पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
संसद प्रश्न: जलवायु परिवर्तन का मौसमी प्रतिमानों पर प्रभाव
Posted On:
19 DEC 2024 1:20PM by PIB Delhi
सरकार देश भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने और उसे कम करने के लिए कई प्रयास कर रही है। इस बहुआयामी दृष्टिकोण का उद्देश्य देश के मौसमी प्रतिमानों पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों पर ध्यान देना है, जिसमें अनुकूलन, शमन और लचीलापन शामिल है।
प्रमुख पहलों में शामिल हैं:
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी): वर्ष 2008 में शुरू की गई इस योजना में आठ राष्ट्रीय मिशनों की रूपरेखा दी गई है, जिसमें जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करते हुए सतत विकास को बढ़ावा देना है। इनमें सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, स्थायी कृषि और जल संरक्षण पर मिशन शामिल हैं।
राज्य कार्य योजनाएं: राज्यों ने भी एनएपीसीसी के अनुरूप अपनी जलवायु कार्य योजना विकसित की है, जो क्षेत्र-विशिष्ट प्रतिकूल परिस्थितियों में मौसम की विषम घटनाओं (बाढ़, सूखा) और मानसून के बदलते प्रतिमानों पर आधारित है।
आपदा प्रबंधन और पूर्व चेतावनी प्रणाली: भारत ने अपने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के माध्यम से आपदा प्रबंधन को मजबूती प्रदान की है, जो प्रतिकूल मौसम की घटनाओं (जैसे, चक्रवात, हीटवेव, बाढ़) के प्रभावों को कम करने के लिए मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के साथ मिलकर काम करता है।
जलवायु-अनुकूल कृषि: सरकार ने जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया है, जिसमें सूखा-प्रतिरोधी फसलें, बेहतर जल प्रबंधन तथा वर्षा और तापमान प्रतिमानों में परिवर्तन के अनुकूल फसल पैटर्न में परिवर्तन आदि शामिल हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा विकास: भारत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था की अपनी रणनीति के तहत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा का तेजी से विस्तार कर रहा है।
जल संरक्षण: जल की कमी को देखते हुए सरकार ने जल प्रबंधन में सुधार करने और विशेष रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में स्थायी जल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए जल जीवन मिशन और राष्ट्रीय जल मिशन जैसे विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं।
नीति और वित्तीय रूपरेखा: सरकार ने जलवायु परिवर्तन संबंधी विचारों को राष्ट्रीय नीतियों और बजट में भी शामिल किया है, जो अंतरराष्ट्रीय जलवायु समझौतों (जैसे, पेरिस समझौता) के साथ संरेखित है। इसमें कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य निर्धारित करना और भौगोलिक दृष्टि से कमजोर क्षेत्रों के लिए जलवायु वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
इन प्रयासों का उद्देश्य कमियों को दूर करना और देश को जलवायु परिवर्तन के विविध प्रभावों के लिए तैयार करना है, जिसमें मानसून के प्रतिमानों में बदलाव से लेकर अधिक बार होने वाली मौसम की प्रतिकूल घटनाएं शामिल हैं।
भारत में जलवायु अनुसंधान और जलवायु विज्ञान में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन के विज्ञान से संबंधित अनुसंधान अध्ययन करने के लिए पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान में जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र (सीसीसीआर) की स्थापना की है।
सीसीसीआर ने पहली बार स्वदेशी जलवायु मॉडल आईआईटीएम-अर्थ सिस्टम मॉडल (आईआईटीएम-ईएसएम) विकसित किया है, जो मानसून संबंधी विश्वसनीय अनुमान प्रदान करता है और इसका उपयोग पूरे क्षेत्र में जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन से जुड़े पहलुओं के लिए किया जाता है। यह जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट (आईपीसीसी-एआर6) में योगदान देने वाला भारत का पहला मॉडल है। इसके अतिरिक्त सीसीसीआर ने उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन अनुमानों को तैयार करने के लिए दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए समन्वित क्षेत्रीय डाउनस्केलिंग प्रयोग (सीओआरडीईएक्स) का भी नेतृत्व किया है, जिसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों के आकलन के लिए किया जाता है।
इसके अलावा, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में "भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन" शीर्षक से जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में देश भर में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया है, जिसमें जलवायु परिवर्तन के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। इसमें हिंद महासागर और हिमालय से सटे भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्रीय जलवायु और मानसून पर मानव-प्रेरित वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में व्यापक चर्चा की गई है।
उपरोक्त के अलावा, मौसम विभाग ने वेब आधारित ऑनलाइन "भारत का जलवायु खतरा और भेद्यता एटलस" जारी किया है, जो 13 प्रकार की मौसम संबंधी घटनाओं के लिए तैयार किया गया है, जो व्यापक क्षति और आर्थिक, मानवीय और पशु हानि का कारण बनते हैं। जलवायु खतरा और भेद्यता एटलस राज्य सरकार के अधिकारियों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों को मौसम की विभिन्न घटनाओं से निपटने के लिए योजना बनाने और उचित कार्रवाई करने में मदद करेगा।
भारत जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न व्यापक चुनौतियों से निपटने के लिए जलवायु लचीलेपन पर डेटा, विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग कर रहा है। यह सहयोग वैश्विक जलवायु कार्रवाई में योगदान देने और अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने के लिए भारत के प्रयासों का हिस्सा है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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(Release ID: 2086057)