विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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नौवहन, दूरसंचार और विमानन क्षेत्र के लिए उपयोगी अधिक सटीक परमाणु घड़ियों की दिशा में प्रयास

Posted On: 22 OCT 2024 3:43PM by PIB Delhi

कोल्ड रिडबर्ग परमाणुओं के साथ कार्य करने वाले शोधकर्ताओं के एक दल ने नेविगेशन, दूरसंचार एवं विमानन क्षेत्र में समय की सटीकता के साथ परिशुद्धता बनाए रखने के उद्देश्य से उपयोग की जाने वाली परमाणु घड़ियों तथा मैग्नेटोमीटर की सहायता करने के लिए क्वांटम मैग्नेटोमेट्री का उपयोग किया है, जिससे उच्च परिशुद्धता प्राप्त होती है और उन्हें अतिरिक्त रूप से अधिक उपयोगी बनाया जाता है।

रिडबर्ग परमाणु एक ऐसा उत्तेजित परमाणु होता है, जिसमें एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन होते हैं और उनकी मुख्य क्वांटम संख्या बहुत अधिक होती है। उत्तेजन की इस स्थिति को इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी (ईआईटी) नामक स्पेक्ट्रोस्कोपिक विधि से मापा जाता है।

रमन अनुसंधान संस्थान (आरआरआई) के शोधकर्ताओं ने इस प्रयोग के दौरान डॉप्लर प्रभाव का लाभ उठाया है और कमरे के तापमान पर आधारित वातावरण में रिडबर्ग इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी (ईआईटी) का उपयोग करके थर्मल रुबिडियम परमाणुओं पर क्वांटम मैग्नेटोमेट्री (चुंबकीय क्षेत्रों के सटीक मापन के लिए प्रकाश व परमाणुओं की क्वांटम प्रकृति का उपयोग करने वाली प्रक्रिया) करते समय चुंबकीय क्षेत्र के लिए दस गुना बढ़ी हुई प्रतिक्रिया हासिल की है।

इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी (ईआईटी) एक आकर्षक घटना है, जो वास्तव में अपारदर्शी माध्यम को पारदर्शी बना देती है, यह प्रकाश तरंगों की गति को धीमा कर सकती है और प्रकाश को परमाणु माध्यम के अंदर भी रोक सकती है। ईआईटी ने सटीक परमाणु घड़ियों, परमाणु मैग्नेटोमीटर और क्वांटम कम्प्यूटेशन में असंख्य महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों को जन्म दिया है। ईआईटी सामान्यतः तीन-स्तरीय परमाणु प्रणाली में होता है, जिसमें दो परमाण्विक अवस्थांतर शामिल हैं, जिन्हें एक कमजोर जांच लेजर बीम और एक मजबूत युग्मन लेजर बीम द्वारा आगे ले जाया जाता है।

इसमें वैज्ञानिक रूप से हस्तक्षेप तब होता है, जब एक तरंग दो बिंदुओं के बीच कई पथों से यात्रा करने में सक्षम होती है, जिसके परिणामस्वरूप या तो उनकी वृद्धि होती है या फिर निरस्तीकरण होता है। इसी प्रकार, एक परमाणु विभिन्न मार्गों द्वारा अनेक क्वांटाइज्ड ऊर्जा स्तरों के बीच आगे-पीछे जा सकता है, जिससे आगे की गतिविधियां हो सकती हैं। इससे यह भी निर्धारित होता है कि कोई परमाणु प्रकाश की कितनी मात्रा को अवशोषित करेगा।

प्रकाश के हस्तक्षेप के समान ही एक ऐसी स्थिति जहां पर कंस्ट्रक्टिव इंटरफेरेंस ब्राइट फ्रिंज देता है और डिस्ट्रक्टिव इंटरफेरेंस डार्क फ्रिंज देता है, इन ऊर्जा स्तरों के बीच परमाणु संक्रमण की संभावनाएं भी डिस्ट्रक्टिव रूप से हस्तक्षेप कर सकती हैं, जिसे क्वांटम इंटरफेरेंस के रूप में जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप अंधकारमय अवस्था में परमाणु प्रोब लाइट को अवशोषित नहीं कर पाते हैं और इसकी वजह से परमाणु माध्यम पारदर्शी हो जाता है। इस घटना को इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी (ईआईटी) कहा जाता है।

शोधकर्ताओं ने रिडबर्ग इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी का उपयोग करते हुए परमाणुओं को उनकी अत्यधिक उत्तेजित (रिडबर्ग) अवस्थाओं में पाया है। रिडबर्ग इलेक्ट्रोमैग्नेटिकली इंड्यूस्ड ट्रांसपेरेंसी में ईआईटी प्रक्रिया के लिए शामिल ऊर्जा स्तरों में से एक के रूप में रिडबर्ग अवस्था होती है। इसलिए बाह्य चुंबकीय क्षेत्र के प्रति रिडबर्ग परमाणुओं की प्रतिक्रिया को मापने के लिए रिडबर्ग ईआईटी संकेतों का उपयोग किया गया है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान आरआरआई में रिडबर्ग एटम्स लैब (क्वोरल) में क्वांटम ऑप्टिक्स की प्रमुख डॉ. संजुक्ता रॉय ने कहा है कि जब रीडबर्ग ईआईटी को जांच और युग्मन किरण के अपरंपरागत विन्यास में देखा गया, जहां पर डॉपलर शिफ्ट की क्षतिपूर्ति नहीं की गई थी, तो वहां चुंबकीय क्षेत्र के प्रति बढ़ी हुई प्रतिक्रिया देखी गई। यह डॉप्लर शिफ्ट ही है, जो बाहरी रूप से लागू चुंबकीय क्षेत्र के प्रति रिडबर्ग ईआईटी सिग्नल की बड़ी प्रतिक्रिया का कारण बनता है।

सामान्य रूप से, डॉप्लर शिफ्ट को गतिशील पर्यवेक्षक द्वारा तरंग की आवृत्ति में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। जब लेजर किरण परमाणुओं पर चमकती है, तो उनकी तापीय गति के कारण डॉप्लर शिफ्ट होता है और लेजर किरण की ओर बढ़ने वाले परमाणु को उच्च आवृत्ति दिखाई देती है, जबकि दूर जाने वाले परमाणु को निम्न आवृत्ति दिखाई देती है। यह प्रभाव सामान्यतः संवेदन के लिए हानिकारक माना जाता है।

हाल ही में न्यू जर्नल ऑफ फिजिक्स में प्रकाशित शोधपत्र में शोधकर्ताओं द्वारा इस डॉप्लर प्रभाव का अपने लाभ के लिए प्रभावी ढंग से उपयोग करके कमरे के तापमान पर क्वांटम प्रभावों के प्रदर्शन व सफलतापूर्वक उपयोग की जानकारी दी गई है। उन्होंने आरआरआई के सैद्धांतिक भौतिकी समूह के डॉ. शोवन दत्ता के सहयोग से सैद्धांतिक मॉडलिंग और सिमुलेशन का उपयोग करके अपने प्रयोगात्मक अवलोकनों को भी समझाया है।

आरआरआई में पीएचडी छात्र और 'थर्मल रिडबर्ग परमाणुओं के साथ डॉपलर-एन्हांस्ड क्वांटम मैग्नेटोमेट्री' शीर्षक वाले पेपर के प्रमुख लेखक शोवन कांति बारिक ने कहा कि चुंबकीय क्षेत्र ऊर्जा के स्तर को बदल देते हैं और इसकी उपस्थिति में, ऊर्जा के स्तर अलग-अलग मात्रा में स्थानांतरित हो जाते हैं, जिससे कई ट्रांसमिशन पीक्स बनते हैं, जिनके पृथक्करण का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए किया जा सकता है।

क्रायोजेनिक रूप से ठंडे हुए अतिचालक उपकरण अति-कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों को पहचानने के लिए उपयोगी होते हैं।

डॉ. संजुक्ता रॉय ने यह भी कहा कि कमरे के तापमान पर वेपर-सेल में हमारे प्रयोग को विभिन्न व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए आसानी से तैनात किया जा सकता है। यह सरलीकृत प्रयोगात्मक प्रणाली और परमाणु शीतलन या अति-उच्च निर्वात की आवश्यकता न होने के कारण संभव हो सका है। इसका तात्पर्य है कि हमारे परिणामों में सुविधाजनक कमरे के तापमान वाले सेटअप में कमजोर चुंबकीय क्षेत्रों का पता लगाने के लिए आशाजनक अनुप्रयोग हैं।

इस तरह की डॉपलर-एन्हांस्ड क्वांटम मैग्नेटोमेट्री भूभौतिकी से लेकर मस्तिष्क की गतिविधि और खनिजीकरण का पता लगाने से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण तथा पुरातत्व तक के विविध अनुप्रयोगों में इस्तेमाल की जा सकती है।

 

रिडबर्ग परमाणुओं के साथ डॉपलर-एन्हांस्ड क्वांटम मैग्नेटोमेट्री के अवलोकन के लिए इस्तेमाल किया गया प्रायोगिक सेट-अप

 

एमजी/आरपीएम/केसी/एनके/डीके


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