उप राष्ट्रपति सचिवालय
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राजस्थान के सीकर स्थित सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूशंस के रजत जयंती समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का पाठ

Posted On: 19 OCT 2024 3:45PM by PIB Delhi

सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूशंस के रजत जयंती समारोह से जुड़कर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है।

इस सुखद और महत्वपूर्ण अवसर पर, मैं इस संस्थान के प्रबंधन, कर्मचारियों, छात्रों एवं पूर्व छात्रों की खुशी और गौरव में सहभागी हूं क्योंकि यह भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव से  गुजर रहा है।

समाज की सेवा के विचार से निर्देशित, एक ही धारणा थी, मूल धारणा थी कि समाज की सेवा करनी है। इस उद्देश्य से प्रेरित होकर, जो संस्था की शुरुआत हुई एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में, आज वह संस्था एक समूह बन गया है सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूशंस। और इसीलिए, और बहुत सही तरीके से, भारत सरकार ने 2022 में एक निर्णय लिया। श्री प्रहलाद राय अग्रवाल को पद्म श्री से सम्मानित किया गया और यह पहचान दी गई कि श्री अग्रवाल ने ‘मेक इन इंडिया’ का समर्थन करते हुए व्यापार एवं उद्योग जगत की सेवा में खुद को प्रतिष्ठित किया है। इस संस्थान के दूरदर्शी नेतृत्व को देखते हुए, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में यह और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचेगा।

जब किसी भी संस्था के 25 साल होते हैं, उस समय चिंतन का होता है, मंथन का होता है, पीछे देखना होता है कि हमने क्या किया, और आगे का रास्ता चुनना होता है।

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि दूरदर्शी श्री अग्रवाल इस बड़ी चुनौती से निपटेंगे और जब भारत 2047 में पूर्ण विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करेगा, तो सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूशंस एक स्थापित विश्वविद्यालय के रूप में उत्कृष्टता के केंद्र के तौर पर उभरेगा।

और जो रचना आगे कर रही है, उसका मूल केंद्र, मुख्य बिंदु ऐसा होना चाहिए कि छात्र-छात्राएं सही तरीके से अपनी प्रतिभा दिखा पाएं।

सबसे पहले, मुझे यह कहने दीजिए कि आज के हालात क्या हैं। हमारे समय के हालात, आजकल के बच्चों के समझ में भी नहीं आएंगे। आज हालत बहुत बेहतर हैं। तब के हालात का वर्णन नहीं करना चाहता, पर आज के हालात यह हैं कि कानून के सामने सबकी समानता है। संरक्षण अब किसी अनुबंध या नौकरी का पासवर्ड नहीं है, योग्यतातंत्र का शासन है। विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली योग्यतातंत्र के आगे झुक गया है।

और आज का जो शासन है, वह पारदर्शिता का है, उत्तरदायित्व का है। इसमें भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। छात्र एवं छात्राओं, आप भाग्यशाली हैं कि आप एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहां आप एक ऐसे इकोसिस्टम से लाभान्वित हो रहे हैं जो आपको अपनी प्रतिभा का संपूर्ण रूप से दोहन करने, अपनी आकांक्षाओं को साकार करने और अपने सपनों को हासिल करने की अनुमति देता है।

चारों तरफ एक ही माहौल है आशा और संभावना का माहौल। भारत संभावनाओं से भरा देश है, और दुनिया भारत का लोहा मान चुकी है।

अगर मैं अपने चारों ओर देखता हूं, तो आईएमएफ, विश्व बैंक, जो कुछ समय पहले भारत को सिखाते थे कि शासन व्यवस्था कैसे हो, आज के दिन भारत की प्रशंसा करते हुए थकते नहीं हैं।

और भारत को हर तरफ से निवेश और अवसरों के वैश्विक पसंदीदा गंतव्य के रूप में प्रशंसा मिल रही है। पर ऐसा क्यों न हो?

एक दशक पहले, हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की पांच हिलती-डुलती अर्थव्यवस्थाओं में थी, कभी भी गिर सकती थी। हम कहां से कहां आ गए हैं। दुनिया की पांचवी आर्थिक महाशक्ति। दो साल में तीसरी बड़ी महाशक्ति, जापान और जर्मनी के आगे। हमारी इकोनॉमी 4 ट्रिलियन को टच कर रही है।

हमारी ग्रोथ रेट दुनिया को अचंभित कर रही है। जीडीपी ग्रोथ 8 फीसदी है। और दुनिया की कोई भी बड़ी इकोनॉमी इसके नजदीक नहीं है। यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है।

और ऐसा क्यों नहीं हो? आप यह देखिए, जिस देश में हर साल चार नए एयरपोर्ट बनते हैं, एक नया मेट्रो स्टेशन चालू होता है, जिस देश में हर दिन 14 किलोमीटर हाईवे बनते हैं और वर्ल्ड क्लास हाईवेज 14 किलोमीटर प्रति दिन और 6 किलोमीटर प्रति दिन रेल ट्रैक का विस्तार हो रहा है। आप चारों तरफ देख रहे हैं, पहले क्या हालात थे और अब क्या हालात हैं, हमारी रेलगाड़ी का, हमारे एयरपोर्ट्स का, हमारे हाईवेज का, हमारी इंटर कनेक्टिविटी का, ऐसा सोचा नहीं था। एक तरीके से मेरी पीढ़ी के लिए यह अचंभा है; हम सपना भी नहीं देख सकते थे जो कुछ आज सरकार कर रही है।

युवक एवं युवतियों, मुझे आपका ध्यान इस ओर जरूर दिलाना चाहिए कि हम परिवर्तनकारी टेक्नोलॉजी के युग में रह रहे हैं। युवा प्रतिभाओं को आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन और मशीन लर्निंग से जूझना होगा। हर दिन परिवर्तन हो रहा है और यह परिवर्तन एक चुनौती है। इस परिवर्तन को अवसरों में बदलना होगा और यह केवल शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है। मुझे यकीन है कि ‘पद्मश्री’ श्री पी.आर. अग्रवाल के कुशल दूरदर्शी नेतृत्व में यह संस्थान इस दिशा में कदम उठाएगा ताकि अगले 25 वर्षों में यह एक ऐसा पाठ्यक्रम संचालित करे जो भविष्योन्मुखी हो और टेक्नोलॉजी की उन शाखाओं में शिक्षा प्रदान करे जिनकी चाह दुनिया को है। हम यदि तकनीकी रूप से आगे नहीं रहेंगे, तो हमारी आर्थिक प्रगति रुक जाएगी। आर्थिक प्रगति का ठोस आधार है कि देश के अंदर रिसर्च, इनोवेशन, और शिक्षा का वातावरण कैसा है।

एक बात बड़ी सराहनीय है, प्रशंसनीय है कि इस संस्था को इस स्थान पर स्थापित किया गया है। समय आ गया है कि हमें अपने श्रेणी-2 और श्रेणी-3 वाले शहरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। छात्रों के लिए, इकोसिस्टम के लिए और समग्र विकास के लिए स्थान संबंधी लाभ हैं। मुझे यकीन है कि अन्य लोग भी इस उदाहरण का अनुसरण करेंगे।

मेरी दृढ़ मान्यता है, मेरा अटूट विश्वास है कि समाज में बड़ा बदलाव, स्थाई बदलाव, और विषमताओं को कुंठित करने का काम एक ही माध्यम से हो सकता है शिक्षा के माध्यम से। यह शिक्षा ही है जो समानता लाने, असमानता दूर करने और एक व्यापक सामाजिक बराबरी स्थापित करने वाला सबसे प्रभावशाली व परिवर्तनकारी तंत्र है। हमारे इतिहास में जाएंगे, तो देखेंगे गुरुकुल का क्या महत्व था। गुरुकुल में कोई फीस नहीं होती थी। भारतीय संविधान में 22 चित्र हैं, जिसमें नागरिकता के प्रावधान में गुरुकुल का चित्र है। आज के दिन आवश्यकता है कि हम शिक्षा को व्यापारी बुद्धि से बचाएं।

मैं चारों ओर देखता हूं कि जो धर्मार्थ कार्य के रूप में शुरू होना था, जो शुरू करना था समाज को वापस देने का काम, समाज की सेवा करने का काम, आज वह एक व्यापार बन गया है। शिक्षा का व्यापार बनना देश के भविष्य के लिए कभी अच्छा नहीं है। मेरी मान्यता है कि शिक्षण संस्थानों को आर्थिक रूप से सबल होना चाहिए। उन्हें आर्थिक रूप से टिकाऊ होना चाहिए। पर इंडस्ट्री का दायित्व है कि समय-समय पर संस्थाओं को नर्चर करें। उन्हें संस्थानों के निर्माण के लिए अपने सीएसआर फंड का उदारतापूर्वक उपयोग करना चाहिए। यह देश की प्रगति में बहुत बड़ा सहायक होगा।

संस्थानों को इनोवेशन और रिसर्च की धुरी के रूप में उभरना होगा। सबसे बड़ा फायदा रिसर्च का और इनोवेशन का यह है कि यह उद्योग और अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है और देश को एक बहुत बड़ी ताकत देता है दुनिया के सामने।

एक जमाना था जब भारत का क्या नाम था! हमारे भारत में तक्षशिला, नालंदा, मिथिला, वल्लभी, विक्रमशिला जैसी अनेक संस्थाएं थीं जो पूरे भारत में छाई हुई थीं। दलाई लामा जी ने कहा था कि जो भी बुद्ध का ज्ञान है, वह सब नालंदा से निकला है। पर क्या हुआ? बख्तियार खिलजी ने निर्मम तरीके से इनको बर्बाद कर दिया, नालंदा को खत्म कर दिया। यह आक्रमण का कारण था। हमारी संस्थाओं को नष्ट किया गया।

अंग्रेज कल आए, हमारी संस्थाओं की ताकत थी, उसे सहब कर लिया गया। जो भारत दुनिया में ज्ञान का केंद्र था, पूरी दुनिया भारत की ओर देखती थी, उन संस्थाओं की जड़ें काट दी गईं।

मित्रों, मैं आपको बताता हूं, और इसे कभी न भूलें, बख्तियार खिलजी ने अपनी गहरी कट्टरता के कारण शिक्षा के उस महान केंद्र, नालंदा को नष्ट कर दिया, और मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष इतिहास का निष्कर्ष है। मैं जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। इसके बाद, जैसा कि मैंने संकेत दिया, ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय संस्थानों को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया गया। अंग्रेजों के जमाने में उनका ध्वस्त किया गया।

स्वामी विवेकानंद जी वह महापुरुष थे, अजमेर अपने यहां से ज्यादा दूर नहीं है वह देवलोक पधारे वहां से। 19 सेंचुरी में उन्होंने बड़ा प्रयास किया इसको वापस उजागर करने का। अब समय आ गया है कि इस महान यज्ञ में, भारत को शिक्षा का मुख्य केंद्र बनाने में हर कोई आहुति दे।

मैं व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और व्यवसाय से जगत अपील करता हूं। उन्हें इन संस्थानों के विकास में उदारतापूर्वक योगदान देना चाहिए। शिक्षा में जो भी धन लगाया जाएगा, शिक्षा में कोई भी निवेश हमारे भविष्य में एक निवेश है, हमारे आर्थिक उत्थान में एक निवेश है, और शांति एवं स्थिरता के लिए एक निवेश है। हमारा संकल्प होना चाहिए कि जब भारत 2047 में विकसित राष्ट्र बने, तो हम दुनिया में ज्ञान की एक महाशक्ति हों। और ऐसा क्यों नहीं, क्योंकि हम सदियों तक थे।

सबसे पहले, मुझे यह कहने दीजिए कि आज के हालात क्या हैं। हमारे समय के हालात, आजकल के बच्चों के समझ में भी नहीं आएंगे। आज हालत बहुत बेहतर हैं। तब के हालात का वर्णन नहीं करना चाहता, पर आज के हालात यह हैं कि कानून के सामने सबकी समानता है। संरक्षण अब किसी अनुबंध या नौकरी का पासवर्ड नहीं है, योग्यतातंत्र का शासन है। विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली योग्यतातंत्र के आगे झुक गया है।

और आज का जो शासन है, वह पारदर्शिता का है, उत्तरदायित्व का है। इसमें भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। छात्र एवं छात्राओं, आप भाग्यशाली हैं कि आप एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहां आप एक ऐसे इकोसिस्टम से लाभान्वित हो रहे हैं जो आपको अपनी प्रतिभा का संपूर्ण रूप से दोहन करने, अपनी आकांक्षाओं को साकार करने और अपने सपनों को हासिल करने की अनुमति देता है।

एक नई बीमारी और है, बच्चों, मैं आपको इंगित कर रहा हूं, विदेश जाने की।

विदेश पढ़ाई करने की काउंसलिंग पेरेंट्स को होती नहीं है। बच्चा लालायित होकर जाना चाहता है। उसको नया सपना दिखता है। उसको लगता है कि वहां जाते ही स्वर्ग मिल जाएगा। कोई आकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है, बस एक अंधाधुंध रास्ता है कि मुझे विदेश जाना है। आपको आश्चर्य होगा, 18 से 25 साल के बीच में जो लड़के और लड़कियां हैं, वह एडवर्टाइजमेंट से प्रभावित हो जाते हैं। और अंदाजा क्या है? 2024 में, 13 लाख छात्र-छात्राएं विदेश गए। उनके भविष्य का क्या होगा, उसका आकलन हो रहा है। यहां पढ़ते तो कितना उज्जवल होता, लोगों के समझ में आ रहा है।

और देश पर कितना बोझ है। उन्होंने हमारी फॉरेन एक्सचेंज में 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान कर दिया है। अंदाजा लगाइए यदि यह 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर शैक्षणिक संस्थानों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए खर्च किए गए होते, तो हमारे हालात क्या होते। इस ओर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। यह जो फॉरेन एक्सचेंज का लॉस है, मैं इसे फोरेक्स ड्रेन एवं ब्रेन ड्रेन कहता हूं, ऐसा नहीं होना चाहिए। संस्थाओं का उत्तरदायित्व है कि वह अपने छात्र-छात्राओं को विदेशी हालात के बारे में अवगत कराएं। बताएं, जिस संस्था में आप एडमिशन ले रहे हैं, उसकी रैंकिंग क्या है, उसकी स्थिति क्या है। और इसी के साथ हमें एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाना चाहिए कि जो भी समर्थवान हैं, वह समाज को देने की नीयत से, उस नीति पर आधारित रहकर, साफ मन से संस्थाओं का निर्माण करें श्रेणी 2 वाले शहरों में, श्रेणी 3 वाले शहरों में और ग्रामीण प्रांत में। यह देश के लिए बहुत बड़ा बदलाव होगा।

आज के दिन टेक्नोलॉजी हमारे बीच आ गई है। हम इसका उतना उपयोग नहीं कर पा रहे हैं जितना होना चाहिए। हमारे अध्यापक और अध्यापिकाओं में यह प्रतिभा है, लेकिन भौतिक बाधाएँ हैं। वे हर जगह या कहीं भी नहीं हो सकते। हमें शिक्षा के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का उपयोग करना चाहिए। इससे हमारे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में काफी मदद मिलेगी।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब नौकरी का मामला आता है, कि हम कहां जाएं, तो फिर समझ में नहीं आता है और 8-10 नौकरियों के पीछे लोग भागते रहते हैं। अवसरों की हमारी झोली दिनोंदिन बड़ी होती जा रही है। सैकड़ों अवसर हैं, ब्लू इकोनॉमी में, समुद्र में, स्पेस में। ऐसा कोई जीवन का अंग नहीं है जहां प्रतिभा की आवश्यकता नहीं है। लेकिन हमारे विद्यार्थी, लड़के और लड़कियां, इस झोली से पूरी तरह परिचित नहीं हैं। युवाओं में अवसरों की लगातार बढ़ती झोली के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि 10% को भी यह नहीं पता कि 10 नौकरियों के अलावा और कौन सी प्रतिभाएं उपयोग में ली जा सकती हैं।

इसलिए मैं शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग जगत के प्रमुखों से सेमिनार आयोजित करने और हमारे युवकों एवं युवतियों को उन विकल्पों से अवगत कराने का आह्वान करता हूं जहां वे देश और खुद की सेवा करने की आकांक्षा कर सकते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 34 साल के बाद, सैकड़ों और हजारों हितधारकों को ध्यान में रखने के बाद, यह गेम चेंजर है। यह कार्य प्रगति पर है, समय लगेगा, पर हमें इसको जल्दी ग्रहण करना चाहिए। इसके हर पहलू को समझना चाहिए। यह हमारे नवयुवकों और नवयुक्तियों के लिए ब्रह्मास्त्र का काम करेगा। बिना जानकारी या जानकारी के अभाव में हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से होने वाले व्यापक लाभ को हासिल करने में असमर्थ हैं।

आज के दिन हमारा भारत दुनिया के अंदर बहुत महत्व रखता है। कभी भी आज से पहले भारत की आवाज इतनी नहीं सुनी गई, कभी भी भारत की आवाज विश्व के पटल पर इससे ज्यादा बुलंद नहीं रही। ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति की धारणा होनी चाहिए, निष्ठा होनी चाहिए कि हम हमारे राष्ट्र में विश्वास रखेंगे, हर परिस्थिति में हम राष्ट्र को पहले रखेंगे। राजनीतिक, व्यक्तिगत या आर्थिक हित को राष्ट्र से ऊपर नहीं रखेंगे। कुछ लोग इसको चुनौती दे रहे हैं। उस चुनौती को खत्म करना,  इन ताकतों को, देश विरोधी ताकतों को निष्क्रिय करना हमारे युवाओं का दायित्व है।

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एमजी/आरपीएम/केसी/आर



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