पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
संसद प्रश्न: - वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक
Posted On:
28 NOV 2024 2:01PM by PIB Delhi
हाल ही में, गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज, इज़राइल की बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ द नेगेव और बायोडीबी.कॉम द्वारा पहली बार वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (एनसीआई) 2024 जारी किया गया है। इसमें भारत को कुल 180 देशों में 176वां स्थान दिया गया है, जो भूमि प्रबंधन, जैव विविधता के लिए खतरे, क्षमता और शासन और जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए भारत के मान्यता प्राप्त प्रयासों को कम करके दिखाता है। एनसीआई ने कई संकेतकों के सम्बंध में भारत द्वारा दिए गए आंकड़ों को ध्यान में नहीं रखा है और कई अन्य स्रोतों पर भरोसा किया है जिससे एनसीआई सूचकांक सही नहीं हैं। इसके अलावा, एनसीआई ने जैव विविधता संरक्षण पर वैश्विक सहयोग के साथ-साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन एजेंडे को लेकर इसकी नेतृत्वकारी भूमिका की वकालत करने वाले इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस (आईबीसीए), मिशन लाइफ, इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) और कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंस इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) जैसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण मंचों पर भारत की सबको मार्ग दिखाते हुए आगे बढ़ने की भूमिका को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।
हाल के वर्षों में, भारत ने भूमि प्रबंधन और जैव विविधता के खतरों से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं, जिन्हें एनसीआई तैयार करते समय ध्यान में नहीं रखा गया है। उदाहरण के तौर पर भारत सरकार ने जैविक विविधता अधिनियम, 2002 को जैविक विविधता (संशोधन) अधिनियम, 2023 (बी.डी. अधिनियम) द्वारा संशोधित किया, साथ ही जैविक संसाधनों और उससे जुड़े ज्ञान के संरक्षण, स्थायी उपयोग और पहुंच को विनियमित करने के लिए नए नियम बनाए। यह अधिनियम, जैव विविधता के संरक्षण के लिए बी.डी. अधिनियम के प्रावधानों के तहत जैव विविधता प्रबंधन समितियों (बीएमसी) का गठन, जैव विविधता विरासत स्थलों की अधिसूचना और खतरे में पड़ी प्रजातियों की अधिसूचना जैसे विभिन्न उपायों को शामिल करता है। ये अधिसूचना, राज्य जैव विविधता बोर्ड्स (एसबीबी) को अधिसूचित प्रजातियों तक पहुंच बनाने और उनके पुनर्वास और संरक्षण के उपाय करने की शक्ति प्रदान करती है।
भूमि प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण में भारत की कुछ प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
- भारत में 1022 संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनका क्षेत्रफल 178,640 वर्ग किमी है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5.43% है।
- कुल वन क्षेत्र 2013 के 21.23% से बढ़कर 2021 में 21.71% हो गया है।
- एफएओ के वैश्विक वन संसाधन आकलन 2020 के अनुसार भारत का वन क्षेत्र 72.16 लाख हेक्टेयर है और दुनिया भर के शीर्ष दस देशों में भारत का स्थान सुरक्षित है।
- पूरे भारत में 487 संरक्षित क्षेत्रों के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र तैयार किए गए हैं।
- रामसर स्थलों की संख्या 2014 के 26 से बढ़कर 2024 में 85 हो गई है।
- भारत में 55 बाघ अभ्यारण्य हैं और बाघों की आबादी 2014 में 2226 थी जो 2022 में बढ़कर 3682 हो गई।
- भारत की गिर शेर परियोजना के तहत शेरों की आबादी को बढ़ावा दिया है - जो 1990 में 284 थी जो 2020 में बढ़कर 674 हो गई है।
- भारत ने विश्व की पहली अंतर-महाद्वीपीय विशाल जंगली मांसाहारी जीव स्थानांतरण परियोजना के माध्यम से भारत में चीता को पुनः स्थापित किया है।
- भारत में 33 हाथी रिजर्व के साथ जंगली एशियाई हाथियों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है, अनुमानतः उनकी संख्या लगभग 30,000 यानि प्रजाति की जनसंख्या का लगभग 60% है।
- भारत में तेंदुओं की अनुमानित जनसंख्या 13,874 है, जो 2018 में इसी क्षेत्र में 12,852 तेंदुओं की तुलना में सकारात्मक स्थिर जनसंख्या को दर्शाती है।
- गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के पुनरुद्धार के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पुनरुद्धार की प्रमुख परियोजना के रूप में मान्यता दी गई है, जो प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों और उसकी सेवाओं के संरक्षण, पुनरुद्धार और विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत ने पहले ही 10 सितंबर , 2024 को राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजनाओं के तहत अपने राष्ट्रीय लक्ष्य तय किए हैं और हाल ही में कोलंबिया के कैली में संपन्न सी.बी.डी. सी.ओ.पी. के दौरान जैव विविधता पोर्टल पर 31 अक्टूबर, 2024 को सम्मेलन में अपनी राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (एनबीएसएपी) भी प्रस्तुत की है। राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य और कार्य योजनाएं दोनों ही कुनमिंग मॉन्ट्रियल वैश्विक विविधता रूपरेखा (केएमजीबीएफ) के तहत निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से संरेखित हैं। केएमजीबीएफ को राष्ट्रीय परिस्थितियों, प्राथमिकताओं और क्षमताओं के अनुसार लागू किया जाना है।
भारत की राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजना (एनबीएसएपी) में स्थलीय और समुद्री क्षेत्रों की रक्षा, क्षतिग्रस्त इको-सिस्टम को बहाल करने और प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ शिकारी प्रजातियों के प्रबंधन के माध्यम से जैव विविधता के खतरों को कम करने की परिकल्पना की गई है। भारत, प्रजातियों के संरक्षण, संसाधनों के सतत उपयोग, विखंडन को कम करने के लिए वन्यजीव गलियारों और जैव विविधता शासन में सामुदायिक भागीदारी पर जोर देता है।
भारत ने जीएचजी उत्सर्जन को कम करने के लिए नवंबर 2022 में यूएनएफसीसीसी में अपनी दीर्घकालिक निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति (एलटी-एलईडीएस) प्रस्तुत की है, जिसमें देश के लिए रणनीतिक निम्न स्तरीय-उत्सर्जन विकास बदलाव पर प्रकाश डाला गया है। एलटी-एलईडीएस को वैश्विक कार्बन बजट के एक समान और उचित हिस्से के भारत के अधिकार के दायरे में तैयार किया गया था, जो जलवायु न्याय का व्यावहारिक कार्यान्वयन है। रणनीति में विकास के अनुरूप बिजली प्रणालियों में निम्न कार्बन विकास, एकीकृत, कुशल, समावेशी निम्न-कार्बन परिवहन प्रणाली का विकास, शहरी डिजाइन में अनुकूलन को बढ़ावा देना, भवनों में ऊर्जा और सामग्री-दक्षता और टिकाऊ शहरीकरण, उत्सर्जन से विकास को अलग करने और एक कुशल, अभिनव निम्न कार्बन उत्सर्जन औद्योगिक प्रणाली के विकास को बढ़ावा देना, सीओ 2 निष्कासन और सम्बन्धित इंजीनियरिंग समाधान प्रमुख रूप से शामिल हैं।
2023 में यूएनएफसीसीसी को भेजी गई अनुकूलन रिपोर्ट में जलवायु जोखिमों और चुनौतियों के अनुकूलन के लिए उठाए गए कदमों और उसके लिए भविष्य की रणनीति की रूपरेखा दी गई है। भारत ने खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा उपयोग दक्षता और जल प्रबंधन से लेकर एकीकृत दृष्टिकोण विकसित किया है, जिसका उद्देश्य उचित नीतियों और पहलों के माध्यम से इन मुद्दों को एक साथ संबोधित करना है।
यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज राज्य सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
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