से बचना होगा।
सम्मेलन में तमिलनाडु के राज्यपाल श्री आर.एन. रवि, तमिलनाडु के राज्यपाल के प्रधान सचिव श्री आर. किर्लोश कुमार, तमिलनाडु के मनोनमनियम सुंदरनार विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एन. चंद्रशेखर उपस्थित थे।
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(Release ID: 2124407)
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