संस्कृति मंत्रालय
भारत में सांस्कृतिक विरासत का डिजिटलीकरण
Posted On:
17 MAR 2025 5:28PM by PIB Delhi
"भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा, कि वह हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व दे और उसका संरक्षण करे"
— भारत का संविधान
परिचय
भारत मूर्त विरासत के सबसे बड़े भंडारों में से एक है, जहां प्रागैतिहासिक काल से लेकर औपनिवेशिक काल तक के स्मारक, स्थल और पुरावशेष मिलते हैं। हांलाकि एएसआई, राज्य पुरातत्व विभाग और इनटैक जैसे विभिन्न संगठनों ने इस विरासत के कुछ हिस्सों का दस्तावेजीकरण किया है, लेकिन बहुत कुछ बिखरा हुआ या अलिखित है। एकीकृत डेटाबेस के ना होने से अनुसंधान, संरक्षण और प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसी मुद्दे पर निर्मित विरासत, स्थलों और पुरावशेषों का व्यवस्थित रूप से दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण करने के लिए स्मारक और पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएमए) शुरू किया गया था। मानकीकृत दस्तावेज़ीकरण, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और जन जागरूकता के माध्यम से, एनएमएमए का मकसद भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना है।
स्मारकों और पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएमए)
वर्ष 2007 में स्थापित एनएमएमए, भारत की निर्मित विरासत और पुरावशेषों के डिजिटलीकरण और दस्तावेज़ीकरण के लिए ज़िम्मेदार है। इसने स्मारकों और पुरावशेषों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर संकलित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
एनएमएमए की उपलब्धियाँ:
- पुरातन वस्तुओं का डिजिटलीकरण: 12,34,937 पुरावशेषों का डिजिटलीकरण किया गया है, जिसमें एएसआई संग्रहालयों/मंडलों/शाखाओं से 4,46,068 और अन्य संस्थानों से 7,88,869 पुरावशेष शामिल हैं।
- निर्मित विरासत और स्थल: 11,406 स्थलों और स्मारकों का दस्तावेजीकरण किया गया है।
- बजट आवंटन: वित्त वर्ष 2024-25 में एनएमएमए के लिए 20 लाख रुपये आवंटित किए गए।
एनएमएमए के उद्देश्य:
- बेहतर प्रबंधन और अनुसंधान के लिए निर्मित विरासत, स्मारकों और पुरावशेषों का राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना और उसका दस्तावेज़ीकरण करना।
- केंद्रीय, राज्य, निजी संस्थानों और विश्वविद्यालयों में पुरावशेषों का एक समान दस्तावेज़ीकरण सुनिश्चित करना।
- सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- राज्य विभागों, स्थानीय निकायों, संग्रहालयों, गैर सरकारी संगठनों और विश्वविद्यालयों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रदान करना।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), राज्य विभागों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाना।
- प्रकाशन और अनुसंधान
प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958
प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 (एएमएएसआर अधिनियम 1958) संसद द्वारा इस मकसद से अधिनियमित किया गया था, कि "प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेषों के संरक्षण, पुरातात्विक उत्खनन के विनियमन और मूर्तियों, नक्काशी और अन्य समान वस्तुओं के संरक्षण के लिए प्रावधान किया जा सके।



एएमएएसआर अधिनियम 1958 के अनुसार, प्राचीन स्मारकों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
"प्राचीन स्मारक" का अर्थ है, कोई भी संरचना, निर्माण, या स्मारक, या कोई टीला या दफनाने का स्थान, या कोई गुफा, चट्टान की मूर्ति, शिलालेख, या एकाश्म, जो ऐतिहासिक, पुरातात्विक, या कलात्मक रुचि का है और जो कम से कम एक सौ वर्षों से अस्तित्व में है, और इसमें शामिल हैं:
- किसी प्राचीन स्मारक के अवशेष
- किसी प्राचीन स्मारक का स्थल
- किसी प्राचीन स्मारक के स्थल से सटे भूमि का ऐसा भाग, जो ऐसे स्मारक को बाड़ लगाने, ढकने या अन्यथा संरक्षित करने के लिए ज़रुरी हो
- किसी प्राचीन स्मारक तक पहुँचने और उसके सुविधाजनक निरीक्षण के साधन
राष्ट्रीय स्मारक और पुरावशेष मिशन (एनएमएमए) द्वारा, निर्मित विरासत के दस्तावेज़ीकरण के दायरे को स्वतंत्रता-पूर्व काल से जुड़ी किसी भी संरचना को परिभाषित करके बढ़ाया गया है, और ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1950 को कट-ऑफ तिथि माना गया है।



पुरावशेष एवं कला निधि
पुरावशेष एवं कला निधि अधिनियम, 1972 के अनुसार, पुरावशेष एवं कला निधि की निम्नलिखित परिभाषाएँ हैं:
a. “पुरावशेष” में शामिल हैं
i) कोई भी सिक्का, मूर्तिकला, पेंटिंग, शिलालेख या कलात्मक/शिल्पकारी कार्य।
(ii) किसी इमारत या गुफा से अलग की गई कोई भी वस्तु।
(iii) कोई भी वस्तु जो विज्ञान, कला, साहित्य, धर्म, रीति-रिवाज या बीते युगों की राजनीति को दर्शाती हो।
(iv) ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण कोई भी वस्तु।
(v) कोई भी वस्तु, जिसे केंद्र सरकार द्वारा पुरावशेष घोषित किया गया हो, जो कम से कम 100 वर्षों से अस्तित्व में हो।
b. कोई भी पांडुलिपि, अभिलेख या अन्य दस्तावेज जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक या सौंदर्य संबंधी मूल्य का हो और जो कम से कम पचहत्तर वर्षों से अस्तित्व में हो;
c. “कला-निधि” का अर्थ है, कोई मानवीय कलाकृति, जो पुरावशेष न हो, जिसे केन्द्र सरकार ने आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उसके कलात्मक या सौन्दर्यात्मक मूल्य को ध्यान में रखते हुए, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए कला-निधि घोषित किया हो।
डिजिटलीकरण के दिशा-निर्देश
राष्ट्रीय डिजिटल डेटाबेस बनाने के लिए, एनएमएमए ने समान दस्तावेज़ीकरण के लिए मानक तय किए हैं:
- निर्मित विरासत/स्थलों (द्वितीयक स्रोतों से) की तस्वीरें अनकंप्रेस्ड टिफ प्रारूप (300 डीपीआई रिज़ॉल्यूशन) में होनी चाहिए।
- पुरावशेषों की तस्वीरें अनकंप्रेस्ड टिफ प्रारूप (300 डीपीआई ) में ली जानी चाहिए। यदि तस्वीरें एनईएफ/आरएडब्ल्यू प्रारूप में ली गई हैं, तो उन्हें बिना किसी बदलाव के टिफ में परिवर्तित किया जाना चाहिए।
- लघु चित्रों की तस्वीरें या तो टिफ (300 डीपीआई) में उपयुक्त पृष्ठभूमि के साथ ली जा सकती हैं या स्कैन की जा सकती हैं।
- सभी दस्तावेज़ एमएस एक्सेल प्रारूप में संग्रहीत किए जाने चाहिए, जिसमें प्रत्येक पुरावशेष, विरासत स्थल या निर्मित संरचना के लिए अलग-अलग शीट हों।
- फ़ोटो को दस्तावेज़ीकरण शीट में शामिल किया जाना चाहिए और मास्टर इमेज के रूप में अलग से संग्रहीत किया जाना चाहिए।
डिजिटल स्पेस में भारतीय विरासत (आईएचडीएस) अनुसंधान
आईएचडीएस पहल का मकसद, केवल दस्तावेज़ीकरण की सीमाओं से आगे जाकर, भारत की विरासत को संरक्षित करने और साझा करने के लिए आधुनिक डिजिटल तकनीकों का उपयोग करना है। इसका मकसद विद्वानों और आम जनता के लिए गहन अनुभव और विश्लेषणात्मक उपकरण तैयार करना है।
आईएचडीएस के उद्देश्य:
- भारतीय सांस्कृतिक संपत्तियों पर जोर देते हुए डिजिटल विरासत प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को बढ़ावा देना।
- डिजिटल विरासत संग्रह बनाने में जनता को शामिल करने के लिए क्राउडसोर्सिंग ढांचा विकसित करना।
- अंतर्विषयी अनुसंधान में मदद करने के लिए मल्टीमीडिया विरासत संसाधनों के लिए भंडारण, संरक्षण और वितरण तंत्र की स्थापना करना।
विरासत संरक्षण में डिजिटल प्रौद्योगिकियों की भूमिका
3डी स्कैनिंग, वर्चुअल रियलिटी, कंप्यूटर विज़न और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे डिजिटल उपकरणों ने विरासत संरक्षण के स्वरूप को बदल दिया है। ये प्रौद्योगिकियां निम्नलिखित की अनुमति देती हैं:
- पांडुलिपियों, स्मारकों और कलाकृतियों के उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले डिजिटल अभिलेखागार का निर्माण।
- खत्म हो चुकीं या क्षतिग्रस्त विरासत संरचनाओं का वर्चुअल पुनर्निर्माण।
- शिक्षा और पर्यटन के लिए इंटरैक्टिव अनुभव।
- इतिहासकारों, वास्तुकारों और वैज्ञानिकों के लिए बढ़ी हुई शोध क्षमताएँ।
निष्कर्ष
भारत की सांस्कृतिक विरासत का डिजिटलीकरण और दस्तावेज़ीकरण, इसके संरक्षण और पहुँच के लिए बेहद ज़रूरी है। स्मारक और पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएमए) अभिलेखों को मानकीकृत करके, हितधारकों को प्रशिक्षित करके और जन जागरूकता को बढ़ावा देकर इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रौद्योगिकी और सहयोग की मदद से, एनएमएमए यह सुनिश्चित करता है कि भारत की विशाल विरासत का व्यवस्थित रूप से दस्तावेजीकरण और संरक्षण हो सके और इसे अनुसंधान और शिक्षा के लिए उपलब्ध कराया जा सके। एक एकीकृत और व्यापक डेटाबेस, न केवल इनके संरक्षण में सहायता करेगा, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगा।
संदर्भ:
भारत में सांस्कृतिक विरासत का डिजिटलीकरण
***
एमजी/आरपीएम/केसी/एनएस/डीए
(Release ID: 2111998)
Visitor Counter : 175