कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय
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जैविक कृषि को बढ़ावा देना

Posted On: 03 DEC 2024 5:35PM by PIB Delhi

सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर राज्यों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) योजनाओं के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य और जल प्रतिधारण में सुधार के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। दोनों योजनाएं जैविक खेती में लगे किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन और कटाई के बाद प्रबंधन प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण तक के लिए पूर्ण सहयोग पर जोर देती हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद 16 राज्यों में 20 सहयोगी केंद्रों के साथ जैविक खेती पर अखिल भारतीय नेटवर्क कार्यक्रम (एआईएनपी-ओएफ) संचालित करती है और 76 फसल प्रणालियों के लिए जैविक विधियों का पैकेज विकसित किया है। इसके परिणामों से ज्ञात हुआ है कि मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप पारंपरिक खेती की तुलना में फसल की वृद्धि और उत्पादकता के लिए बेहतर सूक्ष्म वातावरण मिला है। जैविक खेती के तहत मौसम की चरम स्थितियों के प्रति फसलों की बेहतर लचीलापन भी देखा गया है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने विभिन्न डिजिटल पहलों के माध्यम से कृषि के लिए एक खुले स्रोत, खुले मानक और अंतर-संचालन योग्य सार्वजनिक वस्तु के रूप में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) के निर्माण के लिए विभिन्न पहल की हैं। ये इस प्रकार है-

एग्रीस्टैक: एग्रीस्टैक पहल के तहत, सरकार ने तीन प्रमुख रजिस्ट्रियों के विकास की पहल की है, अर्थात किसान रजिस्ट्री (किसानों की रजिस्ट्री), भू-संदर्भित गांव के नक्शे (कृषि भूमि के भूखंडों के) और डिजिटल फसल सर्वेक्षण (डीसीएस) के माध्यम से बोई गई फसल की रजिस्ट्री।

डीसीएस से किसी भूमि पर उगाई जा रही फसल और सिंचाई के स्रोतों/तरीकों की जानकारी की सुविधा मिलती है। इससे सरकार को वास्तविक समय के आंकड़ों को समझने में मदद मिलती है, जिससे :- 1. फसल विविधीकरण 2. बाजरा संवर्धन 3. खरीद योजना 4. जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना और उसके अनुसार कार्यक्रम बनाने में सहयोग मिलता है।

इस परियोजना के अंतर्गत तर्कसंगत भूमि उपयोग और फसल नियोजन के लिए मानकीकृत मृदा मानचित्र बनाने हेतु विस्तृत मृदा प्रोफ़ाइल अध्ययन किया जा रहा है, जिससे टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिलेगा।

कृषि उत्पादकता में सुधार और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए डेटा आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। इस संबंध में भारतीय कृषि के जलवायु परिवर्तन के जोखिम और भेद्यता का आकलन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा जलवायु लचीले कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के तहत किया गया था।

पिछले 10 वर्षों (2014-2024) के दौरान, आईसीएआर द्वारा कुल 2593 किस्में जारी की गई हैं, इनमें से 2177 किस्में एक या एक से अधिक जैविक और/या अजैविक तनावों के प्रति सहनशील पाई गई हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रति किसानों के लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने के लिए, एनआईसीआरए कार्यक्रम के तहत 151 जलवायु संवेदनशील जिलों में 448 जलवायु अनुकूल गांव स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर सभी हितधारकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

सरकार प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत देश में प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी) योजना को लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य सूक्ष्म सिंचाई, अर्थात् ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है। सूक्ष्म सिंचाई से पानी की बचत के साथ-साथ उर्वरक के उपयोग में कमी, श्रम व्यय, अन्य उत्पादक लागत और किसानों की समग्र आय में वृद्धि में मदद मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई के लिए छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत और अन्य किसानों के लिए 45 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

यह जानकारी कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री भागीरथ चौधरी ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।

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(Release ID: 2081452)
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