वित्त मंत्रालय
प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को कुल ऋण वितरण 2019 में 23 लाख करोड़ रुपये से 85 प्रतिशत बढ़कर 2024 में 42.7 लाख करोड़ रुपये हो गया
बैंकों की वित्तीय सुदृढ़ता को बेहतर बनाने हेतु ऋण संबंधी अनुशासन, विवेकपूर्ण ऋण प्रदान करने और प्रौद्योगिकी को अपनाने सहित विभिन्न उपाय किए गए
Posted On:
11 MAR 2025 6:50PM by PIB Delhi
बैंकों द्वारा कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और सामाजिक बुनियादी ढांचे सहित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को 2019 में 23,01,567 करोड़ रुपये का कुल ऋण वितरित किया गया था, जोकि छह वर्ष की अवधि में 85 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 2024 में बढ़कर 42,73,161 करोड़ रुपये हो गया है।
प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को प्रदत्त ऋण के अंतर्गत, कृषि क्षेत्र को वितरित की गए कुल ऋण में 2019 से लेकर 2024 के दौरान स्थिर एवं सकारात्मक वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2019 में, इस क्षेत्र को 8,86,791 करोड़ रुपये का कुल ऋण वितरित किया गया था और 2024 तक यह उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 18,27,666 करोड़ रुपये हो गया है (कृषि से संबंधित डेटा में बैंकों द्वारा कृषि से जुड़े बुनियादी ढांचे के लिए ऋण वितरण शामिल है)। एमएसएमई क्षेत्र को प्रदान किया गया कुल ऋण वितरण भी 2019 में 10,99,055 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 21,73,679 करोड़ रुपये हो गया है।
अब जबकि वित्तीय परिदृश्य का निरंतर विकास हो रहा है और ग्राहकों के लिए बैंकिंग सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु, बैंक ग्राहकों को विभिन्न सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से फिनटेक के साथ सहयोग कर रहे हैं। कुछ प्रमुख क्षेत्र, जहां फिनटेक निर्बाध वितरण के साथ बैंकिंग उत्पादों/सेवाओं का उन्नयन कर रहे हैं और जिससे ग्राहकों का अनुभव बेहतर हो रहा है, इस प्रकार हैं:
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- ई-केवाईसी एवं वी-केवाईसी प्रक्रियाओं के माध्यम से बचत खाते खोलना और चेहरे की पहचान एवं नाम के मिलान आदि के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक का लाभ उठाना।
- त्वरित ऋण मूल्यांकन और वास्तविक समय में निर्णय लेने हेतु खाता संबंधी विवरण का विश्लेषण तथा अंडरराइटिंग में वैकल्पिक डेटा का लाभ उठाने जैसी डिजिटल ऋण से जुड़ी गतिविधियां।
- बैंकों के एपीआई का उपयोग करके ग्राहकों के लिए नए उत्पादों का विकास।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सूचित किया है कि पर्यवेक्षी मूल्यांकन के दौरान उसके द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुपालन की नमूना आधार पर जांच की जाती है और यदि कोई गैर-अनुपालन पाया जाता है तो उसे संबंधित पर्यवेक्षित प्रतिष्ठानों के समक्ष सुधार के लिए उठाया जाता है तथा उचित समझे जाने पर पर्यवेक्षी/ प्रवर्तन कार्रवाई भी शुरू की जाती है। जहां तक वित्तीय स्थिरता का प्रश्न है, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 द्वारा प्रदत्त अधिदेश के अनुसार, आरबीआई का नियामक एवं पर्यवेक्षी ढांचा ग्राहकों के हितों की सुरक्षा तथा वित्तीय स्थिरता के संरक्षण के व्यापक सिद्धांतों से निर्देशित होता है। इसके अलावा, विनियमित प्रतिष्ठानों के नियामक एवं पर्यवेक्षी ढांचे को उनके जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप आनुपातिकता के सिद्धांत के आधार पर डिजाइन किया गया है। आरबीआई ने पर्यवेक्षी दृष्टिकोण को और अधिक अग्रगामी, जोखिम-उन्मुख एवं विश्लेषणात्मक बनाने हेतु कई उपाय किए हैं। इन उपायों का उद्देश्य कमजोर क्षेत्रों व उधारकर्ताओं के साथ-साथ पर्यवेक्षित प्रतिष्ठानों की पहचान करना है।
सरकार और आरबीआई ने बैंकों की वित्तीय सुदृढ़ता को बेहतर बनाने तथा ऋण संबंधी अनुशासन, विवेकपूर्ण ऋण प्रदान करने एवं बेहतर प्रशासन, प्रौद्योगिकी को अपनाने, वसूली और एनपीए में कमी लाने से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए कई उपाय किए हैं। इन उपायों में, अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने एनपीए खातों की प्रभावी निगरानी एवं केंद्रित अनुवर्ती कार्रवाई के लिए विशेष संकटग्रस्त परिसंपत्ति प्रबंधन वर्टिकल व शाखाएं स्थापित की हैं, जिससे त्वरित एवं बेहतर समाधान/वसूली की सुविधा मिलती है। बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट की तैनाती और फीट-ऑन-स्ट्रीट मॉडल को अपनाने से भी बैंकों में एनपीए की वसूली में तेजी आई है।
- आरबीआई द्वारा संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान हेतु विवेकपूर्ण रूपरेखा जारी की गई थी, ताकि संकटग्रस्त परिसंपत्तियों की शीघ्र पहचान, रिपोर्टिंग तथा समयबद्ध समाधान के लिए रूपरेखा प्रदान की जा सके और साथ ही समाधान योजना को शीघ्र अपनाने के लिए ऋणदाताओं को प्रोत्साहन भी दिया जा सके।
- मानक एवं गैर-निष्पादित अग्रिम, दोनों के लिए न्यूनतम प्रावधान संबंधी आवश्यकताएं निर्धारित की गई हैं।
- दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता के अधिनियमन, बड़े ऋणों से संबंधित सूचना के केन्द्रीय भण्डार की स्थापना तथा जानबूझकर ऋण न चुकाने एवं धोखाधड़ी के संबंध में उच्च मूल्य वाले खातों की व्यवस्थित जांच के माध्यम से ऋण संबंधी अनुशासन सुनिश्चित किया गया।
- वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन (एसएआरएफएईएसआई) अधिनियम, 2002 व ऋण वसूली एवं दिवालियापन अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इनमें संशोधन किया गया है।
- बैंकों में व्यापक एवं स्वचालित पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना की गई ताकि संकट का पहले ही पता लगाया जा सके तथा एनपीए में बदलने को कम किया जा सके।
- एक अनूठे उन्नत सुलभता एवं सेवा संबंधी उत्कृष्टता (ईज) सुधारों के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सुधार संबंधी एजेंडा शुरू किया गया है। इस कदम ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में प्रशासन, विवेकपूर्ण ऋण प्रदान करने, जोखिम प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, डेटा-संचालित बैंकिंग और परिणाम-केंद्रित मानव संसाधन जैसे सभी प्रमुख क्षेत्रों में उद्देश्यपूर्ण एवं मानक प्रगति को संभव बनाया है।
- बैंकों के एकीकरण, बड़े पैमाने की किफायत एवं तालमेल का लाभ उठाकर बैंकिंग क्षेत्र की प्रभावकारिता व प्रभावशीलता को बढ़ाया गया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह जानकारी कल लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
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