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राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक 2025


भारत के राज्य-स्तरीय आर्थिक सशक्तिकरण का मानचित्रण

Posted On: 02 APR 2025 5:42PM by PIB Delhi

प्रस्तावना:

नीति आयोग द्वारा राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक (एफएचआई) पहल का उद्देश्य, भारत में राज्यों के राजकोषीय स्वास्थ्य के बारे में समझ बढ़ाना है। एफएचआई विश्लेषण में अठारह प्रमुख राज्य शामिल हैं, जो भारत की जीडीपी, जनसांख्यिकी, कुल सार्वजनिक व्यय, राजस्व और समग्र राजकोषीय स्थिरता में उनके योगदान के संदर्भ में, भारतीय अर्थव्यवस्था को संचालित करते हैं। ओडिशा सूचकांक में सबसे ऊपर है, उसके बाद छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड और गुजरात हैं। चूंकि राज्य लगभग दो-तिहाई सार्वजनिक व्यय और कुल राजस्व के एक-तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं, इसलिए उनका राजकोषीय प्रदर्शन देश की समग्र आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। यह रिपोर्ट एक समग्र सूचकांक के ज़रिए, प्रत्येक राज्य के राजकोषीय स्वास्थ्य का निष्पक्ष मूल्यांकन करती है, जिससे सर्वोत्तम व्यवस्थाओं की तुलना और बेंचमार्किंग की सुविधा भी मिलती है। समग्र राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के डेटा का उपयोग करके विकसित किया गया है, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 को कवर करता है।

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राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक के उद्देश्य

  • मानकीकृत मीट्रिक के ज़रिए भारतीय राज्यों में राजकोषीय स्वास्थ्य का तुलनात्मक विश्लेषण प्रदान करना।
  • राज्यों की राजकोषीय प्रबंधन व्यवस्थाओं में मजबूती और चिंता के क्षेत्रों की पहचान करना।
  • अनुभाविक मूल्यांकन के ज़रिए पारदर्शिता, जवाबदेही और विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन को बढ़ावा देना।
  • राजकोषीय स्थिरता और मज़बूती को बढ़ाने हेतु सूचित निर्णय लेने में नीति निर्माताओं की सहायता करना।

 

मूल्यांकन किए गए प्रमुख संकेतक

वित्तीय स्वास्थ्य सूचकांक 2025, संकेतकों के एक व्यापक समूह पर आधारित है, जिन्हें पाँच व्यापक श्रेणियों में बांटा गया है:

कर उछाल

कर उछाल, किसी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद या जीएसडीपी में बदलाव के संबंध में कर राजस्व में परिवर्तन का अनुपात है। यह मापता है कि आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के लिए कराधान नीति कितनी उत्तरदायी है।


  1. राजस्व सृजन और संग्रहण: राज्यों की अपनी राजस्व प्राप्तियों, कर उछाल और गैर-कर राजस्व सृजन का आकलन।

ऋण-से-जीएसडीपी

ऋण-से-जीडीपी अनुपात एक मीट्रिक है, जो किसी राज्य के कुल सार्वजनिक ऋण की तुलना, उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) से करता है, जो उसके ऋणों को चुकाने की क्षमता को दर्शाता है, और इसे अक्सर प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।

 

  1. व्यय प्रबंधन और प्राथमिकता: व्यय आवंटन में दक्षता का मूल्यांकन, पूंजीगत व्यय की प्राथमिकता और राजकोषीय अनुशासन का पालन।
  2. ऋण प्रबंधन: राज्यों के ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात, ब्याज भुगतान बोझ और ऋण पोर्टफोलियो की समग्र स्थिरता का विश्लेषण।
  3. राजकोषीय घाटा प्रबंधन: सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में राज्यों के राजकोषीय घाटे का मापन और वैधानिक सीमाओं का पालन।
  4. समग्र राजकोषीय स्थिरता: दीर्घकालिक राजकोषीय स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए राजस्व, व्यय, घाटे और ऋण संकेतकों का समग्र विश्लेषण।

मुख्य परिणाम

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ओडिशा 67.8 के सर्वोच्च स्कोर के साथ राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक में सबसे आगे है, जो ऋण सूचकांक (99.0) और ऋण स्थिरता (64.0) में उत्कृष्ट है। यह कम राजकोषीय घाटे, मजबूत ऋण प्रोफ़ाइल और उच्च पूंजीगत परिव्यय/जीएसडीपी अनुपात बनाए रखता है। छत्तीसगढ़ (55.2) और गोवा (53.6) क्रमशः ऋण सूचकांक और राजस्व जुटाने में उत्कृष्ट हैं। ओडिशा, झारखंड, गोवा और छत्तीसगढ़ गैर-कर राजस्व जुटाने में उत्कृष्ट हैं, जो कुल राजस्व का औसतन 21% है, जिसमें ओडिशा को खनन प्रीमियम से और छत्तीसगढ़ को कोयला ब्लॉक नीलामी से लाभ मिलता है। इसके विपरीत, पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल को कम व्यय गुणवत्ता, खराब ऋण स्थिरता और उच्च राजकोषीय घाटे सहित महत्वपूर्ण राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शीर्ष राज्य एक ओर, ऋण सूचकांक और स्थिरता में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं पश्चिम बंगाल और पंजाब बढ़ते ऋण-जीएसडीपी अनुपात से जूझ रहे हैं, जिससे ऋण स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं।

मध्य प्रदेश, ओडिशा, गोवा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, अपने विकास व्यय का करीब 27%, पूंजीगत व्यय के लिए आवंटित करते हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पंजाब और राजस्थान केवल 10% आवंटित करते हैं। शीर्ष राज्य एक ओर ऋण सूचकांक और स्थिरता में उत्कृष्ट हैं, वहीं पश्चिम बंगाल और पंजाब, बढ़ते ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात से जूझ रहे हैं, जिससे ऋण स्थिरता के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।

 

ऋण पोर्टफोलियो की स्थिरता

ऋण पोर्टफोलियो की स्थिरता का अर्थ, राज्य की अपनी वर्तमान और भविष्य की ऋण बाध्यताओं को, बिना चूक या असाधारण वित्तीय सहायता की ज़रुरत के पूरा करने की क्षमता से है, जिससे सॉल्वेंसी और लिक्विडिटी दोनों पर ध्यान केंद्रित होता है।

 

शीर्ष प्रदर्शनकर्ता: ओडिशा, छत्तीसगढ़ और गोवा ऋण सूचकांक, ऋण स्थिरता और राजस्व जुटाने में उत्कृष्ट हैं।

राजस्व जुटाना: ओडिशा, झारखंड, गोवा और छत्तीसगढ़ प्रभावी रूप से गैर-कर राजस्व जुटाते हैं (कुल राजस्व का औसत 21%)

 

ऋण सूचकांक

ब्याज भुगतान और राजस्व प्राप्तियों का अनुपात (आईपी/आरआर), जो बकाया ऋण के कारण ब्याज भुगतान के लिए उपयोग की जाने वाली राजस्व प्राप्तियों का प्रतिशत दर्शाता है।

 

आकांक्षी राज्य: पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल को खराब ऋण स्थिरता और उच्च घाटे जैसी राजकोषीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

पूंजीगत व्यय: ओडिशा, गोवा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश द्वारा उच्च आवंटन (27%); पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान द्वारा कम आवंटन (10%)

ऋण संबंधी चिंताएँ: पश्चिम बंगाल और पंजाब बढ़ते ऋण बोझ और बढ़ते ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात का सामना कर रहे हैं।

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निष्कर्ष

राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक 2025, भारतीय राज्यों के राजकोषीय प्रदर्शन का आकलन करने के लिए एक मूल्यवान उपकरण प्रदान करता है। यह राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य को बढ़ाने के लिए निरंतर निगरानी, ​​विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन और सक्रिय उपायों की ज़रुरत पर फोकस करता है। यह सूचकांक, समग्र राजकोषीय स्थिरता के लिए राजस्व सृजन, कुशल व्यय प्रबंधन, ऋण नियंत्रण और राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों के पालन के महत्व को रेखांकित करता है। एफएचआई रिपोर्ट को सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है, ताकि उन्हें प्रमुख संकेतकों के आधार पर अपने राजकोषीय प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद मिल सके। राज्यों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के अनुकूल स्थायी राजकोषीय प्रथाओं को अपनाने और उचित राज्य-स्तरीय समर्थन के ज़रिए राजकोषीय सावधानी की दिशा में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है

संदर्भ

https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2025-01/Fiscal_Health_Index_24012025_Final.pdf

https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/184/AU5286_7JIvqM.pdf?source=pqals

राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक 2025

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