मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय
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दुग्ध उत्पादन

Posted On: 11 FEB 2025 5:35PM by PIB Delhi

वैश्विक स्तर पर उन्नत डेयरी देशों की तुलना में भारत में देशी बोवाइन नस्लों की उत्पादकता कम है। यह मुख्यत: डेयरी पशुओं की निम्न आनुवंशिक क्षमता और पशुओं को कम पोषण देने के कारण है। हालांकि देश में बोवाइन पशुओं की कुल उत्पादकता वर्ष 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1640 किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2072 किलोग्राम हो गई है। यह 26.34% की वृद्धि है, जो विश्व में किसी भी देश द्वारा की गई सबसे अधिक उत्पादकता वृद्धि है। देशी और नॉन-डिस्क्रिप्ट गोपशुओं की उत्पादकता वर्ष 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 927 किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1292 किलोग्राम हो गई है, जो कि 39.37% वृद्धि है। भैंसों की उत्पादकता वर्ष 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष 1880 किलोग्राम से बढ़कर वर्ष 2023-24 में प्रति पशु प्रति वर्ष 2161 किलोग्राम हो गई है, जो कि 14.94% वृद्धि है। देश में दूध का उत्पादन वर्ष 2014-15 में 146.31 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 239.30 मिलियन टन हो गया है, जो पिछले 10 वर्षों के दौरान 63.55% की वृद्धि है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक दूध की उत्पादकता प्रति पशु प्रति वर्ष 3000 किलोग्राम तक हासिल करना है।

स्थानीय गोपशु की नस्लों के पोषण, प्रबंधन पद्धतियों, आनुवंशिक क्षमता में सुधार करने और डेयरी किसानों को सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने में प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करने के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रयासों को अनुपूरित और संपूरित करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और कार्यान्वित की जा रही योजनाओं का विवरण निम्नानुसार है:

1. राष्ट्रीय गोकुल मिशन: पशुपालन और डेयरी विभाग देशी बोवाइन नस्लों के विकास और संरक्षण, बोवाइन आबादी के आनुवंशिक उन्नयन और दूध उत्पादन और बोवाइन उत्पादकता को बढ़ाने के लिए दिसंबर 2014 से राष्ट्रीय गोकुल मिशन को कार्यान्वित कर रहा है। इस योजना के तहत दूध उत्पादन और बोवाइन की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा रहे हैं:

(i) राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत, पशुपालन और डेयरी विभाग देशी नस्लों सहित गोवंश के दूध उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम गर्भाधान कवरेज का विस्तार कर रहा है।

(ii) संतति परीक्षण और नस्ल चयन: इस कार्यक्रम का उद्देश्य देशी नस्लों के सांडों सहित उच्च आनुवंशिक गुणता वाले सांडों का उत्पादन करना है। गिर, साहीवाल नस्ल के गोपशुओं और मुर्राह, मेहसाणा नस्ल की भैंसों के लिए संतति परीक्षण कार्यान्वित किया जाता है। नस्ल चयन कार्यक्रम के तहत राठी, थारपारकर, हरियाना, कांकरेज नस्ल के गोपशु और जाफराबादी, नीली रावी, पंढरपुरी और बन्नी नस्ल की भैंसों को शामिल किया गया है।

(iii) इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का कार्यान्वयन: देशी नस्लों के उत्कृष्ट पशुओं को बढ़ावा देने के लिए, विभाग ने 22 आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं। एक ही पीढ़ी में बोवाइन आबादी के आनुवंशिक उन्नयन में इस तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा, किसानों को उचित दरों पर तकनीक उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने आईवीएफ मीडिया शुरू किया है।

(iv) सेक्स-सॉर्टेड सीमन उत्पादन: विभाग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित 5 सरकारी सीमन केंद्रों पर सेक्स सॉर्टेड सीमन उत्पादन सुविधाएं स्थापित की हैं। 3 निजी सीमन केंद्र भी सेक्स सॉर्टेड सीमन खुराक का उत्पादन कर रहे हैं।

(v) जीनोमिक चयन: गोपशुओं और भैंसों के आनुवंशिक सुधार में तेजी लाने के लिए, विभाग ने एकीकृत जीनोमिक चिप्स विकसित की हैं - देशी गोपशुओं के लिए गौ चिप और भैंसों के लिए महिष चिप - जो विशेष रूप से देश में जीनोमिक चयन आरंभ करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

(vi) ग्रामीण भारत में बहुउद्देश्यीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री): इस योजना के तहत मैत्री को किसानों के द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं देने के लिए प्रशिक्षित और आवश्यक उपकरणों से युक्त किया जाता है।

(vii) सेक्स-सॉर्टेड सीमन का उपयोग करके त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य 90% तक सटीकता के साथ मादा बछड़ियों का उत्पादन करना है, जिससे नस्ल सुधार और किसानों की आय में वृद्धि हो। किसानों को सेक्स-सॉर्टेड सीमन की लागत का 50% तक सुनिश्चित गर्भाधान के लिए सहायता मिलती है।

(viii) इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का उपयोग करके त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम: इस तकनीक का उपयोग बोवाइन पशुओं के तेजी से आनुवंशिक उन्नयन के लिए किया जाता है और आईवीएफ तकनीक अपनाने के इच्छुक किसानों को प्रति सुनिश्चित गर्भाधान 5,000 रुपये का प्रोत्साहन उपलब्ध कराया जाता है।

2.  राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम): राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) का उद्देश्य रोजगार सृजन, उद्यमिता विकास, प्रति-पशु उत्पादकता में वृद्धि करना और इस प्रकार अम्ब्रेला योजना विकास कार्यक्रम के तहत मांस, बकरी के दूध, अंडे और ऊन के उत्पादन में वृद्धि करना है। इस योजना में निम्नलिखित तीन उप-मिशन शामिल हैं: (i) पशुधन और पोल्ट्री का नस्ल विकास संबंधी उप-मिशन; (ii) आहार और चारा विकास संबंधी उप-मिशन और (iii) नवाचार, विस्तार संबंधी उप-मिशन। इन उप-मिशन के अंतर्गत शामिल कार्यकलापों का विवरण निम्नानुसार है:

(क) पशुधन और पोल्ट्री का नस्ल विकास संबंधी उप-मिशन: इस उप-मिशन में निम्नलिखित कार्यकलाप हैं: (I) नस्ल विकास के लिए उद्यमियों की स्थापना: इस कार्यकलाप के अंतर्गत निम्नलिखित उप-कार्यकलाप शामिल हैं (i) ग्रामीण पोल्ट्री के नस्ल विकास के लिए उद्यमियों की स्थापना और (ii) जुगाली करने वाले छोटे पशुओं के क्षेत्र (भेड़ और बकरी पालन) में नस्ल विकास के लिए उद्यमी की स्थापना। (II) भेड़ और बकरी की नस्लों का आनुवंशिक सुधार: इस कार्यकलाप के अंतर्गत निम्नलिखित उप-कार्यकलाप हैं: (i) भेड़ और बकरी के लिए क्षेत्रीय वीर्य उत्पादन प्रयोगशाला और वीर्य बैंक की स्थापना; (ii) राज्य वीर्य बैंक की स्थापना: (iii) मौजूदा गोपशुओं और भैंस कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान का प्रचार (iv) विदेशी भेड़ और बकरी के जर्मप्‍लाज्‍़म का आयात (III) सूअर पालन उद्यमी को बढ़ावा देना (IV)  सुअर की नस्लों का आनुवंशिक सुधार: इस कार्यकलाप के तहत निम्नलिखित उप-कार्यकलाप कार्यान्वित किए जाते हैं: (i) सुअर वीर्य संग्रह और प्रसंस्करण प्रयोगशाला की स्थापना और (ii) विदेशी सुअर जर्मप्लाज्म का आयात। (V) घोड़े, गधे, खच्चर और ऊंट के लिए उद्यमियों की स्थापना। (VI) घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट का आनुवंशिक सुधार: (i) घोड़े, गधे और ऊंट के लिए क्षेत्रीय वीर्य स्टेशन; (ii) घोड़े / गधे / ऊंट जर्मप्लाज्म के संरक्षण के लिए न्यूक्लियस नस्ल फार्म और (iii) नस्ल पंजीकरण सोसायटी।

(ख) आहार और चारा विकास संबंधी उप-मिशन: आहार और चारा संबंधी उप-मिशन निम्नलिखित कार्यकलापों को कवर कर रहा है: (I) गुणवत्ता वाले चारा बीज उत्पादन के लिए सहायता। (II) आहार और चारा में उद्यमशीलता कार्यकलाप। (III) चारा बीज प्रसंस्करण अवसंरचना के लिए उद्यमियों की स्थापना (प्रसंस्करण और ग्रेडिंग इकाई / चारा बीज भंडारण गोदाम)। (IV) गैर-वन बंजर भूमि/रेंजलैंड/गैर-कृषि योग्य भूमि से चारा उत्पादन” और “वन भूमि से चारा उत्पादन”।

(ग) नवाचार और विस्तार संबंधी उप मिशन: इस उप-मिशन के तहत निम्नलिखित कार्यकलाप हैं: (I) अनुसंधान और विकास तथा नवाचार। (II) विस्तार कार्यकलाप। (III) पशुधन बीमा कार्यक्रम।

3. राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम: यह योजना सहकारी डेयरी क्षेत्र में दूध और दूध उत्पादों की खरीद, प्रसंस्करण और विपणन के लिए डेयरी अवसंरचना के निर्माण पर केंद्रित है। इसके तहत डेयरी किसानों के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम, गोपशु-आहार और खनिज मिश्रण जैसी इनपुट सेवाएँ, तथा दूध और दूध उत्पादों की गुणवत्ता परीक्षण के लिए सहायता प्रदान की जाती है ताकि सहकारी समितियों में नामांकित डेयरी किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।

4. पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण (एलएच और डीसी): यह योजना खुरपका और मुंहपका रोग, ब्रुसेलोसिस जैसे पशु रोगों के नियंत्रण के लिए सहायता प्रदान करने और डेयरी पशुओं सहित पशुधन के अन्य संक्रामक रोगों के नियंत्रण के लिए राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करने के लिए कार्यान्वित की गई है। किसानों के द्वार पर गुणवत्तापूर्ण पशुधन स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए इस योजना के तहत मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां स्थापित की गई हैं। टीकाकरण कार्यक्रम के तहत: (i) एफएमडी के लिए 100 करोड़ से अधिक टीकाकरण किए गए हैं, जिसमें चालू वर्ष के दौरान किए गए 35 करोड़ टीकाकरण शामिल हैं; और (ii) ब्रुसेलोसिस नियंत्रण कार्यक्रम के तहत लगभग 4.3 करोड़ बछड़ों को ब्रुसेलोसिस के लिए टीके लगाए गए हैं जिसमें वर्तमान वर्ष के दौरान 1.3 करोड़ बछड़ों का टीकाकरण शामिल है। पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण (ईएसवीएचडी-एमवीयू) घटक के तहत मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (एमवीयू) की खरीद और कस्टमाइजेशन के लिए 100% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। साथ ही उत्तर-पूर्व और पर्वतीय राज्यों के लिए 90:10 के अनुपात में, अन्य राज्यों के लिए 60% और संघ राज्य क्षेत्रों के लिए 100% आवर्ती परिचालन व्यय प्रदान किया जाता है ताकि मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (एमवीयू) के जरिए किसानों के द्वार पर टोल-फ्री नंबर (1962) के माध्यम से पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान की जा सकें। एमवीयू के माध्यम से दी जाने वाली पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में  रोग निदान, उपचार, टीकाकरण, लघु शल्यक्रिया हस्तक्षेप, दृश्य-श्रव्य सहायक उपकरण और विस्तार सेवाएं शामिल हैं। अब तक 28 राज्यों में 4016 एमवीयू चालू हैं और 65 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं। इससे उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।

5. पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) यह योजना (i) डेयरी प्रसंस्करण और उत्पाद विविधीकरण अवसंरचना, (ii) मांस प्रसंस्करण और उत्पाद विविधीकरण अवसंरचना और (iii) पशु चारा संयंत्र (iv) नस्ल सुधार तकनीक और नस्ल वृद्धि फार्म, (v) पशु चिकित्सा टीके और औषधि उत्पादन सुविधाएं, (vi) पशु अपशिष्ट से संपत्ति प्रबंधन (कृषि अपशिष्ट प्रबंधन) स्थापित करने के लिए निवेश को प्रोत्साहित करने की सुविधा प्रदान करती है। एएचआईडीएफ की सफलता को ध्यान में रखते हुए दिनांक 01.02.2024 को पूर्ववर्ती डेयरी प्रसंस्करण अवसंरचना विकास निधि को एएचआईडीएफ में शामिल कर लिया गया है। अब कुल निधि 29110 करोड़ रुपये की है।

पशुपालन और डेयरी विभाग आहार और चारा विकास संबंधी उप-मिशन के साथ केंद्र प्रायोजित योजना राष्ट्रीय पशुधन मिशन को कार्यान्वित कर रहा है। इस उप-मिशन के तहत, चारा बीज श्रृंखला (ब्रीडर-फाउंडेशन-प्रमाणित) को सुदृढ़ करके चारा विकास कार्यकलाप किए जाते हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले और पौष्टिक चारे के उत्पादन के लिए आवश्यक प्रमाणित/गुणवत्ता वाले चारा बीजों की उपलब्धता में सुधार होता है। वर्ष 2021-22 से गुणवत्तापूर्ण चारा बीज उत्पादन के लिए घटक सहायता के तहत लगभग 1.03 लाख टन चारा बीज का उत्पादन किया गया, जिसके लिए  636.83 करोड़ रुपये की निधि जारी की गई। घटक के अंतर्गत प्रगति का विवरण अनुबंध-I में है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान (आईजीएफआरआई) झांसी अपने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के साथ चारा फसलों और उपयोग पर देश के 21 राज्यों में स्थित 22 समन्वित केंद्रों के साथ देश की विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों के लिए उच्च उपज देने वाली और पौष्टिक चारा फसल किस्मों के विकास पर समर्पित रूप से काम कर रहे हैं और कई किस्मों को खेती के लिए जारी किया गया है। फसल सुधार के विभिन्न तरीकों जैसे स्पीड ब्रीडिंग, एपोमिक्स, जीन एडिटिंग, एसएस मार्कर, ट्रांसजेनिक आदि का उपयोग उच्च उपज देने वाली गुण विशिष्ट किस्मों को विकसित करने के लिए किया जा रहा है। उच्च उपज देने वाली, पोषण की दृष्टि से बेहतर, जलवायु के अनुकूल और विभिन्न जैविक कारकों के प्रति प्रतिरोधी विशेषताओं वाली किस्मों के विकास पर अधिक जोर दिया जा रहा है। अब तक देश के विभिन्न भागों के लिए 40 चारा फसलों में 400 से अधिक उन्नत किसमें तैयार की गई हैं और इनमें से लगभग 200 किस्में बीज उत्पादन श्रृंखला में हैं। पिछले पांच वर्षों (2019-2024) के दौरान देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में खेती के लिए 17 चारा फसलों की पोषण की दृष्टि से बेहतर और उच्च उपज देने वाली 86 किस्मों/संकरों की पहचान की गई है, उन्हें अधिसूचना किया गया है।

अनुबंध- I

पुनर्संरेखित राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम) के अंतर्गत गुणवत्तापूर्ण चारा बीज उत्पादन हेतु सहायता घटक के अंतर्गत प्रगति

  1. वास्तविक प्रगति-  वर्ष एवं वर्ग वार चारा बीज उत्पादन ( क्विंटल )

बीजों का वर्ग

वर्ष 2021-22

वर्ष 2022-23

वर्ष 2023-24

वर्ष 2024-25

कुल

ब्रीडर

530.13

0

0

0

530.13

फाउंडेशन

6120.87

21864.75

15312.89

12832.06

56130.57

प्रमाणित

104852.2

303222.4

407874.5

159383.0

975332.1

कुल

111503.2

325087.2

423187.4

172215.1

1031993

 

II. वित्तीय प्रगति – वर्षवार जारी निधियां

वर्ष

जारी निधियां (करोड़ रुपए में)

2021-22

100.44

2022-23

159.99

2023-24

156.07

2024-25

(4.2.2025 तक)

220.31

कुल जारी निधियां

636.83

 

यह जानकारी मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

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