विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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केंद्रीय राज्य मंत्री श्री जितेंद्र सिंह ने भारत की जलवायु कार्रवाई के प्रमुख कारको के रूप में सहयोग और नवाचार पर बल दिया


भारत की जलवायु रणनीति और अनुकूलन प्रयासों के लिए जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना आवश्यक है:- डॉ. जितेंद्र सिंह

डॉ. सिंह ने जलवायु के लिए लड़ाई में लोगो से सामूहिक प्रयास करने का आग्रह किया और सस्टैनबिलिटी की दिशा में सरल दैनिक कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया

Posted On: 16 OCT 2024 6:46PM by PIB Delhi

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है। यह एक ऐसी चुनौती है जो अब दूर का खतरा नहीं बल्कि जीवन, अर्थव्यवस्था और ग्रह के भविष्य को प्रभावित करने वाली एक तात्कालिक वास्तविकता है। वे आज नई दिल्ली में टाइम्स नाउ ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी अलायंस के एसडीजी शिखर सम्मेलन 2024 के छठे संस्करण को संबोधित कर रहे थे। संबोधन का विषय था जलवायु परिवर्तन के लिए भारत के विज्ञान आधारित लक्ष्यों में बदलाव लाना।

दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में भारत की जिम्मेदारी को पहचानते हुए, डॉ. सिंह ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों के साथ सतत विकास को संतुलित करने के लिए देश की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने विज्ञान-आधारित लक्ष्यों के महत्व के बारे में बताया, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप, वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने का लक्ष्य रखते हैं और इसे 1.5 डिग्री तक सीमित करने की आकांक्षा रखते हैं।

उन्होंने भारत के प्रमुख जलवायु लक्ष्यों को रेखांकित किया, इसमें शामिल हैं:

2005 के स्तर को आधार रेखा के रूप में उपयोग करते हुए, 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता में 33-35 प्रतिशत की कमी करना।

गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता।

2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य।

राज्य मंत्री ने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने सरकार, उद्योग, शिक्षा और नागरिक समाज के बीच मजबूत साझेदारी का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि नवाचार भारत की रणनीति का केंद्र होगा, चाहे वह नवीकरणीय ऊर्जा, संधारणीय कृषि या हरित प्रौद्योगिकियों में प्रगति के माध्यम से हो। सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इन नवाचारों को आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।

डॉ. सिंह ने जलवायु कार्रवाई का मार्गदर्शन करने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित मजबूत नीतिगत ढांचे के बारे में बताय। इसमें जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 2008 में शुरू की गई एनएपीसीसी में आठ प्रमुख मिशन शामिल हैं, जो जलवायु अनुकूलन और शमन के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हैं:

 

1. राष्ट्रीय सौर मिशन: इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।

2. राष्ट्रीय पवन ऊर्जा मिशन: पवन ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने और पवन प्रौद्योगिकी में नवाचार को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।

3. ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन: ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पीएटी) योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से प्रयास करता है।

4. सतत आवास पर राष्ट्रीय मिशन: इसका उद्देश्य भवनों, शहरी नियोजन और अपशिष्ट प्रबंधन में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना है।

5. राष्ट्रीय जल मिशन: जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करते हुए जल संरक्षण और समान वितरण पर ध्यान केंद्रित करता है।

6. हिमालयी ईकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन: अनुसंधान और निगरानी के माध्यम से कमज़ोर हिमालयी ईकोसिस्टम की रक्षा करने का काम करता है।

7. कृषि अनुकूलन पर राष्ट्रीय मिशन: इसका उद्देश्य सतत प्रथाओं और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि में लचीलापन बनाना है।

8. हरित भारत पर राष्ट्रीय मिशन: वन क्षेत्र को बढ़ाने, बिगड़े ईकोसिस्टम को बहाल करने और ईकोसिस्टम सेवाओं को बढ़ाने का प्रयास करता है।

 

इसके अलावा उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों को मजबूत करने के लिए विभिन्न क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियाँ विकसित की हैं। इन लक्ष्यों में शामिल हैं:

ऊर्जा क्षेत्र: स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा भंडारण के कार्यान्वयन के साथ-साथ सौर, पवन और बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश।

परिवहन: इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देना और सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को बढ़ाना।

कृषि: जलवायु-अनुकूल फसलों, बेहतर सिंचाई और सस्टैनबल कृषि पद्धतियों पर ध्यान केन्द्रित करना।

शहरी विकास: सस्टैनबल शहरी नियोजन, हरित भवन पद्धतियों और अपशिष्ट प्रबंधन पहलों को प्रोत्साहन देना।

जल संसाधन: जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और नदी बेसिन प्रबंधन को बढ़ावा देना।

आपदा प्रबंधन: बेहतर पूर्व चेतावनी प्रणालियों और सामुदायिक तैयारियों के माध्यम से जलवायु-प्रेरित आपदाओं के विरुद्ध तन्यकता को मजबूत करना।

डॉ. सिंह ने प्रत्येक नागरिक से जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल होने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि दैनिक जीवन में सरल परिवर्तन महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने सस्टैनबिलिटी की संस्कृति को बढ़ावा देने के महत्व पर बल दिया और सभी हितधारकों से एक लचीले और सस्टैनबल भविष्य की दिशा में सहयोग करने का आग्रह किया।

उन्होंने आयोजकों को बधाई दी और कार्यक्रम की सफलता की कामना की।

 

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