वस्त्र मंत्रालय
संसद प्रश्न: निर्यात पर एफटीएएस और पीटीएएस का प्रभाव
Posted On:
02 APR 2025 1:03PM by PIB Delhi
पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत के कपास, मानव निर्मित, ऊनी, रेशम और तकनीकी वस्त्रों के निर्यात का ब्यौरा नीचे संलग्न है।
भारत ने अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ 14 मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और 6 अधिमान्य व्यापार समझौतों (पीटीए) पर हस्ताक्षर किए हैं।
सरकार भारतीय वस्त्र क्षेत्र को बढ़ावा देने और इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाओं/पहलों को लागू कर रही है। प्रमुख योजनाओं/पहलों में आधुनिक, एकीकृत, विश्व स्तरीय वस्त्र अवसंरचना बनाने के लिए पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन और अपैरल (पीएम मित्र) पार्क योजना; बड़े पैमाने पर विनिर्माण को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एमएमएफ फैब्रिक, एमएमएफ परिधान और तकनीकी वस्त्रों पर ध्यान केंद्रित करने वाली उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना; अनुसंधान नवाचार और विकास, संवर्धन और बाजार विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाला राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन; मांग आधारित, प्लेसमेंट उन्मुख, कौशल कार्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए समर्थ योजना।
इसके अलावा, सरकार शून्य दर वाले निर्यात के सिद्धांत को अपनाकर प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए परिधान/वस्त्र और मेड-अप के लिए राज्य और केंद्रीय करों और शुल्कों में छूट (आरओएससीटीएल) योजना भी लागू कर रही है। इसके अलावा, आरओएससीटीएल योजना के अंतर्गत शामिल न किए गए वस्त्र उत्पादों को अन्य उत्पादों के साथ निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों और करों की छूट (आरओडीटीईपी) के अंतर्गत कवर किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सरकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार मेलों, प्रदर्शनियों, क्रेता-विक्रेता बैठकों आदि के आयोजन और उनमें भागीदारी के लिए वाणिज्य विभाग द्वारा कार्यान्वित बाजार पहुंच पहल योजना के अंतर्गत विभिन्न निर्यात संवर्धन परिषदों और व्यापार निकायों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
वस्त्र मंत्रालय विकास आयुक्त (हथकरघा) कार्यालय के माध्यम से निम्नलिखित योजनाओं को लागू करके देश के हथकरघा उत्पादों को बढ़ावा देता है:
- राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम;
- कच्चा माल आपूर्ति योजना;
- उपरोक्त योजनाओं के अंतर्गत पात्र हथकरघा एजेंसियों/बुनकरों को कच्चा माल, उन्नत करघे एवं सहायक उपकरण की खरीद, सौर प्रकाश इकाइयों, वर्कशेड के निर्माण, कौशल विकास, उत्पाद एवं डिजाइन विकास, तकनीकी एवं साझा अवसंरचना, घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हथकरघा उत्पादों के विपणन, बुनकरों की मुद्रा योजना के अंतर्गत रियायती ऋण और सामाजिक सुरक्षा आदि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- उपयुक्त शीर्ष/प्राथमिक हथकरघा सहकारी समितियों, निगमों, उत्पादक कंपनियों, हथकरघा पुरस्कार विजेताओं, निर्यातकों, अन्य प्रतिभाशाली बुनकरों आदि के साथ अंतर्राष्ट्रीय विपणन संबंध स्थापित करने में सहायता प्रदान करना, जो विशिष्ट निर्यात योग्य हथकरघा उत्पाद तैयार कर रहे हैं।
- हथकरघा उत्पादों के निर्यात संवर्धन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मेलों/प्रदर्शनियों, बड़े आयोजनों, क्रेता-विक्रेता सम्मेलन, रिवर्स क्रेता-विक्रेता सम्मेलन आदि के आयोजन/भागीदारी के माध्यम से बाजार में प्रवेश। भारत हथकरघा ब्रांड (आईएचबी), हथकरघा मार्क (एचएलएम) और अन्य उपायों के माध्यम से प्रचार और ब्रांड विकास।
- हथकरघा बुनकरों को धागा उपलब्ध कराने के लिए पूरे देश में कच्चा माल आपूर्ति योजना (आरएमएसएस) लागू की जा रही है। इस योजना के तहत सभी प्रकार के धागे के लिए माल ढुलाई शुल्क की प्रतिपूर्ति की जाती है; और सूती धागे, घरेलू रेशम, ऊनी और लिनन धागे तथा प्राकृतिक रेशों के मिश्रित धागे के लिए 15% मूल्य सब्सिडी का प्रावधान है।
वाणिज्य विभाग की एमएआई योजना के तहत भारत और विदेशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों और क्रेता-विक्रेता बैठकों में भागीदारी के माध्यम से हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) के साथ पंजीकृत लगभग 2,600 हस्तशिल्प निर्यातकों को समर्थन दिया गया। मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं के तहत 2024-25 (फरवरी 2025 तक) के दौरान हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद (एचईपीसी) के लगभग 582 सदस्य निर्यातकों को विपणन सहायता प्रदान की गई।
वस्त्र मंत्रालय राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) के अंतर्गत अखिल भारतीय स्तर पर हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों के संबंध में वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (जीआई) (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999 के प्रावधानों को बढ़ावा देता है। उपरोक्त योजना के अंतर्गत, डिजाइनों/उत्पादों के पंजीकरण, कार्यान्वयन एजेंसियों के कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करने और जीआई पंजीकरण के प्रभावी प्रवर्तन में होने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। अब तक, कुल 658 जीआई टैग वाले उत्पादों में से कुल 214 हस्तशिल्प उत्पाद और 104 हथकरघा उत्पाद जीआई अधिनियम के तहत पंजीकृत किए गए हैं।
विपणन के अधिक अवसर बढ़ाने के लिए, विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) का कार्यालय राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) के तहत देश भर में विभिन्न घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विपणन कार्यक्रमों को लागू कर रहा है, जिसमें कारीगरों को अपने उत्पाद बेचने के लिए एक मंच प्रदान किया जा रहा है। इसके अलावा, कारीगरों और बुनकरों के लिए विशेष रूप से एक ई-कॉमर्स पोर्टल (www.Indiahandmade.com) शुरू किया गया है, जहाँ वे देश भर के खरीदारों को अपने उत्पाद बेच सकते हैं। कारीगरों को जीईएम पोर्टल पर भी जोड़ा जा रहा है, जहाँ वे अपने उत्पाद सरकारी कार्यालयों/पीएसयू आदि को बेच सकते हैं।
पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत का कपास, मानव निर्मित, ऊन, रेशम का निर्यात:
मूल्य मिलियन अमरीकी डॉलर में
|
माल
|
वित्त वर्ष 2021-2022
|
वित्त वर्ष 2022-2023
|
वित्त वर्ष 2023-2024
|
|
कपास धागा
|
5,498
|
2,752
|
3,780
|
|
अन्य वस्त्र धागा, कपड़े, मेडअप आदि
|
650
|
730
|
731
|
|
कच्चा कपास सम्मिलित अपशिष्ट
|
2,816
|
781
|
1,117
|
|
सूती कपड़े, मेडअप्स आदि
|
8,201
|
6,821
|
6,630
|
|
सूती वस्त्र
|
17,166
|
11,085
|
12,258
|
|
मानव निर्मित स्टेपल फाइबर
|
680
|
463
|
402
|
|
मानव निर्मित धागा, कपड़े, मेडअप्स
|
5,615
|
4,949
|
4,679
|
|
मानव निर्मित वस्त्र
|
6,294
|
5,412
|
5,081
|
|
ऊन कच्चा
|
0
|
1
|
1
|
|
ऊनी धागा, कपड़े, मेडअप्स आदि।
|
166
|
204
|
192
|
|
ऊनी एवं ऊनी वस्त्र
|
166
|
205
|
192
|
|
प्राकृतिक रेशम धागा, कपड़े, मेडअप
|
79
|
72
|
79
|
|
कच्चा रेशम
|
2
|
0
|
2
|
|
रेशम अपशिष्ट
|
28
|
22
|
38
|
|
रेशम उत्पाद
|
109
|
95
|
119
|
स्रोत: डीजीसीआईएस अस्थायी डेटा
पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत का तकनीकी वस्त्र निर्यात:
मूल्य करोड़ रुपये में
|
माल
|
वित्त वर्ष 2021-2022
|
वित्त वर्ष 2022-2023
|
वित्त वर्ष 2023-2024
|
|
तकनीकी वस्त्र
|
21,194.62
|
20,095.52
|
21,407.38
|
स्रोत: वाणिज्य मंत्रालय
यह जानकारी आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में वस्त्र राज्य मंत्री श्री पबित्रा मार्गेरिटा द्वारा दी गई।
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