रक्षा मंत्रालय
मेक इन इंडिया पहल से रक्षा विकास को बढ़ावा
वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा उत्पादन 1.27 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा और निर्यात 21,000 करोड़ रुपये के पार
Posted On:
24 MAR 2025 7:19PM by PIB Delhi
सारांश
भारत का रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, जो मेक इन इंडिया पहल से प्रेरित होकर 2014-15 से 174% की वृद्धि दर्शाता है।
वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21,083 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, एक दशक में 30 गुना विस्तार, 100 से अधिक देशों में निर्यात।
आईडेक्स और सामर्थ्य जैसी पहल एआई, साइबर युद्ध तथा स्वदेशी हथियार प्रणालियों में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा दे रही हैं।
सृजन के अंतर्गत 14,000 से अधिक वस्तुओं का स्वदेशीकरण किया गया और सकारात्मक देशीकरण सूची के अंतर्गत 3,000 से अधिक वस्तुओं का स्वदेशीकरण हुआ है।
भारत का लक्ष्य साल 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपए का उत्पादन व 50,000 करोड़ रुपए का रक्षा निर्यात करना है।
परिचय
भारत का रक्षा उत्पादन "मेक इन इंडिया" पहल के शुभारंभ के बाद से असाधारण गति से बढ़ा है, जो वित्त वर्ष 2023-24 में रिकॉर्ड 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कभी विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहने वाला हमारा देश अब स्वदेशी विनिर्माण में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है, और अब घरेलू क्षमताओं के माध्यम से अपनी सैन्य ताकत को आकार दे रहा है। यह बदलाव आत्मनिर्भरता के प्रति मजबूत वचनबद्धता को दर्शाता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत न केवल अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करे, बल्कि एक मजबूत रक्षा उद्योग का निर्माण भी करे जो आर्थिक विकास में योगदान देता हो।
रणनीतिक नीतियों ने इस गति को बढ़ावा दिया है और निजी भागीदारी, तकनीकी नवाचार तथा उन्नत सैन्य प्लेटफार्मों के विकास को प्रोत्साहित किया है। रक्षा बजट में 2013-14 के 2.53 लाख करोड़ रुपये से 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये तक की वृद्धि, सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए देश के दृढ़ संकल्प को उजागर करती है।
आत्मनिर्भरता और आधुनिकीकरण के लिए यह प्रतिबद्धता हाल ही में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) द्वारा एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) की खरीद को दी गई मंजूरी में परिलक्षित होती है, जो सेना की मारक क्षमता बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस सौदे में 155 मिमी/52 कैलिबर की 307 इकाइयों के साथ 327 हाई मोबिलिटी 6x6 गन टोइंग वाहन शामिल हैं, जो 7,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से भारतीय-स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित व निर्मित (आईडीडीएम) श्रेणी के तहत 15 आर्टिलरी रेजिमेंटों को सुसज्जित करेंगे। भारत फोर्ज और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ डीआरडीओ द्वारा विकसित एटीएजीएस एक अत्याधुनिक तोपखाना प्रणाली है, जिसमें 40+ किलोमीटर रेंज, उन्नत फायर कंट्रोल, सटीक लक्ष्यीकरण, स्वचालित लोडिंग तथा रिकॉइल प्रबंधन है, जिसका भारतीय सेना द्वारा सभी इलाकों में गहन परीक्षण किया गया है।
देश में निर्मित आधुनिक युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों, तोपखाना प्रणालियों और अत्याधुनिक हथियारों के साथ, भारत अब वैश्विक रक्षा विनिर्माण परिदृश्य में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में खड़ा है।
स्वदेशी रक्षा उत्पादन में उछाल
भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान मूल्य के संदर्भ में स्वदेशी रक्षा उत्पादन में अब तक की सबसे अधिक वृद्धि हासिल की है, जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। सभी रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू), रक्षा वस्तुएं बनाने वाली अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और निजी कंपनियों के आंकड़ों के अनुसार, देश का रक्षा उत्पादन का मूल्य बढ़कर 1,27,265 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो 2014-15 के 46,429 करोड़ रुपये से 174% की प्रभावशाली वृद्धि दर्शाता है।
इस वृद्धि को मेक इन इंडिया पहल से बल मिला है, जिसने धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस), मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन, लाइट स्पेशलिस्ट व्हीकल्स, हाई मोबिलिटी व्हीकल्स, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच), लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच), आकाश मिसाइल सिस्टम, वेपन लोकेटिंग रडार, 3डी टैक्टिकल कंट्रोल रडार और सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (एसडीआर) सहित उन्नत सैन्य प्लेटफार्मों के विकास को सक्षम किया है। इसके साथ ही विध्वंसक, स्वदेशी विमान वाहक, पनडुब्बियां, फ्रिगेट, कोरवेट, फास्ट पेट्रोल वेसल, फास्ट अटैक क्राफ्ट तथा ऑफशोर पेट्रोल वेसल जैसी नौसैनिक संपत्तियां भी विकसित की हैं।
प्रमुख बिंदु:
- अब 65% रक्षा उपकरण घरेलू स्तर पर निर्मित किए जाते हैं, जो पहले की 65-70% आयात निर्भरता से एक महत्वपूर्ण बदलाव है और रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
- एक मजबूत रक्षा औद्योगिक आधार में 16 डीपीएसयू, 430 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कंपनियां और लगभग 16,000 एमएसएमई शामिल हैं, जो स्वदेशी उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करते हैं।
- निजी क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो कुल रक्षा उत्पादन में 21% का योगदान देता है और नवाचार एवं दक्षता को बढ़ावा देता है।
- भारत ने 2029 तक रक्षा उत्पादन में 3 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है, जिससे वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी स्थिति मजबूत होगी।
रक्षा निर्यात में अभूतपूर्व बढ़ोतरी
रक्षा विनिर्माण में भारत की वैश्विक उपस्थिति का विस्तार, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक नीतिगत हस्तक्षेप के प्रति देश की कटिबद्धता का प्रत्यक्ष परिणाम है। रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है, जो पिछले एक दशक की तुलना में 30 गुना वृद्धि को दर्शाता है।
प्रमुख बिंदु:
- रक्षा निर्यात में 21 गुना वृद्धि हुई है, जो 2004-14 के दशक में 4,312 करोड़ रुपये से बढ़कर 2014-24 के दशक में 88,319 करोड़ रुपये हो गया है, जो वैश्विक रक्षा क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
- रक्षा निर्यात में साल-दर-साल 32.5% की बढ़ोतरी हुई, जो वित्त वर्ष 2022-23 में 15,920 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपये हो गया।
- भारत के विविध निर्यात पोर्टफोलियो में बुलेटप्रूफ जैकेट, डोर्नियर (डीओ-228) विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, तीव्र गति की इंटरसेप्टर नौकाएं और हल्के वजन वाले टारपीडो शामिल हैं।
- उल्लेखनीय है कि 'मेड इन बिहार' का उपयोग अब रूसी सेना के साजो-सामान का हिस्सा है, जो भारत के उच्च विनिर्माण मानकों को दर्शाता है।
- भारत अब 100 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण निर्यात करता है, जिसमें 2023-24 में अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया शीर्ष खरीदार के रूप में उभरेंगे।
- सरकार का लक्ष्य 2029 तक रक्षा निर्यात को 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाना है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की भूमिका मजबूत होगी।
रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडेक्स)
रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडेक्स) अप्रैल 2018 में शुरू किया गया था, जिसके माध्यम से रक्षा व एयरोस्पेस में नवाचार एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिए एक समृद्ध इकोसिस्टम बनाया है। एमएसएमई, स्टार्टअप्स, व्यक्तिगत नवप्रवर्तकों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और शिक्षाविदों को शामिल करके, आईडेक्स ने नवीन प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1.5 करोड़ रुपये तक का अनुदान प्रदान किया है। रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को और बढ़ाने के उद्देश्य से 2025-26 के लिए आईडेक्स को 449.62 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसमें इसकी उप-योजना आईडेक्स के साथ नवीन प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देना (अदिति) भी शामिल है। फरवरी 2025 तक, 549 समस्या विवरण खोले गए हैं, जिनमें 619 स्टार्टअप तथा एमएसएमई शामिल हैं, और 430 आईडेक्स अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

इस योजना के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं:
- भारतीय रक्षा एवं एयरोस्पेस क्षेत्र के लिए नई, स्वदेशी और नवीन प्रौद्योगिकियों के तेजी से विकास को सुविधाजनक बनाना, ताकि कम समय में उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों के लिए सह-निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए, नवोन्मेषी स्टार्टअप्स के साथ सहभागिता की संस्कृति का निर्माण करना।
- रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी सह-सृजन व सह-नवाचार की संस्कृति को सशक्त बनाना।
हाल ही में शुरू की गई अदिति योजना का उद्देश्य उपग्रह संचार, उन्नत साइबर प्रौद्योगिकी, स्वायत्त हथियार, अर्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम प्रौद्योगिकी, परमाणु प्रौद्योगिकी और पानी के नीचे निगरानी जैसी महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक प्रौद्योगिकियों का सहयोग करना है। इस योजना के तहत, नवोन्मेषकों को 25 करोड़ रुपये तक का अनुदान दिया जाता है।
रक्षा मंत्रालय ने स्टार्टअप्स और एमएसएमई को सहायता देने की अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए फरवरी 2025 तक सशस्त्र बलों के लिए आइडेक्स स्टार्टअप्स तथा एमएसएमई से 2,400 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की 43 वस्तुओं की खरीद को भी मंजूरी दे दी है। इसके अतिरिक्त, विकास के लिए 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है।
सामर्थ्य: भारत के रक्षा स्वदेशीकरण का प्रदर्शन
रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण एवं नवाचार की सफलता की कहानी को एयरो इंडिया 2025 कार्यक्रम ‘सामर्थ्य’ में उजागर किया गया, जिसमें रक्षा विनिर्माण में भारत की प्रगति को प्रदर्शित किया गया। इस कार्यक्रम में 33 प्रमुख स्वदेशी उत्पाद प्रदर्शित किये गए, जिनमें 24 वस्तुएं रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा भारतीय नौसेना द्वारा विकसित की गईं और साथ ही आईडीईएक्स की नौ सफल नवाचार परियोजनाएं भी शामिल थीं।
प्रदर्शित प्रमुख स्वदेशी वस्तुएं थीं:
- एंटी-एयरक्राफ्ट मशीन गन का इलेक्ट्रो ब्लॉक
- पनडुब्बियों के लिए इलेक्ट्रिक मोबाइल पार्ट
- एचएमवी 6x6 के लिए टॉर्शन बार सस्पेंशन
- एलसीए एमके-I/II और एलसीएच घटकों के लिए एक्सट्रूडेड एल्यूमीनियम मिश्र धातु
- भारतीय उच्च तापमान मिश्र धातु (आईएचटीए)
- वीपीएक्स-135 सिंगल बोर्ड कंप्यूटर
- नौसेना एंटी-शिप मिसाइल (कम दूरी)
- रुद्र एम II मिसाइल
- सी4आईएसआर सिस्टम
- डीआईएफएम आर118 इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली
इस कार्यक्रम में एआई-संचालित विश्लेषणात्मक प्लेटफार्मों, अगली पीढ़ी की निगरानी प्रणालियों, क्वांटम-सुरक्षित संचार प्रौद्योगिकियों और ड्रोन-रोधी उपायों में हुई सफलताओं पर प्रकाश डाला गया। 4जी/एलटीई टीएसी-लैन, क्वांटम कुंजी वितरण (क्यूकेडी) प्रणाली, स्मार्ट कम्प्रेस्ड ब्रीदिंग उपकरण और सशस्त्र बलों के लिए उन्नत स्वायत्त प्रणालियां जैसे नवाचार भारत के उभरते रक्षा परिदृश्य को दर्शाते हैं।
भारतीय सेना की परिचालन चुनौतियों और शिक्षाविदों, उद्योग जगत के स्टार्टअप तथा शोध संस्थानों द्वारा विकसित अभिनव समाधानों के बीच की खाई को पाटने के प्रयास जारी हैं। इसके अलावा, डेटा-केंद्रित वातावरण में बहु-डोमेन संचालन करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, खासकर उभरती परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों के आलोक में यह महत्वपूर्ण है।
सामर्थ्य रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उन्नत, घरेलू समाधान विकसित करने की इसकी क्षमता को सुदृढ़ करता है।
आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाना
रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत के प्रयासों ने विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है। रणनीतिक नीतियों व स्वदेशी नवाचार के माध्यम से, देश अत्याधुनिक सैन्य प्लेटफॉर्म विकसित कर रहा है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास दोनों मजबूत हो रहे हैं।
संयुक्त कार्रवाई के माध्यम से आत्मनिर्भर पहल (सृजन)
- अगस्त 2020 में रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) द्वारा आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया।
- रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू) और सशस्त्र बलों (एसएचक्यू) के लिए घरेलू विनिर्माण के लिए आयातित वस्तुओं को सूचीबद्ध करने के लिए एक साझा मंच के रूप में कार्य करता है।
- फरवरी 2025 तक, 38,000 से अधिक रक्षा उत्पाद उपलब्ध हैं, जिनमें से 14,000 से अधिक का सफलतापूर्वक स्वदेशीकरण किया जा चुका है।
सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां (पीआईएल)
- रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी) और सैन्य कार्य विभाग (डीएमए) ने एलआरयू, असेंबलियों, उप-असेंबली, उप-प्रणालियों, पुर्जों, घटकों तथा उच्च-स्तरीय सामग्रियों के लिए पांच सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां (पीआईएल) जारी की हैं।
- इन सूचियों में निश्चित समय-सीमा निर्धारित की गई है, जिसके बाद खरीद केवल घरेलू निर्माताओं तक ही सीमित रहेगी।
- सूचीबद्ध 5,500 से अधिक उत्पादों में से, फरवरी 2025 तक 3,000 से अधिक का स्वदेशीकरण कर दिया गया है।
- प्रमुख स्वदेशी प्रौद्योगिकियों में तोपें, असॉल्ट राइफलें, कोरवेट, सोनार प्रणालियां, परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (एलसीएच), रडार, पहिएदार बख्तरबंद प्लेटफार्म, रॉकेट, बम, बख्तरबंद कमांड पोस्ट वाहन और बख्तरबंद डोजर शामिल हैं।
रक्षा औद्योगिक गलियारे
- रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे (डीआईसी) स्थापित किए गए हैं। ये गलियारे इस क्षेत्र में निवेश करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
- उत्तर प्रदेश के 6 नोड्स अर्थात् आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, झांसी, कानपुर और लखनऊ और तमिलनाडु के 5 नोड्स अर्थात् चेन्नई, कोयम्बटूर, होसुर, सलेम तथा तिरुचिरापल्ली में 8,658 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश पहले ही किया जा चुका है।
- फरवरी 2025 तक 53,439 करोड़ रुपये के संभावित निवेश के साथ 253 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।
व्यापार करने में आसानी (ईओडीबी)
- सरकार ने रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में कारोबार को आसान बनाने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं।
- उपकरणों और घटकों के लिए निर्यात प्राधिकरण की वैधता को दो वर्ष से बढ़ाकर ऑर्डर या घटक के पूरा होने तक, जो भी बाद में हो, कर दिया गया है।
- साल 2019 में, विनिर्माण लाइसेंस की आवश्यकता वाली वस्तुओं की संख्या को कम करने के लिए रक्षा उत्पाद सूची को सुव्यवस्थित किया गया था।
- निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सितंबर 2019 में रक्षा उत्पादों के उपकरणों और घटकों को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया था।
- उद्योग (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1951 के अंतर्गत रक्षा लाइसेंसों की वैधता को तीन वर्ष से बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया गया है, जिसे 18 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- रक्षा क्षेत्र में 436 कंपनियों को 700 से अधिक औद्योगिक लाइसेंस जारी किए गए हैं।
- सम्पूर्ण डिजिटल निर्यात प्राधिकरण प्रणाली की शुरूआत से दक्षता में सुधार हुआ है और पिछले वित्तीय वर्ष में 1,500 से अधिक प्राधिकरण जारी किए गए।
मेक परियोजनाएं: स्वदेशी रक्षा नवाचार को बढ़ावा देना
रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी डिजाइन और विकास को बढ़ावा देने के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी-2006) में सबसे पहले मेक प्रक्रिया शुरू की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में, इसे 2016, 2018 और 2020 में संशोधनों के माध्यम से सरल व सुव्यवस्थित किया गया है, जिससे सार्वजनिक एवं निजी दोनों उद्योगों द्वारा रक्षा उपकरणों, प्रणालियों और घटकों का तेजी से विकास सुनिश्चित हुआ है।
मेक परियोजनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
मेक-I (सरकार द्वारा वित्तपोषित)
- प्रोटोटाइप विकास के लिए 70% तक सरकारी वित्तपोषण (प्रति विकास एजेंसी अधिकतम 250 करोड़ रुपये)।
- न्यूनतम 50% स्वदेशी सामग्री (आईसी) आवश्यक है।
मेक-II (उद्योग वित्त पोषित)
- आयात प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करना, घरेलू उद्योगों को महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना।
- कोई सरकारी वित्तपोषण नहीं, न्यूनतम 50% स्वदेशी सामग्री (आईसी) की आवश्यकता।
मेक-III (प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में निर्मित - टी.ओ.टी.)
- इसमें विदेशी ओईएम से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) के तहत भारत में विनिर्माण शामिल है।
- कोई डिजाइन और विकास नहीं, लेकिन न्यूनतम 60% स्वदेशी सामग्री (आईसी) की आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु:
- 24 मार्च 2025 तक, मेक पहल के तहत कुल 145 परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें 171 उद्योगों की भागीदारी है, जो स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दे रही हैं।
- इस पहल में 40 मेक-I परियोजनाएं (सरकार द्वारा वित्तपोषित), 101 मेक-II परियोजनाएं (उद्योग द्वारा वित्तपोषित) और 4 मेक-III परियोजनाएं (टीओटी के माध्यम से विनिर्माण) शामिल हैं, जो रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता को मजबूत करती हैं।
अन्य प्रमुख पहल
हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने देश की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से कई परिवर्तनकारी गतिविधियों को क्रियान्वित किया है। ये उपाय निवेश आकर्षित करने, घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने और खरीद प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने के लिए तैयार किए गए हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमाओं को उदार बनाने से लेकर स्वदेशी उत्पादन को प्राथमिकता देने तक, ये पहल भारत के रक्षा औद्योगिक आधार को मजबूत करने की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। निम्नलिखित बिन्दु उन प्रमुख सरकारी पहलों को रेखांकित करते हैं, जो रक्षा क्षेत्र में विकास और नवाचार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रहे हैं।
- उदारीकृत एफडीआई नीति: विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए सितंबर 2020 में रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को उदार बनाया गया था, जिससे स्वचालित मार्ग से 74% तक और सरकारी मार्ग से 74% से अधिक एफडीआई की अनुमति मिल गई। अप्रैल 2000 से रक्षा उद्योग में कुल एफडीआई 21.74 मिलियन डॉलर है।
- टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स: अक्टूबर 2024 में सी-295 विमान के निर्माण के लिए वडोदरा में टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया गया, जिससे कार्यक्रम के तहत 56 में से 40 विमान भारत में निर्मित होने के साथ रक्षा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
- मंथन: बेंगलुरु में एयरो इंडिया 2025 के दौरान आयोजित वार्षिक रक्षा नवाचार कार्यक्रम मंथन ने रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों के प्रमुख नवप्रवर्तकों, स्टार्टअप्स, एमएसएमई, शिक्षाविदों, निवेशकों तथा उद्योग जगत के अधिकारियों को एक साथ लाया, जिससे तकनीकी प्रगति और आत्मनिर्भर भारत के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता में विश्वास की पुष्टि हुई।
- रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (डीटीआईएस): डीटीआईएस का उद्देश्य एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में आठ ग्रीनफील्ड परीक्षण और प्रमाणन सुविधाएं स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना है, जिसमें मानव रहित हवाई प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स तथा संचार जैसे क्षेत्रों में सात परीक्षण सुविधाएं पहले से ही स्वीकृत हैं।
- घरेलू खरीद को प्राथमिकता: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)-2020 के तहत घरेलू स्रोतों से पूंजीगत वस्तुओं की खरीद पर जोर दिया गया है।
- घरेलू खरीद आवंटन: रक्षा मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष के दौरान आधुनिकीकरण बजट का 75% यानि 1,11,544 करोड़ रुपये घरेलू उद्योगों के माध्यम से खरीद के लिए निर्धारित किया है।
रक्षा उत्पादन और निर्यात में भारत की उल्लेखनीय प्रगति इसके आत्मनिर्भर तथा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी सैन्य विनिर्माण केंद्र के रूप में परिवर्तन को रेखांकित करती है। रणनीतिक नीतिगत हस्तक्षेप, घरेलू भागीदारी में वृद्धि और स्वदेशी नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने से देश की रक्षा क्षमताओं में काफी तेजी आई है। उत्पादन में वृद्धि, निर्यात में तेजी से वृद्धि और मेक इन इंडिया जैसी पहलों की सफलता रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। 2029 तक के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने के साथ, भारत अपनी वैश्विक उपस्थिति को और अधिक विस्तारित करने के लिए तैयार है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए अंतर्राष्ट्रीय रक्षा बाजार में एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में अपनी स्थिति को बेहतर बनाया जा सके।
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