विधि एवं न्याय मंत्रालय
सरकार की विभिन्न पहलें/परियोजनाएं और निःशुल्क कानूनी सहायता के लिए योजनाएं, जो मामलों के तेजी से निस्तारण के लिए एक इकोसिस्टम प्रदान कर रही हैं, का परिचय
Posted On:
06 DEC 2024 3:34PM by PIB Delhi
उच्च न्यायालय की पीठें जसवंत सिंह आयोग द्वारा की गई सिफारिशों और 2000 के डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या 379 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार और राज्य सरकार से आवश्यक व्यय और बुनियादी ढांचा सुविधाएं प्रदान करने की सहमति के साथ-साथ संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, जो उच्च न्यायालय के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन की देखभाल करते हैं, की सहमति के साथ एक पूर्ण प्रस्ताव पर विचार करने के बाद स्थापित की जाती हैं। पूर्ण होने के लिए प्रस्ताव को संबंधित राज्य के राज्यपाल की सहमति भी लेनी चाहिए। वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय में पीठ या पीठों की स्थापना के लिए सरकार के पास कोई पूर्ण प्रस्ताव लंबित नहीं है।
आवश्यकताओं के आधार पर, मई, 2014 से आज तक सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी गई है और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 906 से बढ़ाकर 1122 कर दी गई है। इसी प्रकार, जिला एवं अधीनस्थ न्यायपालिका में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 2014 से 18.11.2024 तक 19,518 से बढ़ाकर 25,725 कर दी गई है। न्याय तक पहुंच बढ़ाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
सरकार ने विभिन्न पहलें/परियोजनाएं भी शुरू की हैं और निःशुल्क कानूनी सहायता हेतु योजनाएं प्रारंभ की हैं, जिसने न्यायपालिका द्वारा मामलों के तेजी से निस्तारण के लिए एक इकोसिस्टम प्रदान किया है और इस प्रकार न्याय तक पहुंच में सुधार किया है। सरकार द्वारा स्थापित न्याय वितरण और कानूनी सुधारों के लिए राष्ट्रीय मिशन ने न्यायालयों के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने सहित विभिन्न रणनीतिक पहलों के जरिए न्यायिक प्रशासन के बकाया और लंबित मामलों के चरणबद्ध तरीके से समाधान के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण अपनाया है।
न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को न्यायालय हॉल, न्यायिक अधिकारियों के लिए आवासीय क्वार्टर, वकीलों के हॉल, शौचालय कॉम्प्लेक्स और डिजिटल कंप्यूटर कक्षों के निर्माण के लिए धनराशि जारी की जा रही है, जिससे वादियों सहित विभिन्न हितधारकों के काम में आसानी होगी और जो न्याय वितरण में मदद करेगा।
इसके अलावा ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना के चरण I और II के तहत, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों की आईटी सक्षमता के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का लाभ उठाया गया है। यह परियोजना डब्ल्यूएएन कनेक्टिविटी के साथ जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के कम्प्यूटरीकरण का समर्थन कर रही है। बड़ी संख्या में न्यायालय परिसरों और जेलों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा मुहैया कराई गई है। वकीलों और वादियों को नागरिक केंद्रित सेवाएं प्रदान करके डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए जिला न्यायालयों और उच्च न्यायालयों में कई ई-सेवा केंद्र बनाए गए हैं। विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में वर्चुअल कोर्ट की स्थापना करके वादियों को वर्चुअल पहुंच उपलब्ध कराई गई है। ई-कोर्ट परियोजना का उद्देश्य डिजिटल, ऑनलाइन और कागज रहित अदालतों की ओर बढ़ते हुए न्याय की सुगमता को बढ़ाना है।
चौदहवें वित्त आयोग के तत्वावधान में वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, बच्चों आदि से संबंधित जघन्य अपराधों के मामलों से निपटने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए गए हैं। निर्वाचित सांसदों/विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों को तेजी से निपटाने के लिए, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के स्तर पर विशेष अदालतें काम कर रही हैं। केंद्र सरकार ने बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधों के लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए देश भर में एक्सक्लूसिव फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (एफटीएससी) स्थापित करने की योजना को भी मंजूरी दी है।
वैकल्पिक विवाद समाधान तरीकों को भी बढ़ावा दिया गया है। तदनुसार, वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 को अगस्त, 2018 में संशोधित किया गया, जिसने वाणिज्यिक विवादों के मामले में पूर्व-संस्था मध्यस्थता और निपटान (पीआईएमएस) को अनिवार्य बना दिया गया।
सरकार ने 2017 में टेली-लॉ कार्यक्रम का शुभारंभ भी किया, जो कानूनी सलाह और परामर्श चाहने वाले जरूरतमंद और वंचित वर्गों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पैनल वकीलों के साथ जोड़ने के लिए ग्राम पंचायतों में स्थित सामान्य सेवा केन्द्र (सीएससी) पर उपलब्ध टेलीफोन और चैट सुविधाओं तथा टेली-लॉ मोबाइल ऐप के जरिए एक प्रभावी और विश्वसनीय ई-इंटरफेस प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
अधिवक्ताओं के बीच नि:शुल्क सेवाएं प्रदान करने की संस्कृति को संस्थागत बनाने के प्रयास किए गए हैं। एक प्रौद्योगिक फ्रेमवर्क तैयार किया गया है, जहां अधिवक्ता नि:शुल्क सेवा देने के लिए स्वेच्छा से न्याय बंधु पर प्रो बोनो अधिवक्ता के रूप में अपना पंजीकरण करवा सकते हैं। न्याय बंधु सेवाएं उमंग प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध हैं। राज्य स्तर पर उच्च न्यायालयों में अधिवक्ताओं का प्रो बोनो पैनल शुरुआत की गई है। लॉ स्कूलों में भी प्रो बोनो क्लब शुरू किए गए हैं।
केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह जानकारी आज लोक सभा में एक लिखित उत्तर में दी।
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