उप राष्ट्रपति सचिवालय
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली में 'कर्तव्यम' के उद्घाटन समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)
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23 APR 2025 4:44PM by PIB Delhi
आप सभी को सुप्रभात।
मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहा हूँ और मुझे एक ऐसे स्थान पर रहने का सौभाग्य मिला है, जहाँ अंग्रेज लंबे समय तक शासन कर चुके हैं, इसलिए एक भारतीय मानस को उस स्थान पर रहने का महान अवसर प्राप्त हुआ। मुझे माननीय राष्ट्रपति जी, जो इस पद पर आसीन होने वाली प्रथम जनजातीय महिला हैं, के निमंत्रण पर राष्ट्रपति भवन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुझे 1990 में राष्ट्रपति भवन में केंद्रीय मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, लेकिन कुछ कमी थी। 20 साल, दो दशक तक, जो कुछ भी हुआ, वह इसी स्थान से हुआ।
लड़के और लड़कियों और जो आखिरी बेंच पर बैठे हैं, आप बैकबेंचर्स नहीं हैं। आप संयोग से सबसे आखिर में बैठे हैं, लेकिन आप सभी के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। मैं सामान्यत: अंधविश्वासी नहीं हूँ, लेकिन बैठने की व्यवस्था को लेकर सचेत रहता हूँ। मैं सही स्थान पर रहता हूँ, जैसे कि राज्य सभा, सरकार में । इसलिए योगेश सिंह और प्रकाश लेकिन मेरी लेफ्ट साइड में हमेशा विपक्ष रहता है, प्रोफेसर बलराम पाणि। जिस नाम ने भगवान श्री कृष्ण को ताकत दी वह आपकी लेफ्ट साइड में है, कुछ गलत नहीं हो सकता। यह राइट साइड पर सही नियंत्रण होगा। लेफ्ट साइड हमेशा बहुत शक्तिशाली होती है और इसीलिए हमारे शरीर में हृदय बाईं ओर होता है।
संकाय के प्रतिष्ठित सदस्यगण और प्रबंधन से संबद्ध लोगों और प्रिय मित्रों, मैं आपके कुलपति की एक टिप्पणी से अपनी बात शुरु करना चाहता हूँ। उन्होंने दुरुस्त फरमाया कि प्रतिष्ठित न्यायाधीश, न्यायविद, एच.आर. खन्ना आपके पूर्व छात्र थे। यह मुझे याद दिलाता है और यह हमें हमेशा याद रहना चाहिए कि इस देश में हम दो दिन क्यों मना रहे हैं और वे दो दिन हैं:-
एक है ‘संविधान दिवस’ और;
दूसरा है ‘संविधान हत्या दिवस’।
हम ऐसा क्यों करते हैं? इसके पीछे हमारा एक उद्देश्य हैं क्योंकि 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया था। नौजवान लड़कों और लड़कियों को यह याद दिलाने की जरूरत है, क्योंकि 25 जून 1975 को उस संविधान को परखा गया, उसे तोड़ा-मरोड़ा गया, उसे नुकसान पहुँचाया गया, उसे नष्ट किया गया। वह लोकतांत्रिक जगत के मानव इतिहास का सबसे स्याह दौर था। मैं उसको सबसे स्याह दौर इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि तब सर्वोच्च न्यायालय ने देश के नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को नजरअंदाज कर दिया था। नौ उच्च न्यायालयों ने एकमत होकर कहा था कि लोकतंत्र में मौलिक अधिकारों को कभी स्थगित नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका तक पहुँच को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों से तो कतई इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन ऐसा किया गया। मैं इस बारे में ज्यादा नहीं कहूँगा, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा? कार्यपालिका मौलिक अधिकारों की एकमात्र मध्यस्थ होती है। वह उन्हें जितने समय के लिए चाहे स्थगित रख सकती है। उस समय केवल एक आवाज़ असहमति में उठी थी और वह आवाज़ यहाँ के एक पूर्व छात्र की थी।
लड़के और लड़कियों, याद कीजिए कि उस समय न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय में क्या लिखा गया था। मैं उस संपादकीय को उद्धृत कर रहा हूँ, “यदि भारत कभी अपनी आज़ादी और लोकतंत्र को फिर से हासिल कर लेता है, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उसके पहले अठारह वर्षों की गौरवपूर्ण पहचान थी, तो कोई न कोई अवश्य ही न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना का एक स्मारक बनाएगा।”
तो लड़के और लड़कियों, मैं सही जगह पर हूँ और आपको याद दिला रहा हूँ कि आप में से प्रत्येक को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि पिछले 10 बरसों से हम संविधान दिवस क्यों मना रहे हैं और हमने ‘संविधान हत्या दिवस’ को याद करना क्यों शुरू किया है। क्योंकि जो बीत चुका है, उसे संभवत: अपनी उम्र के कारण, आपने नहीं समझा होगा।
कल्पना कीजिए कि लोकतंत्र में लाखों लोगों को जेलों में ठूँस दिया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया, उन्हें मानसिक आघात पहुँचाया गया, उन्हें कोई उम्मीद नहीं रही। उनके लिए चारों ओर घना अंधेरा था, रोशनी का नामों-निशां तक न था। इसलिए, विशेष रूप से इस स्थान पर, इस श्रृंखला को शुरू करना और इस नामावली ‘कर्तव्यम्’ जो कि एक संस्कृत शब्द है, जो सभी को परिभाषित करता है, पर गौर करना उपयुक्त होगा। और मुझे यकीन है कि इन पहलुओं का ज्ञान होना राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला होगा।
हमारे देश में लोगों को आइकॉन या प्रतीक बनाने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। हम जाँचे-परखे बिना ही लोगों को आइकॉन बना देते हैं। हम उन्हें चौंकाने वाले मापदंडों पर ऊंचा दर्जा प्रदान कर देते हैं। अक्सर यह सब मैनेज किया जाता है, इवेंट मैनेज किया जाता है और अचानक आपको पता चलता है कि किसी खास क्षेत्र में कोई लीडर बन गया। अब समय आ गया है कि हमें ऐसी चीजों को चुनौती दें, हमें विवेक से काम लेना होगा। हम ऐसे लोगों को अपने दिलो-दिमाग पर हावी नहीं होने दे सकते, जो इस बात के वाजिब हकदार नहीं हैं। उन पर यकीन करने से पहले हमें उन्हें आजमाना चाहिए।
इसलिए, बिना किसी हिचकिचाहट के मैं यह कह रहा हूँ कि कैंपस लॉ सेंटर आइकॉनिक है। इसे हमेशा परखा गया है। इसने अपनी प्रतिष्ठा बखूबी अर्जित की है, जो बखूबी स्वीकृत है। और ऐसा क्यों है? क्योंकि, जैसा कि कुलपति ने इंगित किया है, यह विचारों के सृजन का एक बेहतरीन स्थान रहा है। मुझे खुशी है कि आप इस वैचारिक सृजन को अब एक अलग तरीके से शुरू कर रहे हैं। सभी मानकों के अनुसार, कैंपस लॉ सेंटर और इसके पूर्व छात्रों ने राष्ट्र की नियति को आकार दिया है। मैं अपने प्रिय मित्र अरुण जेटली, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे, उनके योगदान को तथा और बहुत कुछ याद करना चाहता हूँ।
इसलिए, मैं कह सकता हूँ कि यह परिवर्तन की कड़ी परीक्षा है और जैसा कि सुकरात के युग से पहले के दार्शनिक हेराक्लिटस ने दर्शाया था, जीवन में एकमात्र स्थिर चीज़ परिवर्तन है। यह परिवर्तन अब यहाँ से उपजेगा कि हमारा संविधान क्या है, हमारे दायित्व क्या हैं, और हमारा विश्वास, सर्वोच्च विश्वास, अप्रतिबंधित, अनियंत्रित, सत्य के अलावा कुछ और नहीं, पूर्ण सत्य है, क्योंकि सत्य को हमारे सभ्यतागत लोकाचार, हमारी वैदिक संस्कृति द्वारा पवित्र किया गया है, और यह हमारे संवैधानिक मूलभूत मूल्यों का तकाजा है।
इसलिए, लड़के और लड़कियों, अपार संभावनाओं से युक्त महान प्रतिभा, विचारों के सृजन की इस मानव प्रयोगशाला में होना मेरे लिए परम सम्मान और सौभाग्य की बात है जो बड़े बदलाव और नवाचार को उत्प्रेरित कर सकती है और इसलिए आप सभी को मेरा अभिवादन। संस्कृत का 'कर्तव्यम्' यानी कर्तव्य मेरे सामने मौजूद दृष्टि को पूरी तरह से मूर्त रूप देता है। यह एक ऐसा शब्द है जो कर्म, दायित्व और सभ्यताओं को बनाए रखने वाले नैतिक बल में निहित है।
हमारे संविधान निर्माता, महान विभूतियों ने हमें बहुत सोच-समझकर, बहुत मेहनत से, संवाद, चर्चा, बहस, विचार-विमर्श में भाग लेकर, टकराव टालते हुए, हमेशा सर्वसम्मति से काम करते हुए संविधान प्रदान किया। लड़के और लड़कियों, उनके सामने मतभेद वाले मुद्दे थे, बहुत से विवादास्पद मुद्दे थे, लेकिन उन्होंने हमें एक ऐसा संविधान दिया, जो हमारी पहचान, मूल्यों और राष्ट्र की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन हमारे संविधान के अनुसार, हमारे सभ्यतागत मूल्यों और किसी भी लोकतंत्र के लिए प्रत्येक नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
मेरे लिए यह बात अकल्पनीय तौर पर दिलचस्प है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद रस्मी तौर पर गैर-कार्यात्मक हो सकते हैं। इस देश में प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी संवैधानिक पद पर आसीन हो या नागरिक हो, उसकी भूमिका के बारे में गलत समझ से ज्यादा गलत और कुछ हो ही नहीं सकता।
मेरे अनुसार, नागरिक सर्वोच्च होता है, क्योंकि राष्ट्र और लोकतंत्र का निर्माण नागरिकों से ही होता है, उनमें से प्रत्येक की अपनी भूमिका होती है। लोकतंत्र की आत्मा हर नागरिक में बसती है, धड़कती है। जब नागरिक सजग होगा, नागरिक योगदान देगा, तभी लोकतंत्र फलेगा-फूलेगा,उसके मूल्य उन्नत होंगे। नागरिक जो योगदान देता है, उसका कोई विकल्प नहीं है, लेकिन लड़के और लड़कियों, अगर नागरिक लोकतंत्र की आत्मा है, तो वह आत्मा व्यावहारिक आयाम प्राप्त करती है। वह पूरी तरह सार्थक हो जाती है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन करता है, तो उसे वास्तविक अहसास होता है।
समाज को बनाए रखने और उसके मूल्यों को बरकरार रखने की दिशा में समाज में व्यक्तिगत दायित्व महत्वपूर्ण होते हैं और यह हमारे संविधान की प्रस्तावना में परिलक्षित है। इससे पहले, जो कानून के छात्र हैं, मैं आपको बताना चाहता हूँ, एक मामले में, गोलकनाथ में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। बाद में, एक अन्य पीठ, केशवानंद भारती में कहा गया कि यह संविधान का हिस्सा है।
मैं आपको बता दूँ, इन सबके बावजूद, संविधान का सार, उसका महत्व, उसका अमृत संविधान की प्रस्तावना में समाहित है। और उसमें क्या लिखा है! ‘हम भारत के लोग’, सर्वोच्च शक्ति उनके पास है। भारत के लोगों से ऊपर कोई नहीं है और ‘हम भारत के लोग’ ने संविधान के तहत अपने जनप्रतिनिधियों के माध्यम से उनकी आकांक्षाओं, उनकी इच्छाओं, उनकी अभिलाषा को प्रतिबिम्बित करने का विकल्प चुना है। और वे इन प्रतिनिधियों को प्राय:, चुनावों के माध्यम से जवाबदेह, गंभीर रूप से जवाबदेह भी ठहराते हैं।
आपातकाल लगाने वाली प्रधानमंत्री को 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था। इसलिए, इस बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। संविधान लोगों के लिए है, और इसकी सुरक्षा का दायित्व चुने हुए प्रतिनिधियों का है। वे इस बात के अंतिम तौर पर निर्णायक हैं कि संविधान में क्या होगा। संविधान में संसद से ऊपर किसी प्राधिकार की कल्पना नहीं की गई है, संसद सर्वोच्च है। और ऐसी स्थिति में, मैं आपको बता दूँ, यह देश के प्रत्येक व्यक्ति जितनी ही सर्वोच्च है। ‘हम लोग’ का हिस्सा लोकतंत्र में एक अणु है और उस अणु में आणविक शक्ति है। वह आणविक शक्ति चुनावों के दौरान परिलक्षित होती है और इसलिए हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं।
लोकतंत्र केवल सरकार द्वारा शासन करने के लिए नहीं है, यह सहभागी लोकतंत्र है। केवल कानून ही नहीं, बल्कि संस्कृति और लोकाचार भी है। नागरिकता केवल स्थिति नहीं, बल्कि कार्रवाई की मांग करती है। डॉ. अंबेडकर को पहले ही उद्धृत किया जा चुका है, लेकिन मैं फिर से दोहराऊंगा। डॉ. अंबेडकर ने माना कि स्वतंत्रता के लिए जिम्मेदारी की आवश्यकता होती है और इसीलिए हमारे संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य हैं। मैं कानून के छात्रों और सामान्य तौर पर सभी को बता दूँ कि मौलिक कर्तव्य मूल रूप से संविधान में नहीं थे, लेकिन संविधान एक गतिशील दस्तावेज है। इसे लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए। समकालीन परिस्थितियों पर गौर करना चाहिए, तो हमने 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में एक नया भाग, भाग IV-A जोड़ा। और उसने एक अनुच्छेद 51A शामिल किया, जिसमें शुरू में दस मौलिक कर्तव्य दिए गए थे, लेकिन फिर एक और कर्तव्य को जोड़ने की आवश्यकता महसूस की गई । और वह, अगर मैं गलत नहीं हूँ, 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा शामिल किया गया था।
इस सदी की शुरुआत में, शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए हमें सदैव अपने अधिकारों से ज़्यादा अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र हमारा है। राष्ट्रवाद के लिए शुद्ध प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। एक ऐसी प्रतिबद्धता जो स्वेच्छा से उत्पन्न हो और जिसे किसी अन्य विचार, पक्षपातपूर्ण, व्यक्तिगत या अन्यथा द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाएगा।
लड़के और लड़कियों, हमारा संविधान, वास्तव में, हजारों वर्षों के हमारे सभ्यतागत लोकाचार को दर्शाता है। हम दुनिया में बेहद अनूठे, बेमिसाल हैं। दुनिया अब हमारी ताकत को पहचान रही है। दुनिया भारत को समझ रही है, जैसा कि वह 1300वीं सदी पहले था।
इसलिए, हम वैदिक धर्म से, हमारे संवैधानिक विजन को चुन सकते हैं और वह विजन यह है, कि लोकतंत्र को सरकारें नहीं, बल्कि व्यक्ति आकार देते हैं। क्योंकि व्यक्तियों पर हमारे प्रतीकों को बनाए रखने, हमारी विरासत को संरक्षित करने, संप्रभुता की रक्षा करने, भाईचारे को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी होती है। आपातकाल के दौरान ऐसा ही हुआ है। लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन हमारे संविधान में परिलक्षित हमारी सभ्यता के मूल सिद्धांतों के लिए कोई समझौता नहीं किया। लेकिन फिर लड़के और लड़कियों, लोकतंत्र क्या है? हमें समझना होगा। लोकतंत्र अभिव्यक्ति और संवाद के जरिए फलता-फूलता है। अभिव्यक्ति और संवाद, यह प्रजातंत्र के मूल मंत्र हैं।
यदि आपके अभिव्यक्ति के अधिकार को बाधित या नियंत्रित किया जाता है, जैसा कि आपातकाल के दौरान किया गया था, तो लोकतंत्र खत्म हो जाता है, लेकिन यदि आपका अभिव्यक्ति का अधिकार, और अभिव्यक्ति का वह अधिकार अहंकार को दर्शाता है, अहंकार मेरी अभिव्यक्ति का चरम है, तो मैं किसी अन्य के नजरिए पर गौर नहीं करूंगा। मैं किसी दूसरे दृष्टिकोण पर विचार नहीं करूंगा, जो हमारी सभ्यता के अनुसार अभिव्यक्ति भी नहीं है। क्योंकि हर अभिव्यक्ति संवाद के लिए सम्मान, दूसरे दृष्टिकोण के लिए सम्मान की अपेक्षा रखती है। आपको चुनौती के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए क्योंकि यह चुनौती कोई वास्तविक चुनौती नहीं, अपितु विचार, और इस सोच की चुनौती है, कि मैं आपसे असहमत हूं। इसका आशय यह नहीं है कि मैं अप्रिय हूं। हमेशा गुँजायश होनी चाहिए और इसलिए अभिव्यक्ति और संवाद, दोनों पूरक हैं और लोकतंत्र को परिभाषित करते हैं।
यदि हम अपनी सभ्यतागत समृद्धि पर गौर करें, इसको वैदिक काल में अनंतवाद कहा जाता था, वाद-विवाद की परंपरा थी। वाद-विवाद का मतलब अहं और अहंकार से दूर था। वाद-विवाद अहं और अहंकार को खत्म करता है, क्योंकि यदि अगर मैं ही सही हूं, मेरे अलावा कोई सही नहीं है यह अहं और अहंकार व्यक्ति को ही नहीं, संस्था को भी धीरे-धीरे खत्म कर देता है। इसलिए प्रजातंत्र के लिए जरूरी है अभिव्यक्ति और संवाद।
लड़के और लड़कियों, लोकतंत्र, संवाद में जीता है और संवाद के संबंध में सभी बराबर हैं। मैं अपने पद के आधार पर यह दावा नहीं कर सकता कि मुझसे अलग तरह की बात करने वाला कोई लड़का या लड़की सही नहीं हो सकता। मैं कानून के छात्रों के लिए अपनी कार्यप्रणाली का निर्णायक नहीं हो सकता। प्रशासनिक कानून के बारे में कोई भी किताब पढ़िए, चाहे वह भारतीय हो या विदेशी... आप पाएंगे कि यह प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों के प्रतिकूल होगा। ऐसी स्थिति में विचार व्यक्त करना, केवल अधिकारों का प्रयोग करना ही नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक कर्तव्य को पूरा करता है । लड़के और लड़कियों, हर युवा मानस को सक्रिय होना चाहिए। सौभाग्य से, तकनीकी प्रगति और हमारे भारत के कारण तकनीकी पैठ ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया है। यह अंतिम व्यक्ति तक पहुँच बना चुकी है, हर कोई इससे लाभान्वित हो रहा है।
लड़कों और लड़कियों, शक्ति आप में निहित है। आपको अपने खुद के विचारों को प्रस्तुत करना होगा, आपको अपने उस विचार की रक्षा करनी होगी, जिसे आप सही मानते हैं और आपको उस हानिकारक विचार को बेअसर करना होगा, जिसे आप गलत मानते हैं क्योंकि लोकतंत्र का स्वास्थ्य प्रतिबिंबित होता है। यदि आप किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की तरह लोकतंत्र के स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहते हैं, यदि इस बात का आप विश्लेषण करना चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र कितना स्वस्थ है, तो आपको संवाद की गुणवत्ता और हमारे संवाद के प्रकार के बारे में पता लगाना होगा।
क्या हमारा संवाद संयमित है? क्या हमारे संवाद में हेरफेर किया जाता है? क्या हमारे संवाद को धनबल, बाहुबल, विदेशी हितों, देश के हितों के विपरीत काम करने वाले लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है? आपको इसका पता लगाना होगा। संवाद की गुणवत्ता हमारे लोकतंत्र को परिभाषित करती है और इसमें, मुझे कोई संदेह नहीं है, हमारे युवाओं को पक्षपात से ऊपर उठकर विचारशील विचार-विमर्श करना चाहिए।
जब भारत का उत्थान हो रहा है, तो हमारे नौजवान इस महत्वपूर्ण मोड़ का जोखिम नहीं उठा सकते । उत्थान अजेय है। हमारा वैश्विक शक्ति बनना निर्धारित है। हम एक विकसित राष्ट्र होंगे, आप पक्षपातपूर्ण हितों से बंधे नहीं रह सकते। आपको केवल राष्ट्रीय हितों में विश्वास करना होगा। भारत में, अगर हम अपनी पृष्ठभूमि की जांच करें, तो एक समय था जब व्यक्तियों के पास गहरी नैतिक और सामाजिक स्थिति थी। सम्मान केवल उन लोगों का होता था, जिनके पास उच्च मनोबल और नैतिक स्थिति होती थी, जिनके पास समाज को वापस देने के लिए सब कुछ था। यदि मैं उपनिषद को उद्धृत करुँ, "यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे" जैसा व्यक्ति है, वैसा ही ब्रह्मांड है। यही कारण है कि लोगों ने भारत की महान समावेशिता, भारत के धर्म को बारीकी से समझा है।
खामोश करा दिए गए लड़के और लड़कियाँ विचारशील मस्तिष्क के रूप में बहुत खतरनाक हो सकते हैं, क्योंकि विशेषाधिकार प्राप्त मानस ही ऐसे महान विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आपको हमारी राष्ट्रीय विरासत, हमारी विचार प्रक्रिया को संरक्षित करने और इसकी स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए योगदानकर्ता बनना होगा। हम यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि संस्थाओं की, चाहे वह राष्ट्रपति पद हो या व्यक्तियों को कलंकित करना हो, की अनुचित आलोचना करने की कुटिल योजना बनाने वाली और खतरनाक इरादा करने वाली भारत विरोधी ताकतें इसे विफल कर दें। संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया हर शब्द राष्ट्र के सर्वोच्च उदात्त हित द्वारा निर्देशित होता है, लेकिन उम्मीदें हमारे नौजवानों, हमारे युवा मानस से हैं, और जब मैं हमारे नौजवान कहता हूँ, तो हमारा युवा जनसांख्यिकीय लाभांश दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय है।
हमारे युवाओं ने बड़े बदलाव को गति दी है। जल्द ही हमारी अर्थव्यवस्था तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। सभी के मिलजुलकर काम करने के कारण ऐसा संभव हुआ है। सरकार की भूमिका है कि वह बाधा न बने। सरकार की भूमिका है कि वह सकारात्मक नीतियां बनाए। सरकार को एक तरह से आपको एक अच्छा स्टेडियम, एक अच्छा फुटबॉल मैदान मुहैया कराना है। उसमें गोल तो व्यक्तियों को ही दागने होंगे। आप ही वे लोग हैं जिन्हें इससे निपटना है।
प्राचीन ज्ञान, यदि आप हमारे संवैधानिक नुस्खों को ध्यान से पढ़ें, तो मैं विशेष रूप से कानून के छात्रों को संबोधित कर रहा हूँ, आपको हमारे संवैधानिक मूल्यों की शक्तिशाली प्रतिध्वनि मिलेगी। वास्तव में, उच्च नैतिक मानक, सभी का कल्याण, 'वसुधैव कुटुम्बकम' ये हमारे डीएनए में गहराई से, अमिट रूप से समाहित हैं। एक राष्ट्र के रूप में हम ग्रह पर किसी भी अन्य राष्ट्र से अलग हैं।
हमें तर्कसंगत रूप से इस बात पर गर्व करना चाहिए। हम भारतीय हैं। भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रीयता हमारा धर्म है, राष्ट्र के प्रति समर्पण करना हमारा सर्वोपरि कर्तव्य है और हमें इसको आगे बढ़ाना चाहिए, सृजन करना चाहिए, इसका संकल्प लेना चाहिए।
लड़के और लड़कियों, हमारा राष्ट्रीय परिवर्तन पाँच स्तंभों पर आधारित है।
एक - सामाजिक समरसता। समरसता, भाईचारा हो, एक-दूसरे की बात को समझे, यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। हमें इसको उपजाना है, इसका संरक्षण करना है। विविधता को एकीकृत करते हुए, हमने हमेशा समावेशिता में विश्वास किया है। परिवार ने देशभक्ति का पोषण किया है। बच्चों को शुरू से ही संस्कार सीखना, इसके बहुत दूरगामी परिणाम हैं। यह हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। स्वदेशी,बच्चों को शुरू से ही संस्कार सीखना, इसके बहुत दूरगामी परिणाम हैं। यह हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। स्वदेशी, आत्मनिर्भरता महात्मा गांधी ने कहा था - ‘स्वदेशी’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘वोकल फॉर लोकल’, पर अब इसका फायदा देखिए।
लड़के और लड़कियों, आर्थिक राष्ट्रवाद, अर्थव्यवस्था का एक बुनियादी पहलू है। जब हम इस देश में ऐसी चीजें आयात करते हैं, जो यहां बनाई जा सकती हैं, तो हम न केवल अपनी विदेशी मुद्रा को खत्म कर रहे हैं, बल्कि हम अपने लोगों को भी काम से वंचित कर रहे हैं। हम उद्यमशीलता को कुंद कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति सचेत रूप से योगदान दे, तो हम भारत को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। चाहे वह प्राकृतिक संसाधन हों। बेतहाशा उपभोग हमारी परंपराओं में नहीं है, क्योंकि हम ट्रस्टी हैं। हमारी राजकोषीय शक्ति, हमारी धन शक्ति हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों पर मांग करने का अधिकार नहीं दे सकती, जो सभी के हैं। मनुष्य से अतिरिक्त सभी जीवित प्राणियों तक, नागरिक कर्तव्य इसका पाँचवाँ स्तंभ है।
प्रत्येक व्यक्ति, यदि वह ठान लेता है या लेती है, तो सांस्कृतिक गौरव और आत्मनिर्भरता की हमारी यात्रा में व्यक्तिगत जिम्मेदारी, पारंपरिक मूल्य, पर्यावरणीय चेतना को एकीकृत करके हम राष्ट्रवादी भावना का एक नया जोश अंतर्निविष्ट कर सकते हैं।
लोकसंग्रह हमारे वैदिक कल्चर में है। इसको कह सकते हो कि हर किसी की भागीदारी, हर किसी का योगदान। अपनी भारतीय संस्कृति में यदि आप देखोगे और जाओगे पुराने कल्चर में, कन्या दान क्या होता था? व्यक्ति अपनी बेटी की शादी करता था, पर कन्यादान हर कोई देता था। दुनिया के अंदर आज तक इससे बड़ा अजूबा उदाहरण नहीं है कि यह क्यों है। यह क्या सीखता है।
लोक व्यवस्था बल से नहीं, जोर-जबरदस्ती से नहीं, स्वैच्छिक अनुशासन से उत्पन्न होती है। राष्ट्रीय विकास नागरिकों के व्यापक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। लोक व्यवस्था तभी पनपती है, जब प्रत्येक व्यक्ति कानून और न्याय का रक्षक बनकर कार्य करता है। जरा कल्पना कीजिए कि हमने किस घटना का सामना किया है। युवाओं को ये परिप्रेक्ष्य मन में बैठाने होंगे, कि हमारा लोकतंत्र व्यवधान, संपत्ति का विनाश, संवैधानिक चुनौतियों और सभ्यता के लोकाचार पर हमले को कैसे बर्दाश्त कर सकता है। सार्वजनिक संपत्ति, हमारी संपत्ति जलाई जा रही है। यहाँ तक कि कानून के शासन द्वारा अपना काम किए जाने के बावजूद लोक व्यवस्था बाधित होती है। हमें इन ताकतों को बेअसर करना होगा। सबसे पहले काउंसलिंग करके, और अगर काउंसलिंग काम नहीं करती है, तो यहाँ तक कि शरीर को आकार में रखने के लिए कभी-कभी कड़वी गोली भी देनी पड़ती है ।
लड़के और लड़कियों, किसी का भी हित आपसे बढ़कर नहीं है। आप इस देश का भविष्य हैं, इसलिए आपका हित सबसे बड़ा है। यदि विकसित भारत का लक्ष्य हासिल किया जाता है, जो कि कर लिया जाएगा, तो इसमें आपके दृष्टिकोण का 100 प्रतिशत योगदान होगा। कहते हैं कि जितना ज्यादा से ज्यादा संभव हो सके, सशक्त रूप से और दक्षतापूर्वक कार्य करना चाहिए। हमें राष्ट्रवाद का आशय समझना होगा। यह आक्रामक राष्ट्रवाद नहीं है, बल्कि राष्ट्र के प्रति गहरा प्रेम है। अपनी संस्कृति और विरासत में गहरी आस्था है। हमें अपनी महान उपलब्धियों का कीर्तिगान करना चाहिए, उन्हें और ऊँचाइयों तक ले जाना चाहिए, साथ ही अपनी कमियों के बारे में भी पूरी तरह से सजग रहना चाहिए। हर किसी में कमियां और असफलताएं होंगी, ये स्वाभाविक है।
असफलता, असफलता नहीं होती। यह सफलता पाने की सीढ़ी होती है और इसी परिप्रेक्ष्य में, हमें यह मानना होगा कि सच्चा राष्ट्रवाद कई तत्वों के माध्यम से प्रकट होता है।
पहला, राष्ट्र को अपना सर्वश्रेष्ठ दें। उत्कृष्टता, सत्यनिष्ठा, संरक्षण, करुणा, और नारेबाजी नहीं। हमें इससे दूर रहना चाहिए।
राष्ट्र को सर्वोपरि रखना, राष्ट्रहित को सर्वोच्च रखना। हम कभी भी राष्ट्रीय हित को पक्षपातपूर्ण हित के अधीन नहीं रख सकते। यह कोई विकल्प नहीं है, यही एकमात्र रास्ता है क्योंकि हम गर्वित भारतीय हैं और डॉ. अंबेडकर ने पहले ही इसे उद्धृत किया है, बाकी सब कुछ भूल जाइए। मैं उनका प्रासंगिक हिस्सा उद्धृत करता हूँ। अंबेडकर का ज्ञान है, 'पहले भारतीय बनो, अंत में भारतीय बनो, केवल भारतीय बनो।' और उनका दूसरा ज्ञान, 'शिक्षित बनो, संगठित हो और आंदोलन करो' जो मैंने उद्धृत किया, आप लड़के और लड़कियों के लिए था।
छात्र और सर्वोत्तम मेरे सामने मौजूद हैं और मुझे यकीन है कि पूरे देश के छात्र मेरी बात सुन रहे होंगे। राष्ट्रीय एकता के लिए ज़िम्मेदार बनें। प्रगति, सोशल मीडिया में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से विभाजनकारी आवाज़ों को बेअसर करना आपका दायित्व है। आपको शासन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसकी गुणवत्ता में सुधार लाना होगा, क्योंकि यदि आप पहले नहीं, तो 2047 तक भारत के विकसित होने की हमारी यात्रा के पैदल सैनिक हैं। राष्ट्र सरकारों द्वारा नहीं बनाए जाते हैं। राष्ट्र उद्योगपतियों द्वारा नहीं बनाए जाते हैं। राष्ट्र व्यक्तियों द्वारा बनाए जाते हैं।
जैसा कि मैंने कहा, व्यक्ति की शक्ति एक अणु है। उसकी शक्ति आणविक है। आपके पास वह शक्ति है, आपको बस इसे महसूस करना है, लेकिन सबसे बड़ा प्रभाव लड़के –लड़कियों तब आता है, जब आप ईमानदारी में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं। आपके क्षेत्र के नैतिक मानकों में और हमेशा एक सार्वजनिक उद्देश्य, एक सार्वजनिक ध्येय को पाने का लक्ष्य रखें। नया भारत केवल तभी उभरेगा और उभर रहा है, जब नागरिक समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे।
मैं कुछ बातों के बारे में आपको आगाह करना चाहता हूँ, लाभ हासिल करने की बजाय ईमानदारी को चुनना। बहुत से लोग शॉर्टकट अपनाते हैं, मेरा यकीन कीजिए, शॉर्टकट दो बिंदुओं के बीच की सबसे लंबी दूरी होती है। जब आप मुसीबत में हों, जब आप मुश्किल में हों। अगर आप कानून के शासन के साथ शॉर्टकट अपनाते हैं। अगर आप वित्तीय अनुशासन के साथ शॉर्टकट अपनाते हैं। हो सकता है कि आपको क्षणिक सफलता मिल जाए, लेकिन जब आप उसमें फंस जाते हैं, तो आप कभी उससे बाहर नहीं निकल पाते। इसलिए, ईमानदारी की बजाय कभी लाभ को न चुनिए। हमारा राष्ट्रीय चरित्र यह होना चाहिए कि हम ईमानदार हैं, क्योंकि केवल ईमानदार लोगों से ही राष्ट्र ईमानदार बन सकता है।
लोकतंत्र की गुणवत्ता भागीदारी पर निर्भर करती है। सुविचारित विचारों को सम्मति देना, सिविल सोसायटी की भागीदारी। रचनात्मक अलग दृष्टिकोण। हमारी प्रक्रिया में लोकतंत्र को जीवंत होना चाहिए। शिक्षित युवाओं को पक्षपात से परे रहकर राजनीति का मूल्यांकन करना चाहिए। आपको मुझ समेत हर किसी से जवाबदेही की मांग करना सीखना चाहिए। आपको बेहद आलोचनात्मक और अनुमान लगाने वाला होना चाहिए। अगर आपको लगता है कि मैं जो कह रहा हूँ वह गलत है, तो मुझे सुधार करना होगा, लेकिन अगर आपको लगता है कि मैं सही हूँ और फिर भी आप चुप रहते हैं, तो मेरा यकीन कीजिए। आपको हमेशा के लिए चुप करा दिया जाएगा।
सही बात, सही समय, सही समूह को और सही व्यक्ति को कहने में हिचकिचाहट करोगे, तो खुद को तो दुर्बल करोगे ही, उन सकारात्मक शक्तियों को भी आप गहरी चोट पहुँचाओगे। इसलिए, अभिव्यक्ति और संवाद सर्वोपरि है।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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एमजी/आरपीएम/केसी/आरके
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